पा षष्ठी व्रत क्यों किया जाता हैं, जानें पूजा विधि, कथा और महत्व(Why is Champa Shashthi Vrat, know puja vidhi, katha and importance):-मार्गशीर्ष महीने के शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि को चंपा षष्ठी या चंपा छठ कहते हैं। आज के दिन ही विष्णुजी ने मायामोह में ग्रस्त नारदजी का उद्धार किया था। सांसारिक मायामोह से छुटकारा पाने की दृष्टि से इस व्रत का बड़ा महत्त्व हैं।
चंपा षष्ठी व्रत की पूजन विधि:-चंपा षष्ठी व्रत के दिन निम्नलिखित तरह पूजन करना चाहिए-
◆प्रातःकाल जल्दी उठकर अपनी रोजमर्रा के काम जैसे-स्नानादि को पूरा करना चाहिए।
◆फिर नये या धुले हुए स्वच्छ कपड़ों को पहनना चाहिए।
◆भगवान विष्णु जी का षोडशोपचार पूजा करनी चाहिए।
षोडशोपचारैंः पूजा कर्म:-इस तरह भगवान विष्णु जी का षोडशोपचारैंः पूजा कर्म करना चाहिए-
पादयो र्पाद्य समर्पयामि, हस्तयोः अर्ध्य समर्पयामि,
आचमनीयं समर्पयामि, पञ्चामृतं स्नानं समर्पयामि
शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि, वस्त्रं समर्पयामि,
यज्ञोपवीतं समर्पयामि, गन्धं समर्पयामि,
अक्षातन् समर्पयामि, अबीरं गुलालं च समर्पयामि,
पुष्पाणि समर्पयामि, दूर्वाड़्कुरान् समर्पयामि,
धूपं आघ्रापयामि, दीपं दर्शयामि,
नैवेद्यं निवेदयामि, ऋतुफलं समर्पयामि,
आचमनं समर्पयामि समर्पयामि,
ताम्बूलं पूगीफलं,
दक्षिणांं च समर्पयामि।।
◆ततपश्चात विधिपूर्वक भगवान श्रीविष्णुजी की आराधना करनी चाहिए।
◆उसके बाद ब्राह्मणों को भोजन करना चाहिए।
◆फिर ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देकर उनको सन्तुष्ट करना चाहिए।
◆विशेषकर ऊनी कपड़ों का दान करने का विशेष महात्मय हैं।
चंपा षष्ठी की पौराणिक कथा:-एक बार महर्षि नारदजी ने महादेवजी के सामने अपने त्याग तथा तप सहित संयम का गर्वपूर्ण वर्णन किया। इस पर महादेवजी ने उन्हें आज्ञा दी कि यह सब विष्णुजी के सामने मत कहना, एमजीआर नारदजी भला कहां मानने वाले थीम आखिर ऐसा कैसे हो सकता था कि उन्होनें कोई उपलब्धि पाई हो और अपनी त्याग-तपस्या का वर्णन करने लगे। भगवान श्रीविष्णुजी नारदजी के अभिमान को समझ गए। उन्हें मालूम था कि भक्तों में अभिमान का आना उनके पतन का लक्षण होता हैं। अतः उन्होनें नारदजी को सचेत करने का उपक्रम किया। जब नारदजी विष्णुजी के पास लौट रहे थे तो उन्हें मार्ग में एक समृद्ध राज्य देखने को मिला। वहां का राजा देवता के समान था। उसकी एक बड़ी ही रूपमती पुत्री थी। नारदजी राजकुमारी के सौन्दर्य पर आसक्त हो गए। इसे सयोंग ही कहा जाएगा कि राजकन्या का स्वयंवर होने वाला था। उनके मन में उसी से विवाह करने की लालसा जाग उठी। लेकिन नारदजी तो दाढ़ी वाले संयास थे। ऐसे व्यक्ति से भला राजकुमारी विवाह क्यों करेगी? यह सोचकर वे विष्णुजिंक पास गए और सारा वर्णन करके उनसे उनका रूप मांगा। विष्णुजी ने उन्हें रूप का वरदान देकर भेज दिया। स्वयंवर में जब राजकन्या ने किसी अन्य व्यक्ति के गले में जयमाला डाल दी तो नारदजी को बड़ा क्रोध आया। वे समझ ही नहीं पाए कि सबको मोहित कर देने वाले विष्णुजी के रूप को इस कन्या ने क्यों ठुकरा दिया। लोगों के कहने पर जब नारदजी ने अपना प्रतिबिम्ब देखा तो उन्होंने अपना मुहं बन्दर का पाया। तब क्रुद्ध होकर नारदजी ने श्रीविष्णुजी को शाप दिया कि जिस रूप को देकर आपने मुझे दुःखी किया हैं, आपदा पड़ने पर यही रूप आपकी सहायता करेगा? परिणामतः रामावतार में श्रीहनुमानजी का अवतरण हुआ। उक्त स्वयंवर मार्गशीर्ष शुक्ल षष्ठी को ही हुआ।
चंपा षष्ठी व्रत को करने से मिलने वाले लाभ:-चंपा षष्ठी का व्रत बहुत महत्वपूर्ण होता हैं, इस व्रत को करने से अनेक तरह के लाभ मिलते है, जो इस तरह हैं-
◆जो चंपा षष्ठी का व्रत करते हैं, तो उन मनुष्य को मोह-माया से मुक्ति मिल जाती हैं।
◆मनुष्य को जन्म लेने एवं मृत्यु आदि से मुक्ति मिल जाती हैं और उस मनुष्य का उद्धार हो जाता हैं, जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती हैं।
◆जो व्रती इस व्रत को करते हैं उन व्रती के मन में जो घमण्ड होता हैं, वह समाप्त हो जाता हैं।
◆मनुष्य के मन में सांसारिक सम्बन्धित भावनाओं का अंत हो जाता है।
◆जो मनुष्य के द्वारा किये गए बुरे कर्मों का अंत हो जाता हैं।
◆मनुष्य को समस्त तरह के सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।