देव मूर्ति की परिक्रमा क्यों की जाती है और क्या महत्त्व हैं? (Why is the circumambulation of the deity done and what is its importance):-जब से सृष्टि की रचना हुई हैं, तब से ऋषि-मुनियों ने मनुष्य के जीवन को सुखदायक बनाने के लिए अपने ज्ञान के चक्षुओं को चारों तरफ लगा दिया। जिससे मनुष्य को समस्त तरह से सूखी जीवन मिल सके। इसके लिए उन्होंने बहुत सारे विधान बताएं हैं। मनुष्य को चार पुरुषार्थ (अर्थ, काम, धर्म और मोक्ष) से परिपूर्ण रखने के लिए भी बहुत उन्होंने कार्य किए हैं। देवी-देवताओं के द्वारा मनुष्य अपने धर्म का पालन करते हुए अंत में मोक्ष की गति को पा सके। इसलिए उन्होंने मनुष्य के लिए यदि वह धर्म से सम्बंधित विशेष रूप कार्य नहीं कर सके, इसके लिए देवी-देवताओं की परिक्रमा करके भी उसे धर्म से सम्बंधित कार्य को पूरा कर सके और अपना उद्धार कर सके। इसके लिए ऋषि-मुनियों ने देवी-देवताओं की मूर्ति के चारों तरफ चक्कर लगाने का विधान शुरू किया जिससे मनुष्य अपना उद्धार कर सके, इस तरह देवी-देवताओं की मूर्ति के चारों तरफ गोल-गोल घूमते हुए चक्कर लगाने की प्रक्रिया को परिक्रमा या प्रदक्षिणा कहा जाने लगा। ऋषि-मुनियों ने न केवल देवी-देवताओं बल्कि पीपल वृक्ष, अश्वत्थ वृक्ष, तुलसी आदि के साथ ही नदियों जैसे-गंगा, नर्मदा, यमुना और गोदावरी आदि के भी परिक्रमा का विधान बनाया था। जिससे मनुष्य का शरीर निरोग रह सके और जीवनकाल ठीक तरह से व्यतीत कर पावे। चार वेद में से ऋग्वेद में प्रदक्षिणा के बारे में बहुत विवरण मिलता हैं। संस्कृत में परिक्रमा को ही प्रदक्षिणा कहा जाता है।
प्रदक्षिणा शब्दों का मेल:-प्रदक्षिणा दो शब्दों के मेल से बना हैं, जिनमें एक शब्द प्रा और दूसरा शब्द दक्षिणा होता हैं।
प्रा का अर्थ:-प्रा एक उपसर्ग होता हैं, जिसका अर्थ आगे की तरफ गति करना होता हैं।
दक्षिणा का अर्थ:-ब्रह्माण्ड में मुख्यतः चार दिशाएं मानी जाती हैं, जो कि उत्तर, दक्षिण, पूर्व एवं पश्चिम दिशा होती हैं। इस तरह से चार दिशाओं में से एक दक्षिण दिशा की तरफ गमन करने को दक्षिणा कहते हैं।
परिक्रमा या प्रदक्षिणा का अर्थ:-देवी-देवताओं को खुश करने के लिए उनके चारों तरफ चक्कर लगाते हुए उनकी भक्ति करते हुए दक्षिण दिशा की तरफ गमन करके उनसे आसीस को प्राप्त करना ही परिक्रमा या प्रदक्षिणा कहलाता हैं।
'प्रगतं दक्षिणमिति प्रदक्षिणं'
अर्थात् परिक्रमा या प्रदक्षिणा का अर्थ:-देवी-देवताओं की प्रतिमा या मूर्ति के चारों तरफ वृत्ताकार चक्कर लगाना जिसमें देवी-देवताओं के मंदिर मनुष्य के दाएं तरफ या दक्षिण तरफ रहे उसे परिक्रमा या प्रदक्षिणा कहा जाता हैं। इस तरह से परिक्रमा करने के बाद में नतमस्तक होकर अभिवादन देवी-देवताओं का करना चाहिए।
दैवीय शक्ति की आभामंडल की गति दक्षिणवर्ती होना:-देवी-देवताओं की शक्ति की चमक या कान्ति की गति का मुहं दाएं तरफ की ओर मुड़ा हुआ होता है, जिससे अलौकिक दीप्ति या प्रकाश हमेशा दाईं तरफ या दक्षिण दिशा की तरफ ही चलता हैं। इसलिए मनुष्य के द्वारा अपने दाएं हाथ की तरफ से देवमूर्ति के चारों तरफ चक्कर लगाकर परिक्रमा करना ही शास्त्रों में उत्तम बताया गया हैं। मनुष्य के द्वारा दाएं हाथ की तरफ से फिरते हुए देवमूर्ति के चक्कर लगाना ही परिक्रमा का सही मतलब होता हैं।
वामवर्ती दिशा में परिक्रमा करने का फल:-जब मनुष्य के द्वारा वामवर्ती या उल्टी तरफ या बाएं हाथ की तरफ से देवमूर्ति के चारों ओर चक्कर लगाकर परिक्रमा करते हैं, तब देवी-देवताओं की आलौकिक दीप्ति की गति और मनुष्य के शरीर में विद्यमान दिव्य परमाणुओं में एक टकराव उत्पन्न होता हैं, जिससे मनुष्य में विद्यमान तेज समाप्त हो जाता हैं, इसलिए मनुष्य को बाएं हाथ की तरफ से या वामवर्ती ओर से देवमूर्ति के चारों तरफ चक्कर लगाकर परिक्रमा करना शास्त्रों में मना किया गया है। इस तरह से उल्टी दिशा में परिक्रमा करना एक तरह धर्म एवं नीति के विरुद्ध किया जाना वाला आचरण माना जाता हैं, जिससे उस मनुष्य के द्वारा इस तरह की परिक्रमा के कर्म करने से उस दैवीय शक्ति के द्वारा बुरे नतीजे को भोगना पड़ता हैं। इसलिए मनुष्य को बाएं हाथ की तरफ से देवमूर्ति के चारों तरफ चक्कर नहीं लगाना चाहिए। वरना इस तरह से बुरे नतीजे प्राप्त होते हैं।
पद्मपुराण में हरिपूजा विधि वर्णन के अंतर्गत:- श्लोक ११५-११७ में इस तरह से कहा गया है-
हरिप्रदक्षिणे यावत्पदं गच्छेत शनैः शनैः।
पदपदेSश्वमेधस्य फलं प्राप्नोति मानवः।।
यावत्पादं नरो भक्त्या गच्छेद्विष्णुप्रदक्षिणे।
तावत्कल्पसहस्त्राणि विष्णुना सह मोदते।।
प्रदक्षिणीकृत्य सर्वं संसारं यत्फल भवेत्।
हरि प्रदक्षिणीकृत्यं तस्मात्कोटि गुणं फलम्।।
अर्थात्:-भगवान श्रीहरि की प्रतिमा की परिक्रमा करने के सम्बंध में पद्म पुराण में इस प्रकार कहा गया है कि 'जो भक्त पूर्ण विश्वास भाव से एवं श्रद्धा-भक्ति से भगवान श्रीहरि का ध्यान मन ही मन में करते हुए धीरे-धीरे पग उठाकर देवमूर्ति के चारों तरफ चक्कर लगाकर परिक्रमा करता है, इस से जब वह मनुष्य अपने एक-एक पग के चलने में एक-एक अश्वमेध यज्ञ करने से मिलने वाले फल की तरह फल प्राप्त करता हैं। श्रद्धालु भक्त जितने पग से देवमूर्ति के चारो तरफ चक्कर लगाते-लगाते चलते हुए परिक्रमा करते है, वह उतने सहस्त्र कल्पों तक भगवान श्रीहरि के धाम में श्रीहरि के चरणों की सेवा करना सौभाग्य को प्राप्त करते हैं और श्रीहरि के साथ ही प्रसन्नतापूर्वक निवास करता हैं। सम्पूर्ण ब्रह्मांड के चारों तरफ का चक्कर लगाने से जो पुण्य फल प्राप्त होता हैं, उससे भी करोड़ गुणा अधिक फल भगवान श्रीहरि की परिक्रमा करने से मिल जाता हैं।'
देवी-देवताओं की परिक्रमा की संख्या:-हिन्दुधर्म शास्त्र में देवी-देवताओं की परिक्रमा करने को बहुत जरूरी बताया है, क्योंकि देवी-देवताओं की मूर्ति की जब कोई मनुष्य जितनी अधिक संख्या में परिक्रमा करते हैं, तब उस देवी-देवताओं से सम्बंधित आशीर्वाद भी अधिक मिलता हैं। मनुष्य को देवी-देवताओं की परिक्रमा करते समय उनके निमित शास्त्रों में देवी-देवताओं की परिक्रमा की संख्या अलग-अलग बताई गई हैं, उन संख्या के आधार पर देवी-देवताओं की परिक्रमा करनी चाहिए।
1.भगवान श्रीकृष्ण मूर्ति की परिक्रमा की संख्या:-मनुष्य को भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा के चारों तरफ तीन बार की संख्या में चक्कर लगाते हुए परिक्रमा पूरी करनी चाहिए।
2.भगवान देवी माता की मूर्ति की परिक्रमा की संख्या:-मनुष्य को देवी माता की प्रतिमा के चारों तरफ केवल एक बार की संख्या में चक्कर लगाते हुए परिक्रमा पूरी करनी चाहिए।
3.सामान्यतः मूर्ति की परिक्रमा की संख्या:-मनुष्य को सामान्यतः प्रतिमा के चारों तरफ केवल एक बार, पांच बार, सात बार या ग्यारह बार की संख्या में चक्कर लगाते हुए परिक्रमा पूरी करनी चाहिए।
4.भगवान भास्करदेव की मूर्ति की परिक्रमा की संख्या:-मनुष्य को भास्करदेव की प्रतिमा के चारों तरफ केवल सात बार की संख्या में चक्कर लगाते हुए परिक्रमा पूरी करनी चाहिए।
5.भगवान श्रीहनुमानजी मूर्ति की परिक्रमा की संख्या:-मनुष्य को भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा के चारों तरफ तीन बार की संख्या में चक्कर लगाते हुए परिक्रमा पूरी करनी चाहिए।
6.भगवान शिवजी की मूर्ति की परिक्रमा की संख्या:-अन्य सभी देवी-देवताओं से अलग भगवान शिवजी की परिक्रमा शास्त्रों में बताई गई हैं। हिन्दुधर्म शास्त्रों में जब भगवान भोलेनाथ जी का अभिषेक हो रहा होता हैं, तब मनुष्य को भगवान भोलेनाथ जी के अभिषेक की धार को पार नहीं करते हुए परिक्रमा करने का बताया हैं। इस वजह से भगवान भोलेनाथ जी की परिक्रमा कभी भी पूरी नहीं कि जाती है। जब मनुष्य भोलेनाथ जी की परिक्रमा करते हैं, तब वे भगवान भोलेनाथ जी की प्रतिमा के चारों तरफ नहीं पूर्ण चक्कर लगाकर आधे चक्कर को करते हुए वापिस लौट जाते हरण, फिर पुनः आधी परिक्रमा करते हैं। शास्त्रों में भोलेनाथजी की परिक्रमा के बारे में बताया गया हैं, की भगवान भोलेनाथजी के मुख के चारों ओर का वह प्रभापूर्ण मंडल प्रतिमा में दिखाई पड़ता हैं, उस प्रभापूर्ण मंडल के उस चमक या प्रताप की गति दोनों तरफ होती हैं अर्थात् शिवजी के प्रभापूर्ण मंडल के चमक की गति का मुहँ बाई ओर घुमा हुआ और दाएं ओर घुमा हुआ होता हैं।
प्रदक्षिणा करने के विषय में दूसरा मत:-देवी-देवताओं के अनुसार अलग-अलग प्रदक्षिणा करनी चाहिए, जिसमें दूसरा मत अधिक प्रचलित हैं।
विश्वासरतन्त्र के अनुसार:-मनुष्य को अपने हाथ में शंख को लेकर देवी-देवताओं की प्रदक्षिणा करनी चाहिए।
1.भगवान श्रीगणपति जी मूर्ति की परिक्रमा की संख्या:-मनुष्य को भगवान श्रीगणपति जी की प्रतिमा के चारों तरफ एक बार की संख्या में चक्कर लगाते हुए परिक्रमा पूरी करनी चाहिए।
2.भगवान भास्करदेव की मूर्ति की परिक्रमा की संख्या:-मनुष्य को भास्करदेव की प्रतिमा के चारों तरफ केवल दो बार की संख्या में चक्कर लगाते हुए परिक्रमा पूरी करनी चाहिए।
3.भगवान श्रीचक्रपाणी जी की मूर्ति की परिक्रमा की संख्या:-मनुष्य को श्रीचक्रपाणी जी की प्रतिमा के चारों तरफ केवल चार बार की संख्या में चक्कर लगाते हुए परिक्रमा पूरी करनी चाहिए।
4.अश्वत्थ वृक्ष की परिक्रमा की संख्या:-मनुष्य को अश्वत्थ वृक्ष के चारों तरफ केवल सात बार की संख्या में चक्कर लगाते हुए परिक्रमा पूरी करनी चाहिए।
देवी-देवताओं की मूर्ति की परिक्रमा करते समय रखने योग्य सावधानियां:-मनुष्य को किसी देवी-देवताओं और देवी-देवताओं के निमित पेड़-पौधों की परिक्रमा करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान रखना चाहिए। जो कि जिस देवी-देवताओं के प्रति अपना समर्पण भाव को दर्शाता हैं। इसलिए परिक्रमा करते कुछ विशेष सावधानियां रखनी चाहिए-
◆मनुष्य भक्त को किसी भी देवी-देवता की परिक्रमा करते समय अपने मन को एक जगह पर केंद्रित करते हुए परिक्रमा जिस देवी-देवताओं की कर रहे होते हैं, उन देवी-देवताओं को अपने मन मन्दिर में जगह देते हुए उनके नाम को मन ही मन में उच्चारित करते हुए परिक्रमा करनी चाहिए।
◆परिक्रमा करते समय मनुष्य को जिस किसी देवी-देवताओं की परिक्रमा करते हो उन देवी-देवताओं के मंत्र यदि याद हो तो उन मंत्रों का मन ही मन में परिक्रमा करते समय दोहराना चाहिए। यदि मंत्र याद नहीं हो तो उन देवी-देवताओं के नाम को दोहराना चाहिए, जिससे देवी-देवताओं का आशीर्वाद मिल सके।
◆मनुष्य को परिक्रमा करते समय मन को शांत रखना चाहिए। दूसरी बातों से बचना चाहिए।
◆परिक्रमा करते समय मनुष्य को दूसरे मनुष्य को धक्का-मुक्की नहीं करना चाहिए।
◆परिक्रमा करते समय मनुष्य को किसी भी मनुष्य से बातचीत नहीं करनी चाहिए। चुपचाप बिना अपने होठों को हिलाए हुए मन में देवी-देवताओं को याद करते हुए परिक्रमा करनी चाहिए।
◆मनुष्य को परिक्रमा करते समय किसी भी तरह के मुंह में कोई वस्तु या खाद्य वस्तु का सेवन नहीं करना चाहिए।
◆मनुष्य को परिक्रमा के दौरान किसी दूसरे मनुष्य के साथ हास्य की बातें भी नहीं करनी चाहिए।
◆मनुष्य को परिक्रमा करते समय अपने पाद में धारण चप्पल, जूते आदि को निकालकर बिना किसी वस्तु को पहने हुए ही प्रदक्षिणा करनी चाहिए।
◆मनुष्य को अपने में दूसरों के प्रति बुरे विकारों नहीं रखते हुए परिक्रमा करनी चाहिए।
◆मनुष्य को दूसरे मनुष्य के प्रति गलत विचारों, मन में गुस्से को धारण करते हुए और दूसरों के बारे में ईष्या के भाव रखते हुए परिक्रमा नहीं करनी चाहिए।
◆मनुष्य को अपने लिए किसी भी तरह की इच्छाओं की पूर्ति को लेकर परिक्रमा नहीं करनी चाहिए।
◆मनुष्य को परिक्रमा करते समय यदि देवी-देवताओं से सम्बंधित कोई प्रिय वस्तु या सामग्री जैसे-तुलसी, रुद्राक्ष अथवा कमलगट्टे की माला आदि पास में होने पर उनको धारण करते हुए परिक्रमा करनी चाहिए।
◆मनुष्य के द्वारा अपनी परिक्रमा को पूरा करने के बाद देवमूर्ति को अपने आठ अंगों जैसे-सिर, हस्त, पाद, नेत्र, जाँघ, वचन और मन आदि से युक्त होकर जमीन पर सीधा लेटकर नतमस्तक होकर अभिवादन करना चाहिए।
◆मनुष्य को आदरपूर्ण आस्था या विश्वास के साथ देवी-देवताओं से असीस के लिए अरदास करनी चाहिए।
देवी-देवताओं की परिक्रमा करने से मिलने वाले लाभ या फायदे:-मनुष्य को देवी-देवताओं की प्रतिमा की परिक्रमा करने से निम्नलिखित लाभ या फायदे होते हैं-
◆मनुष्य अपने इष्टदेवी-देवताओं की प्रतिमा की समस्त शक्तियों की आभा या प्रकाश को उनके चारों तरफ चक्कर लगाकर ही पा सकता है, जिससे उन देवी-देवताओं के चारों तरफ चक्कर को लगाकर उनके द्वारा उस प्रकाश के आशीर्वाद को प्राप्त कर सके।
◆देवी-देवताओं की मूर्ति के चारों तरफ की परिक्रमा करने से मनुष्य को देवी-देवताओं की मूर्ति की प्रकाश से युक्त किरणों से समस्त तरह के आने वाली मुश्किलों से मुक्ति मिल जाती हैं।
◆मनुष्य के जीवन में आने रुकावटों से मुक्ति मिलती हैं।
◆मनुष्य के द्वारा परिक्रमा करने से स्वास्थ्य भी ठीक रहता हैं।
◆परिक्रमा करने से शरीर का उचित प्रकार से व्यायाम होने लगता हैं और शरीर का विकास ठीक तरह से होता हैं।
◆इस समस्त तरह के फायदों के लिए धर्म शास्त्रों में पूजा-पाठ, अभिषेक आदि धार्मिक कार्यों को करने के बाद देवी-देवताओं के चारों तरफ चक्कर लगाकर उनकी परिक्रमा करना जरूरी बताया हैं।
देवमूर्ति की परिक्रमा या प्रदक्षिणा करते समय बोलने का मंत्र:-मनुष्य को देवमूर्ति की प्रदक्षिणा या परिक्रमा करते समय मन ही मन में निम्नलिखित मंत्र को दोहराते रहना चाहिए।
यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणे पदे-पदे।।
अर्थात्:-हे ईश्वर! आप से अरदास करता हूँ, की मेरे द्वारा जानकर और बिना जानकारी से और पहले के जन्मों में मेरे द्वारा धर्म एवं नीति के विरुद्ध किए कर्मों को आप माफी देवे। मेरे द्वारा आपकी प्रतिमा के चारों तरफ चक्कर लगाकर जो परिक्रमा कर रहा हूँ, उससे मेरे सभी बुरे कर्मों का अंत हो जावे। हे ईश्वर आप मुझे अच्छे एवं भलाई के काम करने का ज्ञान देवे जिससे दूसरों का भला हो सके।
देवमूर्ति की परिक्रमा करने का वैज्ञानिक महत्त्व:-देवमूर्ति के चारों ओर चक्कर लगाकर परिक्रमा करना एक धार्मिक विचारहीन विश्वास नहीं होता हैं। बल्कि वैज्ञानिक महत्त्व भी होता हैं। जब मनुष्य के द्वारा किसी भी जगह या मंदिर में पूजा-विधि से देवी-देवताओं की प्रतिमा को प्राण प्रतिष्ठा से प्रतिष्ठित किया जाता है तब प्रतिष्ठित जगह के बीच के भाग से मूर्ति के थोड़ी दूरी तक उस देवी-देवताओं की शक्ति की अलौकिक आभा विद्यमान रहती हैं, जो कि नजदीक में होने पर उस शक्ति का प्रभाव अधिक होता है और जैसे-जैसे उस स्थान से दूरी बढ़ती हैं, वैसे-वैसे उस दिव्य शक्ति की आभा कम होती-होती अंत में समाप्त हो जाती हैं। इस तरह से देवमूर्ति के नजदीक से चारों तरफ चक्कर लगाकर परिक्रमा करने से उन देवी-देवताओं की शक्तियों के आभामंडल से उत्पन्न होने वाले कान्ति मनुष्य को आसानी से मिल जाती हैं।