चरणामृत का अर्थ क्या हैं, जानें चरणामृत बनाने की विधि एवं सेवन का महत्व क्यों हैं? (What is the meaning of Charanamrit, know the vidhi of making Charanamrit and why it is important to consume):-चरणामृत को अमृत के समान धर्मग्रन्थों के रचनाकार न बताया हैं, उनके अनुसार जो मनुष्य ईश्वर की भक्ति नहीं कर पाते हैं, उनको ईश्वर के चरणों के जल का सेवन करना चाहिए, जिससे उनको जो पूजा करने से फल मिलता हैं, वह उनको चरणामृत के जल को ग्रहण करने से मिल सके। भगवान के चरणामृत में अच्छी औषधि की तरह गुण होते हैं। जो भक्त श्रद्धा-भक्ति के साथ चरणामृत का सेवन करता हैं, उसके अनेक तरह की बीमारियों एवं शोक सहज ही नष्ट हो जाते हैं। सबसे पहले मनुष्य को अपने मन ही मन में अपने इष्टदेव को याद करना चाहिए, फिर भगवान के चरणामृत का सेवन करना चाहिए।
चरणामृत का मतलब:-चरणामृत दो शब्दों से मिलकर बना हैं, जब इनका सन्धि विच्छेद करते हैं, तब दो शब्द जिनमें एक शब्द चरण और दूसरा शब्द अमृत मिलता हैं।
चरण का अर्थ:-चरण का अर्थ पैर से होता हैं।
अमृत का अर्थ:-वह सुधा रस होता है,जिसका पान करने से मृत्यु नहीं होती हैं।
चरणामृत का अर्थ:-ईश्वर के चरणों के प्रसाद स्वरूप जो सुधा रस प्राप्त होता हैं और उसका पान करने से कभी भी मृत्यु नहीं होवे अर्थात् देवता की तरह अमर हो जावे उसे ही चरणामृत कहा जाता है। इस तरह चरणामृत के पान से सकारात्म भावों की जागृति होती हैं और समस्त तरह से कल्याण की भावना का जन्म होता हैं। जिस जल से देवी-देवताओं के पाँव को धोया जाता हैं, उसे चरणामृत कहा जाता है।
जब अपने निवास की जगह पर सुबह या शाम के समय भगवान की पूजा एवं आरती करते हैं, तब भगवान के चरणों के निमित जो जल बनाया जाता हैं, वह चरणामृत होता हैं, उस चरणामृत का पान करना चाहिए।
रणवीर भक्ति रत्नाकर के मतानुसार चरणामृत का पान करते समय बोलने योग्य श्लोक एवं लाभ:-जब श्रद्धाभाव रखने वाले एवं अपने इष्टदेव पर विश्वास रखने वाले मनुष्य को चरणामृत को ग्रहण करने से पहले निम्नलिखित श्लोक के शब्दों का वांचन करना चाहिए-
अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधि विनाशनम्।
विष्णुपादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते।।
अर्थात्:-भगवान श्रीविष्णुजी के चरणों कमलो का अमृत के समान जल कको चरणामृत का जब मनुष्य के द्वारा सेवन किया जाता हैं, तब चरणामृत के द्वारा असमय होने वाली मृत्यु से बचाव करता हैं।
◆समस्त तरह की होने वाली शारिरिक एवं मानसिक व्याधियों से बचाव करते हुए उन व्याधियों पर ओषधि की तरह काम करते हुए व्याधियों का नाश करता है।
◆चरणामृत के सेवन से बार-बार के जन्म लेने से मुक्ति मिल जाती हैं।
◆मनुष्य के जन्म लेने एवं मृत्यु आदि का अन्त हो जाता हैं, जिससे मनुष्य का उद्धार हो जाता हैं और अन्त में मोक्ष गति को प्राप्त कर लेते हैं।
◆चरणामृत के जल में पुरुष की शारिरिक शक्ति बढ़ोतरी के गुण भी पाये जाते हैं, जिससे मनुष्य पान करके अपनी पुरुष शक्ति को बढ़ा सकते हैं।
◆मस्तिष्क में होने वाले बिना मतलब के विचारों को शांत करके चित्त को एकाग्रचित्त करने में सहायक भी होता हैं।
◆चरणामृत के पान से मनुष्य की याददाश्त शक्ति में बढ़ोतरी होती हैं।
चरणामृत मिलने का स्थान:-जिस स्थान पर देवी-देवताओं की प्रतिमाओं की प्राणप्रतिष्ठा की हुई होती हैं, जो स्थान मन्दिरों के रूप में होता है, वहां से चरणामृत मिल जाता है। इसलिए मनुष्य को जब भगवान का चरणामृत को पाना होता हैं, तो उनको मन्दिरों में हमेशा प्रातःकालीन एवं संध्याकालीन होने वाली आरती में भाग लेना चाहिए। जिससे उन मनुष्य को देवी-देवताओं का चरणामृत मिल सके। जब आरती हो जाती हैं, तब भगवान का चरणामृत बांटा जाता हैं, तब मनुष्य को चरणामृत को लेना चाहिए।
चरणामृत लेने की रीति:-मनुष्य को मंदिर परिसर या अपने घर की पूजा एवं आरती के बादमें अपने बाएं हाथ की हथेली को दाएं हाथ की हथेली के नीचे रखते हुए अपने दाएं हाथ को ऊपर रखते हुए ही चरणामृत को अपनी अंजलि में लेना चाहिए। इस तरह जो चरणामृत का जल अंजलि में प्राप्त होता हैं, उसे अपने मुहं में ग्रहण करना चाहिए और मन ही मन में अपने इष्टदेव को याद भी करना चाहिए। बहुत से मनुष्य चरणामृत जल को पीने के बाद अपने सिर पर हाथ फेरते हैं, लेकिन उन मनुष्य को इस तरह से सिर पर हाथ नहीं फेरना चाहिए। ऐसा शास्त्रों में बताया गया है, क्योंकि मनुष्य जब मंदिर परिसर या अपने घर की पूजा व आरती के बाद जब वह चरणामृत का जल पान करता हैं, तो उस पूजा एवं आरती के द्वारा उस चरणामृत जल में दैवीय गुणों का संचार हो जाता है, जिससे मनुष्य की देह में सात्विक गुणों का असर भी हो जाता हैं, जब मनुष्य उस चरणामृत के जल का पान करके अपने मस्तिष्क पर हाथ फेरते हैं, तब मनुष्य के मन में बहुत सारी नकारात्मक ऊर्जा का असर होने लगता हैं। मनुष्य को अपने इष्टदेव पर पूर्ण विश्वास भाव एवं श्रद्धाभाव को रखते हर चरणामृत के जल को ग्रहण करना चाहिए। जिससे चरणामृत के जल में उपस्थित समस्त गुणों का एवं इष्टदेव की अनुकृपा मिल सके।
चरणामृत का जल रखने का पात्र:-धर्मग्रन्थों में भगवान के चरणामृत का जल को ताम्र पात्र में रखने को बताया गया हैं।
आयुर्वेद के मतानुसार:-ताम्र धातु से बने पात्र में जब चरणामृत का जल रखा जाता हैं, क्योंकि ताम्र धातु में अनेक तरह की बीमारियों को नष्ट करने की शक्ति होती है। इस तरह ताम्र धातु के पात्र में रखे चरणामृत के जल को जब मनुष्य सेवन करता हैं, तब ताम्र धातु अपनर गुणों से मनुष्य के शरीर से रोगों का हरण करने लगता हैं।
चरणामृत के जल में तुलसी दल को रखना:-चरणामृत के जल में तुलसीदल को रखना चाहिए, क्योंकि तुलसी के पौधे में अनेक तरह के गुणों का भंडार होता हैं, जो कि अनेक तरह की औषधीय गुणों से युक्त होता हैं, जब तुलसीदल को चरणामृत के जल में डाला जाता हैं, तो तुलसीदल में विद्यमान गुणों का संचार भी उस जल में हो जाता हैं। जिससे चरणामृत का जल एक अत्यंत प्रभावशाली औषधि भी बन जाती है। जब तुलसीदल से युक्त ताम्र के पात्र वाले चरणामृत के जल को सेवन किया जाता हैं, तब मनुष्य को आत्म या आत्मा सम्बन्धी एवं अन्तःकरण की निश्चयात्मक वृत्ति की क्षमता में बढ़ोतरी होती हैं।
अर्थात्:-समस्त तरह के किए हुए बुरे कर्मों एवं समस्त तरह की व्याधियों को अपने दूर रखने के लिए भगवान का चरणामृत औषधि की तरह एक अमृत होता हैं, जन चरणामृत के जल में तुलसीदल को भी मिला देते है, तब उसमें औषधिय गुणों में ज्यादा बढ़ोतरी हो जाती हैं।
पापव्याधिविनाषार्थ विष्णुपादोदकौशधम्।
तुलसीदलसम्मिश्रं जलं सर्शपमात्रकम्।।
रामचरित्र मानस के प्रसंग के अनुसार चरणामृत का महत्व:-सन्त कवि तुलसीदास जी ने रामचरित्र मानस की रचना की थी। रामचरित्र मानस में भी भगवान के चरणामृत का प्रसंग मिलता हैं। जब भगवान श्रीरामचन्द्रजी चौदह वर्ष के बनवास के लिए निकले और जब आगे बढ़ने पर उनको सरयू नदी दिखाई पड़ती हैं, उस सरयू नदी को पार किये बिना आगे नहीं जाया जा सकता था। तब भगवान श्रीराम केवट के पास जाकर उससे निवेदन करते हैं, की वह उनको सरयू नदी पार करवाकर दूसरी तरफ के किनारे पर छोड़ देवे। इस तरह के निवेदन करने के बाद वे जब नाव में सवार होने लगते हैं, तब केवट श्रीराम को नाव में चढ़ने से मना कर देता हैं। तब भगवान श्रीराम पूछते है-हे केवट! तुम मुझे क्यों नाव में चढ़ने से मना कर रहे हो। तब केवट बोलता हैं-हे स्वामी! मैं आपको मना कैसे कर सकता हूँ, मैं तो आपसे निवेदन कर रहा हूँ, की आप मुझे आपके पैरों को धोने की अनुमति देवे, उसके बाद आप नाव में बैठ जावे। इस तरह केवट की सच्ची भक्तिपूर्ण और सरल बात को सुनकर अपने पैरों को धोने की आज्ञा दे दी। केवट ने श्रीराम के चरण धोकर उसे चरणामृत के रूप में प्रयोग किया और भव-बंधन से मुक्ति को पाया।
रामचरित्र मानस के अयोध्याकांड में चरणामृत के महत्व के बारे बताया गया:-संत कवि तुलसीदासजी के रामचरित मानस के अयोध्याकांड में इस तरह वर्णन मिलता हैं-
पद पखारि जलपान करि, आपु सहित परिवार।
पितर पार करि प्रभुहिं पुनि, मुदित गयउ ले पार।।
अर्थात्:-केवट ने भगवान श्रीरामजी के चरण को धोकर उस जल को चरणामृत के रूप में अपने परिवार के सदस्यों सहित उसका पान किया। इस तरह भगवान के चरणामृत का पान करके न केवल ही भव सागर से पार हो गया, बल्कि उसने अपने पितरों को भी मुक्ति दिला दी। भगवान के चरणामृत सेवन का महत्त्व इसी से स्पष्ट हो जाता हैं।