पूजा-पाठ में यजमान और पूजा-सामग्री पर जल के छींटे क्यों छिड़के जाते हैं?(Why are water sprinkled on the host and puja material in puja?):-जब से सृष्टि की उत्पत्ति हुई तो सृष्टि के निर्माणकर्ता ब्रह्माजी ने मनुष्य के साथ बहुत सारे जीव-जंतुओं कि भी उत्पत्ति की थी। जैसे-जैसे मनुष्य ने सृष्टि में रहते हुए उनको ज्ञान हुआ। तब मनुष्य ने पांच-देवता की पूजा-अर्चना करना शुरू किया। उस पूजा-अर्चना को महत्त्व देने एवं उस पूजा को देवी-देवता से सम्बंधित बनाना शुरू किया जिससे मनुष्य को उस पूजा-अर्चना का महत्त्व एवं उस पूजा से होने वाले फायदा भी मिल जावे। तब ऋषि-मुनियों ने मनुष्य के जीवन का आधार जल को बहुत आवश्यक मानते हुए पूजा में स्थान दिया, क्योकिं जल जीवन का मूलभूत तत्व होता है, इसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं कि जा सकती हैं। तब जल के महत्व को पूजा में आवश्यक मानते हुए जल को मुख्य स्थान दिया गया। हिन्दुधर्म शास्त्रों में किसी भी तरह से शुभ एवं मांगलिक कार्य को करते समय अनेक तरह के विधान बताए गए हैं। उन विधानों में से एक विधान यह हैं, की पूजा-पाठ अथवा किसी भी धार्मिक अनुष्ठान के समय पंडित यजमान और पूजा-सामग्री पर जल के छींटे का छिड़कना भी आवश्यक होता हैं।
पंडित यजमान और पूजा-सामग्री पर जल छिड़कते समय मंत्र का उच्चारण करना:-पूजा-पाठ अथवा किसी भी धार्मिक अनुष्ठान करते समय जब यजमान अपना आसन ग्रहण कर लेता है तो पंडित यजमान और पूजा-सामग्री पर जल छिड़कते समय इस प्रकार मंत्रोच्चारण करता है-
ऊँ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोSपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं सः वाह्याभ्यन्तरः शुचिः।।
अर्थात्:-यदि मनुष्य अपनी देह को स्वच्छ रखने के लिए स्नानादि क्रियाएँ करके दोष एवं पाप रहित हो या किसी भी तरह के अपवित्र पदार्थ को छूने पर अशुद्ध हों या इस तरह से समस्त तरह की क्रियाओं को अपनाते हुए स्वयं को शुद्ध करता हो और सभी अवस्थाओं जैसे-चलायमान या अचलायमान आदि में किसी भी स्थिति में वह कैसा भी हो, यदि मनुष्य अपने देह को शुद्ध रखते हुए सच्चे मन से पूर्ण विश्वास भाव एवं श्रद्धाभाव रखते हुए भगवान श्रीचक्रपाणीजी को याद करने मात्र से भी शुद्ध एवं पवित्र हो जाता हैं। मनुष्य किसी भी तरह के शास्त्र विहित धर्म से सम्बंधित नित्य-नैमित्तिक आदि कर्मो को करने से पूर्व स्नानादि को करके देह सम्बन्धित पाप एवं दोष से रहित हो चुके होते हैं, लेकिन जब मनुष्य पूजा-पाठ आदि धार्मिक कर्मों को करने के लिए अपने आसन पर बैठते हैं, तब पंडित मनुष्य मंत्रो को पढ़ते हुए तोय को उस मनुष्य पर छिड़कते हैं, जिससे उस यजमान मनुष्य का मन इधर-उधर भटक नहीं पावे एवं एक जगह पर स्थिर होकर अपने पूजा-पाठ आदि कर्म को पूर्ण श्रद्धाभाव से कर सके। इस तरह पूजा आदि में जल को छिड़कने की निर्मलता या पवित्र होने के भाव का ज्ञान होता हैं।
जल छिड़कने से सम्बंधित प्राचीन धारणाओं के आधार पर महत्त्व:-निम्नलिखित हैं-
धर्म ग्रन्थों में वर्णित कथाओं के अनुसार तोय के महत्त्व को त्रिदेवों के उत्पत्ति से जोड़ने पर:-जब सृष्टि की उत्पत्ति भी नहीं हुई थी। समस्त लोकों पर आद्यशक्ति माता का ही सर्वभौम सत्ता थी। फिर उनके द्वारा श्रीचक्रपाणी जी की उत्पत्ति हुई और उनको क्षीरसागर में वास करना पसंद था। वे जब क्षीरसागर के आंचल में गहरी निंद्रा माता के गोद में सो गया तब उनकी नाभि में से एक पंकज के पुष्प खिलते हुए प्रकट होता हैं, उस खिले हुए पंकज के पुष्प से ब्रह्माजी उत्पन्न हुए, इस तरह से श्रीविष्णुजी के नाभि नाल से ब्रह्माजी उत्पन्न होए। तब उनको कुछ समझ में नहीं आया, तब वे देखते हैं, की श्रीविष्णुजी गहरी निंद्रा के आगोश में सोए हुए। उन्होंने श्रीविष्णुजी को जगाना ठीक नहीं समझा और उनके जागने की प्रतीक्षा की जब वे निद्रा की गोद से उठे तब उन्होंने कमल पुष्प की नाल से जुड़े हुए ब्रह्माजी को देखा, तब उन्होंने पूछा कि तुम कौन हो, तब ब्रह्माजी ने कहा-मैं तो आपकी नाभि से उत्पन्न हुआ हूँ। आप ही मेरे स्वामी हो। आप मुझे बताए क्या करूँ? तब श्रीविष्णुजी ने कहा कि-आप सृष्टि का निर्माण कार्य करे। इस तरह से ब्रह्मदेव ने सृष्टि की रचना की थी। इस तरह त्रिदेवों में से तीनों देव ब्रह्माजी जो जल में उत्पन्न होने वाले कमल पुष्प की नाल से उत्पन्न हुए, श्रीविष्णुजी जो कि स्वयं क्षीर सागर में वास करते हैं और भगवान शिवजी जो कि पवित्र गंगाजी को अपने मस्तक पर धारण करते हैं। इस तरह जल के द्वारा उत्पन्न हुए एवं तीनों देवों के अनुसार जल को धारण करते हैं, उनका मुख्य स्रोत होने से उन त्रिदेव देवों को स्मरण करने के लिए जल को उपयोग में लिया जाता हैं। जिससे त्रिदेवों के द्वारा पूजा में उस छिटके हुए जल से शुद्धि हो जाये और पूजा पवित्रता पूर्वक हो सके। इसलिए ध्यान कर सकते हैं।
पदम के उत्पन्न होने के आधार पर समझते हुए जल छिड़कने का महत्त्व:-जिस तरह पद्म कीचड़ के जल में उत्पन्न होते हुए भी अपनी गन्ध से चारों ओर को महकाता हैं और कमल की उत्पत्ति जल में होने पर जल की बूंदे पदम पर ठहरती नहीं है। इस तरह जल का कमल के प्रति उदासीन या अनुराग भाव नहीं होता है। इसलिए पूजा-पाठ अथवा किसी भी धार्मिक अनुष्ठान के समय पंडित यजमान और पूजा-सामग्री पर जल के छींटे मारते हैं, जिससे यजमान अपने जीवन के प्रति अनुराग नहीं रखे और जीवन के प्रति उदासीन सोच रखते हुए अपने जीवन का उद्धार करने में प्रवृत्त हो सके। यजमान को अपने जीवन को नश्वर मानते हुए पंचतत्व में विलीन का ज्ञान होने हेतु।
धर्म गर्न्थो के अनुसार पूजा-पाठ एवं आरती आदि के समय शंख में तोय को भरते हैं, तब थोड़े समय बाद उस शंख में रखे तोय में विशेष तरह की गंध से युक्त होकर तोय व्याधि से रहित होकर निर्मल एवं पवित्र हो जाता है, फिर इस शंख के तोय का छिड़काव करने पर अति सूक्ष्म कीड़े जो अनेक तरह के रोगों के वाहक माने जाते हैं, उन सभी का नाश हो जाता हैं।
जीवन को सुचारू रूप से चलाने के आधार पर जल को छिड़कने का महत्त्व:-जीवन को सुचारू रूप से जीवित रखने के लिए तोय बहुत ही जरूरी होता हैं, तोय के बिना जीवन थोड़े समय बाद नष्ट भी हो जाता है। इसलिए तोय को जीवन बताया गया हैं। जब भी किसी तरह के धार्मिक कार्य जैसे-पूजा-पाठ, हवन आदि के समय मंगलकारी एवं जीवन को चलाने वाले तोयदेवता के रूप में मानते हुए उनको याद करके उनके उपकार के प्रति कृतज्ञता को जाहिर करने हेतु करते हैं। जीवन में किये गए धर्म एवं नीति के विरुद्ध आचरण को तोय अपने पवित्र गुण के द्वारा नष्ट करने का शास्त्रों में बताया गया है। पावक की तेज ज्वाला की लपटों को भी अपने गुण के प्रभाव से शांत करते हुए अपने में समाविष्ट कर देता हैं।
वैज्ञानिक आधार पर महत्त्व:-जब मनुष्य अपनी देह को ढ़कने के लिए कपड़ो को धारण करते हैं, तब वातावरण में उपस्थित हानिकारक व्याधियों को उत्पन्न करने वाले अत्यंत विषाक्त सूक्ष्म जीवाणु एवं जीवाणु देह के कपड़ों के साथ लग जाते है, जब देह पर तोय के छींटे मारे जाते हैं, तो वे जीवाणु देह की जगह को छोड़कर उड़ जाते हैं।