Breaking

Sunday, February 13, 2022

ऋणहर्ता गणपति स्तोत्रं अर्थ सहित और महत्त्व(Rinharta Ganpati Stotra with meaning and importance)




ऋणहर्ता गणपति स्तोत्रं अर्थ सहित और महत्त्व(Rinharta Ganapati Stotram with meaning and importance):-सृष्टि में मनुष्य की तीन श्रेणी धन से सम्बंधित हैं जैसे-पहली श्रेणी में धनवान एवं सम्पन्न वर्ग, दूसरी श्रेणी में मध्यम वर्ग के मनुष्य जो अपना जीवन इधर-उधर से धन के द्वारा चलाते हैं और तीसरे श्रेणी में गरीब वर्ग के मनुष्य आते हैं, जो कि अपना जीवन को चलाने हेतु दूसरों के आगे हाथ फैलाकर तंगी से जीवन को जीते हैं। मनुष्य को अपने जीवन को चलाने के लिए कोई नहीं कोई भी व्यवसाय करना पड़ता हैं, इसके साथ सामाजिक जीवन में जैसे-सन्तान की परवरिश, पढ़ाई, विवाह और अन्य कई तरह के कार्य  जैसे-बीमारी, वाहन खरीदने के लिए, कभी दुर्घटना से, आकस्मिक मुसीबतों से बचाव के लिए और निवास स्थान को बनाने हेतु आदि बहुत सारे कार्य करने होते हैं। इन सबकी पूर्ति करने के लिए उसको अपनी आजीविका पर निर्भर रहना होता हैं, मनुष्य की आवश्यकता अधिक होती हैं और आमदनी बहुत आवश्यकता की तुलना में बहुत ही कम होती हैं। कभी-कभी तो एक खर्च का काम पूरा नहीं हुआ और दूसरे काम का खर्चा आ जाता हैं, कभी धंधे में नुकसान होना, अपने रिश्तेदारों की सहायता करने हेतु, धन की चोरी होने पर, कभी कोर्ट-कचहरी में किसी की जमानत करवाने के लिए और किसी तरह की व्याधि के होने से अपनी आवक से अधिक खर्च हो जाता हैं, इन सबकी पूर्ति करने के लिए दूसरों के आगे हाथ फैलाने पड़ते हैं और उसे दूसरे मनुष्य से उधार लेना पड़ता हैं। इस तरह से मनुष्य के ऊपर कर्ज हर समय सवार रहता हैं और वह इस कर्ज में डूबता जाता हैं, जिससे उसके जीवन में क्लेश, मानसिक अशांति और दूसरों के द्वारा गलत शब्दों के वार को सहना पड़ता हैं। मनुष्य निराशा के जीवन को जीते हुए इस कर्ज रूपी बीमारी का अंत करने के लिए अपने जीवन की ईहलीला को समाप्त करने तक कि वह सोच लेता हैं और कभी-कभी तो अपनी ईहलीला को समाप्त कर लेता हैं। इन तरह कर्ज रूपी बीमारी से मुक्ति हेतु ऋषि-मुनियों ने अपनी साधना शक्ति से अनेक तरह की साधनाएं को निर्मित किया हैं, उन साधनाओं में इतनी शक्ति होती हैं, की मनुष्य के ऊपर हुए कर्ज या ऋण से कैसे मुक्ति पावे और उन साधनाओं को करके ऋण से मुक्ति मिल जाती हैं। उन साधनाओं में एक साधना शक्ति ऋणहर्ता गणपति स्तोत्रं है, जो कि भगवान गणेशजी के गुणगान को करने पर ऋण से मुक्ति मिल जाती हैं, क्योंकि भगवान गणेशजी का गुणगान करते हैं, वे मनुष्य गणेशजी की अनुकृपा रूपी आनन्द को पाते हैं। 

ऋण हरण श्री गणेश मन्त्र प्रयोग:-ऋण हरण श्री गणेश मन्त्र का नियमित रूप से या किसी मन में धारित इच्छा के अनुसार वांचन करने पर समृद्धि को प्रदान करने वाला प्रयोग होता हैं या जब इस मंत्र को रोजाना वांचन करना चाहते हो तब वांचन कर्ता या साधना करने वाले तपस्वी या योगी को निश्चित किये हुए पट को धारण करते हुए करना चाहिए।


ऋणहर्ता गणपति साधना पूजा सामग्री:-कुमकुम, अबीर, गुलाल, धूपबत्ती, केशर, अक्षत, दूर्वा दीपक, तेल, फूल, नैवेद्य, फल, अगरबत्ती, गणपति ऋण मुक्ति यंत्र और पीले धागे में पिरोई हुई स्फटिक माला आदि उपयोग में ली जाती हैं।


ऋणहर्ता गणपति साधना पूजा विधि:-भगवान गणेशजी के प्रति जो मनुष्य विश्वास एवं श्रद्धाभाव रखते हैं, उन मनुष्य को इस साधना विधि का प्रयोग करते हुए अपने कार्य को सिद्धि पा सकते हैं, ऋणहर्ता गणपति साधना विधि इस तरह हैं-

◆यदि अपने उत्सव के रूप में किसी विशिष्ट धार्मिक कृत्य करने के समय या दिन इस मंत्र का अभ्यास वश काम में अपने मन की इच्छा पूर्ति के निमित्त करना हो तो मनुष्य को पीले रंग के परिधान को पहनना चाहिए।

◆मनुष्य को गणेश चतुर्थी के दिन या साधना विधि के दिन सवेरे ब्रह्ममुहूर्त की वेला में उठना चाहिए।

◆शुक्लपक्ष में पड़ने वाले किसी भी बुधवार को भी कर सकते हैं।

◆उसके बाद रोजाने की चर्या जैसे:-दातुन, स्नानादि को पूर्ण करना चाहिए।

◆उसके बाद धुले हुए कपड़े या नवीन पीले रंग के कपड़ों को पहनना चाहिए। 

◆फिर मन में बुरी सोच की भावना को त्याग करते हुए श्रीगणेशजी को स्मरण करके अपने चित्त में समाश्रित करना चाहिए।

◆जिस स्थान पर ऋणमुक्ति गणपति साधना करनी होती हैं, उस स्थान की स्वच्छता करनी चाहिए और उस स्थान के बारे में साधना को करते समय किसी को भी पता नहीं चलना चाहिए। इसके लिए अपने निवास स्थान की ऐसी जगह का चयन करना चाहिए, जहां पर किसी की नजर दृष्टि नहीं पड़े। उस स्थान पर पूर्ण रूप से शोरगुल से रहित होना चाहिए, जिससे साधना करने के समय किसी तरह का व्यधान नहीं हो पावे। 

◆फिर बिछावन के रूप भी कुश या पीले वर्ण की बिछावन को लेना चाहिए।

◆बिछावन को बिछा कर पूर्व दिशा के स्वामी सूर्यदेव की तरफ मुहं करके बैठना चाहिए।

◆उसके बाद में एक साफ लकड़ी से बना हुआ बाजोट लेना चाहिए, उस बाजोट पर सफेद रंग का कपड़ा बिछाना चाहिए।

◆उस सफेद रंग के कपड़े से युक्त बाजोट पर स्टील या ताम्र धातु से बनी हुई गोलाकार छिछला थाली को रखना चाहिए।

◆कुमकुम से उस थाली में 'गणेशजी के पुत्र शुभ-लाभ' नाम को लिखना चाहिए।

◆उस लकड़े के बाजोट पर भगवान गणपति की प्रतिमा या फोटू को गेहूं को इकट्ठा करके गोल आकृति बनाते हुए रखनी चाहिए।

◆फिर उस बाजोट पर कुमकुम एवं केशर से रंगे हुए अक्षत को रखते हुए ढ़ेरी बनानी चाहिए।

◆इस अक्षत की ढ़ेरी पर "गणेश ऋण मुक्ति यंत्र" को रखना चाहिए।

◆इस ढ़ेरी के नजदीक एक घृत से भरे हुए दीपक को रखना चाहिए।

◆फिर यंत्र की पंचोपचार कर्म से पूजन करना चाहिए

पंचोपचार पूजा कर्म:-यंत्र का पंचोपचार कर्म इस तरह से करते हैं-

१.पञ्चामृतं स्नानं समर्पयामि:-पंचामृत को अर्पण करके स्नान कराते हैं।

२.शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि:-फिर शुद्ध जल से स्नान कराते समय "शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि" बोलते हुए करवाते हैं।

३.गन्धं समर्पयामि:-फिर गंध के रूप में चन्दन, रक्त चंदन, रोली, कुमकुम, सिंदूर आदि अर्पण करते समय "गन्धं समर्पयामि " बोलते हैं।

४.पुष्पाणि समर्पयामि:-फिर पुष्प को अर्पण करते समय "पुष्पाणि समर्पयामि" बोलते हुए पुष्प को अर्पण करते हैं।

५.धूपं आघ्रापयामि:-धूपबत्ती को प्रज्वलित करके धूप की गंध को सुंघाते हुए "धूपं आघ्रापयामि" बोलते हैं।

६.दीपं दर्शयामि:-फिर गाय से बने हुए शुद्ध घृत को दीपक में बत्ती से युक्त करके प्रज्वलित करते समय "दीपं दर्शयामि" बोलते हुए दीपक को दिखाते हैं।

७.नैवेद्यं निवेदयामि:-फिर भोग के रूप में बेसन के बने हुए मोतीचूर के लड्डू को अर्पण करते समय "नैवेद्यं निवेदयामि" बोलते हैं।

◆फिर अपनी आंखें मूंदकर भगवान गणेशजी को मन ही मन में याद करते हुए उनकी इस साधना को पूर्ण करने का संकल्प करते हैं।

◆माला के रूप में:-मनुष्य को मन्त्र के बार-बार उच्चारण करने के लिए भी पीले रंग की माला लेनी चाहिए।

◆यदि स्फटिक से युक्त माला जो कि कच्चे धागे को पीले रंग से रंगी हुई होनी चाहिए।

◆भगवान गणेशजी का विधिपूर्वक पूजन करना चाहिए।

◆फिर 'दूर्वा अंकुर' को विशेष रूप से अर्पण करना चाहिए।

◆यदि हवन करने हेतु:-मनुष्य को 'लाक्षा'एवं 'दूर्वा' के द्वारा हवन को करना चाहिए।

◆ऋणहर्ता गणपति साधना करने से होने वाले कर्ज से मुक्ति मिल जाती हैं। 


ऋणहर्ता गणपति स्तोत्रं के वांचन की विधि:-मनुष्य को इस स्तोत्रं के वांचन को करते समय निम्नलिखित विधि का प्रयोग करते हुए वांचन करना चाहिए-

◆सर्वप्रथम ऋणहर्ता गणपति स्तोत्रं के वांचन से पूर्व विनियोग करना चाहिए।

◆उसके बाद ऋष्यादिन्यास एवं हृदयादिन्यास को करना चाहिए।

◆उसके बाद में ध्यान एवं नमस्कार करते हुए उनका आवाहन करना चाहिए।

◆फिर गणपति का पूजन करना चाहिए।

◆'पूजन करने के बाद 'कवच पाठ' करना चाहिए।

◆फिर 'स्तोत्रं' का पाठ करना चाहिए।


श्री ऋणहरणकर्ता गणपति स्तोत्र का विनियोगः-सदाशिव ऋषिवर ने श्री ऋणहरणकर्ता गणपति स्तोत्र मन्त्रों के वांचन से पूर्व गणपतिजी निमित संकल्प के लिए विनियोग बताया हैं।


ऊँ अस्य श्री ऋणहरणकर्ता गणपति स्तोत्र मन्त्रस्य, सदाशिवऋषिः 

अनुष्टुप छन्दः, श्री ऋणहरर्ते गणपति देवता ग्लौं बीजम् गः शक्तिः,

गों कीलकंम् मम सकलऋण नाशने जपे विनियोगः।

अर्थात्:-श्री ऋणहरणकर्ता गणपति स्तोत्र के श्लोकों में मंत्रों की रचना सदाशिव ऋषिवर ने की थी, जिसमें अनुष्टुप छंद हैं एवं  हैं, श्री ऋणहरर्ते गणपति देवता के रूप में हैं, ग्लौं बीजम् एवं गः शक्ति और गों कीलकंम् स्वरूप में देवता हैं।

श्री ऋणहरणकर्ता गणपति स्तोत्र के श्लोकों में वर्णित मंत्रों के द्वारा इनके देवता को याद करते हुए वांचन का संकल्प करता हूँ, आप मेरे समस्त तरह के कर्ज को दूर करने हेतु मन से जप का विनियोग करता हूँ।


ऋष्यादिन्यास का अर्थ एवं महत्त्व:-ऋष्यादिन्यास में अपने इष्टदेव को अपने शरीर के अंगों जैसे- मस्तक, मुख, हृदय, गुह्या स्थान, पैर, नाभि एव सर्वाङ्गे आदि में स्थापित होने का आग्रह करते हैं और उनको स्थापित होने का कहते हैं, जिससे देह में देवी या देवता का वास हो जाए इस तरह की प्रक्रिया को ऋष्यादिन्यास कहते हैं।

ऊँ सदाशिव ऋषये नमः शिरसि,

अनुष्टुप छन्द से नमः मुखे,

श्रीऋणहर्ते गणेश देवतायै नमः हृदि,

ग्लौं बीजाय नमः गुह्यें,

गं शक्तये नमः पादयोंः,

गों कीलकाय नमः नाभौ मम सकल 

ऋणनाशर्थे जपे विनियोगाय नमः अञ्जलौ सर्वागे।


ऊँ सदाशिव ऋषये नमः शिरसि।

अर्थात्:-हे ब्रह्मस्वरूप इष्टदेव! मेरे देह के शिर अंग में स्थापित होंवे। इस तरह से सदाशिव ऋषिवर अरदास करते आपको नमन करते हैं।


अनुष्टुपछन्द से नमः, मुखे।

अर्थात्:-हे अनुष्टुपछन्द से! मैं अपने देह के मुख भाग में स्थापित होने का आग्रह करता हूँ। आपको मेरा नमन हैं। 


श्रीऋणहर्ता गणपति देवतायै नमः हृदि।

अर्थात्:-हे श्रीऋणहर्ता गणपति देवतायै! मेरे देह के हृदय भाग में स्थापित होवे। इस तरह से अरदास करते हुए मेरा नमस्कार स्वीकार करें। 


ग्लौं बीजाय नमः गुह्ये,

अर्थात्:-हे ग्लौं बीजाय! मैं अपने देह के भाग गुप्तांगों की जगह पर स्थापित होने का आग्रह करता हूँ और आपको नतमस्तक होकर नमन करता हूँ। 


गं शक्तये नमः पादयो,

अर्थात्:-हे गं शक्तये! मैं अपने देह के भाग पैर की जगह में आपको स्थापित होने का आग्रह करता हूँ, आपको नतमस्तक होकर अभिवादन करता हूँ। 


गों कीलकाय नमः नाभौ मम सकल ऋणनाशर्थे जपे विनियोगाय नमः अञ्जलौ सर्वागे।

अर्थात्:-हे गों कीलकाय! मैं अपने देह के भाग नाभि एवं समस्त शरीर की जगहों में स्थापित होने का आग्रह करता हूँ आप इन समस्त जगहों पर स्थापित होवे। इस तरह अरदास करते हुए, आपको मैं नतमस्तक होकर अभिवादन करते हुए विनियोग हैं।



षडंगन्यास या करन्यास का अर्थ एवं महत्त्व:-जब किसी भी मंत्रों के उच्चारण से पहले हाथों के द्वारा जो आकृति का निर्माण करते हुए बीजाक्षरों और शब्दों को इष्टदेव देवी-देवता के निमित उनको स्थापित करते हुए उनको नमस्कार करना षडंगन्यास या करन्यास कहलाता है। माला को हाथ में लेकर जप करने से हाथ में एवं हथेली षित समस्त अंगुलियों में स्थान दिया जाता हैं, जिससे मंत्रों का उच्चारण करते समय उस देवता के मंत्रों का सही उच्चारण हो पावे।

ऊँ गणेश अंगुष्ठाभ्यां नमः,

ऋण छिन्धि तर्जनीभ्यां नमः

वरेण्यम मध्यामाभ्यां नमः।

हुम अनामिकाभ्यां नमः।

नमः कनिष्ठिकाभ्यां नमः।

फट् करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः।


ऊँ गणेश अंगुष्ठाभ्यां नमः,

अर्थात्:-हे ऊँ गणेशजी! मैं अंगूठे को छूते हुए नमन करता हूँ। 


ऋण छिन्धि तर्जनीभ्यां नमः

अर्थात्:-हे ऊँ ऋण छिन्धि! मैं तर्जनी अंगुली को छूते नतमस्तक होकर नमन करता हूँ।


वरेण्यम मध्यमाभ्यां नमः।

अर्थात्:-हे वरेण्यम! मैं मध्यमा अंगुली को छूते नतमस्तक होकर नमन करता हूँ।


हुं अनामिकाभ्यां नमः।

अर्थात्:-हे हुं! मैं अनामिका अंगुली को छूते नतमस्तक होकर नमन करता हूँ।


नमः कनिष्ठिकाभ्यां नमः।

अर्थात्:-हे परमब्रह्म! मैं कनिष्ठिका अंगुली को छूते नतमस्तक होकर नमन करता हूँ।


फट् करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।

अर्थात्:-हे फट्! मैं हथेली के बीच के भाग को छूते हुए ध्यान करके नतमस्तक होकर नमन करता हूँ।


हृदयादि अंगन्यास का अर्थ एवं महत्त्व:-जब पूजा-अर्चना एवं स्तोत्रं के पाठन से पहले मंत्रों के उच्चारण के द्वारा शरीर के विभिन्न अंगों को शुद्ध करने के उद्देश्य से जो स्पर्श किया जाता हैं, उसे हृदयादि अंगन्यास कहते है। श्री ऋणहरणकर्ता गणपति स्तोत्रं के पाठन से पूर्व गणेशजी के नाम मंत्रों का उच्चारण करते हुए देह के अंगों से छुआ जाता हैं, जिससे गणेशजी का उन अंगों में वास हो जावे और देह निर्मल हो जावे।

ऊँ गणेशहृदयाय नमः।

ऊँ ऋण छिन्धि शिरसे स्वाहा।

वरेण्यम् शिखायै वषट्।

हुम कवचाय हुम्।

नमः नेत्रत्रयाय वौषट्।

फट् अस्त्राय फट्।

बैठने की आकृति:-जब पैर को एक पैर पर मोड़कर ऊपर कमल की आकृति के समान मुद्रा बनाकर बैठते हैं, तब पैर के घुटने पर बायां हाथ रखते हैं, तब मंत्रों का उच्चारण करके मन में आध्यात्मिक भावों की जागृति उत्पन्न  करना होता हैं।


ऊँ गणेशहृदयाय नमः।

अर्थात्:-हे ऊँ गणेशजी! मैं दाएं हाथ की पांचों अंगुलियों से हृदय को स्पर्श करते हुए "ऊँ गणेशहृदयाय नमः" मंत्र का उच्चारण करते हुए हृदय की शुद्धता हेतु नमन करता हूँ।


ऊँ ऋण छिन्धि शिरसे स्वाहा।

अर्थात्:-हे ऊँ ऋण छिन्धि! मेरे द्वारा मंत्रों के उच्चारण मेरे मस्तिष्क को वे मंत्र जागृति उत्पन्न करें। ललाट को छूते समय "ऊँ ऋण छिन्धि शिरसे स्वाहा" मन्त्र को बोलते हैं।


वरेण्यम् शिखायै वषट्।

अर्थात्:-हे ऊँ वरेण्यम्! मैं अपनी शिखा को छूते समय "वरेण्यम् शिखायै वषट्" मन्त्र का उच्चारण करते हुए देवता के नाम को लेकर अग्नि देव को प्रज्वलित करने के लिए मंत्रों से आह्वान करता हूँ।


नमः नेत्रत्रयाय वौषट्।

अर्थात्:-हे वौषट्! मैं अपने नेत्रों को मूंदकर आपको आहुति देने हेतु सांकेतिक मंत्र "नमः नेत्रत्रयाय वौषट्" का उच्चारण करते हुए  आपका ध्यान करता हूँ। दाएं एवं बाएं चक्षु के बीच में भाल के मध्य में स्थित तीसरे चक्षु को स्पर्श करना होता हैं।


हुम कवचाय हुम्।

अर्थात्:-हे हुम! मैं आपको खुश करने हेतु आपके गुणों का बखान कवच के रूप में करता हूँ, दोनों भुजाओं को दोनों हाथों के द्वारा छूटे हुए"हुम कवचाय हुम्" मंत्र का प्रयोग करता हूँ। 


फट् अस्त्राय फट्।

अर्थात्:-हे फट्! मैं आपके तांत्रिक मंत्र रूपी अस्त्र से समस्त तरह के विकारों को दूर करने हेतु दाएं हाथ के पंजे से बाएं हाथ के जोड़कर "फट् अस्त्राय फट्" मंत्र को बोलते हुए 'फट्' की ध्वनि की जाती हैं।


ध्यान एवं नमस्कार मंत्र:-श्री ऋणहरणकर्ता गणपति स्तोत्र के मन्त्रों के उच्चारण से पहले हे गणेशजी! आपको मैं अपने मंदिर में स्थापित करने हेतु निम्नलिखित ध्यान एवं नमस्कार मंत्र को मन ही मन में याद करते हुए आपको नमन करता हूँ। जिससे आपका आशीर्वाद मिल जावें।

  

ऊँ सिन्दूरवर्णं द्विभुजं गणेशं, लम्बोदरं पद्यदले निविष्टम्।

ब्रह्मादि दैवेः परिसेव्यमानं, सिद्धैर्यतं प्रणमामि देवं।।

अर्थात्:-हे ब्रह्मस्वरूप गणेशजी! आपकी देह का वर्ण सिंदूर के रंग की तरह है, आपकी दो भुजाएं है, आपका उदर लम्बा हैं, पदम के फूल की पंखुड़ियों के समान आपके चरण हैं और पदम के दल पर विराजमान होते हो, ब्रह्मादि देवता भी आपकी वन्दना करते हैं, आप समस्त तरह की सिद्धि देने वाले हो। आपको मैं प्रणाम करता हूँ। 


ऋणहर्ता गणपति स्तोत्रम् का महामन्त्र:-भगवान गणेशजी को मन ही मन में याद करते हुए षोडशोपचार पूजा करके निम्नलिखित मंत्र" ऊँ गणेश ऋणं छिन्धि वरेण्यं हुं नमः फट्" के द्वारा स्फटिक माला जो पीली धागे में पिरोई हुई मणियों वाली हो उससे एक सौ आठ माला जप ऋण मुक्ति सिद्ध माला से करनी चाहिए। मन्त्र जाप के बाद में स्तोत्रं पाठ करना चाहिए। जब इस मंत्र के सिद्ध होने पर मनुष्य अपने लिए हुए कर्ज से आजाद हो जाता है और उसकी गरीबी दूर हो जाती हैं, जिससे वह धनवान होकर एवं ज्ञानवान होकर सुख-समृद्धि से जीवन को जी पाता हैं। कृष्णयामल में ऋणहर्ता गणपति साधना की रीति बताई गई है और इस साधना के महत्व को भी बताया गया है, की किस तरह से विधिपूर्वक साधना कटने से सुख-समृद्धि को प्राप्त करके मनुष्य अपने जीवन-मरण के बंधन से मुक्ति पा सके और अपना उद्धार को पावे।


श्री ऋणहरणकर्ता गणपति स्तोत्र का कवच पाठ:-तांत्रिक साधना को करते समय बाधाओं से स्वयं की रक्षा के लिए पढ़े जाने वाले भाव को कवच पाठ कहते हैं, श्री ऋणहरणकर्ता गणपति स्तोत्र के मन्त्रों को वांचन से पूर्व पढ़ने वाले मंत्रों को पूर्व पीठिता कहा जाता है। इसलिए निम्नलिखित कवच पाठ का वांचन करना चाहिए-


ऊँ आमोदश्च शिरः पातु, प्रमोदश्च शिखोपरि, 

सम्मोदो भ्रूयुगे पातु, भ्रूमध्ये च गणाधीपः।

अर्थात्:-हे परम् ब्रह्म वाचक देव! आप शिर स्थान में एवं मुंडन के समय बहुत प्रसन्नता से रक्षा करते हो। हे गणाधिप! आप जब भौंह को ऊपर चढ़ाकर गुस्सा व्यक्त करते हो तब आपकी वंदना करने पर आप प्रेम या प्रीति के साथ गणाधिप के रूप में रक्षा करते हों।

 

गणक्रीड़ाश्चक्षुर्युगं, नासायां गणनायकः, 

जिह्वायां सुमुखः पातु, ग्रीवायां दुर्म्मुखः।।

अर्थात्:-है गणेशजी! आप चारों युग में अपनी क्रीड़ा करते हुए अपने नेत्र दृष्टि से नासा की, जिह्वा सहित मुख और गर्दन की रक्षा गणनायक के रूप में करते हो। दोनों भुजाओं की रक्षा विघ्नेश्वर के रूप में, पेट और लिंग स्थान की रक्षा विघ्नहर्ता के रूप में हमेशा करते हो।


विघ्नेशो हृदये पातु, बाहुयुग्मे सदा मम,

विघ्नकर्त्ता च उदरे, विघ्नहर्त्ता च लिंगके।

अर्थात्:-है गणेशजी! आप हृदय की एवं दोनों भुजाओं की रक्षा विघ्नेश्वर के रूप में, पेट और लिंग स्थान की रक्षा विघ्नहर्ता के रूप में हमेशा करते हो।


गजवक्त्रो कटिदेशे, एकदन्तो नितम्बके,

लम्बोदरः सदा पातु, गुह्यदेशे ममारुणः।।

अर्थात्:-हे गणेशजी! शरीर के कमर भाग में गजवक्त्र रूप में, नितम्ब में एकदन्त रूप में एवं गुप्तांगों में लम्बोदर रूप में हमेशा रक्षा करते हो।


व्याल यज्ञोपवीती मां, पातु पादयुगे सदा,

जापकः सर्वदा पातु, जानुजंघे गणाधिपः।

अर्थात्:-हे गणाधिप! आप व्याल की बनी हुई यज्ञोपवीत को धारण करते हुआ और सतयुग, त्रेतायुग, कलयुग एवं कलयुग में हमेशा जो वांचन करते हैं, उनकी रक्षा हमेशा आप करते हो। जो भक्त आपके स्तोत्र का वांचन करते हुए आपको याद करता हैं, उस भक्त की जानु-जंघे की हमेशा रक्षा करते हो।


हरिद्राः सर्वदा पातु, सर्वांगे गणनायकः।।

अर्थात्:-हे गणनायक! आपको हमेशा हरिद्रा प्रिय होती हैं और समस्त अंगों पर हरिद्रा का लेप पसंन्द करते हो। 


ऋण हर्ता गणेश स्तोत्रं पाठ:-भगवान गणेशजी के गुणों का बखान करने के लिए स्तुति परक श्लोक में बंधे हुए ग्रन्थ के मंत्रों का वांचन स्तोत्रं पाठ कहलाता है। जो इस तरह हैं-


सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक्, पूजितः फलसिद्धये।

सदैव पार्वतीपुत्रः, ऋणनाशं करोतु मे।।१।।

अर्थात्:-हे पार्वती पुत्र! आपको समस्त सृष्टि के देव-दानव, मानव, ब्राह्मण एवं जीव-जंतु भी आपका पूजन करते हैं आप कार्य फल को प्रदान करने वाले हो। हे गणेशजी! आप मेरे समस्त कर्ज का नाश कर दीजिए।


त्रिपुरस्य वधात् पूर्वं शम्भुना सम्श्गर्चितः।

हिरण्य कश्यपादीनां, वधार्थ विष्णुनार्चितः।।२।।

अर्थात्:-हे गणपतिजी! भगवान शिवजी के द्वारा त्रिपुरस्य नामक दैत्य का वध करने पर एवं भगवान विष्णुजी के द्वारा नृसिंह अवतार धारण करके हिरण्य कश्यप दैत्य का वध करने पर भी आपकी वंदना पहले होती हैं।


महिषस्य वधे देव्या, गणनाथः प्रपूजितः।

तारकस्य वधात् पूर्वं, कुमारेण प्रपूजितः।।३।।

अर्थात्:-हे गणनाथ! आपकी वन्दना देवता महिष दैत्य के वध को करने के लिए गणनाथ के रूप में करते हैं। तारका नामक दैत्य का कार्तिकेय जी के द्वारा वध करने पर भी आपकी वंदना पहले होती हैं।


भास्करेण गणेशस्तु, पूजितश्छवि सिद्धये।

शशिना कान्ति सिद्धयर्थे, पूजितो गणनायकः।

पालनाय च तपसां विश्वामित्रेण पूजितः।।४।।

अर्थात्:-हे गणेशजी! आपकी वन्दना सूर्यदेव आभामण्डल करते हैं और सिद्धि को प्राप्त करते हैं।

हे गणनायक! चन्द्रदेव अपनी चमक युक्त अपनी शीतल रश्मियों से आपकी वंदना करते हैं। विश्वामित्र आपका पालन करते हुए चित्त को कष्टप्रद दशाओं में रखते हुए शुद्ध एवं विषयों से निवृत्त करके आपकी वन्दना करते हैं।


फलश्रुति का अर्थ:-जिसमें पूर्ण स्तोत्र के वांचन से एवं सुनने से मिलने वाले लाभ या फायदे के बारे गुणगान होता हैं, उसे फलश्रुति कहते हैं।

इदं त्वऋण स्तोत्रं, तीव्र दारिद्रय नाशनम्,

एक बारं पठेन्नित्यं, वर्षमेकं समाहितः।

दारिद्रय दारूणं त्यक्त्वा, कुबेर समतां ब्रजेत्।

फडन्तोअस्यं महामंन्त्रः सार्धपच्चदशाक्षरः।।

अर्थात्:-हे गणेशजी! आपका श्री ऋणहरणकर्ता गणपति स्तोत्र के द्वारा कर्ज का छुटकारा दिलाने वाला हैं और बहुत ही जल्दी से गरीबी को दूर करके धनवान बनाने वाला हैं।

जो एक बार नियमित रूप से ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र वर्षभर वांचन करते हैं, वे गणेशजी के द्वारा उनकी पूजा-वंदना स्वीकार कर ली जाती हैं। जो वांचन करते हैं, उनकी कठिन से कठिन बाधा को दूर करते है और गरीबी को दूर करते हुए उन भक्त को कुबेर के समान धनवान बना देते हैं। 

यह महामन्त्र " ऊँ गणेश ऋणं छिन्धि वरेण्यं हुं नमः फट्" साढ़े पन्द्रहरा अक्षरों से बना हुआ हैं। अन्त में कम से कम से इक्कीस बार वांचन करना चाहिए। इक्कीस हजार 'वांचन' से निश्चित कार्य की सिद्धि के लिए पहले से की गई तैयारी या निश्चित कार्य की सिद्धि के लिए विधिपूर्वक किया गया तांत्रिक प्रयोग होता हैं। नियमित रूप से साल भर वांचन करने से गरीबी समाप्त होकर धन-संपत्ति सम्पदा की प्राप्ति होती हैं।


ऋणहर्ता गणपति स्तोत्रम् का महत्त्व एवं लाभ (Significance and Benefits of Loan Harta Ganpati Stotram):- मनुष्य "ऋणहर्ता गणपति स्तोत्रं" का वांचन नियमित रूप से करते रहने पर निम्नलिखित फायदे मिलते हैं, जो इस तरह हैं- 


◆परेशानियों से मुक्ति पाने हेतु:-मनुष्य के ऊपर कर्ज बढ़ने पर उसकी कोई भी मदद करने को तैयार नहीं होता हैं, जिससे मनुष्य को बहुत ही परेशानियों का सामना करना पड़ता हैं, उन सब परेशानियों से मुक्ति का उपाय यह स्तोत्रं हैं।


◆मनुष्य मानसिक चिंता से मुक्त:-जो मनुष्य नियमित स्तोत्रं का वांचन करते हैं, तो उन मनुष्य की ऋण रूपी मानसिक चिंता को भगवान गणपतिजी दूर कर देते हैं।


◆व्याधियों से मुक्ति पाने का उपाय:-मनुष्य के द्वारा कर्ज में डूबे रहने पर कई तरह की व्याधियां शरीर में अपना घर बना लेती हैं, जो इस स्तोत्रं का वांचन हमेशा करते हैं, उनकी कर्जरूपी व्याधि से भगवान गणेश जी मुक्ति प्रदान कर देते हैं।


◆कर्जरूपी जंजाल से मुक्ति पाने हेतु:-मनुष्य के जीवन में बढ़े हुए कर्ज या ऋण रूपी जंजाल से छुटकारा पाने का सबसे अच्छा उपाय ऋणहर्ता गणपति साधना स्तोत्रं हैं, इसका वांचन करके ऋण रूपी व्याधि से मुक्त हो सकते हैं।


मोक्ष गति पाने हेतु:-मनुष्य के द्वारा इस स्तोत्र का वांचन नियमित रूप से करते रहने पर भगवान गणेशजी की कृपा उस मनुष्य पर हो जाती हैं और भगवान गणेशजी के चरणों में जगह मिल जाती हैं, जिससे उस मनुष्य का उद्धार हो जाता है और मोक्षगति को प्राप्त कर लेता हैं।


समस्त तरह की बाधाओं से मुक्ति पाने हेतु:-मनुष्य को अपने जीवन काल में अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ता हैं, उन बाधाओं से मुक्ति का उपाय यह स्तोत्रं हैं।


कार्य सिद्धि हेतु:-मनुष्य के जीवन में बनते-बनते काम बिगड़ जाते हैं, उन बिगड़ते हुए कार्यों को बनाने हेतु इस स्तोत्रं का वांचन नियमित रूप से करने से कार्यों में सिद्धि मिल जाती हैं।


◆गरीबी दूर करने हेतु:-मनुष्य को अपनी गरीबी को दूर करने हेतु इस स्तोत्रं का वांचन हमेशा करते रहना चाहिए।