पीपल वृक्ष की पवित्रता का धार्मिक और वैज्ञानिक कारण क्या हैं?(What are the religious and scientific reasons for the purity of the Peepal tree?):-जब सृष्टि की रचना हुई तब मनुष्य उत्पत्ति हुई तब मनुष्य ने जैसे-जैसे अपनी बुद्धि को विकसित किया और प्रकृति के रहस्यों को जानने लगे। प्रकृति के रहस्यों को जानकर उनसे होने वाले फायदों के बारे में जाना और मनुष्य को प्रकृति का महत्व का पता चला। इस तरह हमारे ऋषि-मुनियों और तपस्वियों ने अपने ज्ञान क्षेत्र के द्वारा प्रकृति की प्रत्येक वस्तु के उपयोग के साथ उनसे होने वाले फायदे से अवगत हुए। मनुष्य जाति के उद्धार के लिए उन्होंने इस पर गहन शोध किया और शोध के बाद मनुष्य जीवन पर लागू किया। इस तरह प्रकृति में वृक्ष के बारे जानकारी प्राप्त की उनका शारीरिक रूप से व्याधियों से मुक्ति पाने की औषधियों का निर्माण किया, मानसिक रूप से ईश्वरीय शक्ति के साथ जोड़कर उनका पूजन शुरू किया और वैज्ञानिक रूप से जीवन को चलाने एवं जीवित रहने से सम्बंधित महत्व को जाना था। हिन्दुधर्म गर्न्थो के अनुसार पीपल वृक्ष में समस्त देवी-देवताओं का वास माना गया हैं, पीपल वृक्ष में भगवान श्रीचक्रपाणि निवास करते हुए अपने दैवीय गुणों से पीपल वृक्ष की पूजा करने वाले भक्तों का उद्धार करते हैं। वृक्षों में सबसे उच्च स्थान देते हुए पीपल के वृक्ष को राजा की संज्ञा मिली थी। वृक्षों में पिप्पर के पेड़ का बहुत ही श्रेष्ठ एवं अधिक आवश्यक बताया गया हैं
स्कंध पुराण के अनुसार:-हिन्दुधर्म में वर्णित देवी-देवताओं से सम्बन्ध को स्कंध पुराण में बताया गया है और पिप्पर वृक्ष की स्तुति करने का मंत्र भी बताया हैं, जिसका उच्चारण करते हुए अपना उद्धार कर सकते हैं-
मूलम् ब्रह्मा, त्वचा विष्णु, सखा शंकरमेव च।
पत्रे-पत्रेका सर्वदेवानाम वृक्षराज नमोस्तुते।।
अर्थात:-पिप्पल या पीपर वृक्ष की मूल की जगह में श्रीविष्णुजी को जगह मिली हैं, तने की जगह पर केशवजी, शाखाओं में नारायणजी, पत्तों में भगवान श्रीहरि और फल में समस्त देवताओं से युक्त भगवान का अच्युत का निवास हैं।
धर्म शास्त्रों के अनुसार:-समस्त हिन्दुधर्म में वर्णित देवी-देवताओं और पितर योनि में वास करने वाले पितरों का वास पिप्पर वृक्ष में बताया गया है।
श्रीमद्भागवद गीता के अनुसार भगवान श्रीकृष्णजी के द्वारा पिप्पर वृक्ष के विषय में ज्ञान व जानकारी:-भगवान श्रीकृष्णजी धनंजय को समझाते हुए, धनंजय को ज्ञान देते समय बोलते हैं कि हे धनंजय! वृक्षों में मैं अश्वत्थ का वृक्ष हूं और जीवंत रूप से पूरी तरह मूर्ति रूप में साक्षात बाह्य आकर में पीपल के वृक्ष में विराजमान हूँ
पुराणों के अनुसार:-पुराणों में पीपल वृक्ष के समस्त अंगों में समस्त देवताओं का वास बताया गया है
मूलतः ब्रह्म रूपाय मध्यतो विष्णु रूपिणः।
अग्रतः शिव रूपाय अश्वत्त्थाय नमो नमः।।
अर्थात्:-हे अश्वत्त्थाय! पिप्पल या पीपर वृक्ष की मूल की जगह में श्रीब्रह्मदेवजी, मध्य की जगह पर श्रीविष्णुजी, आगे की जगह में शिवजी का वास बताया गया हैं। हे अश्वत्त्थाय! आपको बार-बार नमन करता हूँ।
धार्मिक पवित्रता का कारण:-जो मनुष्य बहुत ही ज्ञानवान होते है और अपने इष्टदेव पर विश्वास रखते हुए अपनी भक्ति के भाव से अश्वत्थ वृक्ष की सेवा करते हैं, उन मनुष्यों को सहस्त्रों पुण्यों का फल मिलता है। उस सहस्त्रों पुण्यों के फल के असर से अपने जीवनकाल को सही राह पर रखते हुए अन्त में मोक्ष पद को प्राप्त करते हैं। जिससे अश्वत्थ वृक्ष की धार्मिक पवित्रता का पता चलता हैं।
पद्म पुराण के अनुसार:-जब कोई भी मनुष्य अपने जीवन में अश्वत्थ वृक्ष के चारों तरफ श्रद्धा भाव एवं भक्ति भाव रखते हुए चक्कर युक्त फेरी देते हैं एवं फेरी देते समय अश्वत्थ वृक्ष को नतमस्तक होकर अभिवादन करते हैं, उन मनुष्यों के उम्र में बढ़ोतरी होती हैं।
◆जो मनुष्य शुद्ध जल से अश्वत्थ वृक्ष के जड़ों को सींचते रहते हैं, उन मनुष्यों का उद्धार होकर अपने जीवन को पूर्ण भोगते हुए अन्त में स्वर्ग में स्थान पाते हैं।
◆शनि ग्रह के प्रकोप से निमित्त साढ़ेसाती और ढ़ैया का जब मनुष्यों के जन्मकुण्डली या चलित कुंडली में प्रभाव शुरू होता हैं, तब जो मनुष्य नियमित रुप से या शनिवार या मंगलवार के दिन अश्वत्थ वृक्ष की फेरी करते हुए पूजा करते हैं, तो उन मनुष्य को शनि ग्रह के साढ़ेसाती और ढ़ैया के असर से मुक्ति मिलती हैं।
धर्मशास्त्रों के मतानुसार:-मनुष्य के पूर्वज जिनकी गति पूर्ण नहीं होती हैं, वे पितर के रूप में संसार में निवास करते हैं। इस तरह से पितर संसार में अश्वत्थ वृक्ष को अपना निवास स्थान बनाते हैं, जिससे मनुष्य के द्वारा नियमित रूप से जल से अश्वत्थ वृक्ष को सींचते रहने पर पितर को भी जल मिलता रहता हैं और उनके द्वारा आशीर्वाद मिलता रहता हैं।
◆अश्वत्थ वृक्ष में तीर्थों का वास भी बताया जाता है। जिसके फलस्वरूप मनुष्य अपने धार्मिक संस्कार जैसे-मुंडन आदि को भी अश्वत्थ वृक्ष के नीचे ही पूर्ण करते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के मतानुसार:-जो मनुष्य नियमित रूप से अश्वत्थ वृक्ष की श्रद्धाभाव से चारों तरफ की फेरी करते हुए नतमस्तक होकर नमस्कार करते हुए शुद्ध जल से सिंचन करते हैं और अश्वत्थ वृक्ष की पूजा-अर्चना को करते है, तब उन मनुष्यों को अच्छे गुणों से युक्त सन्तान मिलती हैं।
◆मनुष्य को पुण्य फल भी मिलता हैं।
◆पित्रात्माएं उन मनुष्यों से संतुष्ट होकर अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं और जिससे मनुष्यों के समस्त कार्यों में आ रही बाधाओं से छुटकारा मिलता हैं एवं कार्य में सफलता मिलती हैं।
◆जिन मनुष्यों को अपने मन की समस्त इच्छाओं को पूरा करना होता हैं, उन मनुष्यों को अश्वत्थ वृक्ष के तने पर सूत का धागा लपेटते हुए चारों तरफ के चक्कर से युक्त फेरी करनी चाहिए और नतमस्तक होकर नमस्कार करते हुए अपने उद्देश्य को पूरा करने की अरदास भी करनी चाहिए।
◆जब सूर्यदेव का उदय नहीं होता है, तब तक अश्वत्थ वृक्ष पर दरिद्र देवता का स्वामित्व होता हैं।
◆जब सूर्यदेव का उदय हो जाता हैं, तब अश्वत्थ वृक्ष पर श्रीलक्ष्मीजी का स्वामित्व हो जाता हैं, इस वजह के कारण ही मनुष्यों के द्वारा अश्वत्थ वृक्ष की पूजा-अर्चना सूर्य के उदय के बाद कि जाती हैं, सूर्य के उदय से पहले अश्वत्थ वृक्ष की पूजा-अर्चना का धर्मग्रन्थों में मना किया हैं।
◆धर्मग्रन्थों में अश्वत्थ वृक्ष को काटना या समाप्त करना एक तरह से बहुत बड़ा पाप बताया गया हैं, जो मनुष्य अश्वत्थ वृक्ष को जान बूझकर के काटते हैं, उन मनुष्यों को ब्रह्म हत्या की तरह पाप लगता हैं और उस पाप से मुक्ति पाने हेतु मनुष्यों को बहुत कष्टों को सहन करना पड़ता है और फिर कहि जाकर मुक्त हो पाते हैं।
वैज्ञानिक अनुसंधानों के अनुसार:-वातावरण को स्वच्छ पवन मिलते रहे, इसके लिए अश्वत्थ वृक्ष बहुत ही अपना योगदान देता हैं। अश्वत्थ वृक्ष ही ऐसा वृक्ष होता हैं, जो पूरे चौबीस घण्टों के समय अर्थात् दिन-रात के समय नियमित रूप से वातावरण की अशुद्ध वायु अर्थात् कार्बनडाई ऑक्साइड को ग्रहण करते हुए प्राणियों के जीवन को चलाने वाली ऑक्सीजन को छोड़ते हैं। जिससे समस्त संसार के प्राणियों का जीवन सही रूप से चल सके और यह समस्त क्रियाएं संसार का पालन करने वाले श्रीविष्णुजी ही करते हैं। इस तरह से वैज्ञानिक अनुसंधानों के आधार पर भी अश्वत्थ वृक्ष को श्रीविष्णुजी का स्वरूप मानना सिद्ध होता हैं।
◆अश्वत्थ वृक्ष के द्वारा प्राणी जगत के समस्त प्राणियों की सुरक्षा होती हैं, क्योंकि जब पृथ्वीलोक पर गर्मी का मौसम आता हैं, तब उस गर्मी की उष्णता से मनुष्य का शरीर जलने लगता हैं तो मनुष्य अश्वत्थ वृक्ष के नीचे अपने शरीर पर पड़ने वाली गर्मी के असर को कम करने के लिए बैठते है, तब उन मनुष्यों को अश्वत्थ वृक्ष की ठण्डी हवा एवं छाया से राहत मिलती हैं।
◆इसी तरह सर्दी के मौसम में जब बहुत तेज ठंड पड़ती हैं, तब मनुष्य को उष्णता की जरूरत होती हैं और जिससे अश्वत्थ वृक्ष के द्वारा पूर्ति भी होती हैं।
◆व्याधियों से मुक्ति में सहायक:-अश्वत्थ वृक्ष के पत्तों से जब चलती हुई पवन छूटे हुए एवं पत्तों के एक-दूसरे से टकराने पर जो आवाज उत्पन्न होती हैं, उस आवाज से अनेक तरह की व्याधियों को उत्पन्न करने वाले संक्रामक कीटाणुओं का शमन करने की क्षमता होती हैं।
◆आयुर्वेद के मतानुसार:-आयुर्वेद में अश्वत्थ वृक्ष की मूल, छाल, पलव्वों और फलों के द्वारा अनेक तरह की व्याधियों की औषधियां बनाई जाती हैं, उन औषधियों से अनेक तरह की असाध्य व्याधियों का भी शमन होता हैं।
इस तरह अश्वत्थ वृक्ष की पवित्रता एवं महत्त्व धार्मिक ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक भी प्रमाणित होता हैं।