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Saturday, April 9, 2022

शिवाष्टक स्तोत्रं हिंदी अर्थ सहित और महत्व(Shivashtak Stotram with Hindi meaning and importance)

Shivashtak Stotram with Hindi meaning and importance






शिवाष्टक स्तोत्रं हिंदी अर्थ सहित और महत्व(Shivashtak Stotram with Hindi meaning and importance):-भगवान शिवजी भोलेनाथ के रूप में जाने जाते हैं, उनको खुश करना बहुत ही सरल हैं। वे अपने भक्तों पर शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। भगवान शिवजी को खुश करने के लिए आदिगुरु शंकराचार्य ने शिवाष्टक स्तोत्रम् के वर्ण या मात्राओं के निश्चित मान के आधार पर आठ पद के श्लोकों की रचना की थी। भगवान शिवजी के गुणगान के लिए धर्म ग्रन्थों में बहुत सारे स्तोत्रम्, स्तुति व कवच और अष्टक के बारे में विवरण मिलता हैं। इन अष्टकों में से एक शिवाष्टक स्तोत्रम् हैं जो कि भगवान शिवजी को शीघ्र प्रसन्न करके उनकी अनुकृपा पाने का हैं। भगवान शिवजी को शीघ्र प्रसन्न करके उनकी अनुकृपा पाने के लिए मनुष्य को शिवाष्टक स्तोत्रं का वांचन नियमित रुप से करना चाहिए। विशेषकर श्रावण मास में बहुत अधिक शिवाष्टक स्तोत्रं का वांचन करने से मनुष्य के जीवन में आने वाली सभी मुसिबतों का निराकरण शिवाष्टक स्तोत्रं कर देता हैं। भगवान शिव का प्रिय मास श्रावण होता हैं, इस मास में शिवाष्टक स्तोत्रं का वांचन लयबद्ध रूप से किस्मत से हारे मनुष्य करते हैं, तब उन मनुष्य को भी तकदीर वाला बना देता हैं।




प्रभुं प्राणनाथं विभुं विश्वनाथं जगन्नाथनाथं सदानन्दभाजम्।

भवद्भव्यभूतेश्वरं भूतनाथं शिवं शङ्करं शंभुमिशानमीडे।।१।।

अर्थात्:-हे शिवजी! मैं आपसे सबके कल्याण के लिए अरदास करता हूँ, की आप शिव, शंकर व शंभु रूप में सभी के ईश्वर हो, आप मनुष्य जीवन को चलाने वाले हो, आप ब्रह्मा, विष्णु व शिव हो, आप समस्त जगत के स्वामी हो, आप भगवान चक्रपाणि के भी ईश्वर हो, आप समस्त जगहों पर वास करते हो, आपके द्वारा ही आनन्द की प्राप्ति होती हैं, आप सभी वस्तुओं को अपनी ऊर्जा शक्ति के द्वारा दीप्ति प्रदान करते हो, आप जीवित प्राणियों के जीवन में संचार करने वाले ईश्वर हो, आप भूतों के स्वामी हो और सभी के ईश्वर हो।




गले रुण्डमालं तनौ सर्पजालं महाकालकालं गणेशाधिपालम्।

जटाजूटगङ्गोत्तरङ्गैर्विशालं शिवं शङ्करं शंभुमिशानमीडे।।२।।

अर्थात्:-हे शिवजी! मैं आपसे सबके कल्याण के लिए अरदास करता हूँ, शिव, शंकर, शम्भू आपके गले में कटे हुए सिर को माला के रूप में आभूषण को धारण किए हो, आपके गले में और समस्त देह के चारों तरफ आपस में गुँथे तथा फैले हुए भुजंगों के समूह के द्वारा घिरे रहने वाले हो, आप सृष्टि का संहार करने वाले व अनंत कालों का विनाश करने वाले हो, आप किसी दल या जत्था के अधिपति या प्रधान हो। आप के मस्तिष्क पर बहुत लंबे, उलझे, आपस में चिपके या गुथे हुए केशों में पावन प्रत्यक्ष गंगा भी रहती है और आप समस्त जीव जगत में वास करते हुए सभी के ईश्वर हो।




मुदामाकरं मण्डनं मण्डयन्तं महामण्डलं भस्मभूषाधरं तम्।

अनादिं ह्यपारं महामोहमारं शिवं शङ्करं शंभुमिशानमीडे।।३।।

अर्थात्:-हे शिवजी! मैं आपसे सबके कल्याण के लिए अरदास करता हूँ, शिव, शंकर, शम्भू आप हमेशा साक्षात समस्त जगत में वास करने वाले हो और सभी जगह पर आनन्द की वर्षा करने वाले हो, समस्त विश्वगोलक आपके चारों तरफ चक्कर काटता हैं, आप खुद अनंत रूप में फैले हुए विश्वगोलक के रूप हो, आप जले हुए पदार्थ के अवशेष को अपने सभी शरीर पर लगाने वाले और सभी भस्मों को अपनी रूप-सजा के रूप में ग्रहण करने के अधिपति हो,आपका प्रारम्भ नहीं है, यह एक साधन के रूप में हैं, जो कि किसी भी विशाल से जुड़ा या मिले हुए को अलग कर देता है और समस्त जगत के ईश्वर हो।




तटाधोनिवासं महाट्टाट्टहासं महापापनाशं सदा सुप्रकाशम्।

गिरीशं गणेशं सुरेशं महेशं शिवं शङ्करं शंभुमिशानमीडे।।४।।

अर्थात्:-हे शिवजी! मैं आपसे सबके कल्याण के लिए अरदास करता हूँ। शिव, शंकर, शम्भू वट वृक्ष के नीचे रहते है, आपके पास में समस्त तरह के माध्यम हैं, जिनसे आप किसी को भी अपने साधनों के द्वारा आनन्द प्रदान कर सकते हो, आप सभी तरह के धर्म व नीति के विरुद्ध किये गए आचरणों को दूर कर सकते हो, आप हमेशा चमकते हुए अपने आभा की रोशनी करने वाले हो, आप हिमालय के ईश्वर हो और विभिन्न समूहों के और असुरों जैसी शक्ति के भी ईश्वर हो। 




गिरिन्द्रात्मजासङ्गहीतार्धदेहं गिरौ संस्थितं सर्वदा सन्निगेहम्।

परब्रह्म ब्रह्मादिभिर्वन्द्यमानं शिवं शंभुमिशानमीडे।।५।।

अर्थात्:-हे शिवजी! आप पर्वतराज की तनुजा को अपनी भार्या के रूप में ग्रहण करके अपने आधी देह में जगह देते हुए आधे भाग की स्वामिनी बनाने वाले हो, मैं शिव, शंकर, शम्भू आपसे सबके कल्याण के लिए अरदास करता हूँ। आप कैलाश पर्वत पर वास करने वाले हो, जिनका मन उचटा रहता हैं, उन लोगों के लिए हमेशा मदद करने वाले हो, आप अलौकिक गुणों के स्वामी हो, आप पूजा करने के योग्य हो और आप विधाता एवं दूसरे समस्त जगत के वासी देव-दानव, जीव-जगत कादि के स्वामी हैं।




कपालं त्रिशूलं कराभ्यां दधानं पदाभोजनम्राय कामं ददानम्।

बलीवर्दयानं सुराणां प्रधानं शिवं शङ्करं शंभुमिशानमीडे।।६।।अर्थात्:-हे शिवजी! मैं शिव, शंकर, शम्भू आपसे सबके कल्याण के लिए अरदास करता हूँ। आप अपने करों में खोपड़ी और तीन नोकदार फल वाले लोहे का अस्त्र को धारण करते हैं, आप अपने विनीत स्वभाव के कमल चरणों वाले हो। 

आप वृषभ की पीठ पर सवारी करने वाले हो, सभी लोकों में सबसे ऊँचे व सभी देवताओं में प्रधान हो। दूसरों को आप अपने अधीन रखने वाले हो और विविध प्रकार के देवी-देवता एवं समस्त के आप ईश्वर हो। 




शरच्चन्द्रगात्रं गुणानन्दपात्रं त्रिनेत्रं पवित्रं धनेशस्य मित्रम्।

अपर्णाकळत्रं चरित्रं विचित्रं शिवं शङ्करं शंभुमिशानमीडे।।७।।

अर्थात्:-हे शिवजी! मैं आपसे सबके कल्याण के लिए अरदास करता हूँ। शिव, शंकर, शम्भू आपके पास एक ऐसा मुखड़ा को रखते हो जैसे कि शीतकाल में होने वाले सोम जो अपनी शीतल किरणों से समस्त लोक में शीतलता फैलाते हैं, उसी तरह आप भी सभी गणों में आनन्द प्रदान करने वाले हो, आप तीन चक्षुओं वाले हो, आप यक्षराज से मित्रता रखते हो, आपकी भार्या गिरिजा हैं, जो सदा रहने वाली विशेष  होने की अवस्था वाले हो और सभी के ईश्वर हो।



हरं सर्पहारं चिताभूविहारं भवं वेदसारं सदा निर्विकारम्।

श्मशाने वसन्तं मनोजं दहन्तं शिवं शङ्करं शंभुमिशानमीडे।।८।।

अर्थात्:-हे शिवजी! मैं आपसे सबके कल्याण के लिए अरदास करता हूँ। शिव, शंकर, शम्भू आपको हारा के नाम से भी समस्त सृष्टि में जाना जाता है, आपके पास में भुजंगों को अपने गले में हार या लड़ी के रूप आभूषण से सुशोभित हो, यह भुजंगों कि माल्य मसान के चारों तरफ चक्कर काटते हैं, आप विश्वगोलक हो, आप ही वेदों के संक्षिप्त रूप हो, जो हमेशा तिरस्कार किये हुए रहते है, जो मसान में अपना वास करने वाले है, जो मन में उत्पन्न अपनी कामनाओं को जला रहे हैं और आप सभी के ईश्वर हो।



स्तवं यः प्रभाते नरः शूलपाणेः पठेत्सर्वदा भर्गभावानुरक्तः।

स पुत्रं धनं धान्यमित्रं कळत्रं विचित्रैः समाराद्य मोक्षं प्रयाति।।९।।

अर्थात्:-हे शिवजी! जो मनुष्य प्रातःकाल जल्दी उठकर त्रिशूल अस्त्र को धारण किये हुए शिवजी की श्रद्धाभाव और विश्वास भाव से सबके कल्याण के लिए अरदास करते हुए भक्तिभाव से बारम्बार शिवाष्टक उच्चारण करते है, तो उस मनुष्य को कर्तव्य के प्रति आदर-भाव रखने वाले पुत्र संतान, रुपये-पैसा, दोस्त, सुयोग्य जीवन भर साथ निभाने वाले पति या पत्नी की प्राप्ति होती हैं और मनुष्य को अपना पूर्ण जीवनकाल व्यतीत करने के बाद उसे ईश्वर की चरणों में सेवा करने का अवसर मिल जाता है और वह मोक्ष गति को प्राप्त कर लेता हैं। हे शिव, शंभो, गौरी शंकर! मैं आपसे निवेदन करता हूँ कि आप अपने प्रिय भक्तों के प्रति सदैव प्रेम रूप आशीष को प्रदान करें और उनकी सदैव हिफाजत कीजिए।



शिवाष्टक वांचन की विधि(Method of reading Shivashtak strotam):-मनुष्य को शिवाष्टक वांचन करने से पूर्व इस स्तोत्र की विधि को जान लेना चाहिए, निम्नलिखित विधि को अपनाते हुए इस स्तोत्र का वांचन करना चाहिए-



◆सबसे पहले मनुष्य को जल्दी उठकर अपनी दैनिकचर्या को पूर्ण करना चाहिए।



◆मनुष्य को नियमित रूप से सोमवार को शिवाष्टक स्तोत्रं का वांचन करना चाहिए।



◆मनुष्य को नियमति रूप से प्रातःकाल व सायंकाल के समय स्तोत्रं का वांचन करना चाहिए।



◆विशेषकर श्रावण माह में पूरे श्रावण माह स्तोत्रं का पाठ करें।



◆फिर मनुष्य की इच्छा के अनुरूप वह किसी भी दिन या माह को स्तोत्रं का पाठन कर सकते हैं।



◆मनुष्य को भगवान शिवजी की प्रतिमा के सम्मुख बिछावन पर बैठकर पूजा करनी चाहिए।



◆फिर धेनु के दुग्ध व पवित्र गंगाजल से भगवान भोलेनाथजी का जल के द्वारा सिंचन करना चाहिए।



◆फिर दधि, मधु, शुद्ध जल, श्वेत चंदन, श्वेत पुष्प, नैवेद्य में दुग्ध से बनी खीर या कोई भी मिठाई, मौसमी या ऋतु अनुसार फल, बिल्वपत्र, भांग, धतूरा, शमीपल्लव, चावल, धूप, दीप आदि को अर्पण करते हुए उनकी पूजा करनी चाहिए।



◆फिर मनुष्य पूजा पूर्ण करने के बाद में अपने मन को एकाग्रचित्त करते हुए भगवान शिवजी को मन ही मन याद करते हुए उनका ध्यान करना।



शिवाष्टक स्तोत्रं के वांचन से मिलने वाले लाभ(Benefits of reciting Shivashtak Stotram):-मनुष्य के द्वारा जब शिवाष्टक स्तोत्रं का वांचन करते रहने पर निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं-



◆मनुष्य के द्वारा शिवाष्टक स्तोत्रं का वांचन करने पर आदर देने वाले व गुणों से युक्त पुत्र सन्तान की प्राप्ति होती हैं।



◆मनुष्य को रुपये-पैसा की प्राप्ति होती हैं, जिससे मनुष्य की प्रगति दिन दूनी-रात चौगुनी होती हैं।



◆जो कोई भी स्त्री या पुरुष इस स्तोत्र का वांचन करते हैं, उनको दाम्पत्य जीवन में पति या पत्नी का भरपूर प्रेम व लगाव मिलता हैं।



◆मनुष्य के द्वारा स्तोत्र के वांचन करते रहने पर मनुष्य अपने जीवन को पूर्ण भोगता हैं, उसके बाद उस मनुष्य का उद्धार हो जाता हैं।



◆मनुष्य के द्वारा शिवाष्टक स्तोत्रं का वांचन करने पर उस मनुष्य के शरीर पर शारीरिक व मानसिक व्याधि नहीं होती हैं।



◆मनुष्य को अपने जीवनकाल में जो बिना मतलब की परेशानियों आती हैं, उन सभी मुसिबतों से छुटकारा मिल जाता है।