कुंभ विवाह क्या होता हैं? जानें पूजा विधि और दाम्पत्य जीवन में महत्व (What is Kumbh Vivah? Know Puja vidhi and Importance in Married Life):-लड़के या लड़की के लिए विवाह बहुत जरूरी शास्त्रों में माना गया हैं, विवाह के बिना लड़के या लड़की का जीवन अधूरा माना जाता है। विवाह के पूर्व लड़के व लड़की की जन्मकुंडली का मिलान किया जाता हैं, जिससे उनके दाम्पत्य जीवन में किसी भी तरह की परेशानी नहीं आवे। लेकिन सभी तरह के मिलान होने के बाद भी लड़की या लड़के की जन्मकुंडली में दाम्पत्य जीवन को प्रभावित करने वाले मंगल ग्रह के द्वारा जब मांगलिक योग बन जाता हैं। तब अच्छा रिश्ता होते हुए भी विवाह की रजामंदी नहीं दी जाती हैं। इस तरह मंगल दोष के निवारण के लिए प्राचीनकाल में लड़के या लड़की के दाम्पत्य जीवन को सुखमय बनाने के ऋषि-मुनियों ने मंगल दोष पर बहुत गहनता से कार्य करते हुए उन्होंने मंगल दोष के निवारण हेतु कई तरह के उपायों का निर्माण किया था।
मांगलिक दोष:-किसी जातक की जन्मकुण्डली के प्रथम भाव में, लग्न स्थान, चतुर्थ या जामित्र स्थान, सातवें या पाताल, आठवें एवं बारहवें या व्यय स्थान में मंगल हो तो वह कुण्डली मांगलिक कहलाती हैं।
लेकिन की बार ऐसा भी होता हैं की लड़का या लड़की में से कोई एक मांगलिक होता हैं और दूसरा नहीं तो ऐसे में क्या करना उचित होगा? या दोनों के गुण मिल रहे हैं तो क्या करें? अथवा विवाह हो गया और बाद में पता चला कि एक कुण्डली मांगलिक हैं, दूसरे की नहीं तो क्या उपाय करें, ताकि वैवाहिक जीवन सुखद रहे? उपरोक्त तीनों समस्याओं का निदान हैं घट या कुम्भ विवाह। क्योंकि कन्या की स्थिति घट को भगवान विष्णु का रूप दिया जाता हैं। शास्त्रों की ऐसी मान्यता है कि जिस कन्या का भगवान विष्णु के साथ विवाह हो जाता हैं, अखण्ड सौभाग्य की स्वामिनी होती हैं। उसे पति की बीमारी, मृत्यु का भय नहीं रहता है तथा कुण्डली दुर्योग भी इससे नष्ट हो जाता हैं। विवाह विलम्ब की स्थिति भी समाप्त हो जाती हैं।
कुम्भ विवाह के शब्दों मिलना:-कुम्भ विवाह में दो संस्कृत शब्दों के एक साथ मेल होने से बना हैं, जो कुम्भ व विवाह शब्द हैं।
कुम्भ का अर्थ:-मिट्टी से निर्मित बिना जीव से युक्त बर्तन को कुम्भ कहा जाता है।
विवाह का अर्थ:-हिन्दुधर्म के अनुसार वैधानिक रूप से लड़की एवं लड़के को सामाजिक एवं धार्मिक रूप से लड़के व लड़की को पति व पत्नी के रूप में विधि विधान के कर्मों को करते हुए एक जोड़े के रूप में दो जान एक जिस्म का रूप प्रदान करने को विवाह कहा जाता है।
कुम्भ विवाह का अर्थ:-वैधानिक रूप से लड़की या लड़के का सामाजिक एवं धार्मिक रूप से सप्तपदी के रूप में पूर्ण रूप से मन्त्रों के उच्चारण करते हुए घट के साथ विवाह करने को घट विवाह या कुम्भ विवाह कहा जाता है।
भारतीय संस्कृति की मुख्य विचारधारा हैं कि मनुष्य की आत्मा और ब्रह्म के विषय में चिंतन-मनन करते हुए अपने जीवन के प्रत्येक क्ष्रेत्र में अपनाते हुए जीवन के प्रत्येक हिस्सों का निवारण करना हैं। कुम्भ विवाह भी भारतीय संस्कृति में आत्मा एवं ब्रह्म के विषय में चिंतन-मनन से सम्बंधित विस्मय अभीष्ट प्राप्ति के लिए संकल्पित मांगलिक कर्मकांड में से एक होता है और कुम्भ विवाह की चर्चा चारों ओर फैली हुई सुविचारित विचार हैं। जो लड़के या लड़की की जन्मकुंडली में मांगलिक दोष से प्रभावित लड़के या लड़की के जीवन में पड़ने वाले विस्मय का बोधक होता हैं।
◆पुरुष यदि विवाह करता हैं तो उसका तांत्रिक विवाह लक्ष्मी से कराया जाता है। लक्ष्मी अखण्ड सौभाग्य की स्वामिनी होती हैं।
अष्टकूट कम मिलते हैं तथा मंगल का मिलान हो जाता है तो विवाह कर सकते हैं। क्योंकि कुंडली मिलान में पचास नम्बर मंगल एवं पचास नम्बर अष्टकूट को दिए जाते हैं।
मान लीजिए:-किसी मिलान के 14 गुण ही मिले तथा मंगल का मिलान हो गया हो तो 50+14= 64 अर्थात् 64 नम्बर सौ में से इस मिलान को मिले। इसलिए विवाह हो सकता हैं।
इसके विपरीत यदि किसी कुण्डली मिलान में 36 के 36 गुण मिल गए पर मंगल का मिलान नहीं हुआ तो सौ में से केवल 36 गुण मिलने पर मिलान असफल हैं, विवाह नहीं कर सकते हैं, लेकिन वर-वधू दोनों विवाह करने के लिए कटिबद्ध हैं तो विवाह करने से पूर्व घट-विवाह कर लेना ही समस्या का परिहार है।
कुम्भ विवाह क्या है?:-जब लड़की की सही उम्र होने के बाद भी विवाह नहीं हो पाता हैं, सगाई बार-बार टूट जाती हैं या किसी भी तरह के दूसरों योगों या दोषों के कारण विवाह की उम्र होने पर भी विवाह में रुकावटें आती हैं। तब लड़की के विवाह में आने वाली बाधाओं से छुटकारा दिलाने के लिए भगवान विष्णु के स्वरूप में वास करने वाले कुम्भ के साथ विवाह प्रक्रिया को किया जाता हैं उसे कुम्भ या घट विवाह कहा जाता है। इस तरह लड़की का विवाह लड़के से पूर्व घट या कुम्भ से करने से ग्रह जनित दोषों का परिहार हो जाता हैं और उसका दाम्पत्य जीवन भी सुख से व्यतीत होता हैं।
कौन कुम्भ विवाह को संपन्न करा सकता है या कुम्भ या घट विवाह किन लड़की या औरत के होना चाहिए:-जब जन्मकुंडली के सातवें घर या बारहवें घर में बुरे ग्रह या पापी ग्रह-जैसे सूर्य, मंगल, शनि, राहु व केतु ग्रहों का प्रभाव लड़की या औरत के जीवन पर पड़ता हैं अथवा जब लड़की या औरत की जन्मकुंडली में भृगु ग्रह, रवि ग्रह सातवें घर के मालिक या बारहवें घर के मालिक जब मंद ग्रह के द्वारा साथ में बैठे हो, परस्पर एक-दूसरे को देखते हो या राशि परिवर्तन करके इन घरों के स्वामी व घरों को पीड़ित करते हो।
◆किसी जातक की जन्मकुण्डली के प्रथम भाव में, लग्न स्थान, चतुर्थ या जामित्र स्थान, सातवें या पाताल, आठवें एवं बारहवें या व्यय स्थान में मंगल हो तो वह कुण्डली मांगलिक दोष से युक्त कहलाती हैं।
◆जब मंगल ग्रह से मांगलिक दोष जन्मकुंडली में बनता हैं, तो सप्तम घर को मंगल ग्रह अपनी दृष्टि से देखता है
◆ज्योतिष शास्त्र में जन्मकुंडली के सातवें घर को जाया या पत्नी का घर कहा जाता हैं, मनुष्य के जीवन में पूर्णता प्रदान करने वाला घर होता हैं। मनुष्य के जीवन में दाम्पत्य सुख को प्रदान करने का होता हैं।
◆जब जन्मकुंडली में मंगल ग्रह का असर सातवे घर पर होता हैं, तब वैवाहिक जीवन एवं दाम्पत्य जीवन में विष की तरह फैलते हुए, जीवन को नष्ट करने वाला बन जाता हैं।
◆संसार में जन्म लेने वाले सौ प्रतिशत मनुष्य में से चालीस से पैंतालीस प्रतिशत मनुष्य की जन्मकुंडली में मांगलिक दोष बनता हैं, लेकिन जन्मकुंडली का विश्लेषण करने के बाद ही मंगल ग्रह के होने वाले दुष्प्रभाव को जाना जा सकता हैं।
◆जब जन्मकुंडली का पूर्ण रूप से विश्लेषण किया जाता हैं, तब अधिकांश जन्मकुंडलीयों में केवल दस प्रतिशत से पन्द्रहरा प्रतिशत मनुष्य के दाम्पत्य जीवन पर ही विपरीत असर हो पाता हैं।
◆दाम्पत्य जीवन को सुचारू रूप से सुख-शांति से आदमी व औरत के बीच उचित तालमेल से जीवन में किसी भी तरह से पति-पत्नी का वैधानिक रुप से विवाह सम्बंध का विच्छेद एवं पृथकता जैसी समस्याओं से राहत प्रदान करने के लिए किया जाता हैं।
◆इस तरह के दोष होने के कारण लड़की या औरत का विवाह होने में देरी होती हैं, विवाह के योग बनते-बनते बिगड़ जाते है और दाम्पत्य जीवन को पूर्ण रूप से नहीं भोग पाते हैं। इस तरह विवाह योग में आ रही बाधाओं से छुटकारा पाने हेतु मनुष्य के परिवार के सदस्यों के द्वारा या माता-पिता के द्वारा लड़की या औरत के विवाह से पूर्व कुम्भ विवाह करवाना चाहिए, जिससे दूषित योगों का समाधान हो जावें।
◆कुम्भ विवाह जब चंद्र-तारा अनुकूल होने पर करना चाहिए।
कुम्भ विवाह करने की पूजा विधि:-जब लड़की या लड़के की जन्मकुण्डली में मंगल ग्रह पहले भाव, चतुर्थ भाव, सातवें भाव, आठवें भाव और बारहवें भाव में जब मंगल ग्रह बैठ जाता हैं, तब वह मांगलिक दोष या योग कहलाता हैं, यह दो तरह के शास्त्रों में बताएं गए हैं, जिनमें से एक चुनरी मंगल एवं दूसरा पाखंडियों मंगल होता हैं, उस मंगल ग्रह से मांगलिक योग के निवारण के लिए कुम्भ विवाह या घट विवाह का विधान शास्त्रों में बताया गया हैं।
जन्मकुण्डली में मंगल ग्रह से बनने वाला मांगलिक योग एक तरह से भूल त्रुटी होती हैं। जिसका असर विवाह होने के बाद में प्रारम्भ होता हैं और विवाह के बाद अपने दोष के रूप को ग्रहण करके दुष्प्रभाव को शुरू कर देता हैं। घट विवाह या कुम्भ विवाह में लड़के या लड़की की विवाह की प्रक्रिया को हिन्दुधर्म रीति के अनुसार ही सम्पन्न किया जाता हैं।
◆सबसे पहले गणेशादि को याद करना।
◆फिर संकल्प करना, दीग्रक्षणादि पूजा, दीप पूजा, गणपति पूजा, कलश स्थापना, पुण्याहवाचन, नाँदी श्राद्ध, नवकलश स्थापना, गणेश गौरी पूजा, वरुणावाहन, नवग्रह पूजा, षोडशमातृका पूजा, सप्तमातृका पूजा आदि की पूजा करके विवाह पद्धति को सम्पन्न करवाना चाहिए।
लड़की के जन्मकुण्डली में मंगलदोष या योग से मांगलिक योग बनने पर विष्णु प्रतिमा के साथ विवाह की विधि:-जब लड़की की जन्मकुण्डली में मंगल ग्रह के प्रभाव से मांगलिक दोष बनने पर लड़की का विवाह भगवान श्रीविष्णुजी के साथ हिन्दुधर्म में बताई हुई विधि से करवाते हैं, जिसमें भगवान श्रीविष्णुजी की प्रतिमा ब्राह्मण के द्वारा लाई जाती हैं और भगवान विष्णुजी का पूर्ण श्रृंगार से अलंकृत किया जाता हैं, फिर लड़की के घर पर या नदी के किनारे पर या किसी वृक्ष के नीचे लग्न वेदिका के साथ सात फेरों का विधान किया जाता हैं और लड़की का भी पूर्ण श्रृंगार करके आभूषण से अलंकृत करके लड़की के माता-पिता लग्न वेदिका में बिठाकर कन्यादान करते हैं, इस तरह से भगवान श्रीविष्णुजी के साथ विवाह संपन्न हो जाता हैं, जिससे लड़के के विधवा होने की किसी भी तरह से संभावना नहीं रहती हैं, क्योंकि भगवान को समर्पित करने से किसी पर किसी भी तरह के दोष होने पर उस दोष को भगवान ग्रहण कर लेते हैं, इसलिए घट विवाह में लड़की का विवाह श्रीविष्णुजी के साथ करने के बाद उसका विवाह दूसरे लड़के के साथ किया जाता हैं।
धर्म शास्त्रों के अनुसार घट विवाह या कुम्भ विवाह:-हिन्दुधर्म में जब लड़की मांगलिक दोष से युक्त होने पर उसका विवाह मृत्तिका से बने हुए कुम्भ के साथ करने का विधान बताया गया हैं। इस विधि में कुम्भ को पूर्ण तरह से सुसज्जित करके उसका विवाह मंगल ग्रह से पीड़ित लड़की के साथ करते हैं। इस विधि में भी लड़की को पूतन रूप से श्रृंगार आदि आभूषणों से सजाया जाता हैं फिर उसका विवाह उसके माता-पिता ब्राह्मण की साक्षी में पूर्ण हिन्दुधर्म रीति से करते हैं, जिसमें 'सप्तपदी' अर्थात् सात फेरों के साथ 'कन्यादान' की पूर्ण रूप से प्रकिया से सम्पन्न किया जाता हैं। फिर लड़की का विवाह पूर्ण होने पर उस घट या कुम्भ को बहते हुए नदी या सरोवर में बहा दिया जाता हैं या कहीं-कहीं पर उस घट को फोड़ दिया जाता हैं, जिससे लड़के विधवा के योग नष्ट हो जाते हैं, क्योंकि मृत्तिका का बना हुआ घट में निर्जीव होता है और घट को फोड़ने पर विधवा योग का असर खत्म हो जाता है। उसके बाद में लड़की का विवाह दूसरे लड़के के साथ किया जा सकता हैं। लड़की के पति पर मंगल ग्रह का किसी भी तरह असर नहीं रह पाता है और विवाह के बाद सुख पूर्वक अपना दाम्पत्य जीवन को जी सकती हैं, जिसे अब किसी तरह से डरने की जरूरत नहीं होती हैं।
अश्वत्थ या अश्वाथा विवाह या पीपल वृक्ष:-के साथ विवाह के बारे में धर्मग्रंथ गीता में बताया गया हैं-
लिखावोक्षानाम् दृश्यत अश्वत्थोह।
अर्थात्:-वृक्षों में मैं पीपल का वृक्ष हूँ। लड़की का विवाह पीपल वृक्ष से भी विधि-विधान किया जाता हैं।
◆पति की शुरुआती मौत का कारण एक मांगलिक दुल्हन बन सकती हैं। इस समस्या को रोकने के लिए दुल्हन की शादी एक पेड़ जैसे-केले या पीपल, एक जानवर या एक बेजान वस्तु से की जाती हैं। इस शादी की रस्म में विभिन्न नामों का इस्तेमाल किया जाता है, जो कि रस्म में इस्तेमाल होने वाले "दूल्हे" पर निर्भर करते हैं।
जिन मनुष्य की जन्म कुंडली में मंगल दोष विद्यमान होता है, उन मनुष्य को किसी ज्ञाता ब्राह्मण या पण्डित से उसके अनुभव की जानकारी के बाद ही कुंभ विवाह की पद्धति को करवाना चाहिए। मनुष्य के जीवन में दाम्पत्य सुख को कायम रखने के लिए किया जाता हैं, जो कि विवाह के पूर्व एक बार ही होता हैं।
कुम्भ विवाह की क्यों आवश्यकता होती हैं?:-कुम्भ विवाह के पीछे हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों के द्वारा किये शोध से आदमी एवं औरत के जीवन की रक्षा करने के लिए जरूरत होती हैं। दाम्पत्य जीवन को चलाने के लिए आदमी एवं औरत की जरूरत होती हैं, जिस तरह से किसी गाड़ी में दो पहिया होने पर वह चल सकती हैं, उसी तरह से आदमी एवं औरत एक-दूसरे के पूरक होते हैं और एक-दूसरे के बिना व उनका जीवन निराधार हो जाता हैं, इसलिए मंगल ग्रह से बनने वाले दोष को नष्ट करने का विधान उचित प्रतीत होता हैं।
◆जब जन्मकुंडली में द्विभार्या या दो पति के योग बनने एवं विवाह सम्बन्ध से विच्छेद के योग बनने से सम्बंधित परेशानी से मुक्ति दिलवाने के ठीक प्रतीत होता हैं।
◆औरत या आदमी का विवाह किसी भी बिना जीव वाले पानी के बर्तन के साथ करना। जिससे का अर्थ हैं कि यदि प्रथम विवाह को टूटने से समाप्त करना हैं तो घट बिना जीव से युक्त पानी के बर्तन से करके समाप्त करने से होता हैं। इस तरह औरत या आदमी के दूसरे विवाह हैं, जिससे दूसरा विवाह या तलाक समाप्त हो जाएगा।
◆घट विवाह में औरत या आदमी का घट के साथ प्रथम बार विवाह किया जाता हैं, जिससे प्रथम विवाह में घट को एक बार तोड़ दिया जाता हैं, जिससे दो विवाह के योग में एक योग नष्ट हो जाता हैं एक टूटने से समाप्त करना होता हैं, जिससे दूसरे विवाह भी समाप्त हो जाता हैं।
कुम्भ विवाह करने से मिलने वाले लाभ:-हिन्दुधर्म में ज्योतिष शास्त्र में ग्रह का दूसरे ग्रहों के साथ एक घर में एक साथ बैठने पर एक-दूसरे के द्वारा देखने से अच्छे एवं बुरे योग बनते हैं, जिनका असर मनुष्य के जीवनकाल पर पड़ता हैं, इस तरह के योग के असर को कम करने उपाय भी बताया हैं, उनको करके मनुष्य के जीवन में लाभ प्राप्त होते हैं, जो इस तरह हैं-
◆ज्योतिष शास्त्र एवं प्राचीन कहि जाने वाली धर्म विषयक आख्यान में कुम्भ विवाह करने से मांगलिक दोष को माना न जाये एवं उस दोष का अस्तित्व समाप्त हो जाता हैं।
◆कुम्भ विवाह करने से आदमी और औरत के दाम्पत्य जीवन पर मंगल ग्रह से सम्बंधित पड़ने वाले प्रभाव कम हो जाते हैं और दाम्पत्य जीवन को ज्यादा नुकसान नहीं हो पाता हैं।
◆मनुष्य जन्मकुंडली में वर्णित मंगल योग के दोष को नष्ट करने के लिए लड़की के विवाह को एक हिन्दुधर्म में पवित्र संस्कार विवाह की तरह उत्सव के रूप में पूर्ण श्रद्धा से धूमधाम से सम्पन्न किया हैं।
◆कुम्भ विवाह से लड़की पर मंगल ग्रह के प्रभाव को दूर करने में सहायक होता हैं।
◆कुम्भ विवाह में प्रथम घट निर्जीव वस्तु से विवाह करवाने से मंगल ग्रह जनित प्रभाव घट को फोड़ने से पंचतत्व में विलीन होकर लड़की के लिए नवीन जीवन का उदय हो जाता हैं।
◆हिन्दुधर्म में प्राचीनकाल से कुरीतियों के रूप में मंगल दोष को मानते हुए, उस दोष को घट विवाह के रूप सम्पन्न कराने का विधान मानते हुए करते रहे हैं और घट विवाह के अच्छे नतीजे भी संसार में प्राप्त हुए हैं।
◆नास्तिक एवं तर्क शास्त्र के जानकार मनुष्य घट विवाह के विरुद्ध एक प्राचीन रूढ़ि को गलत मानते हैं और उनका मानना हैं कि मंगल ग्रह के प्रभाव इस विवाह से समाप्त नहीं किया जा सकता हैं। आधुनिक युग में विज्ञान सम्बंधी ज्ञान रखने वाले मनुष्य इस तरह के घट विवाह को निराधार मानते हैं। और इस विवाह को प्राचीन रूढ़ि मानते हैं।
◆घट विवाह में लड़की या लड़के का विवाह धार्मिक रीति-रिवाजों के साथ पूर्ण रूप से किया हैं, जिसमें घट को लड़के या लड़की का स्वरूप के रूप में मानते हुए विवाह को सम्पन्न किया जाता हैं और फिर विवाह के बाद उस घट को फोड़ दिया जाता हैं, जिससे लड़की के विधवा एवं लड़के विधुर योग घट के रूप में समाप्त हो जाते हैं व पंचतत्व में विलीन होकर लड़की व लड़के को नए जीवन को प्रदान करता हैं।