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Thursday, May 19, 2022

नकारात्मक ऊर्जा संतुलित कीजिए और बचाएं घर को(Balance negative energy and save the house)

Balance negative energy and save the house





नकारात्मक ऊर्जा संतुलित कीजिए और बचाएं घर को(Balance negative energy and save the house):-ज्योतिष व वास्तु शास्त्र आज के वैज्ञानिक युग में भी उतना ही प्रमाणिक व फायदेमंद है, जितना प्राचीनकाल में हुआ करता था। हालांकि लोग इसे शंका की दृष्टि से देखते हैं और इसे अंधविश्वास मानते हैं। यह गलत है। ऐसा दावा इसलिए किया जा सकता है क्योंकि कोई भी कार्य को करने की रीति, वस्तुओं या विषयों की जानकारी जो मन या विवेक को होती हैं, सोच आदि प्रामाणिक नहीं होगा, तो लम्बे समय तक सदा स्थित रहने वाले रूप से मानने योग्य नहों हो सकता और फिर इस विज्ञान को तो आज पश्चिम देशों में भी प्रखर स्वीकृति मिल रही है।





प्राचीन काल में भारत में वास्तुशास्त्र के अनेक विशेष ज्ञान रखने वाले हुए हैं। मत्स्य पुराण में वास्तुशास्त्र के अठारह ज्ञाताओं का उल्लेख मिलता हैं। ये हैं-भृगु, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वकर्मा, मय, नारद, यज्ञनिष्ठा, विशालाक्षा, पुरंधर, ब्रह्म कुमार, नदीम, शौनक, गार्ग, वासुदेव, अनिरुद्ध, शुक्र व बृहस्पति। इसी प्रकार त्रेता युग में, द्वापर युग में तथा रामायण व महाभारत में भी वास्तुशास्त्र की चर्चा की गई हैं। बौद्ध धर्म ग्रंथों में भी वास्तुशास्त्र संबंधी तथ्य मिलते हैं।




पुराणों में स्कंद पुराण, मत्स्य पुराण, नारद पुराण, अग्नि पुराण, लिंग पुराण आदि में वास्तुशास्त्र के महत्व को प्रतिपादित किया गया है।




चाणक्य के अर्थशास्त्र, शुक्र नीति, वृहत जातक, समरांगण-सूत्रधार जैसे धर्मग्रंथों में भी वास्तुशास्त्र की उपयोगिता तथा उपादेयता पर काफी चर्चा हुई है। वर्तमान में भी ज्योतिष एवं वास्तुशास्त्र की महत्ता को राजनेता से लेकर व्यवसायी, वैज्ञानिक, चिकित्सक आदि सभी मानते हैं, लेकिन आखिर इसका क्या कारण है कि आज तक किसी भी कालखंड में कोई भी सत्ता इस प्रकार का नियम नहीं बना सकी की समस्त नगरों का विकास तथा समस्त भवनों का विकास वास्तुशास्त्र के नियमों के अनुरूप होना चाहिए, ताकि चारों तरफसुख-समृद्धि हो। इतना ही नहीं राजभवन से लेकर तमाम प्रशासनिक भवन, वित्तीय व व्यावसायिक संस्थान, औद्योगिक इकाइयां और गांव, कस्बे व नगर तक का निर्माण वास्तुशास्त्र के आधार पर चारों तरफ से सबकुछ अपने में समाविष्ट कर लेने वाला विकास संभव है।




प्रत्येक व्यक्ति अपने नियति के कर्मानुसार जन्म लेता है और उसी के अनुरूप उसकी जन्म कुंडली में विभिन्न ग्रह स्थित होते हैं। जन्म कुंडली में ग्रहों की स्थिति तथा उनके प्रभाव के अनुरूप जातक को पारिवारिक, आर्थिक व वैचारिक शक्तियां प्राप्त होती हैं और उसी के अनुरूप उसे वस्तु भी प्राप्त होती है।




एक समय ऐसा आता है जब किसी व्यक्ति के ग्रह इतने बलशाली हो जाते हैं कि उसे राष्ट्राध्यक्ष का पद प्राप्त होता है और उसके रहने का स्थान यानी वास्तु भी परिवर्तित हो जाता है, लेकिन एक निर्धारित समय के बाद जब उसी व्यक्ति की ग्रह दशा बदलती है, तो वह राष्ट्राध्यक्ष पद से मुक्त हो जाता है और एक बार फिर उसकी वास्तु बदल जाती है। ग्रहों की स्थिति की वजह से ही एक व्यक्ति अत्यंत साधारण परिवार में जन्म लेकर असाधारण प्रतिभा का धनी बन जाता है, जबकि कोई अतिप्रतिभाशाली व समृद्ध परिवार में जन्म लेकर भी जीवन भर सुखी जीवन व्यतीत नहीं कर पाता। 




वास्तु शास्त्र छोटी-छोटी बातों के बड़े-बड़े अर्थ:-सामान्यतः हम अपने जीवन में बहुत कुछ ऐसा करते हैं, जिन पर कभी गंभीरता से विचार नहीं करते। दरअसल, हम यह मानकर चलते हैं। की छोटी-छोटी बातें हमारे लिए कोई महत्व नहीं रखतीं, जब कि ऐसा नहीं है। सही मायने में देखा जाए, तो छोटी-छोटी बातें मिलकर ही बड़ी होती हैं। 



उदाहरणस्वरूप:-हम भले ही एक क्षण को कोई महत्व न दें, लेकिन यही एक-एक क्षण मिलकर दिन, महीने, वर्ष एवं सम्पूर्ण जीवन में बदल जाते हैं। यदि हम एक-एक क्षण को संवारतें चलें, तो हमारा जीवन संवर जाएगा और बिगाड़ते चलें, तो बिगड़ जाएगा। इसीलिए वास्तुशास्त्र में इन छोटी-छोटी बातों को विशेष महत्व दिया गया है। इनमें से अनेक बातों को हमारे बड़े बुजुर्ग बताते भी हैं, लेकिन आज की इस भागमभाग भरी जिन्दगी में हम उन बातों को भूलते जा रहे हैं। वास्तु शास्त्र हमारे जीवन में हरेक पहलू को कल्याणकारी एवं प्रगतिशील बनाने की दिशा में काम करता है। यदि हम कुछ बातों का ख्याल रखें, तो हमारे जीवन में इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। ये बातें इस प्रकार हैं-



◆पानी के नल से टपकता हुआ जल हमारी आर्थिक समृद्धि में समस्या पैदा कर सकता है। ऐसा कहा जाता है कि पानी के टपकने से घर या बिजनेश में तरक्की नहीं होती। इसलिए जैसे ही कोई नल खराब हो, तुरन्त उसे ठीक करवा लेना चाहिए।



◆अपने मकान के अन्दर या दफ्तर में दीवारों पर ज्यादा कीलों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। जरूरी होने पर ही कील लगाएं, अनावश्यक कीलें न लगाएं।



◆किसी घड़ी, फोटो या कैलेंडर आदि के लिए जरूरी होने पर ही कील लगाएं, क्योंकि अनावश्यक कीलें नुकसान करती है। वास्तु के अनुसार इसे अच्छा नहीं माना जाता है। यही कारण है कि पुराने समय में कील की जगह लकड़ी की खूंटियों का इस्तेमाल किया जाता था।



◆भवन के भीतर मकड़ी के जाले न पनपनें दें। मकड़ी के जालों के होने से घर के सभी सदस्यों में सुस्ती, शिथिलता एवं लापरवाही बनी रहती है। मकड़ी के इन जालों में फंसे कीट-पतंगे एवं जहां-तहां झूलती मकड़ियां भवन के भीतर मनहूसियत पैदा करती हैं। इसलिए इससे बचने के लिए समय-समय पर जालों को साफ करते रहें।



◆घर के प्रत्येक कमरे में प्रतिदिन झाड़ू लगाएं। यह भी ध्यान रखें कि सारे घर या ऑफिस आदि की साफ-सफाई करने के बाद झाड़ू को इस प्रकार न रखें, जिससे उसका सीकों वाला हिस्सा ऊपर हो। ऐसा करने से घर में झगड़े बढ़ते हैं। झाड़ू भवन की दक्षिण यजे पश्चिम दिशा में जमीन पर लिटाकर रखें।



◆किसी भी बिल्डिंग में खिड़कियों पर एवं फर्नीचर आदि में इस्तेमाल किया जाने वाला शीशा टूटा हुआ या चटखा हुआ नहीं होना चाहिए, क्योंकि इससे घर में पूर्णता की कमी होती हैं। इससे परिवार को अनेक समस्याओं का सामना भी करना पड़ सकता है। इसी प्रकार मुंह देखने वाला दर्पण भी साबुत होना चाहिए। 



◆हम लोग अपने घरों में तरह-तरह के जो समान इस्तेमाल करते हैं, उनमें कुछ देवी-देवताओं के चित्र भी बनें होते हैं। अनेक बार वे टूट जाते हैं। उन खंडित वस्तुओं का इस्तेमाल न करें।





उदाहरणस्वरूप:-इस संदर्भ एक निजी अनुभव का जिक्र करना चाहूंगा। कुछ समय पहले की बात है मुझे एक औद्योगिक इकाई का निरीक्षण करने के लिए आमंत्रित किया गया था। चूंकि उस औद्योगिक इकाई के स्वामी व कुछ निदेशक आदि भी दूसरे शहर से वहां आए थे। अतः हम सभी एक होटल में ठहरे। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि हम लोगों को जो अलग-अलग कमरे आवंटित किए गए थे, उन सबका वास्तु अलग-अलग था। क्या आप जानना चाहेंगे कि इसका क्या रहस्य हैं? दरअसल जिन्हें जितना उत्तम वास्तु सम्मत कमरा आवंटित हुआ, उनकी ऊर्जा उतनी हीनाधिक समन्वित थी। इस वजह से उनकी कार्यदक्षता, उनका व्यक्तित्व अधिक प्रभावशाली रहा।




इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन करके ही पूर्ण सुख पाना संभव नहीं हैं। यदि आप जीवन को पूर्णरूपेण सुखी बनाना चाहते हों, तो सबसे पहले आपको अपनी ऊर्जा को संतुलित करना होगा। अन्यथा आपको प्राप्त वास्तु में कोई न कोई परिवर्तन हो ही जाएगा।