देवी-देवता की पूजा में दीपक और बाती का महत्व (Importance of lamp and wick in the worship of deities):-पुराने जमाने में मध्यम वर्ग के लोगों के द्वारा मिट्टी का दिया और कपड़े को बटकर बाती बनाकर घर के अंदर रोशनी करते थे और सम्पन व राजा-महाराज अपने कोटि या महल के अंदर अंधेरे को मिटाने के लिए ताम्बा या पीतल के दीपक और अच्छे सुत कपड़े की रुई की बाती का उपयोग करते थे। हिन्दू संस्कृति में पूजा-पाठ का बहुत ही महत्व है। ईश्वर को खुश करने के हेतु पूजा-पाठ और आरती में तेल या घी का दीपक जलाते की परंपरा चली आ रही है और आज के समय में भी चल रही है। दीपक को जलाने से ईश्वर खुश होकर मनुष्य के जीवन में सुख-शांति का वरदान देते है। देवी-देवता की पूजा में घी या तेल का दीपक जलाने की परम्परा का महत्व प्राचीनकाल से चल रहा है। पूजा के समय दीपक कैसा हो, उसमें कितनी बत्तियां हो यह जान कर पूजा करने से सम्बन्धित देवी-देवता की कृपा और अपने उददेश्य की पूर्ति होती हैं।
दीपक और गृह स्वामीयों पर पड़ने वाला प्रभाव:-
1.धन-सम्पत्ति की प्राप्ति के लिए:-अपने घर के मंदिर में शुद्ध देसी घृत का दीपक जलाना चाहिए।
2.डर सताया जाय दुश्मनों का:-तो सर्षप के तेल का दीपक वीरभद्र जी के सामने जलाने से वीरभद्र जी खुश होकर सताये जाने वाले दुश्मनों के डर से मुक्त करते है।
3.भगवान भास्कर को खुश करने और कृपा-प्रसाद के लिए:- सर्षप के तेल का दीपक भगवान आदित्य के सामने जलाने से वें प्रसन्न होकर अच्छे आशीर्वाद देते है।
4.ग्रह मन्द की शान्ति के लिए:-सर्षप या तिल के तेल का दीपक शाम के शनि भगवान के सामने जलाने से मन्द ग्रह के सम्बन्धित मुशीबतों से छूटकारा मिलता है।
5.गृह स्वामी की लंबी उम्र को बढ़ाने के लिए:-महुआ फल से टोरी का तेल का दीपक जलाने से गृह स्वामी की उम्र में बढ़ोतरी होती है।
6. राहु-केतु ग्रह की शान्ति के लिए:-काहिल के तेल का दीपक राहु-केतु ग्रह के लिए जलाने पर सैंहिकेय व धूम अपने सम्बन्धित नतीजे को कम करते है और अच्छा फल देते है।
बाती और तेल:-देवी-देवता की पूजा व अर्चना करने के लिए दीपक के साथ बाती की और अलग-अलग देवी-देवता के लिए अलग-अलग द्रव्य जैसे-घृत व तेल की जरूरत होती है। दीपक के लिए हमेशा विषम संख्या में जलाना चाहिए। किसी भी देवी-देवता की पूजा में गाय का घृत या तिल के तेल की अच्छी तरह से बटी हुई एक फूल बत्ती से दीपक को प्रज्वलित करना चाहिए।
1.महागौरी भगवती एवं देवी शैलपुत्री की पूजा-अर्चना में:-गौ से बना शुद्ध देसी घृत या ललिया रोगन तेल से परिपूर्ण दीपक को अच्छी तरह से रुई को बटकर एक फूल बत्ती बनाकर दीपक को जलाना चाहिए।
2.वागीश्वरी माता को खुश करने के लिए और अच्छी पढ़ाई को पाने के लिए:-गौ से बना शुद्ध देसी घृत से परिपूर्ण दीपक को अच्छी तरह से रुई को बटकर दो मुखी फूल बत्ती बनाकर दीपक को जलाना चाहिए।
3.लम्बोदर भगवान को खुश करने और उनका आशीर्वाद को पाने के लिए:-गौ से बना शुद्ध देसी घृत से परिपूर्ण दीपक को अच्छी तरह से रुई को बटकर तीन मुखी फूल बत्ती या तीन बत्तियों वाले दीपक को पूजा में जलाना चाहिए।
4.वीरभद्र जी खुश करने के लिए:-कड़वा तेल से परिपूर्ण दीपक को अच्छी तरह से रुई को बटकर चौमुखा फूल बत्ती या चार बत्तियों वाले दीपक को पूजा में जलाना चाहिए।
5.स्कंद भगवान को खुश करने के लिए:-गौ के शुद्ध देसी घृत या पीली कड़वा तेल से दीपक को परिपूर्ण करके और अच्छी तरह से रुई को बटकर पंचमुखी फूल बत्ती या पांच बत्तियों वाले दीपक को पूजा में जलाना चाहिए।
6.कोर्ट-कचहरी के मुकदमे को जीतने के लिए:-गौ के शुद्ध देसी घृत या पीली कड़वा तेल से दीपक को परिपूर्ण करके और अच्छी तरह से रुई को बटकर पंचमुखी फूल बत्ती या पांच बत्तियों वाले दीपक को पूजा में जलाना चाहिए।
7.कमला माता को खुश करने के लिए:-गौ के शुद्ध देसी घृत या पीली कड़वा तेल से दीपक को परिपूर्ण करके और अच्छी तरह से रुई को बटकर सातमुखी फूल बत्ती या सात बत्तियों वाले दीपक को पूजा में जलाना चाहिए।
8.जनार्दन भगवान के दशावतार के लिए:-गौ के शुद्ध देसी घृत या पीली कड़वा तेल से दीपक को परिपूर्ण करके और अच्छी तरह से रुई को बटकर दशमुखी फूल बत्ती या दश बत्तियों वाले दीपक को पूजा में जलाना चाहिए।
9.भोलेनाथ भगवान को खुश करने के लिए:-पीली कड़वा तेल से दीपक को परिपूर्ण करके और अच्छी तरह से रुई को बटकर आठमुखी या बारहमुखी फूल बत्ती या आठ या बारह बत्तियों वाले दीपक को पूजा में जलाना चाहिए।
पूजा और दीपक के रूप या प्रकार:- निम्नानुसार है-
1.इष्ट सिद्धि और ज्ञान के लिए:-गहरा और गोल दीपक का उपयोग करना चाहिए।
2.दुश्मन के नाश और कष्टों के समाधान के लिए:-मध्य में से ऊपर उठा हुआ दीपक का उपयोग करना चाहिए।
3.लक्ष्मी या धन-सम्पत्ति के लिए:-सामान्य गहरा दीपक का उपयोग करना चाहिए।
4.हनुमान जी को खुश करने के लिए:-त्रिकोने दीपक का उपयोग करना चाहिए।
दीपक का निर्माण:-दीपक मिट्टी, आटा, तांबा, चांदी, लोहा, पीतल और सोने आदि धातु का बना हो सकता हैं।
◆लेकिन मूंग, चावल, गेहूँ, उड़द और ज्वार को समान भाग में लेकर इसके आटे का बना दीपक सबसे अच्छा होता हैं।
◆किसी-किसी साधना में अखण्ड जोत गाय के शुद्ध घी और तिल के तेल के साथ जलाने का भी विधान है।
दीप प्रज्वलित करने का विधान:-पूजा में दीपक प्रज्वलित करने का बहुत ही महत्व है। दीपक रोशनी को फैलाकर अंधेरे को मिटाकर उजाला देता है।
◆पूजा करते समय दीपक को देवी-देवता के दायीं तरफ की ओर जलाना चाहिए।
◆दीपक को सीधे भूमि पर नहीं रखकर उसे चावल या अन्य कोई दूसरा धान्य पर ही रखकर जलाना चाहिए।
◆घृत का दीपक ईश्वर के दायीं ओर व तेल का दीपक बायीं तरफ जलाना चाहिए।
◆पूजा में जब भी दीपक का स्पर्श होने पर हाथ धोने के बाद ही किसी दूसरी चीजों को छूना चाहिए।
◆मंदिर, तुलसी, गोशाला व पनघट में हमेशा दीपक को जलाना चाहिए।
◆धूप हमेशा देवी-देवता के बाईं ओर ही जलानी चाहिए।
◆दीपक में किसी तरह की दरार या किसी जगह से टूटा-फुटा नहीं होना चाहिए।
◆दीपक को हमेशा अलग-अलग ही जलाना चाहिए।
■दीपक को एक-दूसरे की बाती को नहीं जलाना चाहिए।
◆दीपक को कभी भी फूंक मारकर नहीं बुजाना चाहिए। यदि दीपक को जलाने के बाद घर से बाहर जाना हो तो दीपक को हथेली की हवा से बुजाना चाहिए।
◆दीपक को विषम संख्या में ही जलाना चाहिए।
◆घर के अंदर कड़वा तेल का दीपक नहीं जलाना चाहिए।
◆घर के अंदर दीपक को जलाने से अग्नि देव खुश होकर सुख-सम्प्रदा देते है।