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Saturday, December 26, 2020

सौम्य या बुध ग्रह के बारे पूर्ण जानकारीComplete information about benign or Mercury planet)

                    



सौम्य या बुध ग्रह के बारे पूर्ण जानकारी(Complete information about benign or Mercury planet):-सौम्य ग्रह को नवग्रहों में राजकुमार की जगह पर रखा गया है,सोम का सौम्य ग्रह को बेटा माना जाता है और मर्करी अंगेजी में कहा जाता है। सौम्य ग्रह हरे रंग का होता है और सोम्य ग्रह सीधा-सादा व एकदम से चुपचाप रहने वाला होता है।

बारह राशियों में से मिथुन राशि और कन्या राशि का मालिकग्रह सौम्य होता है।

मनुष्य की जन्मकुंडली में सौम्य ग्रह कन्या राशि में उच्च का और मीन राशि में नीच के नतीजे देता है।

मन्द ग्रह और भृगु ग्रह सौम्य ग्रह के सबसे अच्छे दोस्त होते है और सैंहिकेय ग्रह भी सौम्य ग्रह से दोस्ती रखता है। सोम के साथ में सौम्य ग्रह की बनती नहीं है।सौम्य ग्रह के साथ में भानु ग्रह,भौम ग्रह और जीव ग्रह का मिजाज समान होता है। 
सौम्य ग्रह को बोली,बुद्धि और जानने-समझने वाले यत्न करने वाला होता है। सौम्य ग्रह के देव गणपति जी होते है।
सौम्य ग्रह के असर से मनुष्य बहुत ही बढ़िया दिखने वाले,अच्छे सदाचारी और बुद्धि से तेज होते है। सौम्य ग्रह के असर पड़ने से मनुष्य पूजा-पाठ का काम करने वाला बहुत ही जानकर होता है। गणना करने के विषय में अच्छी तरह से निपुण और आगे के बारे में पहले से किसी भी बात आभास करने वाला होता है।

सौम्य ग्रह के असर वाले मनुष्य रोजी-रोटी के लिए काम-धंधा वाले होते है और कोर्ट-कचहरी के पेशा को करने वाले,किसी भी काम में अपना कमीशन लेने वाले, कोई भी वस्तुओं या चीजों को बेचने का काम करने वाले होते है और बहुत ही अच्छा पैसा कमाने वाले होते है।
सौम्य ग्रह को कालपुरुष की कुण्डली में वचन के लिए जगह गई है।

सौम्य ग्रह के अस्तित्व में आने की अवस्था :- 
सौम्य ग्रह के अस्तित्व में आने का विवरण विष्णु पुराण, ब्रह्म पुराण, मत्स्य पुराण, पद्म पुराण और मार्कंडेय पुराण आदि अनेक पुराणों में मिलता है। 
सौम्य ग्रह के जन्म विवरण की कथा :-संसार के पिता ब्रह्मा जी के पुत्र प्रजापति अत्रि की सन्तान सोम थे। सोम को संसार के पिता ब्रह्मा जी नक्षत्रों व औषधियों का स्वामी बनाया गया। सोम ने राजसूर्य यज्ञ करके यज्ञ के अनुष्ठान से कठिनता से प्राप्त होने वाला आधिपत्य और आदरपूर्ण भाव मिला जिससे सोम को घमण्ड होने से सोम की बुद्धि खराब हो गयी। अपने घमण्ड के नशे में चूर सोम ने देवता के गुरु बृहस्पति की घरवाली तारा को अन्याय पूर्वक चुरा लिया। देवता तथा ऋषि-मुनियों ने सोम को बहुत परिचित करने का प्रयास किया,लेकिन काम-क्रीड़ा के अधीन होकर सोम नही माने तो देवता के राजा इन्द्र देव,रुद्र व देवता की सेना के साथ देवता के गुरु  बृहस्पति को उनकी पत्नी को दिराने के लिए सोम पर हमला कर दिया। दैत्यों के शिक्षक शुक्राचार्य देवता के गुरु बृहस्पति को अपना दुश्मन समझने के कारण सोम के प्रति अपना मत दिया। तारकमय जगह पर सम्पूर्ण आकाश के मण्डल में बहुत ही डरावना बड़ा युद्ध देवताओं और राक्षसों के बीच में चला। इस तरह से काफी समय तक 
महायुद्ध के देखकर ब्रह्मा जी देवताओं और राक्षसों के बीच में समझौता करवाया और देवता के गुरु बृहस्पति को उनकी घरवाली 
तारा को दिलवा दिया,लेकिन जब वह अपने पति बृहस्पति देव के पास में गयी तो वह गर्भ से थी,तारा के गर्भ में पल रहे सन्तान के बारे में जानकर बृहस्पति देव बहुत ही ज्यादा क्रोधित हुवे और उन्होंने अपनी पत्नी को गर्भ में पल रही सन्तान को गिराने को कहा तो तारा मानकर अपने गर्भ में पल रही सन्तान को एक तिनके या घास के झुंड पर गिर दिया जिससे घास के झुंड पर गिरने पर एक सुंदर,मन को हरने वाले और तेज से युक्त बालक का जन्म हुवा। देवताओं के पूछने पर तारा ने उस बालक को सोम से उत्पन्न बताया। तारा के द्वारा बताए जाने पर सोम ने उस बालक को अपनी सन्तान मानकर अपने पास में रखकर उसका नाम बुध या सौम्य रखा।जिसके बाद में ब्रह्माजी ने सोम के पुत्र को नवग्रहों में जगह दी।इसलिए बृहस्पति देव की सौम्य ग्रह के साथ दुश्मनी ज्योतिष शास्त्र में बताई गयी है।

3.सौम्य ग्रह की शादी :-पुराणों में इल नाम का राजा वैवस्वत मनु के कुल में हुआ था।वन मेंं एक दिन राजा 
इल शिकार के लिए निकले। अम्बिका वन में भगवान शिव और माता पार्वती दोनों प्यार के आलिंगन में रतिक्रिया कर रहे थे। उस वन में शिव,कार्तिकेय, गणेश व नन्दी के अलावा कोई भी दूसरे पुरुष प्रवेश मना था। उस वन में कोई भी दूर पुरुष प्रवेश करता तो वह स्त्री बन जाता था ऐसा शाप था।उस अम्बिका वन की उस जगह पर भूल वश राजा इल चले गये और शिव और माता पार्वती को कामक्रीड़ा करते देख लिया तो इल राजा शापवश स्त्री बन गये।उस अम्बिका वन की जगह पर यक्षिणी ने इल राजा को उस वन की जगह के शाप के बारे में बताया तो इल राजा स्त्री बने हुए रूप से भगवान शिव और माता पार्वती के पास में गये तो माता पार्वती ने समझाया कि उस शाप को तो नहीं बदला जा सकता है,समय आने पर यह शाप वरदान बन जायेगा।इस शाप को वरदान समझकर इल राजा ने अपना नाम इला रख लिया और स्त्री रूप व स्त्री गुणों को अपनाकर अपना जीवन जीते हुए बिताने लगे। अम्बिका जंगल से बाहर अपना जीवन बिताते हुए इला की मुलाकात सोम के बेटे बुध या सौम्य से हुई और एक दूसरे को दिल दे दिया और फिर दोनों ने शादी करली।उसके कुछ काल के बाद इला और सौम्य के मिलन से सन्तान का जन्म हुवा इस तरह सोम के कुल को बढ़ाने वाले तेजवान पुत्र हुवा और उसका नाम पुरुरवा रखा गया था। फिर बहुत सालों के बाद इला ने शिव भगवान और माता पार्वती जी आराधना करके इला ने अपना पुरुष रूप लेकर इल बनकर अपने राष्ट्र की ओर जाकर प्यार से अपना शासन किया।

4.सौम्य ग्रह की प्रकृति और स्वरूप पुराणों के अनुसार:-मत्स्य पुराण के मत के अनुसार सौम्य ह्यमार के फूल के समान सौन्दर्य वाला, पीले रंग का फूल एवं कपड़े को पहनने वाला और मन को हरने वाला बताया गया है।
नारद पुराण के मतानुसार सौम्य तीनों दोषों से जुड़ा हुआ, मजाक को पसंद करने वाला आदि अनेक शब्दो का  उपयोग करने वाला होता है।
 


5.ज्योतिष शास्त्र में सौम्य का स्वरूप और प्रकृति :-बृहत् पाराशर, सारावली,फलदीपिका आदि अनेक गर्न्थो के मतों के विचार के अनुसार सौम्य अच्छा दिखने वाला,मजाक में रुचि रखने वाला, मीठी बोली से बोलने वाला,राजसिक गुण वाला,पंडित, वायु-पित्त-कफ की प्रकृति वाला,हरे रंग के कपड़े को पहनने वाले और मिजाज से चालाक होता है।

6.सौम्य ग्रह की गति :-गरुड़ एवं विष्णु पुराण के मतानुसार सौम्य की गाड़ी हवा और आग से बनी हुई है। सौम्य की गाड़ी या रथ पर भूरे रंग के घोड़े जूते हुए है,उनकी चाल हवा के समान गति वाली होती है।
भागवत पुराण के मतानुसार भृगु से 2 लाख योजन ऊपर सौम्य की स्थिति है। रवि की चाल को सौम्य जब लांगता है,तब भूमि जलरहित या अधिक पानी के होने का योग बनता है।
मोटेतौर पर 25 दिन तक सौम्य एक राशि में निवास करता है।

7.सौम्य की वैज्ञानिक रूप से जानकारी:-रोमन मिथकों के मतानुसार सौम्य धंधा,किसी भी दूसरी जगह का घूमना और चोरी का काम करने वाले देवता है,यूनानी देवता हर्मिश रोमन रूप देवताओं का समाचार को लाने व ले जाने वाले देवता होते है।आकाश में तेज गति से चलने के कारण इनको देवता की उपाधि दी गई है।रवि के सबसे पास में और आकृति में सबसे छोटा ग्रह सौम्य आकाश मण्डल में होता है।
सौम्य को 88 दिन का समय रवि के चारो ओर एक चक्र को पूरा करने में लगता है,लोहे एवं जस्ते धातु का बना सौम्य होता है। सौम्य खुद की प्रदक्षिणा पथ पर 29 मील प्रति क्षण से चक्कर लगाता है।रवि के सबसे नजदीक ग्रह सोम्य होता है और द्रव्यमान से आठवें कर्म का होता है।
सौम्य की रवि से दूरी 46,000,000 किमी(perihelion) से 70,000,000(aphelion) तक रहती है।
रवि के नजदीक सौम्य रहने पर सौम्य की चाल बहुत ही धीमी हो जाती है और कोई भी जाना हुआ चन्द्रमा सौम्य का नहीं है।सूर्य के डूबने के बाद के समय पर या सूर्य के उगने के समय से ठीक पूर्व सौम्य को खुली आंखों से देखा जा सकता है।

8.सौम्य ग्रह की ज्योतिषशास्त्रम् में स्थिति:-सौम्य ग्रह को ज्योतिषशास्त्र में अच्छे ग्रह के वर्ग में जगह दी गयी है। 
बारह राशियों में से मिथुन राशि और कन्या राशि का मालिक ग्रह माना जाता है।
सौम्य ग्रह को कन्या राशि में 1-15 डिग्री तक उच्च का और 16-20 डिग्री तक मूलत्रिकोण राशि का, बची हुई राशि में अपनी खुद की राशि का और कर्क राशि में नीच राशि का मन गया है।
सौम्य ग्रह से रवि ग्रह एवं भृगु ग्रह से दोस्ती, सोम ग्रह से दुश्मनी और भौम ग्रह,जीव ग्रह एवं मन्द ग्रह समान तरह का भाव रखता है।
सौम्य ग्रह अपने बुधवार को, अपने नवांश, अपने द्रेष्काण, अपनी राशि तथा उच्च राशि, दिन के काल में एवं रात के काल में और उत्तर दिशा में ताकतवान होता है।


9.सौम्य का नतीजा देने का समय :-सोम्य ग्रह 32-36 साल की उम्र में अपनी दशाओं एवं गोचरे में अच्छा-बुरा नतीजा देता है। सौम्य ग्रह को युवक माना जाता है।

10.सौम्य के बुरे असर को कम करने के समाधान :-
सौम्य देव के लिए हर एक बुधवार को सौम्य देव की पूजा-आराधना करनी चाहिए।
सौम्य के मंत्रो का जाप किसी भी जानकर ब्राह्मण से करवाकर सौम्य के बुरे असर को कम कर सकते है।
मनुष्य को अपने निवास की जगह के आंगन में या जहा भी निवास स्थान में जगह हो वहां पर तुलसी का पौधा जरूर लगाना चाहिए और हमेशा उस तुलसी के पौधे की सैर-सम्भाल करते रहना चाहिए।
◆तुलसी के पत्ते को बुधवार को खाना चाहिए।

◆मनुष्य को हमेशा श्री गणपति जी पूजा व आराधना करने के बाद उनको मोदक या मोतीचूर के बूंदी के लड्डू का भोग लगाकर दूसरों को प्रशाद के रूप में बांटना चाहिए।
◆मनुष्य को बुधवार के दिन या अपने सौम्य को अच्छी स्थिति में लाने के लिए ऊँ बुं बुधाय नमः का जाप हमेशा करने से मनुष्य को बुध या सौम्य से सम्बंधित बुरे असर से छुटकारा मिलता है।
◆सौम्य के बुरे प्रभाव में होने पर मनुष्य को हरे रंग से फर रहना चाहिए और मनुष्य को अपने आजु-बाजू भी कोई भी हरे रंग की वस्तु या चीजों को नहीं रखना चाहिए।
◆ मनुष्य पर जब सौम्य का बुरा असर होने पर कपड़े हरे रंग के नहीं पहनना चाहिए और अपने निवास स्थान के अंदर के कमरों का रंग भी हरा रंग नहीं करवाना चाहिए।
◆मनुुष्य को सौम्य के बुरे असर को कम 
करने के लिए बुधवार को पांच लड़कियों को हरे रंग के कपड़े देकर उनका आशीर्वाद लेना चाहिए।
◆मनुष्यो सौम्य के बुरे असर को कम करने के लिए जरूरत मन्द मनुष्यों को सौम्य से सम्बंधित वस्तुओं-जैसे हरे रंग के कपड़े,मूंग की दाल,पन्ना रत्न और औरतो को हरे रंग की चूड़ियां आदि का दान करना चाहिए।
◆मनुष्य को अपने निवास स्थान पर काँटो वाले पौधे,झाड़ियां और वृक्ष को नहीं लगाना चाहिए।
◆फल देने वाले पौधे को भी निवास स्थान पर लगाना चाहिए, क्योंकि फल देने वाले बड़े वृक्ष होते है, जिससे  मनुष्य के जीवन पर पड़ने वाले बुरे असर कम होते है।