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Monday, December 28, 2020

मन्त्र साधना का ज्योतिष शास्त्र में महत्व(Importance of mantra practice in astrology)


मन्त्र साधना का ज्योतिष शास्त्र में
महत्व(Importance of mantra practice in astrology):-मत्र साधना में तीन बातें (एकाग्रता, लगातार लगे रहना और चतुराई )की मनुष्य को बहुत ही मुख्य होता है, क्योंकि एकाग्रता, लगातार लगे रहना और चतुराई के बिना मनुष्य मन्त्र साधना नहीं कर सकते है।
 

1.साधना में एकाग्रता(कन्सन्ट्रेशन):- का जन्म विश्वास से होता है। प्यार में किसी को अपना सब कुछ सौपना होता है, तब विश्वास बनता है। जब विश्वास के आते ही मन अपने आप उसी तरह से जैसे दूध में दही का जामन डालने पर दही बन जाती है,मन एकाग्र हो जाता है।

जब कोई भी मनुष्य किसी दूसरे मनुष्य से प्यार करता है,तो उस मनुष्य को दूसरे मनुष्य के प्रति अपना सबकुछ सौप देंना ही प्यार होता है। उसी तरह से मन को साधना में सौपना होता है।

2.साधना में निरन्तरता(कन्टीन्यूटी):-साधना में लगातार होने का भाव पक्के विचार के द्वारा ही जन्म होता है। मनुष्य को खुद पर और अपने ईश्वर के ऊपर बहुत ही ज्यादा विश्वास को निष्ठा कहते है। मनुष्य के अंदर पक्के विचार के आने से मनुष्य का मन बिना किसी तरह के डर से आजाद हो जाता है,मनुष्य के मन में किसी भी तरह का कोई भी संदेह नहीं होने से वह भ्रंम के चक्कर से मुक्त हो जाता है।जिस तरह से बाज पक्षी के पेड़ पर बैठते ही पहले से बैठे सभी पक्षी उड़ जाते है अथवा सूर्य के उदय होते ही अंधकार की छटा हटाकर रोशनी हो जाती है। मनुष्य के द्वारा अपने ऊपर और अपने ईश्वर के ऊपर ज्यादा विश्वास ही मन्त्र साधना में ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत होता है, जिससे साधक मनुष्य अपने आप ऊर्जावान बन जाता है और मनुष्य साधक की साधना के रास्ते में आने वाली बड़ी से बड़ी मुश्किल किसी भी तरह की बाधा नहीं डाल पति है।

3.साधना में कुशलता(एक्सपर्टीज):-मन्त्र साधना में तीसरी सबसे बड़ी चीज कुशलता(एक्सपर्टीज) होती है,जो इसके विधि-विधान की जानकारी और गुरु कृपा से आती है। इसके लिए साधक मनुष्य को जानने की लगन का मिजाज वाला होना जरूरी है। उसकी यही साधना 'जिन खोजा तिन पाइयो' के अनुसार उसको मन्त्र साधना के विधि-विधान से अवगत करा देती है।

तन्त्र एवं मन्त्र शास्त्र में एक वाक्य बार,-बार दोहराया गया है-'गोपनीयं गोपनीयं गोपनीयं प्रयत्नतः' इस वाक्य का परम्परागत मतलब है कि इस विद्या को श्रद्धारहित,

निष्ठारहित,अकुशल मनुष्य से गोपनीय रखें,किन्तु जिस मनुष्य में श्रद्धा,निष्ठा एवं जिज्ञासा है-उसको इस शास्त्र के विधि-विधान बतलाने में न कोई शंका है और न ही किसी तरह का मना। मन्त्र शास्त्र एवं मंत्र साधना की कठिन उलझनों को हल में यह लेख मनुष्य की मदद करेगा।

मन्त्र का मतलब:-मनुष्य की सोई हुई दैवी ज्ञानमूलक मनोवृत्ति को जगाकर पूज्यनीय शक्ति के साथ अनुकूल करने वाले गहरे ज्ञान को मन्त्र कहते है।

मन्त्र के बारे में जानकारी:-मन्त्र अपने साधक मनुष्य को एक हाथ से भोग और दूसरे हाथ से जीवन में आने-जाने के मार्ग से मुक्ति देने वाला होता है। साधक मनुष्य अपनी सांसारिक,लोक में नहीं मिलने वाले और मनुष्य की अधूरी इच्छाओं को पूरा करने के लिए फिर से जन्म लेकर वापस आते है,इन सभी इच्छाओं को पूरा मन्त्र के द्वारा ही करते रहते है। मनुष्य के जीवन में कोई भी और कैसा भी संकट हो तो इन सभी तरह की बाधा का समाधान मन्त्र साधना के द्वारा किया जा सकता है।

मन्त्र की जितनी गहरी व बड़ी जानकारी एवं सही तरह पूर्ण रूप से विश्लेषण भारतीय तत्त्वज्ञ ऋषियों ने की है-उस तरह विश्लेषण कहि दूसरे जगहों पर नहीं मिलता है।

भारतीय तत्त्ववेतो के अनुसार साधना और आत्मा व परमात्मा से मिलन का कठिन छिपी हुई बात को मन्त्र के अंतर्गत ही मिलता है।मन्त्र के द्वारा आत्मा को देखना या ब्रह्मज्ञान के साथ-साथ सांसारिक एवं लोक में होने वाले प्रदार्थों या बातों से अधिक अधिक बढ़कर या सबसे अच्छा जो इस लोक में नहीं होता है,उन सभी इच्छाओं को पूरा करने का साधन ही मन्त्र है। मन्त्र एक ऐसी कठिन छिपी हुई विद्या है,जो अपने साधकों को कष्टों से आजाद कर सांसारिक सुख-सम्पन्नता के साथ-साथ अंतिम चरण को पाने और अत्यंत खुशी के पाने के लिए साधक को पास में ले जाती है,जहां पर ईश्वर की दया की ठंडी एवं सुंगन्धित हवा बहती है।

मन्त्र साधना में ईश्वर की दया खुशी का वह मूल्य है जिसके बहुत थोड़े छूने मात्र से साधक का रोम-रोम हद से गद-गद हो जाता है और इसके असर स्वरूप सांसारिक विषय-वासनाओं का सिलसिलेवार नाश हो जाने से साधक जीवन मे आने-जाने के मार्ग से आजाद होकर राही बन जाता है। मन्त्र विद्या के इसी योग्यता  के कारण मन्त्र विद्या संसार के सभी देशों में ,सब तरह के धर्मो को मानने वाले और धर्म को चलाने वाले मनुष्य में और समस्त मानव जाति में हजारों-लाखों सालों से सहारा और यकीन से चलनसार है। आदिम और जनजाति से लेकर पढ़े-लिखे और अच्छे मनुष्यों समाज तक के सभी वर्गों ,धर्मो एवं सम्प्रदाय के लोगो मे पूरी आदर पूर्ण सम्मान एवं सेवा के साथ मन्त्र का अस्तित्व में होने की दर में मान्य होना मन्त्र के भरोसा का सबसे बड़ा गवाह है।



मन्त्र की परिभाषा:-मन्त्र के देखने वाले एवं मन्त्र को व्यवहार लेने की यन्त्र बनाने की आदि क्षेत्र में काम करने की विशेष क्रियात्मक पारिभाषिक विधि(तन्त्र एवं मन्त्र) के निरूपक ऋषि-मुनियों ने इसको अपने-अपने समय में अपने-अपने तरीके से परिभाषित किया है। विभिन्न धर्मों एवं सम्प्रदायों के ऋषियों-मुनियों ने,आचार्यों एवं सद्गुरुओं ने अपनी-अपनी दृष्टि से मन्त्र की परिभाषाएं दी है,उनमें से कुछ मुख्य परिभाषाओं की चर्चा करके मन्त्र एवं एवं मन्त्र को व्यवहार लेने की यन्त्र बनाने की आदि क्षेत्र में काम करने की विशेष क्रियात्मक पारिभाषिक विधि(तन्त्र एवं मन्त्र) को ह्रदयंगम करने में मदद मिलेगी।-

'मननात् त्रायते यस्मान्तस्मान्मन्त्र उदाह्रत:।'

अर्थात्-:जिसके मनन (जप एवं ध्यान)से सांसारिक कष्टों से रक्षा होकर जीवन में आने-जाने के बंधन से मनुष्य साधक मुक्त हो जाता है,उसे ही मन्त्र कहते है।

'मन्यते ज्ञायते आत्मादि येन '

अर्थात्-:जिसके द्वारा मनुष्य साधक को आत्मा और परमात्मा के बारे में ज्ञान या साक्षात्कार हो जाते हो,उन्हीं मन्त्र कहते है।

'मन्यतेविचार्यते आत्मादेशो येन'

अर्थात्:-जिसके द्वारा मनुष्य साधक को आत्मा के आदेश(अंतरात्मा की आवाज सुनाई देती है) पर विचार किया जाए तो उसे मन्त्र कहते है।

'मन्यन्ते. सत्क्रियन्ते परमपदे स्थिता:देवता:।'

अर्थात्-:जिसके द्वारा मनुष्य साधक को सबसे बड़े पद में स्थित देवताओं का जप,पूजन एवं हवन से खातिरदारी से सेवा की जाती है, तो उसे मन्त्र कहते है।

'मननं विश्व विज्ञानं त्राणं संसार बन्धनात् यत: करोति संसिद्धो मन्त्र इत्युच्यते तत:।'

अर्थात्-:जो जगमगाता हुआ और सब जगहों पर समान रूप से फैला हुआ आत्मतत्व के बारे में विचार होता है और जो सिद्ध होने पर बीमारी, दु:ख,शोक,गरीबी,गुनाह,आँच और डर से मनुष्य साधक की सुरक्षा करता है, उसे ही मन्त्र कहते है।

'मननात्तत्वरूपस्य देवस्यामिततेजस:।'

त्रायते सर्वदु:खेभ्यस्तस्मान्मन्त्र इतीरित:।।'

अर्थात्-:जिससे लौकिक और तेज से युक्त देवता के रूप के बारे में मन में विचार करने से मनुष्य साधक के सब तरह के कष्टों से सुरक्षा मिलती है,उसे मन्त्र कहते है।

'मननात्त् त्रायते इति मन्त्र:।'

अर्थात्-:जिसके मन के अंदर सोचने,मन के अंदर चिन्तन, ध्यान और जप करने से मनुष्य साधक को पूरी-पूरी सुरक्षा एवं साधन-सुविधा मिलती है, उसे मन्त्र कहते है

'प्रयोगसमवेतार्थस्मारका:मन्त्रा:।'

अर्थात्-:मनुष्य साधक के द्वारा हवन या यज्ञ में पहले से जो तैयारी की जाती है,जिससे साधक मनुष्य पहले से जो तैयारी पूजन,जप,हवन एवं देवता के याद करने में करते है,उसे मन्त्र कहते है।

'सांधकसाधनसाध्यविवेक: मन्त्र।'

अर्थात्-:साधना में साधक,साधन एवं साध्य की बुद्धि ही मन्त्र कहलाते है।

'मन्त्रो हि गुप्त विज्ञान:।'

अर्थात्-:मन्त्र एक तरह से छिपा हुआ विज्ञान है,जिसके रहस्यों को इसकी साधना के द्वारा ही जाना जा सकता है।

मन्त्र तत्त्व को जानने एवं समझाने के लिए विभिन्न परिभाषाओं के माध्यम से भारतीय चिन्तनधारा में एक लंबा और चिरन्तन कोशिश की गयी है। मन्त्र का विषय बहुत ही गहरी सोच का है।इसकी थाह पाना सागर की थाह पाने के समान कठिन है।

मन्त्र की उक्त सभी परिभाषाओं के माध्यम से इस नतीजे पर पहुंचा जा सकता है कि मन्त्र गुढ़ आध्यात्मिक रहस्यों एवं दिव्य शक्तियों की निशानी होने के साथ-साथ सांसारिक दुःखो से मुक्त करने में सक्षम है।

मन्त्र और तंत्र शास्त्र के संदर्भ में यदि हम मन्त्र को परिभाषित करे तो मन्त्र की ठीक परिभाषा होगी-'कि जो मन को सांसारिक विषयों एवं दुःखो से मुक्त करा दे,वही मन्त्र है।