माघ कृष्ण पक्ष के तिल चौथ व्रत की विधि,कथा और व्रत के फायदे(Advantages of the method, story and fast of Til Chauth Vrat of Magh Krishna Paksha):-संकट चौथ का व्रत माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को किया जाता है। इस दिन गणपति जी और सोम की पूजा की जाती है। कहीं-कहीं इसे तिल चौथ भी कहते है।
माघ कृष्ण पक्ष की चौथ तिल चौथ की विधि:-माघ कृष्ण चतुर्थी के दिन व्रत को रखना चाहिए।
◆दिनभर व्रती रहने के बाद शाम को चन्द्रमाजी के दर्शन करके चन्द्रमाजी को दूध का अर्ध्य देना चाहिए।◆उसके बाद में चन्द्रमाजी की विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए।
◆भगवान गणपति जी और माता पार्वतीजी को स्थापित करके पूरे साल उनको घर में रखते है।
◆नैवेद्य,तिल, गन्ना,गंजी,अमरूद,गुड़,घी आदि से गणपति जी और चन्द्रमाजी को भोग लगाते है
◆ज्यादातर तिल चौथ व्रत की कहानी में शाम को चन्द्रमाजी को अर्ध्य देकर पूजा करके ही व्रत को खोलते हैं।
तिल चौथ या संकट चौथ की पौराणिक कथा:-एक जमाने में एक साहूकार रहता था। साहूकार दम्पति के कोई भी सन्तान नहीं थी। एक दिन साहूकार की पत्नी अपनी पड़ोसन के यहां अग्नि लेने गई। वहां उसने देखा कि पड़ोसन एवं कुछ महिलाएं पूजन कर,कथा सुन रही है। यह देखकर उसने पूछा-"आप सब किसकी पूजा एवं व्रत कर रही हों तथा इस व्रत के करने से क्या फल मिलता है।'पड़ोसन ने साहूकार की पत्नी को बताया कि यह चतुर्थी की पूजा है,इस दिन व्रत करने तथा कथा कहने-सुनने से बिछड़े हुए मिल जाते है,सुख-समृद्धि एवं सन्तान की प्राप्ति होती हर। यह सुन साहुकारनी ने वहीं संकल्प किया कि'यदि मेरे कोई सन्तान हो जाएगी,तो मैं भी सवा सेर का तिलकूटा चढ़ाऊंगी।'
संकट चौथ माता ने उसकी मनोकामना पूरी की और नौ माह के बाद उसे पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई,परन्तु तिलकुटा चढ़ाना भूल गई। इसके बाद उसके छह बेटे और हुए,फिर भी उसने तिलकुटा चढ़ाने की याद नहीं आई। सातों बेटे बड़े होने लगे।उसने बड़े बेटे के विवाह के लिए फिर से मन्नत मांगते हुए कहा-'यदि मेरे बेटे का विवाह हो जाए,तो सवा मन का तिलकुटा चढ़ाऊंगी।'
विवाह की सभी तैयारियां होने लगी,फिर भी साहुकारनी तिलकुटा चढ़ाना भूल गई। जब उसका बेटा फेरों में बैठ गया तो चौथ विनायक ने सोचा कि यह साहुकारनी हर बार तिलकुटा बोल देती है लेकिन चढ़ाती एक बार भी नहीं। अब तो इसके बेटे का विवाह भी सम्पन्न होने जा रहा है,अगर हम इसे चमत्कार नहीं दिखाएंगे,तो हमें कौन मानेगा? इतना कह चौथ माता ने दूल्हे को फेरों में से उठाकर गांव के बाहर पीपल के वृक्ष पर बैठा दिया।
दूल्हे के अचानक इस प्रकार फेरों से गायब हो जाने से उपस्थित लोगों में हाहाकार मच गया। सभी तरफ दूल्हे को ढूंढा गया,लेकिन वह कहीं नहीं मिला और दिन बीतते गए। जब गणगौर पूजने के लिए गांव के बाहर से दूब लेने जाती तो वह लड़की भी उनके साथ जाती जिसका पति फेरों में से गायब हो गया था। सब सहेलियां जब राह में एक पीपल के समीप से गुजरती तो पीपल पर बैठा उसका दूल्हा उसे देख कर कहता'आए म्हारी अद ब्याही हुई।' यह आवाज सुन कर वह लड़की चिंतित होती। इसी चिंता में वह दुबली होती जा रही थी। तब मां ने दूबली होने के कारण पूछा,तो बेटी ने बताया कि-मैं जब गणगौर पूजने के लिए दूब लेने जाती हूं तो पीपल में से एक आदमी बोलता है 'आए म्हारी अद ब्याही हुई।' उसने दूल्हे के कपड़े पहन रखे हैं तथा हाथों में मेहन्दी लगा रखी है। सिर पर सेहरा बांध रखा है।' बेटी की बात सुनकर मां उस वृक्ष को देखने आई। मां ने देखा तो वह तो उसी का दामाद है, जो फेरों पर से अचानक गायब हो गया था। उसने अपने दामाद से वहां बैठने का कारण पूछा तो दूल्हे ने कहा-'मैं चौथ का यहां गिरवी हूं। मेरी मां ने तिलकुटा बोला था और चढ़ाया नहीं। इस कारण चौथ नाराज है और उन्होंने मुझे यहां बैठा रखा है।'
दामाद की बातें सुनकर सास उसी समय उसकी मां के पास गई और सारी बातें उन्हें बताई?साहुकारनी ने उसी दिन ढाई मन का तिलकुटा चढ़ाकर चौथ माता के भोग लगाया और पूजा की। इससे चौथ माता प्रसन्न हुईं।चौथ माता से विनती की हे चौथ माता! मेरा बेटा छुपाया जैसा किसी के भी बेटों को मत छुपाना,बल्कि मुझे बेटा दिया जैसे सभी को बीटा देना।इस तरह चौथ माता ने साहूकारणी के गिरवी रखे बेटे को छोड़ दिया और विवाह संपन्न हुआ। इसके पश्चात साहुकारनी हर चौथ माता का व्रत करने लगी।
माघ कृष्ण पक्ष का तिल चौथ व्रत के फायदे:-माघ कृष्ण पक्ष के तिल चौथ व्रत को करने वालो पर चौथ माता खुश होती है और आशीर्वाद देती है।
◆जो औरतें माघ कृष्ण पक्ष के तिल चौथ का व्रत करती है उनको पुत्र रत्न के रूप में प्राप्ति होती है।
◆चौथ माता के व्रत करने वालों के सन्तान की रक्षा चौथ माता करती है और सभी तरह के कष्टों को दूर करती है।
◆व्रत करने वालों की मन की मुराद पूरी होती है।
◆जब कोई कामों में रुकावट आने लगने पर जो यह व्रत करते है उनके सभी काम बनने लगे जाते हैं।