Breaking

Sunday, January 24, 2021

पौष माह के शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी व्रत की विधि-विधान,कथा और महत्त्व(Law, legislation and importance of Putrada Ekadashi fast of Shukla Paksha of Pausha month)

          



पौष माह के शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी व्रत की विधि-विधान,कथा और महत्त्व(Law, legislation and importance of Putrada Ekadashi fast of Shukla Paksha of Pausha month):-पुराने जमाने में सन्तान के रुप में पुत्र सन्तान की हर माता-पिता को चाह होती थी।जिससे उनके वंश की बढ़ोतरी होवे और परिवार का पालन-पोषण कर सके। अपने राज्य की रक्षा भी कर सके। इसलिए हर माता-पिता को अपने सन्तान के रूप में पुत्र की चाह रखते थे। इस चाह को पूरा करने के लिए मनुष्य तरह-तरह के जतन-यत्न करते थे।इसलिए हमारे  ऋषि-मुनियों ने धर्म की बढोतरी करने के लिए और हर माता-पिता को सन्तान के रूप में पाने की चाह को पूरा करने के लिए उन्होंने अपने प्रयत्नों से कुछ ऐसे व्रतों को बनाया जिससे मनुष्य को उन व्रतों को करके सन्तान के रूप में पुत्र की प्राप्ति कर सके। उन व्रतों में एक व्रत पौष माह के शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी का व्रत है। जिसको करने पुत्र सन्तान की प्राप्ति और उनकी सुरक्षा होती है।



पुत्रदा एकादशी:-पौष के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहते है। पौष के शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी तिथि के दिन किया जाने वाला व्रत विशेष कर सन्तान को पाने के लिए किया जाता है। पौष के शुक्ल पक्ष पुत्रदा एकादशी के व्रत करने से सन्तान की प्राप्ति होती है और सन्तान की रक्षा भी होती है।



पुत्रदा एकादशी व्रत कथा:-सुकेतु नाम का एक आदमी था उसकी पत्नी का नाम शैव्या था। सुकेतु और उसकी पत्नी शैव्या को शादी के लंबे समय तक सन्तान की प्राप्ति नहीं हुई। जिससे वे बहुत ही दुःखी रहने लगे और दुसरे लोगों के ताने से परेशान रहने लगे। दोनों पति-पत्नी सन्तान के लिए आतुर रहते थे,बहुत कोशिश की लेकिन उनको सन्तान की प्राप्ति नहीं हुई जिससे एक बार अपने सन्तान को नहीं पा पाने से निराश होकर सुकेतु ने आत्महत्या करने की ठान ली। सुकेतु अपनी पत्नी शैव्या को अकेला छोड़कर जंगलो में चल गया और भूख-प्यासा एक पेड़ के नीचे जाकर बैठ गया और अपने कर्मो व भाग्य को बुरा-भला कहने लगा। जब वह अपने भाग्य को बुरा-भला कह रहा था तब उसे कहि से किसी ऋषि  के कंठ से उच्चरित वेद मन्त्र सुनाई दिए। उस ऋषि के कंठ से उच्चरित वेद मन्त्र की आवाज में मोहित होकर वह उस आ रही आवाज की दिशा की ओर बढ़ा।

वह थोड़ी दूर चलने पर देखा कि एक स्थान पर बहुत से ब्राह्मण कमलों से भरे तालाब के किनारे पर बैठकर वेदों का पाठ कर रहे है। सेकेतु भी  श्रद्धा पूर्वक नमस्कार करके वेद पाठ को सुनने के लिए वहां पर बैठ गया। 

वेद-पाठ के उपरांत सुकेतु ने ब्राह्मणों को अपने आने का कारण बताया। ब्राह्मणों ने उसकी  व्यथा समझकर उसे पुत्रदा एकादशी व्रत करने को कहा तो सुकेतु ने ब्राह्मणों से पुत्रदा एकादशी व्रत करने की सामग्री और पूजा करने का विधान के बारे में पूछा। ब्राह्मणों ने पुत्रदा एकादशी व्रत की सामग्री और पूजन विधि को बताया।

इसके बाद सुकेतु घर पर आकर अपनी पत्नी शैव्या को पुत्रदा एकादशी व्रत की विधि और पूजन के बारे में जानकारी कराई और फिर उन्होंने पौष के शुक्ल पक्ष की एकादशी आने पर उन्होंने व्रत को शुरू किया। पुत्रदा एकादशी व्रत को करते रहने पर समय ने उनका साथ दिया और पुत्रदा एकादशी व्रत के प्रभाव से उनको एक सुंदर पुत्र सन्तान की प्राप्ति हुई। इस तरह उनको पुत्र की प्राप्ति होने से हर पौष माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत जीवन भर करते रहे।



पौष माह की शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी व्रत का महत्व:- पौष माह की शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी व्रत करने से जिस मनुष्य दम्पति को सन्तान नहीं होती है उनको यह व्रत करने से सन्तान पुत्र की प्राप्ति होती है। मनुष्य दम्पति को पूरी श्रद्धा से पौष माह की शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी व्रत को करना चाहिए। भगवान पौष माह की शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी व्रत करने वालों अवश्य पुत्र सन्तान देते है।