प्रदोष का मतलब:-रात का शुभ आरम्भ होता है। इसी समय पर पूजन होने से से इसे प्रदोष नाम से जाना जाने लगा।
◆प्रत्येक पक्ष में त्रयोदशी को होने वाला यह व्रत होता है।
◆प्रदोष व्रत सन्तान की इच्छा पूर्ति के लिए किया जाता है।
◆प्रदोष व्रत में भगवान आशुतोष शंकर देव को मुख्य देव माना जाता है।
सोम प्रदोष:-भगवान शंकर जी दिन सोमवार होने से सोमवार के दिन पड़ने वाला प्रदोष को 'सोम प्रदोष' कहते है। सावन महीने का हर एक 'सोम प्रदोष' को विशेष माना जाता है।
प्रदोष त्रयोदशी व्रत करने के नियम:-प्रदोष व्रत प्रत्येक त्रयोदशी को होता है और इसके नियम भी होते है।
◆ओरतों को सोमवार का व्रत चैत्र, वैशाख, श्रावण या कार्तिक मार्गशीर्ष के मास के चांदने पक्ष के पहले पड़ने वाले त्रयोदशी एकादशी से ही करना चाहिए।
◆व्रत को अपने मन में कामना की पूर्ति के लिए दश या चौपन की संख्या में करना चाहिए।
◆ओरतों को खाना जब सूरज अस्त होता है तब ही करना चाहिए।
◆सोमवार के व्रत के दिन में सफेद चीजों का ज्यादा प्रयोग करना चाहिए।
◆सबसे पहले सुबह अपनी दैनिक क्रिया को करके स्नान कर चन्दन का टीका लगाना चाहिए।
◆तीजे प्रहर को ध्यान में रखकर व्रत को आरम्भ करे।
◆सोमवार के व्रत में फलों का उपयोग में कर सकते है।
◆ओरतों को पूरे दिन व रात में यह ही टाइम खाना खाना चाहिए।
◆ओरतों को शिवजी के मंदिर जाकर उनको देखकर दीपक को जलाकर सुंगध को अर्पण करने चाहिए।
◆ओरतों को "ऊँ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः" मन्त्र को मन ही मन में पूरे दिन जपना चाहिए।
◆शाम के समय में व्रत को रखने वाले को भगवान शिवजी की पूजा करके शाम के समय में थोड़ा सा भोजन लेना चाहिए।
◆कृष्ण पक्ष का 'शनि प्रदोष' को भी विशेष पुण्यदायी माना जाता है।
भोजन के रूप में:-ओरतों को खाने के रूप में दूध, दही, चावल और खीर का उपयोग करना चाहिए।
कामना भेद से व्रत:-ओरतों को अपनी इच्छाओं को पूरा करने के हिसाब से व्रत को करना चाहिए-
1.सन्तान के रूप में पुत्र की इच्छा के लिए:-जिन ओरतों को सन्तान के रूप में पुत्र की इच्छा रखती है उनको शुक्लपक्ष में पड़नी वाली त्रयोदशी को शनिवार का दिन होने पर शुरुआत करनी चाहिए और सालभर या अपनी इच्छा का नतीजा मिलने तक व्रत को करना चाहिए।
2.ऋण से मुक्ति के लिए:-ऋण से मुक्ति की इच्छा के लिए शुक्लपक्ष की त्रयोदशी को पड़ने वाले सोमवार से शुरुआत करनी चाहिए और अपनी इच्छा की पूर्ति तक व्रत को करना चाहिए।
3.सौभाग्य या रुपये-पैसों के लिए या औरत को पाने के लिए:-सौभाग्य या रुपयों-पैसों को पाने के लिए या औरत को पाने की इच्छा के लिए शुक्लपक्ष की पड़ने वाले शुक्रवार से शुरुआत व्रत करनी चाहिए।
4.अभीष्ट सिद्धि को पाने के लिए:-अभीष्ट सिद्धि को पाने की इच्छा के लिए शुक्लपक्ष को पड़ने वाले सोमवार से व्रत की शुरुआत करनी चाहिए।
5.बड़ी उम्र और निरोगता के लिए:-बड़ी उम्र और निरोगता की इच्छा के लिए जिस दिन त्रयोदशी को रविवार हो उससे शुरुआत करके प्रत्येक शुक्ल-कृष्ण त्रयोदशी को एक साल तक व्रत करना चाहिए।
प्रदोष त्रयोदशी व्रत के लिए संकल्प:-व्रत को शुरू करने के दिन स्नानादि करके "मम पुत्रादि प्राप्ति कामनया प्रदोष व्रत महं करिष्ये" संकल्प में अपनी इच्छानुसार अन्य जो भी हो जोड़ लेना चाहिए। संकल्प करके सूर्य के अस्त के समय दुबारा स्नान करना चाहिए और शिवजी के पास में बैठकर वेदपाठी ब्राह्मण की आज्ञानुसार-
भवाय भवनाशाय महादेवाय धीमते।
रुद्राय नीलकण्ठाय शर्वाय शनि मौलिने।।
उग्रायो ग्रघनाशाय भीमाय भय हारिणे।
ईशानाय नमस्तुभ्यं पशूनां पतये नमः।।
इस मंत्र से प्रार्थना करनी चाहिए।
प्रदोष त्रयोदशी व्रत की विधि-विधान:-देव शिव शंकर जी का षोडशोपचार से पूजन करना चाहिए। नैवेद्य सेंके हुए जौ का सत्तू, घी और शक्कर का भोग लगाना चाहिए। इसके बाद वहीं आठों दिशाओं में आठ दीपक रखकर प्रत्येक के स्थापन में आठ बार नमस्कार करना चाहिए।
धर्मस्त्वं वृषरूपेण जगदानन्दकारक।
अष्टमूर्तेरधिष्ठानमतः पाहि सनातन।।
इसके बाद से वृष (नन्दीश्वर) को जल और दूर्वा खिला-पिलाकर उसका पूजन करना चाहिए और उसको छुहकर करके इस पूरे मन्त्र से शिव-पार्वती और नन्दी की प्रार्थना करनी चाहिए।
त्रयोदशी प्रदोष व्रत की चलनसार कथा:-पुराने जमाने में एक गरीब ब्राह्मणी अपने पति के मर जाने पर विधवा होकर इधर-उधर भिक्षा मांगकर अपना जीवन को चलाने लगी। उसके एक बेटा भी था जिसको वह सवेरे अपने साथ लेकर घर से निकल जाती और सूरज डूबने तक घर आती। एक दिन उसकी मुलाकात विदर्भ देश के राजकुमार से हुई जो अपने पिता की मृत्यु के कारण मारा-मारा फिर रहा था। ब्राह्मणी को उसकी हालत को देखकर उस पर दया आ गई। वह उसे अपने घर ले आई तथा प्रदोष व्रत करने लगी।
एक दिन वह ब्राह्मणी दोनों बालकों को लेकर शांडिल्य ऋषि के आश्रम में गयी और उनसे भगवान शंकर के पूजन की विधि जान कर लौट आई तथा प्रदोष व्रत करने लगी।
एक दिन बालक वन में घूम रहे थे वहाँ उन्होंने कन्याओं को खेलते देखा। ब्राह्मण कुमार तो घर आ गया लेकिन राजकुमार एक गन्धर्व कन्या से बातें करने लगा।उस कन्या का नाम अंशुमती था। उस दिन राजकुमार घर देरी से लौटा। दूसरे दिन राजकुमार फिर उसी जगह पहुँचा। जहाँ अंशुमती अपने माता-पिता के साथ बैठी बातें कर रही थी। राजकुमार को देखकर अंशुमती के पिता ने कहा कि तुम विदर्भ नगर के राजकुमार हो और तुम्हारा नाम धर्मगुप्त है। भगवान शंकर की आज्ञा से हम अपनी कन्या अंशुमती का विवाह तुम्हारें साथ करेंगे।
राजकुमार ने स्वीकृति दे दी और उसका विवाह अंशुमती के साथ हो गया। बाद में राजकुमार ने गन्धर्व राज विद्रविक की विशाल सेना लेकर विदर्भ नगर पर चढ़ाई कर दी और घमासान युद्ध हुआ। राजकुमार की जीत हुई और अपनी पत्नी के साथ रहते हुए विर्दभ नगर पर राज्य करने लगा। उसने ब्राह्मणी को पुत्र सहित अपने राजमहल में राजकुमार के साथ रखा,जिससे उनके सभी दुःख दूर हो गये।
एक दिन अंशुमती ने राजकुमार से पूछा कि यह सब कैसे हुआ। तब राजकुमार ने कहा कि यह सब तो 'प्रदोष व्रत' के पुण्य का फल है। उसी दिन से प्रदोष व्रत का महत्व बढ़ गया।
दान करना:-ओरतों को व्रत के दिन खाने से पूर्व किसी लड़के या लड़की को दही, दूध, चावल अथवा चावल से बनी खीर को दान करके और किसी भी को खिलाकर उनको दक्षिणा के रूप में चाँदी या सफेद कपड़ो का दान किसी गरीब असहाय को या ब्राह्मण को देना चाहिए।
हवन-यज्ञ करना:-ओरतों को अपनी कामना के पूरा होने पर हवन-यज्ञ करना चाहिए।
◆हवन-यज्ञ को करने के लिए पलाश की लकड़ियों का प्रयोग में लेवें।
प्रदोष त्रयोदशी व्रत के फायदे और महत्व:-प्रदोष त्रयोदशी व्रत को भोलेनाथ जी को खुश करने के लिए मुख्यतया ओरतों के लिए होता है।
◆इस व्रत को करने से भोलेनाथ जी का आशीर्वाद मिलने से पुत्र सन्तान की प्राप्ति होती है।
◆इस व्रत को करने से भगवान शंकरजी के द्वारा ओरतों के लिए उसके घर की जिंदगी में पति-पत्नी के बीच में तालमेल अच्छा रहता है।
◆इस व्रत को करने दाम्पत्य जीवन में खुशहाली की प्राप्ति होती है।
◆इस व्रत को करने से कहीं से उधार लेने से मुक्ति मिल जाती है।
◆इस व्रत को करने से मन की सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है।
◆इस व्रत को करने से उम्र की बढ़ोतरी होती है।
◆इस व्रत को करने से शरीर में किसी भी तरह की बीमारी से मुक्ति मिलकर शरीर स्वस्थ रहता है।