अथ बृहस्पतिवार व्रत की विधि के नियम,कथा,आरती और व्रत के फायदे(The rules of the Law of Thursday Thursday fast, the benefits of Katha, Aarti and fasting):-बृहस्पतिवार के दिन व्रत बृहस्पति देवजी को खुश करने के लिए होता है जिससे सन्तान की प्राप्ति और मन की समस्त कामनाओं की पूर्ति होती है।
◆बृहस्पति देवजी बृहस्पतिवार के दिन का व्रत करने वालों से जल्दी खुश होते है और मनुष्य को रुपयों-पैसों और पढ़ाई का फायदा करते है।
◆बृहस्पतिवार के दिन का व्रत ओरतों के लिए बहुत जरूरी होता है।
बृहस्पतिवार के दिन का व्रत करने की विधि के नियम:-बृहस्पतिवार के दिन बृहस्पतेश्वर शिवजी जी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
◆बृहस्पतिवार के व्रत को किसी भी माह में पड़ने वाले चादने पक्ष बृहस्पतिवार के दिन से शुरू करना चाहिए।◆बृहस्पतिवार के दिन व्रत शुरू करने से पहले अपने मन में व्रत को एक वर्ष या तीन वर्ष या सोलह व्रत की संख्या में से अपनी इच्छा के अनुसार धारण करना चाहिए।
◆व्रत को करने वाले को बृहस्पतिवार व्रत के दिन हल्दी से मिक्स किये हुए पानी से स्नान करना चाहिए।
◆व्रत करने वालों को स्नान के बाद पीले रंग के अंगवस्त्र और पीले कपड़ो को पहनना चाहिए।
◆बृहस्पतिवार व्रत के दिन का व्रत करने वाले को पीले फूलों को धारण करना चाहिए।
◆बृहस्पतिवार व्रत के दिन का व्रत करने वाले को केसर या हल्दी का तिलक लगाना चाहिए।
◆बृहस्पतिवार व्रत के दिन का व्रत करने वालों को केले के वृक्ष का पुजन करके दर्शन करना चाहिए।
◆केले के वृक्ष को पानी में कुछ पीली सरसों व हल्दी मिलाकर पानी को अर्पण करना चाहिए।
◆बृहस्पतिवार के दिन बृहस्पतेश्वर महादेव जी की पूजा-आराधना होती है।
◆मनुष्य को ऊँ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरूवे नमः मन्त्र को अपनी श्रद्धा के अनुसार जपते हुए दिन को बिताना चाहि
◆पूजन करने के बाद में कथा को पूरी श्रद्धा पूर्वक पूरी सुनना चाहिए।
भोजन के रूप में:- मनुष्य को भोजन के रूप में चने की दाल से बने प्रदार्थ हलवा,मोदक,भूजिये,केशरिया चांवल आदि प्रदार्थ के पहले पांच से सात ग्रास को लेना चाहिए और उसके बाद में दूसरी वस्तुओं को खाना चाहिए।
◆व्रत करने वालों को पूरे दिन में एक बार ही खाना खाना चाहिए
अथ बृहस्पतिवार के दिन के व्रत की पहली कथा की शुरुआत:- एक गांव में एक साहूकार रहता था,साहूकार के घर में अन्न,कपड़े और रुपये-पैसों आदि की किसी भी तरह की कोई कमी नहीं थी,लेकिन उसकी औरत बहुत ही कंजूस थी। किसी भी भीख मांगने वाले भिक्षार्थी को कुछ भी नहीं देती थी,पूरा दिन अपने घर के काम-काज को करते हुए बिताती थी। एक दिन एक साधु-महात्मा बृहस्पतिवार के दिन उसके दरवाजे पर आये और भीख मांगी। औरत उस समय अपने घर के आंगन लीप रही थी,इस कारण साधु महाराज को कहने लगी किसी अवकाश के दिन आप आवे। इस तरह साधु-महात्मा उस दिन खाली बिना भिक्षा के ही चले गये। थोड़े दिनों के बाद फिर साधु-महात्मा फिर उस साहूकार के घर के दरवाजे पर आकर भिक्षा की याचना की,उस समय साहूकार की औरत अपने बेटे को खाना खिला रही थी और कहने लगी साधु-महात्मा मैं क्या करूँ अवकाश नहीं है,इसलिए आज मैं आपको आज भिक्षा नहीं दे सकती हूं। इस तरह ही तीसरी बार महात्मा फिर उसके दरवाजे पर आये, तो साहूकार की औरत उनको फिर टालना चाहा तो साधु-महात्मा ने कहा कि जब आपको अवकाश होगा तो आप मुझे भिक्षा दोगी,तब साहूकार की औरत बोली ऐसा हो जाये तो आपका उपकार रहेगा।
साधु-महात्मा कहने लगें की अच्छा तो मैं तुम्हे एक उपाय बताता हूं।तुम बृहस्पतिवार के दिन चढ़ने पर उठो और सारे घर में झाड़ू लगाकर सारा कचरा-कूड़ा एक जगह पर इकट्ठा करके रख दो। घर में चौका इत्यादि आदि मत लगाओ।फिर स्नान आदि करके घरवालों को कह दो,उस दिन सब हजामत अवश्य बनवायें। रसोई बनाकर चूल्हें के पीछे रक्खा करो,सामने कभी नहीं रक्खो। शाम के समय जब अंधेरा होने के बाद में दिया को जलाया करो तथा बृहस्पतिवार के दिन को पीले कपड़े मत पहनना करो नहीं पीले रंग की वस्तुओं का भोजन करो। यदि ऐसा करोगे तो तुमको घर का कोई भी कम नहीं करना पड़ेगा। सहुकारनी ने इस ही किया। बृहस्पतिवार के दिन को दिन चढ़े उठी, झाड़ू लगाकर करके घर की एक जगह पर इकट्ठा कर दिया और आदमियों ने हजामत बनवाई। भोजन बनाकर चूल्हे के पीछे रखा। इस तरह सब बृहस्पतिवार के दिन वह इस ही करती रही। अब कुछ समय के बाद उसके घर में खाने को दाना न रहा। थोड़े दिनों में वही महात्मा फिर उसके घर के दरवाजे पर आकर भीख मांगी,तब सहुकारनी ने कहा महात्मा जी मेरे घर में खाने के लिए कुछ भी अन्न नहीं है,इसलिए आपको मैं क्या देवू? साधु-महात्मा ने कहा कि जब तुम्हारे घर में जब सब कुछ था तो भी तुम कुछ नहीं देती थी। अब तो तुम्हारे पास में अवकाश ही अवकाश है तब भी तुम कुछ नहीं दे रही हो,तुम क्या चाहती हो वह कहो? तब सेठानी ने हाथ जोड़कर अरदास की महाराज अब कोई ऐसा उपाय बताओ कि मेरा घर पहले की तरह ही सुखी-सम्पन्न हो जाय। अब मै प्रतिज्ञा करती हूँ कि अवश्यमेव जैसा आप कहेंगे वैसा ही करूँगी।
तब साधु-महात्मा जी ने कहा-"बृहस्पतिवार के दिन को प्रातःकाल उठकर स्नानादि से करके घर को गाय के गोबर से लिपो तथा घर के आदमियों को कहो कि हजामत नहीं बनावें। भूखों को अन्न,जल देती रहा करो। ठीक शाम के समय में दिया को जलाओ। इस तरह तुम करोगी तो तुम्हारे ऊपर बृहस्पतिजी कृपा जरूर होगी। सेठानी ने ऐसा ही किया और उसके घर में पहले की तरह ही धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया। इस तरह भगवान बृहस्पतिजी की कृपा से अनेक तरह के सुख भोगकर लम्बे समय तक जीवित रही।
अथ बृहस्पतिवार की व्रत की पहली कथा समाप्त।।
अथ बृहस्पतिवार के दिन के व्रत की दूसरी कथा:-एक दिन स्वर्ग के राजा इंद्र बड़े घमंड से अपने सिंहासन पर राज सभा में आकर बैठे थे और बहुत ही देवता,ऋषि,गन्धर्व,किन्नर आदि सभा में उपस्थित थे। उस समय जब देवता के गुरु बृहस्पतिजी उस सभा मे आये तो सभी के सभी उनके सम्मान में खड़े हो गये, लेकिन इंद्र देव अपने गर्व के मारे खड़ा नहीं हुये,यद्यपि हमेशा उनका सम्मान करते थे। बृहस्पतिदेवजी अपना अनादर समझते हुए वहां से उठकर के गये। तब इंद्र को बड़ा दुःख हुवा की देखो मैंने गुरुजी का अनादर कर दिया,मुझसे बड़ी भूल हो गयी। गुरुजी के आशीर्वाद से ही मुझको यह सब तरह का ऐश्वर्य मिला है और उनके गुस्से से सबकुछ समाप्त हो जायेगा। इसके लिए मुझे उनके पास में जाकर माफी मांगनी होगी जिससे उनका गुस्सा शांत हो जाये और मेरा कल्याण होवे। इस तरह इंद्र देव गुरु बृहस्पति जी के पास जाते है। जब बृहस्पतिजी ने अपने योगबल से देखा कि इंद्र उनसे माफी मांगने के लिए आ रहे है तो बृहस्पतिजी अपने गुस्से के कारण इंद्र से नहीं मिलने के लिए गायब हो गये।जब इंद्र ने देखा कि बृहस्पति जी कहि पर भी नहीं दिखाई दे रहे है तो वे निराश होकर वापस इंद्रलोक को आ गये।
जब दैत्यों के राजा वृषवर्मा को जब सूचना मिली तो अपने गुरु शुक्राचार्य जी से आदेश लेकर इंद्रपुरी को चारों तरफ से घेर लिया। गुरु की कृपा नहीं होने से देवता हारिणे लगे। तब इंद्र देव ने ब्रह्माजी से विनयपूर्वक सब हाल को बताया और कहा महाराज दैत्यों हमारी रक्षा करें और बचावें। ब्रह्माजी ने कहा कि तुमने बड़ा गुनाह कर दिया जो कि देव गुरु को नाराज करके किया है। अब तुम्हरी भलाई इसी में है कि तुम त्वष्टा ब्राह्मण के पुत्र विश्वरूपा के पास जावो, वे बहुत ही बड़े तपस्वी और ज्ञानी है। उनको अपना पुरोहित बनावो तो तुम्हारा कल्याण होगा। इस तरह की बात सुनते ही देव इंद्र त्वष्टा के पास गये और विनम्र भावना से नमस्कार करके उनको निवेदन किया की आप हमारे पुरोहित बनिये,जिससे हमारा कल्याण होवे। तब त्वष्टा जी उत्तर दिया की पुरोहित बनने से तपोबल कम हो जाता है,परन्तु तुम विनती कर रहे हो इसलिए मेरा बेटा विश्वरूपा पुरोहित बनकर तुम्हारी रक्षा करेगा।विश्वरूपा ने पिता के आदेश से पुरोहित बनकर ऐसा यत्न किया कि हरि की इच्छा से इंद्र वृषवर्मा को युद्ध में जीतकर अपने इन्द्रासन पर स्थित हुआ। विश्वरूपा के तीन मुख थे।
एक मुख से वह सोमपल्ली का रस निकाल कर पीते थे। दूसरे मुख से वह मदिरा का पान करते थे और तीसरे मुख से अन्नादि भोजन करते थे। इंद्र ने कुछ दिनों के बाद कहा कि मैं आपकी कृपा से यज्ञ करना चाहता हूँ जब विश्वरूपा की आज्ञानुसार यज्ञ आरम्भ हुआ तब एक दैत्य ने विश्वरूपा से कहा कि तुम्हारी माता दैत्य की लड़की है। इसलिए हमारे कल्याण के लिए एक आहुति दैत्यों के नाम पर भी दे दिया करो तो अति उत्तम बात है। विश्वरूपा उस दैत्य का कहना मानकर आहुति देते समय दैत्य नाम भी धीरे से लेने लगे। इस कारण से यज्ञ करने से देवताओं का तेज बल नहीं बढ़ा। इंद्र देव यह सब सुना तो गुस्सा होकर विश्वरूपा के तीनों सिरों को काट दिया जिससे मद्यपान करने वाले मुख से भंवरा,सोमपल्ली पाइन वाले मुख से कबूतर और अन्न खाने वाले मुख से तीतर बन गये। विश्वरूपा के मरते ही इंद्र का स्वरूप ब्रह्महत्या के असर बदल गया। देवताओं के एक वर्ष तक पश्चाताप करने पर भी ब्रह्महत्या का वह पाप से मुक्त नहीं हुए तो सब देवताओं के अरदास करने पर ब्रह्माजी बृहस्पतिजी के सहित वहां आए। उस ब्रह्महत्या के चार भाग किये। उनमें से एक भाग पृथ्वी को दिया इसी कारण कहीं-कहीं धरती ऊँची-नीची और बीज बोने के लायक भी नहीं होती। साथ ही ब्रह्माजी ने यह वरदान दिया जहाँ पृथ्वी में गढ्ढा होगा,कुछ समय पाकर स्वयं भर जाएगा।
दूसरा वृक्षों को दिया जिसे उनमें से गोंद बनकर बहता है। इस कारण गूगल के अतिरिक्त सब गोंद अशुद्ध समझे जाते हैं। वृक्षों को यह वरदान दिया कि ऊपर से सूख जाने पर जड़ फिर से फूट जाती है। तीसरा भाफ औरतों को दिया,इसी कारण औरतें हर महीने रजस्वला होकर पहले दिन चांडालनी, दूसरे दिन ब्रह्मघातिनि,तीसरे दिन धोबिन के रूप में रहकर और चौथे दिन होती हैं और सन्तान प्राप्ति का उनको वरदान दिया। चौथा भाग जल को दिया जिससे फेन और सिवाल आदि जल के ऊपर आ जाते है। जल को वरदान मिला कि जिस चीज में डाला जायेगा, वह बोझ में बढ़ जायेगी। इस तरह इंद्र को ब्रह्महत्यस के पाप से मुक्त किया। जो मनुष्य इस कथा को पढ़ता या सुनता है उसके सभी तरह के पाप बृहस्पतिजी महाराज की कृपा से समाप्त हो जाते है।
अथ बृहस्पतिवार के व्रत की दूसरी कथा समाप्त।।
बृहस्पति वार के दिन के अंतिम व्रत के लिए हवन-यज्ञ:-व्रत करने वालों को अपनी इच्छा की पूर्ति होने के बाद अंतिम व्रत के दिन हवन-यज्ञ करना चाहिए।
◆हवन करने के लिए समिधा के रूप में अश्वत्थ,पीपल की लकड़ी का उपयोग करना चाहिए।
बृहस्पति वार के व्रत का दान करना:-मनुष्य को चने की दाल से बने प्रदार्थ हलवा,मोदक,भूजिये,केशरिया चांवल आदि प्रदार्थ को किसी पीली गाय को अथवा पढ़ने वाले लड़के या लड़की एवं अध्यापक को दान के रूप में देना चाहिए।
◆मनुष्य को दक्षिणा के रूप में सोने का,पीतल के बर्तन,पीले कपड़े,पीला रुमाल,पीला चन्दन गट्टा,चने की दाल और हल्दी को अपने सामर्थ्य के अनुसार दान करना चाहिए।
बृहस्पतिवार के व्रत को करने के फायदे:-
◆बृहस्पतिवार के दिन का व्रत करने वाले को विद्या और बुद्धि प्राप्त होती है।
◆मनुष्य को उच्च पद अपने काम करने की जगह पर मिलता है।
◆मनुष्य के परिवार में रुपयों-पैसों की कोई तरह कमी नहीं रहती है।
◆मनुष्य को गृहस्थी जीवन के सुख मिलता है।
◆मनुष्य को अच्छी सन्तान मिलती है।
◆मनुष्य को अपने काम करने की जगह पर और अपने सामाजिक जीवन में इज्जत मिलती है।
।।अथ बृहस्पति वार व्रत कथा समाप्त।।
।।अथ बृहस्पतिवार की आरती।।
जय जय आरती राम तुम्हारी।
राम दयालु भक्तिहितकारी।।जय जय आरती राम.....।।
जनहित प्रगटे हरिव्रतधारी।
जन प्रहलाद प्रतिज्ञा पारी।।जय जय आरती राम.....।।
द्रुपदसुता को चीर बढ़ायो।
गज के काज पयादे धायो।।जय जय आरती राम.....।।
दस सिर छेदि बीस भुज तोरे।
तैंतीस कोटि देव बंदि छोर।।जय जय आरती राम.....।।
छत्र लिए सर लक्ष्मण भ्राता ।
आरती करत कौशल्या माता।।जय जय आरती राम....।।
शुक शारद नारदमुनि ध्यावैं।
भरत शत्रुघन चंवर डुरावैं।।जय जय आरती राम....।।
राम के चरण गहे महावीरा।
ध्रुव प्रहलाद बालिसुर वीरा।।जय जय आरती राम....।।
लंका जीति अवध हरि आए।
सब सन्तन मिलि मंगल गाए।।जय जय आरती राम....।।
सीय सहित सिंहासन बैठे रामा।
सभी भक्तजन करें प्रणामा।।जय जय आरती राम.......।।
।।अथ बृहस्पतिवार की आरती समाप्त।।