विजया एकादशी व्रत(फाल्गुन कृष्ण पक्ष एकादशी) कथा और विधि-विधान(Vijaya Ekadashi Vrat (Falgun Krishna Paksha Ekadashi) Story and Law):-फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी को "विजया एकादशी"के रूप में जाना जाता है।अपने जीवन की सभी तरह मुश्किलों पर जीत पाने के लिए की जाती है।
धर्मराज ने पूछा:-हे केशव जी।फाल्गुन महीने में पड़ने वाली एकादशी के बारे में बताए।फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष की एकादशी को किस नाम से जानते है एव उस एकादशी के व्रत की विधि-विधान कैसे करें और उस एकादशी व्रत का क्या महत्व है? आप से अरदास करता हूँ कि मुझे इस एकादशी के बारे में पूर्ण विवेचन करें।
भगवान माधवजी ने बताया:-हे धर्मराज।एक समय पूर्व नारदजी ब्रह्माजी के पास जाकर फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के व्रत के बारे में पूछा तो ब्रह्माजी से की फाल्गुन कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी के रूप में क्यों जाना जाता है और इस एकादशी व्रत को करने से क्या पुण्य फल मिलता है और इस एकादशी व्रत की विधि-विधान एवं कथा क्या है?
तब ब्रह्माजी बोले और कहा- कि इस एकादशी के बारे में मैं तुम्हें पूरी तरह से समझाता हूँ और पूरा तरीका इस व्रत को करने का बताता हूं।तुम अपना मन एक जगह पर रखकर ध्यान से सुनो।
ब्रह्माजी ने बताया:-नारद देव!यह व्रत बहुत ही ज्यादा पुराने समय का,एकदम पवित्र और पापों को नष्ट करने वाला है।यह एकादशी राजाओं को युद्ध में जीत दिलाने वाली होती है,इसमें थोड़ा भी शक नहीं है।
त्रेतायुग में जब भगवान दशरथ नन्दन श्री रामजी जब अपनी भार्या सीता को खोजते हुए लंका से थोड़ी दूरी थी उस दूरी के बीच एक विशाल सागर था।उस सागर को पार करके रावण की लंका में दाखिल होकर रावण से युद्ध करने के लिए सागर के पास पहुँचे, तब उनको उस विशाल सागर को कैसे पार करके लंका पहुँचे इसके लिए उनको कुछ भी समाधान सूझ नहीं रहा था।तब उन्होंने अपने छोटे भाई लक्ष्मणजी से पूछा कि-
हे"सुमित्रानन्दन!इस विशाल सागर किस तरह पार किया जाए मुझे तो कोई उपाय नहीं सूझ रहा है।यह सागर तो बहुत ही विशाल,गहरा और डरावने जल-जीव-जंतुओं से भरा हुआ दिखाई दे रहा है।मुझे तो कोई भी समाधान इस सागर को पार करने का दिखाई नहीं दे रहा है और नहीं सूझ रहा है,जिससे आसानी से पार कर सके।
'लक्ष्मण जी बोले:-हे प्रभु!आप तो पुराण मर्यादा पुरुषोत्तम पुरुष और सब देवों के आदिदेव है।आपसे क्या छिपा हुआ है?मैंने सुना है कि यहाँ से आधे योजन की दूरी पर कुमारी द्वीप में बकदाल्भ्य नामक ऋषि मुनि अपने आश्रम में निवास करते है,वें बहुत ही ज्ञानी और जानकर है।आप से अरदास है कि आप उन पुराने ऋषिवर मुनि के पास जाकर उन्हीं से इस विशाल सागर को पार करने का समाधान क्यों नहीं उन्हीं से पुछीये?महामुनि बकदाल्भ्य जी के आश्रम की ओर भगवान श्री दशरथ नन्दन रामजी रवाना होते है और आश्रम पर पहुंच कर ऋषिवर को अपने दोनों हाथों को जोड़कर प्रणाम करते है।महामुनि बकदाल्भ्य खुश होकर भगवान श्रीरामजी के उनके पास आने से आने की वजह पूछते है।
दशरथनन्दन श्री रामचन्द्रजी बोले:-हे ब्राह्मण देव!लंका पर चढ़ाई करके अपनी भार्या सीताजी को पुनः अपने साथ ले जाने के लिए आया हूँ,लेकिन लंका तक पहुंचने के बीच विशाल सागर आड़े आ रहा है,मुझे कुछ नहीं समझ में आ रहा है।इसलिए अपने छोटे भाई लक्ष्मण के कहने पर आपसे इस समस्या का समाधान पूछने के लिए अपनी वानर सेना को साथ लेकर आया हूँ जिससे आप कोई रास्ता बताई।जिससे मेरा उद्देश्य पूरा हो जावे।आपसे अरदास करता हूँ कि आप मुझे कोई समाधान बताईये।
बकदाल्भ्य मुनि ने कहा:-हे श्रीरामजी! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी जिसे "विजया" के रूप में जाना जाता है,इस विजया एकादशी के व्रत को करने आपकी जीत निश्चय होगी।आप अपनी वानर सेना के साथ अवश्य ही इस विशाल सागर को पार करके लंका पहुँच जाओगे।
राजन! अब आप इस व्रत की विधि-विधान के बारे में बताएं जिससे करने से फल की प्राप्ति होती है,तो सुनये:फाल्गुन कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि के दिन सोने, चाँदी,ताँबे अथवा मिट्टी का एक कलश लेकर उस कलश को आप स्थापित करें,उस कलश को जल से भरकर उसमें पीपल,गूलर,आम,पल्लव पत्ते डाल देवें।
◆उसके ऊपर भगवान लक्ष्मीनारायणजी के सुवर्णमय विग्रह की स्थापना करें।
◆फिर सबेरे जल्दी उठकर एकादशी के दिन स्नान करें।उसके बाद कलश को फिर से स्थापित करें।
◆पुष्पों की माला,चन्दन,सुपारी तथा नारियल आदि द्वारा मुख्य रूप से उसका पूजन-अर्चना करें।
◆कलश के ऊपर सात धान्य और जौ रखें।
◆फिर गन्ध,धूप,दीप और तरह-तरह के भोग के लिए नैवेद्य से पूजा-अर्चना करें।
◆कलश के सामने और नजदीक बैठकर अच्छी कथा बातचीत आदि के द्वारा अपना पूरा दिन को बिताएं
◆रात के समय सोने से पहले जब तक नींद नहीं आती है,जब तक जागरण करें।
◆अपने व्रत को बिना किसी तरह की बाधा से पूरा होने के लिए घृत का दीपक को प्रज्वलित करें।
◆फिर अगले दिन अर्थात् द्वादशी के दिन सूर्य उगने से पहले उस स्थापित कलश को लेकर सरोवर के पास में(नदी, झरने या पोखर के किनारे पर) जाकर उसे स्थापित करें और उस कलश की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करें।
◆पूजा-अर्चना करने के बाद उस कलश सहित देव प्रतिमा को वेदों के जानकार ब्राह्मण को दान स्वरूप देवें।
◆कलश के साथ दूसरी वस्तुओं का दान भी करना चाहिए।
हे श्रीरामजी!आप अपनी वानर सेनाओं के साथ इस 'विजया एकादशी' व्रत को विधि-विधान से कोशिश पूर्वक कीजिये।जिससे आप की मन की इच्छा की पूर्ति होकर जीत मिलेगी।
ब्रह्माजी कहते है:-नारद!इस तरह श्री रामचन्द्रजी ने बकदाल्भ्य ऋषिमुनि के द्वारा व्रत की बताएं हुई विधि के अनुसार उस समय में "विजया एकादशी का व्रत को किया।उस व्रत को करने से व्रत के प्रभाव से श्रीरामचन्द्रजी की जीत हुई।उन्होंने रावण के साथ युद्ध किया और रावण को मृत्यु के घात पहुंचाया एवं रावण की लंका को जीता।जिसके फलस्वरूप उनको सीताजी की प्राप्ति हुई।
हे पुत्र!जो मानव इस व्रत को पूर्ण विधि-विधान से करते है,उनको इस लोक में जीत मिलती है और उनको परलोक में बिना क्षय होने वाला बना रहता है।
भगवान श्रीकेशवजी कहते है:-हे धर्मराज। इस वजह से 'विजया' का व्रत करना चाहिए, इस व्रत की महिमा को पढ़ने और सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।इसी दिन से इस संसार में विजया एकादशी व्रत का चलन बढ़ा और आज के युग में भी चल रहा हैं।
कथा विशेष:-राम नाम से तीर जाते हैं।इसी बात का गर्व करते हुए रामजी ने समुद्र में एक पत्थर डाला तो पत्थर डूब गया तो राम को बड़ा संकोच हुआ और इधर-उधर देखा कि मुझे किसी ने देखा तो नहीं,लेकिन वहां एक वानर ने यह दृश्य देख लिया।तब उन्होंने राम को प्रणाम करके कहा कि हे राम!जिसको आपने छोड़ दिया वह तो डूबना ही डूबना है। सबके तारण हार तो आप ही है।आपने उस पत्थर को छोड़ दिया तो वह बचेगा कैसे?तब राम की आत्मग्लानि खत्म हुई।