योगिनी एकादशी व्रत कथा और फायदे(Yogini Ekadashi fasting story and benefits):-योगिनी एकादशी आषाढ़ कृष्ण पक्ष में मनायी जाती है।इस एकादशी के प्रभाव से पीपल वृक्ष काटने से उत्पन्न पाप नष्ट हो जाते है और अंत में स्वर्गलोक की प्राप्ति होती हैं।
भगवान केशव जी के द्वारा विस्तृत विवरण देना:-जो इस तरह शास्त्रों में बताया गया है-
धर्मराज जी ने पूछा: केशव जी। हे देव श्रेष्ठ केशव जी कृपया करके मुझे आषाढ़ महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि में जो एकादशी होती है,उसके बारे में पूरा विवरण बताये,उस आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को किस नाम से पुकारते है और उसको किस तरह से करें एवं उस एकादशी व्रत को किस तरह की विधि-विधान से करें। हे देवों के देव केशव आप कृपा करके मुझे बताये।
श्री केशव जी अपनी मधुर वाणी से बोले: हे राजाओं में उत्तम धर्मराज। आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी तिथि को 'योगिनी' के नाम से जाना जाता है।यह योगिनी बड़े-बड़े पातकों अर्थात् किये गये पापों को समाप्त करने वाली होती है।जगत् के इस समुद्र में अपने मोह-माह में रहने वालों को उनके पापों और मोह-माह के बंधन से आजाद कराने वाली होती है।जिस तरह पानी के समुद्र में डूबते हुए मानव को नाव के सहारे से डूबने बच सकता है उसी तरह की यह 'योगिनी' है।
योगिनी एकादशी व्रत की पौराणिक कथा:-पुराने समय की बात है,की एक अलकापुरी नाम की नगरी थी।अलकापुरी नगर के राजा काम धनद कुबेर था।अलकापुरी पूरी तरह से सुख-सम्पदा से युक्त थी।
राजा अधिराज धनद कुबेर अलकापुरी नगरी में हमेशा भगवान शिवशंकर जी की भक्ति भाव रखने के लिए हमेशा तैयार रहते थे।वह भगवान शिवशंकर जी की पूजा-आराधना करता था और भगवान के प्रति पूर्ण श्रद्धा भाव और विश्वास भी रखता था।वह हमेशा शिवजी को पूजा करने शुद्ध और ताजे फूलों को अर्पण करता था।
धनद कुबेर के यहां पर हेम नामक यक्ष माली दास के रूप में उनकी सेवा करता था।उस "हेम माली यक्ष" काम हमेशा मान सरोवर से राजा धनद कुबेर की शिवजी की पूजा के हमेशा शुद्ध और ताजे फूलों को लाने का था।
"विशालाक्षी" नाम की हेममाली यक्ष की पत्नी थी।वह अपनी पत्नी से बहुत ही स्नेह रखता था।दोनों के बीच में बहुत ही ज्यादा प्रेम भावना थी।इस तरह हेममाली यक्ष राजा धनद कुबेर के हमेशा मानसरोवर से ताजे औए शुद्ध फूलों को लाता और राजा उन फूलों से शिवजी की पूजा में उपयोग करता था। इस तरह काफी समय तक यक्ष हेममाली फूलों लाता और राजा धनद कुबेर पूजा करते रहे।इस तरह अपनी पत्नी के प्रेम मोह और कामक्रीड़ा में हमेशा डूबा रहता था।
एक दिन हेममाली यक्ष मानसरोवर से फूलों को लाकर अपने घर पर रुक गया और अपनी कामक्रीड़ा के मोह स्वरूप अपनी पत्नी से विहार की इच्छा होने से काफी समय कामक्रीड़ा में लग गया।जिससे वह फूलों को राजा धनद कुबेर के भवन में समय पर नहीं पहुंच पाया।
उस तरफ राजा धनद कुबेर पूजा मन्दिर में बैठकर शिवशंकरजी पूजा करने लगे तब उस पूजा सामग्री में फूल नहीं थे,तो राजा धनद कुबेर फूलों की प्रतीक्षा दोपहर तक करते रहे।लेकिन समय बीत जाने पर भी राजा अपनी पूजा बिना फूलों से करनी पड़ी जिससे क्रोधित होकर अपने दासों को बुलाकर पूछा कि-
'यक्षों'!बुरी आत्मा हेममाली यक्ष आज फूलों को समय पर लेकर क्यों नहीं आया और इतनी देरी होने पर भी क्यों नहीं आया?
यक्षों ने कहा: हे नृपपति धनद कुबेर जी!हेममाली यक्ष अपनी पत्नी के प्रेम मोह में फंसकर अपनी पत्नी के साथ क्रमक्रीड़ा विहार में डूबा हुआ है,इसलिए वह फूलों को लेकर नहीं समय आ पाया।इस तरह के यक्षों के द्वारा बताये गये बातों से राजा धनद कुबेर को बहुत गुस्सा आया और अपने गुस्से वश अपने दासों को आदेश दिया कि तुरन्त जाकर उस यक्ष हेममाली को बुलाकर लावो। उसके कारण मेरी आज पूजा पूरी नहीं हो पाई हैं।राजा धनद कुबेर के आदेश से हेममाली यक्ष को बुलाकर लाते है,तब राजा धनद कुबेर उसको देखते ही कहते है कि-
अरे पापी यक्ष!ओ दुष्कर्ता।तूने ईश्वर का अपमान किया है,अतः तुम्हे कोढ़ हो जावे एवं अपनी प्राणप्रिया पत्नी से तुम दूर हो जावे और अलकापुरी नगरी से पतित होकर तुम कहीं दूसरी जगह पर चला जा।
'राजा धनद कुबेर के इस तरह के शब्दों की बाणों से हेममाली आहत होकर नीचे गिर गया।हेममाली यक्ष की पुरी देह कोढ़ की पीड़ा से पीड़ित हो गयी।लेकिन भगवान शिवशंकरजी की पूजा के नित्य फूलों को लाकर राजा धनद कुबेर को देने के प्रभाव से उस पूजा का अंश उसे मिला हुआ होने से उसकी याददाश्त शक्ति नष्ट नहीं हो पाई।इस तरह वह भटकते हुए पहाड़ो में सबसे उत्तम मेरुपर्वत के शीर्ष पर पहुंच गया।
उस मेरुपर्वत के शीर्ष चोटी पर मुनिवर मार्कण्डेय जी अपने आश्रम में निवास करते थे।इस तरह चलते-चलते हुए वह ऋषिवर मार्कण्डेय जी के आश्रम को देखा और वह उनकी आश्रम में पहुंचा।तो उस आश्रम में ऋषिवर मार्कण्डेय जी दिखे।
तब अधर्मकर्मा हेममाली यक्ष अपनी कांपती हुई देह से ऋषिवर मार्कण्डेय जी के नमस्कार करके उनके पैरों को प्रणाम किया।जब ऋषिवर मार्कण्डेय जी ने उसे डर से कॉपते हुए देखकर उससे-
इस कंपन का कारण पूछा: 'ऋषिवर ने कहा कि तुमको कैसे कोढ़ की बीमारी हुई?
हेममाली यक्ष बोला: हे ऋषिवर मार्कण्डेय जी!मैं अलकापुरी नगर का रहने वाला हूं और मेरा नाम हेममाली यक्ष है।मैं राजा धनद कुबेर के यहां पर दास के रूप काम करता था।मेरा काम राजा धनद कुबेर के द्वारा की जाने वाली शिवशंकर जी की पूजा-अर्चना के शुद्ध और ताजे मानसरोवर के फूलों को समय पर लाना था,जिससे राजा धनद अपनी पूजा-अर्चना कर सके।इस तरह काफी समय तक मैं अपनी सेवा समय पर देता रहा।एक दिन मैं मानसरोवर के फूलों को लाकर घर में रख दिया और अपनी प्राणप्रिया पत्नी के साथ काम-वासना के कारण कामक्रीड़ा में समय ज्यादा हो जाने के कारण मैं राजा धनद कुबेर जी को मानसरोवर के फूलों को उनकी पूजा सामग्री में समय पर नहीं पहुंचा पाया।इस तरह राजा धनद कुबेर को अपनी शिवजी की पूजा बिना फूलों के करनी पड़ी,जिससे उनको गुस्सा आया और मुझे शाप दिया कि तुम्हारी पूरी देह को कोढ़ हो जावे और तुम अपनी प्रियपत्नी से दूर हो जावो।
हे ऋषिश्रेष्ठ! ऋषि-मुनियों का स्वभाव सरल और मन में दूसरों के दुःखों को देखकर भलाई करने का होता है। इसलिए ऋषिवर मुझ पर आप अपनी कृपा दृष्टि कीजिये जिससे मेरी देह पहले की तरह हो जावे।इसके लिए मुझे कोई उपाय बताए।
ऋषिवर मार्कण्डेय जी ने कहा:तुमने मन कोई तरह की बात नहीं छुपाई है और सच्ची बात कही है,इसलिए मैं तुम्हारी भलाई के लिए व्रत बताता हूँ।तुम्हें आषाढ़ महीने की कृष्ण पक्ष की योगिनी एकादशी के व्रत को करो।तब हेममाली यक्ष ने ऋषिवर मार्कडेय जी से योगिनी एकादशी व्रत की विधि-विधान पूछा।
तब ऋषिवर ने पूरी विधि-विधान,कथा के बारे और योगिनी एकादशी व्रत के फायदे बताये।इस व्रत को तुम विधि-विधान से करोगे तो इस एकादशी व्रत के प्रभाव से तुम्हें पुण्य की प्राप्ति होगी जिससे उस पुण्य के प्रभाव से तुम्हारी देह कोढ़ से मुक्त होकर कायकंचन के समान हो जाएगी।
भगवान श्री केशवजी कहते हैं:हे राजनश्रेष्ठ!ऋषिवर मार्कण्डेय जी के द्वारा बताए हुई योगिनी एकादशी का व्रत पूरी तरह से पूरी विधि-विधान से किया,जिससे इस एकादशी व्रत के पुण्य के कारण उसकी देह कोढ़ से मुक्त होकर पहले की तरह हो गयी।इस तरह योगिनी एकादशी के उत्तम व्रत को करने से वह अपना जीवन सुख पूर्ण जिया और स्वर्गलोक में जगह मिली।
योगिनी एकादशी व्रत का महत्व और फायदे:-ह
नृपश्रेष्ठ! जिस तरह अठ्ठासी हजार ब्राह्मणों को भोजन कराकर उनको सन्तुष्ट करते है,उनका आशीर्वाद पाते है,वहीं फल योगिनी एकादशी का व्रत को करने से मिलता है।
◆'योगिनी'बड़े-बड़े पापों को समाप्त करने वाली और बड़े-बड़े पुण्य के फल को देने वाली है।
◆'योगिनी एकादशी' के व्रत की महत्ता को सुनने से और पढ़ने से मानव के सभी तरह के किये गये बुरे पापों से मुक्ति मिलती है और पुण्य का फल मिलता है।
◆योगिनी एकादशी का व्रत करने वालों को अश्वत्थ के वृक्ष काटने से जो पाप कर्म करते है उस पाप कर्म से आजादी मिल जाती है।
◆मनुष्य को व्रत के प्रभाव से मानव योनि से मुक्ति मिलकर स्वर्गलोक में स्थान मिलता है।