अथ श्री हनुमानजी की आरती(Aarti of Atha Shree Hanumanji):-श्री हनुमानजी की आरती में हनुमानजी के द्वारा किये सभी कार्यो का विवरण मिलता है।श्री हनुमानजी की पूजा करने में रह गई भूल को ठीक करने के लिए श्री हनुमानजी को खुश करने के लिए आरती करते है।अपनी भूल के लिए आरती करते है।
आरती का अर्थ:- जब देवी-देवता की पूजा करते है,तब पूजा की समाप्ति पर आरती की जाती है।पूजा करते समय किसी तरह की भूल रह जाती हैं और आरती करने उस पूजा में रह गई भूल को सुधारा जा सकता है,इसलिए आरती की जाती है।आरती को पांच बत्तियों से करते है,लेकिन एक,सात या उससे ज्यादा बत्तियों से भी आरती की जाती है।आरती पूजा के अंत में अपने इष्टदेव को खुश करने के लिए करते है,इससे इष्टदेव को याद करते हुए अपनी भूल के लिए माफी मांगने के लिए आरती को करते है।सभी देवी-देवताओं के लिए अलग-अलग आरती होती है,लेकिन सभी देवी-देवताओं की आरती के तरीके समान होते है।आरती में पूरा विवरण मिलता है।
।।अथ श्री हनुमानजी की आरती।।
आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
जाके बल से गिरिवर काँपे।
रोग दोष जाके निकट न झाँके।।
आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
अंजनि पुत्र महा बलदाई।
सन्तन के प्रभु सदा सहाई।।
आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
दे बीरा रघुनाथ पठाये।
लंका जारि सीय सुधि लाये।।
आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
लंका सो कोट समुद्र सी खाई।
जात पवनसुत बार न लाई।।
आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
लंका जारि असुर संहारे।
सीयारामजी के काज सँवारे।।
आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे।
लाय सँजीवन प्राण उबारे।।
आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
आरती कीजै हनुमान लला की।
पैठी पाताल तोरि जम-कारे।
अहिरावन की भुजा उखारे।।
आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
बायें भुजा असुरदल मारे।
दाहिने भुजा संतजन तारे।।
आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
आरती कीजै हनुमान लला की।
सुर नर मुनि आरती उतारें।
जय जय जय हनुमान उचारे।।
आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
कंचन थार कपूर लौ छाई।
आरती करत अंजना माई।।
आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
आरती कीजै हनुमान लला की।
जो हनुमान जी की आरती गावै।
बसि बैकुण्ठ परम पद पावै।।
आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
लंका बिध्वंश किन्ही रघुराई।
आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
तुलसी दास स्वामी आरती गाई।।
आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
।।इति श्री हनुमानजी की आरती।।
।।बोलो सियावर रामचन्द्रजी की जय हो।।