आस माता की व्रत कथा (Aas Mata Ki Vrat Katha):-आस माता की पूजा का व्रत फाल्गुन मास की शुक्ल प्रतिपदा तिथि से सप्तमी तिथि तक कभी भी किया जा सकता है।
आसमाता के व्रत की पूजा विधि-विधान:-फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से सप्तमी तिथि के बीच कभी भी व्रत को रख सकते है। जो व्रत करने वाले होते है, वे इस दिनों में से एक दिन को व्रत रखना चाहिए।
◆इस व्रत के दिन कच्चा सुत का आठ धागे का डोरा लेना चाहिए।
◆फिर आठ गांठ लगाना चाहिए और उस आठ गांठ वाले धागे को रंग से रंगना चाहिए।
◆लकड़ी की पटरी पर जल का लोटा रखकर लौटे पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाना चाहिए।
◆लकड़ी के पाटे पर भी स्वास्तिक का चिन्ह बनाना चाहिए।
◆डोरा और सात गेहूँ हाथ में लेने के बाद कहानी को सुनना चाहिए।
◆कहानी को सुनने के बाद में डोरा और गेहूँ के आका वहीं पर चढ़ा देने चाहिए।
◆भगवान सूर्यनारायण देवजी को अर्ध्य अर्पण करना चाहिए।
◆व्रत करने वालों को एक धान का भोजन करना चाहिए।
◆जब बेटा जन्में तो लड़के का विवाह होने पर आसमाता व्रत का उद्यापन होता है।
◆उद्यापन में सात-सात पुड़ी और हलवा सात-सात जगह पर निकलते है और परिवार के सदस्यों में बांटना चाहिए।
आसमाता व्रत की पौराणिक कथा:-पुराने समय में एक आदमी एक नगर में रहता था, उसका नाम आसलिया बावलिया था। उस आसलिया बावलिया को जुआं खेलने में रुचि थी। वह हमेशा ब्राह्मणों को भोजन भी करवाता था। इस तरह हमेशा इस तरह जुआं खेलते रहने से और ब्राह्मणों को भोजन करवाते रहने से उसकी भाभियों को यह सब पसन्द नहीं था। इस तरह कुछ समय तक ऐसा चलता रहा। लेकिन एक दिन उसकी भाभिया परेशान होकर उसको अपने घर से बाहर निकाल दिया। इस तरह घर से बाहर निकाल देने से दुःखी हुआ, वह सोचने लगा कैसे अपना जीवन को जीना है, इस तरह सोचते-विचारते हुए वह घूमते हुए दूसरे नगर में पहुंचता है। वह आसमाता का नाम मन में दोहराते हुए एक जगह पर नगर में बैठ गया। उसने आस-पास के लोगों के द्वारा नगर में प्रचारित करवा दिया कि एक उच्च कोटि का जुआं खेलने वाला आया है।
यह बात उस नगर के राजा के कानों तक पहुंची। तब उस नगर के राजा ने अपने सिपाहियों को भेजकर उसको जुआं खेलने के लिए बुलाया। इस तरह आसलिया बावलिया सिपाहियों के साथ नगर के राजा के दरवार में जाता है, राजा को नमस्कार करता है, तब राजा उसका परिचय पूछते है तब वह अपना पूरा परिचय देता है। तब राजा कहते है, की तुम अपने आपको उच्च कोटि का जुआरी समझते हो, तो मुझे जुआं में हराकर दिखाओं।तब आसलिया बावलिया जुआरी बोलता है, की हे राजाजी आप से मेरी कहा तुलना है? मैं ठहरा एक जुआं खेलने वाला और आप तो इस नगर के स्वामी है। मैं जुआं में जीत गया तो मेरे द्वारा जीती गये कोई भी वस्तु वापस नहीं लेना और मेरे प्राणों की सुरक्षा का आप वचन देवे।
राजा बोलता है-की हे जुआं खेलने वाले आसलिया बावलिया! तुम जुआं में जीत जायोगे तो तुम्हारे द्वारा जीति गई कोई वस्तु तुमसे वापस नहीं ली जायेगी और तुम्हारे प्राणों को कोई तरह से खतरा नहीं होगा। मैं इस नगर का राजा ईश्वर को साक्षी मानकर वचन देता हूँ।
इस तरह के वचन के बाद राजा और आसलिया बावलिया के बीच जुआं कार्यक्रम शुरू हुआ। उस जुआं कार्यक्रम में कभी राजा की बाजी होती तो कभी बावलिया की होती थी। इस तरह काफी समय तक जुआं का खेल चलता रहा और राजा अपनी सभी वस्तुओं को हार रहे थे। जब राजा अपनी सभी वस्तुओं को हार गए तब आसलिया बावलिया बोला हे महाराज अभी भी आप अपनी सभी हारी हुई वस्तुओं को वापस जीत सकते है, आपके पास आपका राज्य जुआं के खेल में दांव पर लगाये, जिससे आप वापस जीत सकते है, राजा ने बिना सोचे-विचारे अपना राज्य जुआं के खेल में दांव पर लगा दिया और अपने राज्य को जुआं में हार गए। इस तरह वचनबद्ध राजा कुछ नहीं कर सके।
अपना राज्य उस जुआं के खेलने वाले आसलिया बावलिया को देखकर नगर को छोड़कर चले गए। आसलिया बावलिया इस तरह खुद उस नगर को जीत कर राजा बन गया। इस तरह आसलिया बावलिया अपने जीते हुए राज्य पर सुख-सुविधाओं से जीवन जी रहा था। उस तरफ आसलिया बावलिया के घर पर अकाल पड़ने लगा, जिससे उसके परिवार के लोगों को भोजन की कमी होने लगी।इस तरह उसके परिवार के लोग चिंतित रहने।
थोड़े समय के बाद आसलिया बावलिया के परिवार के लोगों का अन्न-धन समाप्त हो गया।तब उनको किसी दूसरे नगर के लोग से ज्ञात हुआ कि दूसरे नगर में तुम्हारा भाई, पुत्र और तुम्हारा देवर राजा बन गया है और उस नगर में पूरी तरह से खुशहाली है, तुम सब अपने भाई आसलिया बावलिया के पास क्यों नहीं चले जाते हो?
इस तरह उसके परिवार के सभी लोग जिनमें उसकी माता, भाई और भाभी उसको देखने और उससे मदद के लिए उसके नगर की ओर चल पड़ते है। जब वे सभी उस आसलिया बावलिया के नगर में पहुंचते और उसको देखते है, तब उसकी मां अपने बेटे को राजा बना देखकर आंखों में आंसू आ गये। राजा के रूप में आसलिया बावलिया अपनी माता को इस तरह रोते देखकर अपनी माता के चरण को स्पर्श करता है।
तब उसकी माता ने उससे कहा कि "मैं आसमाता के व्रत का उजमणा करुंगी।" तब सब लोगों ने घर जाकर आसमाता व्रत का उजमणा किया। जैसे तुमने आसलिया बावलिया को राजपाट दिया, वैसे ही सब की मनोकामना पूरी करना।