गणेश चतुर्थी व्रत या संकट चतुर्थी व्रत की विधि, कथा और फायदे(Ganesh Chaturthi fast or method, story and benefits of (Sankat Chaturthi fast):-संकट चौथ व्रत माघ कृष्ण पक्ष की चौथ को किया जाता है। माघ कृष्ण चतुर्थी या संकट चतुर्थी या संकट चौथ या 'माघी कृष्ण चतुर्थी' या 'तिलचौथ' या 'वक्र तुण्डि चतुर्थी' आदि नामों से भी जाना जाता है।
◆इस दिन भगवान गणपति जी और संकट चौथ माता की पूजा करने का विधान है।
संकष्ट का मतलब:-संकष्ट का मतलब किसी तरह की पीड़ा या किसी तरह का दर्द या दुःख के आने, 'कष्ट या विपत्ति' आदि होता है।
'कष्ट' का मतलब:-कष्ट का मतलब बाधा या पीड़ा या 'क्लेश',सम आदि होता हैं। उसके आधिक्य का बोधक होता है।
◆भगवान गणेश जी और माता गौरी की स्थापना करनी चाहिए।
◆भगवान गणेश जी और माता गौरी को स्थापित करने के बाद में उनका पूजन करके उनको अपने भवन में पूरे वर्ष के लिए रखना चाहिए।
◆नैवेद्य, तिल, ईख, गंजी, अमरूद, गुड़ तथा घृत का भोग लगाना चाहिए। इस नैवेद्य को रातभर के डालिया इत्यादि से ढ़क कर यथावत रख देना चाहिए, जिसे "पहार" कहते हैं। सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि उस ढ़के हुए 'पहार' को पुत्र ही खोलता है तथा भाई-बन्धुओ में वितरित किया जाता है। जिससे प्रेम भावना स्थायी होती हैं।
◆पुत्रवती माताऐं पुत्र तथा पति के सुख-समृद्धि के लिए व्रत करती है।
संकट चौथ या गणेश चतुर्थी के व्रत करने की विधि:-सभी तरह के पुराणों में गणेश चतुर्थी के व्रत की विधि बताई गई है और इन विधि के तरीकों से गणेश जी पूजा-आराधना करनी चाहिए।
◆संकल्प करना:-गणेश चतुर्थी के व्रत को शुरू करने से पहले 'गणपतिप्रीतये संकष्टचतुर्थीव्रतं करिष्ये'-इस तरह संकल्प करके ही व्रत की शुरुआत करनी चाहिए।
◆दिनभर व्रती रहने के बाद सायं काल में गणपति जी और चन्द्रमाजी के देखने के बाद में दुग्ध से अर्ध देना चाहिए।
◆दुग्ध से अर्ध्य देने के बाद चन्द्रमाजी की विधि-विधान से पूजा की जाती है।
'गणेशाय नमस्तुभ्यं सर्वसिद्धि प्रदायक।
संकष्टहर में देव गृहाणर्ध्यं नमोस्तुते।।
कृष्णपक्षे चतुर्थ्यां तु सम्पूजित विधूदये।
क्षिप्रं प्रसीद देवेश गृहार्धं नमोस्तुते।।'
नारद पुराण, पूर्वभाग अध्याय 113 में संकष्टी चतुर्थी व्रत का विवरण:-निम्नांकित है-
"माघ कृष्ण चतुर्थ्यां तु संकष्ट व्रत मुच्यते।
तत्रोपवासं संकल्पय व्रती नियमपूर्वकम् ।।११३-७२।।
"चन्द्रोदयमभिव्याप्य तिष्ठेत्प्रयतमानसः।।
ततश्चंद्रोदये प्राप्ते मृन्मयं गणनायकम्।।११३-७३।।
"विधाय विन्यसेत्पीठे सायुधं च सवाहनम्।
उपचारैः षोडशभिः समभ्यर्च्य विधानतः।।११३-७४।।
"मोदकं चापि नैवेद्यं सगुडं तिलकुट्टकम्।
ततोअर्ध्य ताम्रजे पात्रे रक्तचंदनमिश्रितम्।।११३-७५।।
"सकुशं च सदूर्वं च पुष्पाक्षतसमन्वितम्।
सशमीपत्रदधि च कृत्वा चंद्राय दापयेत्।।११३-७६।।
"गगनार्णवमाणिक्य चन्द्र दाक्षायणीपते।
गृहाणार्घ्यं मया दत्तं गणेशप्रतिरूपक।।११३-७७।।
"एवं दत्त्वा गणेशाय दिव्यार्ध्यं पापनाशनम्।
शक्त्या संभोज्य विप्राग्र्यान्स्वयं भुंजीत चाज्ञया।।११३-७८।।
"एवं कृत्वा व्रतं विप्र संकष्टाख्यं शूभावहम्।
समृध्दो धनधान्यैः स्यान्न च संकष्टमाप्नुयात्।।११३-७९।।
माघ कृष्ण चतुर्थी को 'संकष्टवव्रत'बताया:-जाता है।
◆इसमें व्रत का संकल्प लेकर व्रत को करने वाले को सुबह से लेकर जब तक चन्द्रमाजी का उदय नहीं होता है,तब तक नियम के अनुसार रहना चाहिए।
◆व्रत करने वालों को अपने मन को नियंत्रित करके रखना चाहिए।
◆चन्द्रमा का उदय होने पर व्रत करने वाले को साफ और पवित्र जगह की मिट्टी को लाकर उस मिट्टी से गणपति जी प्रतिमा बनानी चाहिए।
◆प्रतिमा बनाने के बाद उस प्रतिमा को पीढ़े या बाजोट पर स्थापित करना चाहिए और साथ में उनके हथियार (आयुध) और उनकी सवारी मूषक को भी स्थापित करना चाहिए।
◆गणपति जी को मिट्टी में स्थापित करने के बाद में उनकी षोडशोपचार से विधि-विधान से गणपति जी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
षोडशोपचारैंः पूजा कर्म:-इस तरह भगवान गणेशजी का षोडशोपचार पूजा कर्म करना चाहिए।
पादयो र्पाद्य समर्पयामि,
हस्तयोः अर्ध्य समर्पयामि,
आचमनीयं समर्पयामि,
पञ्चामृतं स्नानं समर्पयामि
शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि,
वस्त्रं समर्पयामि,
यज्ञोपवीतं समर्पयामि,
गन्धं समर्पयामि,
अक्षातन् समर्पयामि,
अबीरं गुलालं च समर्पयामि,
पुष्पाणि समर्पयामि,
दूर्वाड़्कुरान् समर्पयामि,
धूपं आघ्रापयामि,
दीपं दर्शयामि,
नैवेद्यं निवेदयामि,
ऋतुफलं समर्पयामि,
आचमनं समर्पयामि,
ताम्बूलं पूगीफलं दक्षिणांं च समर्पयामि।।
◆पूजा करने के बाद में गुड़ से तैयार तिल के लड्डू और मोदक को नैवेद्य के रूप में अर्पण करना चाहिए।
◆फिर एक तांबे के लोटे में लाल रंग का चन्दन या रक्त चंदन, कुश, दूर्वा, पुष्प, चावल, शमीपत्ते, दही और पानी को इकट्ठा करके मन्त्रों का जप करते हुए चन्द्रमाजी को अर्ध्य देना चाहिए।
"गगनार्णवमाणिक्य चन्द्रदाक्षायणीपते।
गृहाणार्घ्यं मया दत्तं गणेशप्रतिरूपक।।
अर्थात्:-गगनरूपी समुद्र के माणिक्य, दक्ष कन्या रोहिणी के प्रतिरूप चन्द्रमा!आप मेरे द्वारा दिये गए अर्ध्य को ग्रहण करे।'
◆इस प्रकार से गणपति जी को अलौकिक और पापों को नष्ट करने वाला अर्ध्य अर्पण करना चाहिए।
◆फिर अपने सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मणों को खाना खिलाना चाहिए।
◆फिर बादमें खुद खाना खाना चाहिए।
◆इस तरह मंगलकारी संकष्ट व्रत को विधि-विधान से करने पर व्रत करने वालों को धन-धान्य की प्राप्ति होती है।
◆संकट चतुर्थी का व्रत करने वालों को कभी भी संकष्ट नहीं आते है।
लक्ष्मी नारायण संहिता:-लक्ष्मीनारायण संहिता में इस तरह का विवरण मिलता है,जो निम्नांकित है-
"माघकृष्णचतुर्थ्यां तु संकष्टहारकं व्रतम्।
उपवासं प्रकुर्वीत वीक्ष्य चन्द्रोदयं ततः।।१२८।।
"मृदा कृत्वा गणेशं सायुधं सवाहनं शुभम्।
पीठे न्यस्य च तं षोडशोपचारैंः प्रपूजयेत्।।१२९।।
"मोदकाँस्तिलचूर्णं च सशर्करं निवेदयेत्।।
अर्ध्यँ दद्यात्ताम्रपात्रे रक्तचन्दनमिश्रितम्।।१३०।।
"कुशान् दूर्वाः कुसुमान्यक्षतान् शमीदलान् दधि।
दद्यादर्ध्यं ततो विसर्जनं कुर्यादथ व्रती।।१३१।।
"भोजयेद् भूसुरान् साधून् साध्वीश्च् बालबालिकाः।
व्रती च पारणां कुर्याद् दद्याद्दानानी भावतः।।१३२।।
"एवं कृत्वा व्रतं स्मृध्दः संकटं नैव चाप्नुयात्।।
धनधान्यसुतापुत्रप्रपौत्रादियुतो भवेत् ।।१३३।।
भविष्य पुराण के मतानुसार पूजा-विधान:-गणेश चतुर्थी के व्रत का विवरण भविष्य पुराण मिलता है, जो इस तरह है-
1.गणपति जी के अथर्वशीर्ष का पाठ करना बहुत ही मंगलकारी होता है।
2.भगवान गणपति जी को कच्चा दुग्ध, पंचामृत, गंगा-जल से स्नान कराके, फूल एवं कपड़े आदि अर्पण करने के बाद तिल एवं गुड़ से बनाये हुए लड्डू और दूर्वा का भोग अवश्य ही लगाना चाहिए।
3.भोग के रूप में लड्डू की ग्यारह या इक्कीस की संख्या रखनी चाहिए।
4.भगवान गणपतिजी को मोदक के लड्डू, दूर्वा घास और लाल रंग के फूल बहुत ही प्यारे लगते है।
माघ कृष्ण पक्ष की संकट चौथ व्रत की पौराणिक कथा:-एक बार विपदाग्रस्त इन्द्रादि देवता भगवान शिवजी के पास गये और उनसे संकट दूर करने की विनती की। उस समय भगवान शिवजी के सामने स्वामी कार्तिकेय और गणेशजी भी विराजमान थे। शिवजी ने दोनों बालकों से पूछा कि तुम में से कौन ऐसा वीर है जो देवताओं का कष्ट निवारण करें?
तब कार्तिकेय जी ने अपने को देवताओं को सेनापति प्रमाणित करते हुए देवरक्षा योग्य तथा सर्वोच्च देव पद मिलने का अधिकार सिद्ध किया। यही बात शिवजी ने गणेश जी की इच्छा से जानना चाहा, तब गणेश जी ने विनम्र भाव से कहा कि पिताजी आपकी आज्ञा हो तो मैं बिना सेनापति बने ही सब संकट दूर कर सकता हूँ। बड़ा देवता बनायें। इसकी मुझे लालसा नहीं है।
यह सुनकर हंसते हुए शिवजी ने दोनों लड़कों को पृथ्वी की परिक्रमा करने को कहा तथा यह शर्त रखी कि जो सबसे पहले पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करके आ जायेगा, वहीं वीर तथा सर्वश्रेष्ठ देवता घोषित किया जायेगा।
यह सुनते ही कार्तिकेय जी बड़े गर्व से अपने वाहन मोर पर चढ़कर पृथ्वी की परिक्रमा करने चल दिए। गणेशजी ने अपने वाहन मूषक के बल पर पूरी पृथ्वी की चक्कर लगाना अत्यंत कठिन था।
इसलियें उन्होंने युक्ति सोची। वे साथ बार अपने माता-पिता की परिक्रमा करके बैठ गए। रास्ते में कार्तिकेय जी को पूरे पृथ्वी मण्डल में उनके आगे चूहे का पद चिन्ह दिखायी दिया। परिक्रमा करके लौटने पर निर्णय की बारी आयी। कार्तिकेय जी गणेश जी पर कीचड़ उछालने लगे तथा अपने को पूरे भू-मण्डल का एकमात्र पर्यटक बताया।
इस पर गणेशजी ने शिवजी से कहा कि माता-पिता में ही समस्त तीर्थ निहित हैं।इसलिये मैंने आपकी सात परिक्रमा की हैं।गणेशजी की इस बात को सुनकर समस्त देवगणों तथा कार्तिकेयजी ने सिर झुका लिया। तब शंकरजी ने उन्मुक्त कंठ से गणेशजी की प्रशंसा की तथा आशीर्वाद दिया कि त्रिलोक में सर्वप्रथम तुम्हारी पूजा होगी।
तब गणेशजी ने पिताजी की आज्ञा अनुसार जाकर देवताओं का संकट दूर किया। यह शुभ समाचार जसनकर भगवान शंकरजी ने यह बताया कि चौथ का दिन चन्द्रमा तुम्हारे सेहरा या ताज बनकर पुरा विश्व को शीतलता प्रदान करेगा। जो स्त्री-पुरुष इस तिथि पर तुम्हारा पूजन तथा चन्द्र अर्ध्य-दान देगा उसका त्रिविध ताप (दैहिक, दैविक और भौतिक) दूर होगा और ऐश्वर्य, पुत्र, सौभाग्य को प्राप्त करेगा। यह सुनकर देवगण हर्षातिरक में प्रणाम करके अंतर्ध्यान हो गये।
शिवपुराण के अनुसार महत्व:-शिवपुराण के अनुसार महत्व निम्नांकित हैं।
"महागणपतेः पूजा चतुर्थ्यां कृष्णपक्ष के।
पक्षपापक्षयकरी पक्षभोगफलप्रदा।।
अर्थात्:-प्रत्येक महीने के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि को की हुई महागणपति की पूजा एक पक्ष के पापों का नाश करने वाली और एक पक्ष तक उत्तम भोगरूपी नतीजे देने वाली होती है
गणेश अथर्वशीर्ष के मतानुसार महत्व:-गणेश अथर्वशीर्ष में महत्व बताया गया है, जो कि निम्नांकित है-
"यो दूर्वांकुरैंर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति"।
अर्थात्:-जो दूर्वांकुर के द्वारा भगवान गणेश जी का पूजन करने वाला कुबेर की तरह धन-धान्य का मालिक बन जाता है।
"यो मोदकसहस्रेण यजति स वाञ्छित फलमवाप्रोति"
अर्थात्:-जो सहस्त्र या हजार लड्डुओं या मोदकों के द्वारा पूजन करते है, उनको अपनी इच्छा के अनुसार नतीजे की प्राप्ति होती है।
◆गणेशजी के बारह या इक्कीस या एक सौ एक नामों से पूजा अर्चना करने से फायदा होता है।
◆संकट नाशन गणेश स्तोत्र का ग्यारह पाठ को पढ़ना चाहिए।
संकट चतुर्थी व्रत या गणेश चतुर्थी व्रत के फायदे:-संकट चतुर्थी व्रत भगवान गणेश जी और माता पार्वती का होता है, इसलिए माता पार्वती जी और भगवान गणेश जी खुश करना चाहिए।
◆संकट चतुर्थी का व्रत करने से मनुष्य को जीवन में कभी बाधाओं का सामना नहीं करना पड़ता है और सभी तरह के कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।
◆गणेश जी की पूजा करके उनको खुश करने पर गणेश की कृपा से मनुष्य कुबेर के समान धन-धान्य का स्वामी बन जाता है।
◆भगवान गणेश की पूजा से एक पक्ष के पापों की समाप्ति हो जाती है और उत्तम तरह से जीवन को जीते हुए फलों को पाते है।
◆व्रत करने वालों को अपने भाई-बन्धुओ से प्यार बढ़ता है और प्रेम भावना स्थायी होती हैं।
◆पुत्रवती माताओं को अपने पुत्र सन्तान का सुख मिलता है।
◆व्रत करने ओरतों को अपने पति के सुख की प्राप्ति होती है और गृहस्थी जीवन में खुशहाली प्राप्त होती है।
◆व्रत करने वालों को सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य के सभी तरह के साधनों की प्राप्ति होती है।