वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि (मोहिनी एकादशी) के व्रत की विधि:-
◆वैशाख शुक्ल की इस मोहिनी एकादशी को भगवान के पुरुषोत्तम रूप (राम) की पूजा-अर्चना का विधान होता है।
◆भगवान रामजी ने अपनी पत्नी सीताजी को ढूढ़ने के लिए मोहिनी एकादशी का व्रत किया था।
◆महाराज युधिष्ठिर को श्री कृष्ण जी ने जब बताया था तब युधिष्ठिर ने मोहिनी एकादशी का व्रत किया था।
◆मोहिनी एकादशी व्रत के दिन भगवान की प्रतिमा को स्नानादि कराकर अच्छे कपड़ो को पहनकर उनको अच्छी जगह पर ऊंचे आसन पर बैठाकर उनकी आरती उतारनी चाहिए।
◆भगवान को मीठे फलों का भोग लगाना चाहिए।
◆रात के समय भगवान की प्रतिमा के पास में भगवान के गुणगान करते हुए प्रतिमा के पास ही जमीन पर सोना चाहिए।
◆इस दिन गौमूत्र का चरणामृत लेना चाहिए।
वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की मोहिनी एकादशी तिथि के व्रत की पौराणिक कथा:-एक समय की बात है,एक राजा था। उस राजा के सात बेटे थे। उनमें से एक व्यभिचारी, दुर्जन, बड़ो का अपमान करने वाला, अभिमानी था। राजा ने नाराज होकर उसे राज्य से बाहर निकाल दिया। वह जंगल में जाकर रहने लगा और जानवरों को मारकर खाने लगा।एक दिन वह एक ऋषि के आश्रम में पहुँचा। ऋषि ने उसे सत्संगति का महत्त्व बताया। जिससे उस का ह्रदय पवित्र हो गया। वह अपने पाप कर्मोपर दुःखी हुआ। तब ऋषि ने उसे वैशाख शुक्ल एकादशी का व्रत करने को कहा। व्रत के प्रभाव से उस राजकुमार की बुद्धि निर्मल हो गयी। तब से यह व्रत श्रद्धा के साथ किया जाता है।
मोहिनी एकादशी व्रत के बारे में पूरा विवरण:-अजातशत्रु ने बड़ी कोमल भाव या मधुरता से बोले-हे केशवजी मुझे आप वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी व्रत के बारे में पूरा विवरण बताये।किस तरह से व्रत होता है,व्रत की क्या कथा है? व्रत करने से क्या फायदा होता है? आप कृपया करके मुझे बताये।
"भगवान केशवजी बोले-हे धर्मराज! जब सीताजी को अयोध्या से देश निकाला रामचन्द्रजी के द्वारा प्रजा की बातों में आकर देने पर श्री रामचन्द्रजी बहुत ही मन से दुःखी हो गये। तब श्री रामचन्द्रजी अपने इस दुःख को कम करने के लिए ऋषि वशिष्ठ जी से कहते है।
हे मुनिवर-मुझे कोई ऐसा समाधान बताये की जिसके करने से मेरे सभी तरह के बुरे पापों, दुःखों और मन के संतापों से मुक्ति मिल जाये और मेरे मन में किसी तरह का दुःख नहीं शेष रहे और मेरे हृदय को शांति मिले।उस काल में ऋषि वशिष्ठ जी ने जो बताया-
वह मैं तुम्हें बताता हूँ-महर्षि वशिष्ठ जी ने कहा-हे श्री राम आपने किसी तरह के कोई बुरे पाप नहीं किये है।आपका नाम लेने मात्र से ही नाम लेने वाले मानव को सभी तरह के कष्टों, बीमारी और सभी तरह के दुःखों से मुक्ति मिल जाती है।
श्री राम आप लोक भलाई की सोच रखते है,इसलिए ऐसा प्रश्न पूछ रहे है।तब ऋषि वशिष्ठ जी कहते है कि मैं आपको बताता हूँ कि सभी तरह के पापों को मिटाने, मन में शांति को पाने और सभी तरह की वेदना से मुक्ति पाने के लिए अचूक उपाय है, वह है मोहिनी एकादशी का व्रत है।
वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी कहा जाता है,जिसके व्रत को करने से मानव के सभी तरह के बुरे कर्मों तथा पीड़ा समाप्त होकर मोहमाया के जंजाल से आजाद हो जाता है।इसलिए जो मानव को वेदना और दुख होते है,उनको मोहिनी एकादशी का व्रत जरूर करना चाहिए।ऋषि वशिष्ठ जी कहते है कि मैं आपको इस व्रत की कथा सुनाता हूँ और उस कथा को आप पूर्ण एकाग्रचित्त होकर सुनये।
मोहिनी एकादशी व्रत की पौराणिक कथा:-एक बहुत ही मन को मोहित करने वाला पूरी तरह सूख-सुविधाओं से युक्त राज्य सरस्वती नदी के तट पर बसा हुआ था। उस राज्य का नाम भद्रवती था। उस भद्रवती राज्य पर घृतिमान नाम का चन्द्रवंशी राजा राज्य किया करता था। भद्रवती राज्य में एक बहुत ही अमीर धन-धान्य से पूरी तरह संपन्न व्यापारी वैश्य रहता था,उसका नाम धनपाल था। वह धनपाल वैश्य भगवान लक्ष्मीपति विष्णु जी का परम भक्त और धर्म-कर्म में रुचि रखने वाला था।
उसने जगह-जगह पर बहुत ही अधिक भोजनालय, प्याऊ, कुएं, सरोवर और राहगीरों के रुकने के लिए धर्मशालाओं आदि का निर्माण करवाया था। रास्तों और सड़कों के किनारे पर आम्र, नीम, जामुन आदि के बहुत सारे वृक्ष लगवाये। वैश्य धनपाल के पाँच सन्तान के रूप में बेटे थे। उन पांचों का नाम सुमना, सदबुद्धि, मेधावी, सुकृति और धृष्टबुद्धि था। उसके चार बेटे तो धर्म-कर्म को करने वाले और धार्मिक भाव रखने वाले थे। लेकिन उसका सबसे छोटा बेटा धृष्टबुद्धि बहुत ही बुरे कर्मो में लिप्त रहने वाला, बुरे आचरण वाला और कामक्रीड़ा में रुचि रखने वाला था। वह हमेशा वेश्याओं और बुरे आचरण वाले लोगों के साथ रहता था।
वह जुआ खेलते,दूसरों की ओरतों के साथ कामक्रीड़ा करता और शराब-मांस का सेवन करता था। इस तरह वह अपने पिता के पुण्य से कमाये हुए धन को बुरे कामों में खर्च करता था।
उसके पिता धनपाल ने बहुत समझाया। लेकिन वह समझने को तैयार नहीं था। इसलिए समय के चक्र के अनुसार उसके पिता,भाइयों और उसके परिवार के जनों ने उसी घर से निकल दिया। घर से निकल देने के बाद उसके पास जो धन था वह खत्म हो गया जिससे उसे कोई भी अपने पास नहीं भटकने देता था। उसके बुरे लोग और वेश्याएं भी उससे दूर हो गई।
इस तरह धन से हीन होने पर कोई उसकी मदद करने को तैयार नहीं हुवे। इस तरह वह इधर-उधर भटकता रहा, काफी समय तक भटकते रहने पर उसे प्यास-भूख सताने लगी। भूख-प्यास से उसको बहुत ही पीड़ा हुई और दुःखी हो गया।
तब उसने अपनी पेट की आग बुझाने के लिए रात के समय चोरी करने का काम शुरू कर दिया।इस तरह समय के बदलते ही एक दिन वह चोरी करते हुए पकड़ा गया,लेकिन उसको राज्य के कर्मचारियों ने वैश्य का बेटा जानकर छोड़ दिया। लेकिन चोरी करना उसने जारी रखा।
एक दिन फिर चोरी करते हुए पकड़ा जाता है, तो उसको सिपाहियों के द्वारा राजा के पास ले जाया जाता है। राजा उसे दण्ड स्वरूप कारागार में डालने का आदेश देता है और कारागार में उसे बहुत सारी यातनाएं और कष्ट दिये जाते है। बाद में उसे उस राज्य से बाहर निकाल दिया जाता है।
इस तरह राज्य से निकाल दिये जाने पर वह भटकते-भटकते हुए जंगल में पहुंच जाता है और जंगल में रहने लगता है। जंगल में रहते हुए अपने पेट की आग को जंगली जानवरों को मारकर बुझाने लगा। इस तरह अपना जीवन को चला रहा था।
एक दिन अपने भोजन की तलाश में घूमते हुए बहुत दूर निकल गया और अपनी भूख-प्यास की शांति के लिए शिकार का पीछा करते हुए वह एक ऋषि के आश्रम तक पहुंच जाता है।
जब वह ऋषि के आश्रम के पास पहुंचता है, वह आश्रम ऋषि कौडिन्य का था। उस समय वैशाख महीने चल रहा था।कौडिन्य ऋषि गंगा स्नान करके अपने आश्रम की तरफ आ रहे थे। जब अपने आश्रम के पास पहुंचे तो उन्होंने उसको देखा, उनके गीले कपड़े के छींटे उस वैश्य के बेटे पर पड़ गये, जिससे उसको सदबुद्धि मिल गई।इस तरह उसको सदबुद्धि मिलने से वह अपने दोनों हाथों को जोड़कर ऋषि कौडिन्य से कहने लगा।
हे ऋषिवर!मैंने अपने जीवन काल में बहुत सारे बुरे और गलत काम किये है। अतःआप उन पापों से मुक्त होने का बिना खर्च का सामान्य उपाय मुझे बताये।जिससे मैं उन बुरे पापों से मुक्त हो जावु।
ऋषिवर कौडिन्य-ने उसकी दयनीय दशा पर तरस आया। तब ऋषि कौडिन्य ने उससे का ध्यान से सुनना मैं तुम्हें एक उपाय बताता हूँ जिसमें किसी तरह का खर्चा नहीं है और सामान्यतय तुम उसको कर सकते हो। तब ऋषि ने कहा कि वैशाख महीना चल रहा है।वैशाख महीने की शुक्ला एकादशी का व्रत तुम करो, इस एकादशी को मोहिनी एकादशी कहते है और इस मोहिनी एकादशी के व्रत को करने से तुम्हारे सभी तरह के किये गए बुरे पापों और गलत कामों से मुक्ति मिल जाएगी।
तब उस वैश्य ने वैशाख शुक्ला एकादशी व्रत करने की विधि पूछी।तब ऋषिवर कौडिन्य ने पूरे विस्तार से उसको विधि,कथा और व्रत के महत्व को बताया। इस तरह ऋषिवर कौडिन्य के द्वारा व्रत बताये जाने पर वह बहुत ही प्रसन्न हुआ।ऋषिवर कौडिन्य के द्वारा बताई हुई विधि,कथा और महत्व को बल देते हुए उसने मोहिनी एकादशी का व्रत किया।
मोहिनी एकादशी के व्रत के असर से उसके सभी किये हुए बुरे पापों से उसको मुक्ति मिल गई और अपने शेष जीवन को जीने के बाद वह गरुड़ पर सवार होकर उसको विष्णुधाम में जगह मिल गई।
मोहिनी एकादशी व्रत से मोह-माया आदि सब नष्ट हो जाते है। इसलिए इस जगत् में इस व्रत से बड़ा कोई दूसरा व्रत नहीं है। इस व्रत की महानता और महत्व को पढ़ने अथवा सुनने से एक हजार गायो के दान देने के समान फल मिलता है।