चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की पापमोचनी एकादशी तिथि के व्रत की विधि, कथा और फायदे |
चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की पापमोचनी एकादशी तिथि के व्रत की विधि, कथा और फायदे(The method, story and benefits of fasting on the day of Papamochani Ekadashi of Krishna Paksha of Chaitra month):-यह व्रत चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को किया जाता है।इस एकादशी तिथि को व्रत करने से मनुष्य के सभी तरह के बुरे कर्म के बुरे नतीजे दूर होते है और किये गए पापों से आजादी मिलती है,इसलिए इस एकादशी को पापमोचनी एकादशी कहते है।
चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की पापमोचनी एकादशी तिथि के व्रत की विधि:-
◆पापमोचनी व्रत करने वालों को सुबह जल्दी उठना चाहिए।
◆व्रत करने वालों को अपनी दैनिक चर्या से निवृत्त होकर भगवान विष्णुजी का ध्यान करना चाहिए।
◆इस दिन भगवान विष्णुजी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
◆भगवान विष्णुजी को अर्ध्य अर्पण करना चाहिए।
◆भगवान विष्णु जी की षोडशोपचार पूजा करनी चाहिए।
षोडशोपचारैंः पूजा कर्म:-इस तरह भगवान विष्णु जी का षोडशोपचारैंः पूजा कर्म करना चाहिए
पादयो र्पाद्य समर्पयामि, हस्तयोः अर्ध्य समर्पयामि,
आचमनीयं समर्पयामि,पञ्चामृतं स्नानं समर्पयामि
शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि,वस्त्रं समर्पयामि,
यज्ञोपवीतं समर्पयामि,गन्धं समर्पयामि,
अक्षातन् समर्पयामि,अबीरं गुलालं च समर्पयामि,
पुष्पाणि समर्पयामि,दूर्वाड़्कुरान् समर्पयामि,
धूपं आघ्रापयामि, दीपं दर्शयामि, नैवेद्यं निवेदयामि, ऋतुफलं समर्पयामि,आचमनं समर्पयामि,
ताम्बूलं पूगीफलं दक्षिणांं च समर्पयामि।।
चैत्र कृष्ण पक्ष की पापमोचनी एकादशी तिथि के व्रत की पौराणिक कथा:-पुराने जमाने में चित्ररथ नामक एक बहुत ही मन को हरने वाला सुहावना जंगल था।चित्ररथ वन में देवों के राजा इंद्र गन्धर्व कन्याओं व देवताओं के सहित अपनी इच्छा के अनुसार विहार करते थे।
चित्ररथ वन में मेधावी नामक ऋषि भी तपस्या करते थे। ऋषि शैवोपासक तथा शिवद्रोहिणी अनंग दासी या अनुचरी थी।एक समय का प्रसंग है कि रतिनाह कामदेव ने मेधावी मुनि की तपस्या को भंग करने के लिए मंजुघोषा नामक अप्सरा को नाचने और गाने करने के लिए उनके सामने भेजा था।युवा अवस्था के ऋषि अप्सरा के हाव-भाव,नृत्य,गीत पर काम मोहित हो गए।
अपने कामक्रीड़ा के जाग्रत होने से मंजुघोषा को प्यार करने के लिए कहा की हे देवी मैं आपके रूप की सुंदरता को देखकर मोहित हो गया हूँ।इसलिए मैं आपके साथ कामक्रीड़ा करने के लिए उतावला हूँ, आपकी इच्छा हो तो आप और मैं कामक्रीड़ा करें।इस तरह के वाक्य को सुनकर मंजुघोषा की इच्छा पूरी हुई। इस तरह समय की गति के अनुसार दोनों कामक्रीड़ा की अग्नि को जलाते रहे।इस तरह रति क्रीड़ा करते हुए सत्तावन साल बीत गए। मंजुघोषा ने एक दिन अपनी जगह पर जाने की आज्ञा मांगी।आज्ञा मांगने पर मुनि के कानों पर चींटी रेंगने लगी तथा आत्मज्ञान हुआ।
फिर ऋषि मेधावी को अपने आत्मज्ञान का बोध होने से मन में आत्म ग्लानि हुई और अपने को पापमार्ग में पहुंचाने का एक मात्र कारण अप्सरा मंजुघोषा को मानकर मुनि ने गुस्से में आकर मंजुघोषा को शाप दिया कि तुम पिशाचनी हो जावो।
शाप को सुनकर मंजुघोषा वासु द्वारा प्रताड़ित कदली वृक्ष की तरह कांपते हुए मुक्ति का रास्ता पूछा। तब मुनि का गुस्सा शांत होने पर उपाय बताया कि चैत्र कृष्ण पक्ष की पापमोचनी एकादशी तिथि का व्रत करना शुरू करु तो तुम्हारी इस शाप से मुक्ति मिल जाएंगी।वह मुक्ति विधान बताकर मेधावी ऋषि पिता च्यवन के आश्रम में गये।
शाप की बात सुनकर च्यवन ऋषि ने पुत्र की घोर निंदा की तथा उन्हें भी पापमोचनी एकादशी का व्रत करने का आदेश दिया। इस एकादशी के व्रत के प्रभाव से मंजुघोषा ने पिशाचनी योनि से तथा मेधावी ऋषि ने पाप से मुक्ति प्राप्त की थी।
पापमोचनी एकादशी व्रत के फायदे:-चैत्र कृष्ण पक्ष की पापमोचनी एकादशी व्रत को जो मनुष्य विधि-विधान के साथ करता है,उन पर भगवान विष्णुजी अपनी कृपा दृष्टि करके अपना आशीर्वाद देते है।
◆मनुष्य के द्वारा किये गए पापों से मुक्त होने के लिए पापमोचनी एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के सभी तरह के पापों से मुक्ति हो जाती है और सदगति को प्राप्त करता है।
◆जो मनुष्य पापमोचनी एकादशी व्रत को करता है और कथा को सुनता है,उसके सभी पापकर्म दूर होकर उसे अच्छे नतीजे मिलते है।