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Wednesday, February 10, 2021

देवी-देवताओं के वाहन के गुण और समानताएं(Properties and Similarities of Vehicles of Gods and Goddesses)

Properties and Similarities of Vehicles of Gods and Goddesses




देवी-देवताओं के वाहन के गुण और समानताएं(Properties and Similarities of Vehicles of Gods and Goddesses):-पुराने जमाने के सिक्कों, बर्तनों और धातुओं पर किसी न किसी तरह की चित्रण मिलता है, उन पर किसी देव या देवी को किसी पशु-पक्षियों पर सवार करते हुए चित्रित किया है। 


जब हम अपने घरों और बाहरी जीवन में हिन्दू देवी-देवताओं की तस्वीरों को देखते है, तो हमें मालूम होता है, की सभी देवी-देवता अलग-अलग सवारी पर सवार है। सब देवी-देवताओं की सवारी के रूप में पशु-पक्षियों पर सवार है।इस तरह से पशु-पक्षियों को सवारी के रूप में देखते है।


हिंदुस्तान में देवी-देवता और उनकी सवारी के बारे में धर्म गर्न्थो में कहानियां मिलती है, हिंदुस्तान के हिन्दू धार्मिक और वैदिक गर्न्थो में बताया अनुसार यह है कि जब देवी-देवताओं को घूमने-फिरने के लिए सवारी की आवश्यकता पड़ी होगी तो उन्होंने अपने मिजाज के समान पशु-पक्षियों को अपना सवारी बनाई होगी। हिन्दू देवी-देवताओं ने अपने मिजाज, व्यवहार और अपने प्रतिरूप के स्वरूप को उन पशु-पक्षियों पर प्रयुक्त किया होगा और उन सबके मिजाज,व्यवहार और स्वरूप को अपने ऊपर प्रयुक्त किया होगा उसके बाद ही अपनी सवारी के रूप में ग्रहण किया होगा। उन पक्षियों और पशुओं के गुणों से सन्देश जगत् को दिया। इस तरह  से देखे तो जो गुण-स्वभाव देवी-देवताओं में होता है, वहीं गुण-स्वभाव लगभग उनके सवारी में भी होता है।



पुराने समय में जानवर ही मनुष्य सवारी के रूप में होता था। अतः जिसने भी देवी-देवताओं के लिए वाहन की मन की उपज की होगी,उसने देवी-देवताओं और जानवरों के गुणों-आचरण का तुलनात्मक अध्ययन किया होगा।



देवी बहुचरा माताजी के गुण व स्वभाव:-देवी बहुचरा माता जी में तेजस्वी स्वरूप,अपने शत्रुओं का संहार करने वाली, जाग्रत रहने और अपने काम को अंजाम तक पहुचाने वाली होती है।


देवी बहुचरा माता जी की सवारी ताम्रचूड़ के गुण और समानताएं:-ताम्रचूड़ प्रातःकाल के समय सभी को अपनी बांग से उठाने का काम करता है,सूर्य उदय से पूर्व ताम्रचूड़ बांग देना शुरू कर देता है। इस तरह ताम्रचूड़ तेजस्वी होकर अपना असर डालते हुए अपना वर्चस्व को बताता है। जब दुश्मन के द्वारा हमला करने पर अपने पूरे जोर से डटकर मुकाबला करता है।


ताम्रचूड़ से शिक्षा:-मनुष्य को समय के अनुसार चलते हुए अपने कामों को पूरा करना चाहिए। मनुष्य को नियमित रूप से अपने काम को करते रहना चाहिए उसे कल पर नहीं टालना चाहिए।मनुष्य को अपने दुश्मनों कम नहीं आंकना चाहिए। छोटी-छोटी चीजों का भी महत्व है। क्योंकि इस जगत् कि कोई भी वस्तु बेकार नहीं है, इसलिए सबको उसका महत्व जानकर उस छोटी चीज को वरीयता देंनी चाहिए। मनुष्य को अपने स्वार्थ को छोड़कर दूसरों के बारे में भी सोचना चाहिए।


देवी माता मेलडीजी के स्वभाव:-मेलडी माता जी सब तरह के बुरे कामों और बुरी ताकतों को समाप्त करती है और कामवासना, गुस्से, आकर्षण, नशा, लालच आदि को अपने मैल के रूप नष्ट करनी वाली होती है।



देवी माता मेलडी जी की सवारी छाग के गुण और समानताएं:-मेलडी माता जी को छाग के रूप में सवारी मिली है, जो कि बकरे को छेड़ने पर अपने सींगों से अगले वाले प्रहार करता है, जितना मिले उसमें सन्तुष्ट रहते हुए, जो भी मिले उसे खाकर अपने वंश की बढोतरी करता है। छाग अपनी कामवासना पर काबू रखने वाला होता है।


छाग की सीख:-मनुष्य को छाग से सीख मिलती है कि अपने जीवन में जो मिले उसमें सन्तुष्ट रहना चाहिए, जिससे जीवन में परेशानी नहीं आवे और अपनी कामवासना का ध्यान भी रखना चाहिए। मनुष्य को ज्यादा गुस्सा भी नहीं करना चाहिए सोच विचार कर ही फैसला लेना चाहिए। अपने मोह में ज्यादा फंसे भी नहीं रहने पर फायदा होगा।



देवी दशा माताजी के स्वभाव:-देवी दशा माता अपने गुणों के अनुसार बुरे लोगों के बुरे कर्मो के लिए दण्डित करती है और निम्न समझे जाने वालों की पालन हार देवी के रूप में, अत्याचार करने वालों से रक्षा करती है।


देवी दशा माता जी की उष्ट्र सवारी के गुण और समानताएं:-देवी दशा माताजी को सवारी के रूप में उष्ट्र मिला है। उष्ट्र को काबू करना कठिन होता है, एक बार उग्र रूप धारण करने पर किसी की नहीं मानने वाला होता है और अपनी लंबी ग्रीवा से और लंबी देह से नियमित रूप से मेहनत के लिए तैयार रहने वाला बिना जल के लंबे समय तक विकट परिस्थितियों में अपना जीवन यापन करता है।


उष्ट्र से शिक्षा:-उष्ट्र के मिजाज से मनुष्य को कठिन परिस्थितियों का सामना करते रहना चाहिए और हार नहीं माननी चाहिए और किसी के बहकावे में नहीं आकर अपने विवेक से अपनी रक्षा करनी चाहिए। लम्बे समय तक समय के अनुसार अपने को ढालना चाहिए जिससे आगे परेशानी का सामना कर सके।



देवी लक्ष्मी जी का स्वभाव:-देवी लक्ष्मी जी के बारे में माना जाता है कि छल-कपट व तीक्ष्ण बुद्धि से प्राप्त और मूर्खता से समाप्त होती है।


देवी लक्ष्मी जी की सवारी उलूक के गुण और समानताएं:-देवी लक्ष्मी जी का वाहन उल्लू होता है,जो कि धूर्त, कपटी और मूर्ख भी होता है। हमेशा क्रियाशील और अपनी लाग से अपने काम को करने वाला होता है

इस तरह देवी लक्ष्मी जी और उल्लू के गुण मेल खा गये और वाहन के रूप में उल्लू देवी लक्ष्मी जी को प्राप्त हो गया। 



उलूक से सन्देश:-उलूक से सन्देश मिलता है कि मनुष्य को अपने पुरुषार्थ को लगन से निरन्तर करते रहने पर कामयाबी मिलती है।इसी तरह जो निरन्तर काम को अपनी मेहनत से करते है उनके यहां लक्ष्मी जी हमेशा के लिए रहती है।


भगवान गणपति जी का स्वभाव:-भगवान गणपति बुद्धि और पेटभटू है, अपनी चालाकी से अपना मन्तव्य को पूरा करते है। शरीर से बड़ा होने के साथ बुद्धि होनी चाहिए जिससे अपने काम, क्रोध, मोह और लोभ को दबा कर रखने वाले होते है। हर तरह की बाधाओं को अपनी चतुराई से हल करने का गुण होता है।



गणपति जी की सवारी मूषक के गुण और समानताएं:-भगवान गणपति जी का वाहन मूषक होता है कि उसको बिना ज्ञान के ही किसी भी तरह की चीजों को काटकर टुकड़े-टुकड़े करने का होता है,कोई भी चीजों इकट्ठा करने की आदत होती है। जिससे कोई भी तरह से काम में बाधा पहुंचाने की होता है और बाधाओं को पार करने की क्षमता होती है। चूहे बड़ी-बड़ी बाधाओं को पार कर अपने मतलब की चीजों तक पहुंच जाते है। इस तरह कृतन मिजाज से मूषक को गणपति जी की सवारी का अवसर मिला है, जो ज्ञान देता है कि छोटी चीज भी अपने ज्ञान से बड़े को हरा सकती है। इस तरह छोटा समझा जानेे वाला मूषक को गणपति जी के नीचे दबा हुआ है।


गणपति जी को बाधा को समाप्त करने माना जाता है। इस तरह विघ्न विनाशक को बहादुर मूषक वाहन के रूप में मिला है। इस तरह सबको अपने विवेक का उपयोग करते हुए बिना मतलब की किसी चीजो को महत्व नहीं देना चाहिए और किसी को भी तुच्छ नहीं समझना चाहिए।


देवी सरस्वती जी का स्वभाव:-देवी सरस्वती जी ज्ञान और बुद्धि की देवी है। बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती में जानने की इच्छा,शांत रहने वाली, न्याय प्रिय, धीरज और चतुराई, झुकने का भाव और प्रेम की भावना आदि गुण होते है।


देवी सरस्वती जी की सवारी  कलकंठ के गुण और समानताएं:-सफेद कलकंठ को देवी सरस्वती जी को सवारी के रूप में प्राप्ति हुई है, जो कि कलकंठ स्वभाव से बहुुत अक्लमंद, धीर, गम्भीर, विनम्र, गुणों-अवगुणों को जानने वाला, चतुर, प्यार, एकता, जानने की सोच रखने वाला और जीवन भर जिसका हाथ पकड़ता है उसका साथ देने वाला होता है।



कलकंठ से शिक्षा:-मिलती है कि अपनी धीरज के साथ अपनी अक्ल का भी उपयोग करते हुए बुरे और अच्छे लोगों की पहचान करते हुए जीवन भर उनका साथ देते हुए एक तरह की सोच रखनी चाहिए। बुरे लोगों के दोषों को ग्रहण नहीं करना चाहिए। अपनी चतुराई से अपना काम को अपनी समझदारी व प्यार करना चाहिए।



देवता लक्ष्मीपति विष्णु जी का स्वभाव:-देवता लक्ष्मीपति विष्णु जी ने पूरे जगत् को धारण करते हुए पूरे जगत् का पालन करते है,जो कि प्रेम का भाव रखते हुए उद्धार करने वाले होते है और सबके प्रति समान भाव रखते है।


देवता लक्ष्मीपति विष्णु जी की सवारी विषमुख के गुण और समानताएं:-सरीसृपों में शेषनाग और पक्षियों में गरुड़ को अति विशिष्ट माना गया है। इसी प्रकार देवताओं में लक्ष्मीपति विष्णु भी विशिष्ट माने गये हैं। इनकी विशिष्टता का ध्यान रखते हुए उन्हें शेषनाग और पक्षीराज गरुड़ वाहन के तौर पर प्रदान किये गये।

विषमुख या पक्षीराज को सवारी के रूप में लक्ष्मी पति विष्णुजी को मिला। विषमुख अपने दूर की दृष्टि से जानने वाले होते है जो कि चारो तरफ अपनी दृष्टि को फैलाये हुए है और हमेशा सचेत रहने वाले होते है। जहर को नष्ट करने वाले होते है।



विषमुख से सन्देश:-मिलता है कि आगे की सोच रखनी चाहिए जिससे अपना आगे आने वाली बाधाओं का पहले से समाधान कर सके। जिससे हमेशा सचेत होकर अपना काम कर सके।


भगवान गणेश जी के भाई कार्तिकेयजी का स्वभाव:-भगवान गणेश जी के भाई कार्तिकेय जी घमंडी थे तथा मन से चंचल स्वभाव के थे।



भगवान गणेश जी के भाई कार्तिकेय जी की सवारी कलापी के गुण और समानताएं:-भगवान कार्तिकेय जी को सवारी के रूप कलापी पक्षी मिला है जो कि अपने सुंदर परों पर अभिमान करता है। कलापी चंचलता से परिपूर्ण होता है। यह घमंडी पक्षी घमंडी देवता कार्तिकेय को भेंट कर दिया गया।



कलापी पक्षी से सन्देश:-मिलता है कि अपने पर ज्यादा गर्व नहीं करना चाहिए और अपने चंचल मन को एक जगह पर स्थिर रखना चाहिए।


देवी काली, महिषासुर मर्दिनी जी का स्वभाव:-काली, महिषासुर मर्दिनी जी आदि तमाम नामों से जानी जाने वाली दुर्गा में भी यही विशिष्टताएं है। इसलिए शेर उनका वाहन है। करेला और नीम चढ़ा कहावत यहां बहूत सही बैठती है।


देवी काली,महिषासुर मर्दिनी जी के वाहन वनराज के गुण और समानताएं:-वनराज साहसी और जुझारू होता है। जब वह बोखलाता है तो तीव्र गर्जन करता है। वनराज से हर कोई घबराता हैं।

देवी काली, महिषासुर मर्दिनी को सवारी के रूप में वनराज मिला था जो कि बिना किसी से डरने वाला और साहसी होता है और अपनी ताकत को बिना मतलब के खर्च नहीं करते हुए अपने मकसद को अंजाम देता है। समूह में रहकर राज करने वाला होता है सबको अपने साथ जोड़ने की भावना रखता है।


वनराज के द्वारा सन्देश:-मिलता है की अपनी ताकत को बचाकर समय आने पर उसका उपयोग करना चाहिए जिससे काम में सफलता मिले। बिना किसी से डरे और अपना वर्चस्व बनाकर रखना चाहिए।



देवराज इंद्र जी का स्वभाव:-देवताओं के राजा इंद्र थे। शरीर के हिसाब से हाथी सब पर भारी पड़ता है। शायद इसलिए देवराज इंद्र जी का वाहन हाथी है। देवराज इंद्र में अंहकार कूट-कूटकर भरा हुआ है अपनी पसंद को पूरा करने के लिए अगले को नष्ट-भष्ट कर देते है और गुस्से पर कोई नियंत्रण नहीं होता है।


देवराज इंद्र जी के वाहन गज के गुण और समानताएं:-देवराज इंद्र को सवारी के रूप में सफेद रंग का ऐरावत गज मिला है जो कि शरीर से बड़ा होने के साथ स्वभाव से शांत होता है, अपने मन के मुताबिक वस्तु के नहीं मिलने पर अपने गुस्से तहस-नहस करने वाले होते है। इनमे बहुत अधिक बल होता है इनके दांत चार और सूंड पांच होती है। इस तरह गज ऐरावत से ज्ञान मिलता की अपने बल का बिना मतलब उपयोग नहीं करना और अपने गुस्से पर नियंत्रण रखना चाहिए।


देवी मंदाकनी जी का स्वभाव:-मंदाकनी वर्षा में बेकाबू होकर बस्तियों को मटियामेट कर अपने मे समा लेती है। यही संहारक गुण में घड़ियाल भी हैं। इसी कारण गंगा का वाहन घड़ियाल है।


देवी मंदाकनी का स्वभाव है कि जो भी उसमें डाला जाता है और जो भी आकर उनमें मिलता है उनको बिना किसी हीन और जलन से अपने मे समावेश कर लेती है और उनको अपने तरह बनाने का प्रयाश करती है। बुरे और अच्छी प्रवृत्ति दोनों को समान भाव देती है।


देवी मंदाकनी जी के वाहन घड़ियाल के गुण और समानताएं:-देवी मंदाकनी को वाहन के रूप में घड़ियाल मिला है जो सभी तरह के पानी मे रहने वाले जीव-जन्तुओं को खाकर पानी को स्वच्छ रखने का प्रयाश करता है। घड़ियाल एक चिन्ह के रुप में है जो जल में रहने वाले सब प्राणी परिस्थिक तन्त्र के लिए जरूरी है और जल के प्राणी की सुरक्षा करनी चाहिए।



घड़ियाल से सीख:-इस तरह देवी मंदाकनी के वाहन घड़ियाल से शिक्षा मिलती है कि जब को समान भाव रखना चाहिए। जल में रहने वाले जीवों की रक्षा कर परिस्थितिक तन्त्र के बैलेंस को बनाये रखना होता है।


 

चेचक की देवी शीतला माता और कालरात्री जी का स्वभाव:-गधे को कोई भी पसन्द नहीं करता। इसी प्रकार संक्रामक रोग 'चेचक'की देवी शीतला को किसी ने पसन्द नहीं किया। कहा तो यह जाता है कि कोई पशु-पक्षी जब शीतला का वाहन बनने को राजी न हुआ तो गधा शीतला माता को दे दिया।



चेचक की देवी शीतला माता और  कालरात्री जी के वाहन गदर्भ के गुण और समानताएं:-गदर्भ अपने काम में निरन्तर लगा रहने वाला, जो भी मिले उसी में सन्तुष्ट रहने वाला और किसी की परवाह नहीं करने वाले होते है।


भगवान दत्तात्रेय और भैरवजी का स्वभाव:-भगवान दत्तात्रेय और कुत्ते में न जाने क्या समानता थी कि कुत्ता उनका वाहन बना।

भगवान दत्तात्रेय में सहनशीलता, वेराग्यता, मोह का त्याग, आत्मा एक रूप अनेक,अपने को सब जगह पर स्थिर करना, लापरवाह न होना, परिस्थितियों में समान भाव रखना हार न मानना, झूठे, औरतों के मोह में नहीं पड़ना, निडर और जाग्रत अवस्था में रहना।


भगवान दत्तात्रेय और भैरवजी की सवारी श्वान के गुण और समानताएं:-भगवान दत्तात्रेय को श्वान के रूप में सवारी मिली जो कि बहादुर, साहसी, उत्साही, उमंग से भरा रहने वाला, परिश्रमी और हमेशा सचेत रहने वाला होता है।

इस तरह श्वान से ज्ञान की प्राप्ति होती है कि हमेशा सचेत रहते हुए अपनी बहादुरी से सामना करना परिस्थिति कैसी भी हो लेकिन मेहनत करते रहना चाहिए।


शनिदेवजी का स्वभाव:-भगवान शनिदेव महाराज धीरजवान, आगे की नजर रखने वाले, सचेत रहने वाले, अपनी परछाई पर भी भरोसा नहीं करने वाले और अक्लमंद होते हुए सबके साथ न्याय करने वाले होते है।



शनिदेवजी की सवारी काक के गुण और समानताएं:-शनिदेवजी महाराज को सवारी के रूप में काक मिला था, क्योंकि काक और शनिदेवजी क मिजाज में समानताएं मिलती है। काक अपने ऊपर किसी तरह की मुश्किल घड़ी में अपना आपा नहीं खोता है और उस मुश्किल घड़ी को अपने धीरज से समाधान करता है।काक हमेशा चौकना रहता है और दूसरों पर ज्यादा भरोसा भी नहीं करने वाला होता है।

काक का मिजाज होता है कि आगे की विचार करके रखने की होती है। काक अपनी अक्ल से अपना काम करवा लेते है।


मनुष्य को काक से शिक्षा:-मनुष्य को अपने धीरज से काम में लगे रहने पर सफलता मिलती है।मनुष्य को सचेत रहते हुए अपनी छाया पर अति भरोसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि अति भरोसा से धोखा मिलता है। मनुष्य को समय में मिलने वाले दुःख की घड़ी में अपनी हिम्मत को नहीं हारते हुए आगे की विचार करते हुए आगे बढ़ते रहना चाहिए और अपनी काबलियत से लक्ष्य की प्राप्त करना चाहिए।



कामदेव का स्वभाव:-देव कामदेव जी अपने काम बाणों से अपनी ओर से काम भावना देने वाले होते है। जिससे एक दूसरे में प्रेम बना रहे और प्रेम से सबको अपनी तरफ आकर्षित कर सकते है। दूसरों के बहकावे में आनेवाले होते है, वें आगे-पीछे की नहीं सोचते है और अपना अहित भी करवा लेते है।


कामदेव जी की शुक की सवारी के गुण और समानताएं:-कामदेव जी को सवारी के रूप में तोता मिला है, जो कि अपनी बोली से सबको मोहित कर देता है, तोते को जैसा सिखाते है, वैसा ही वह आचरण करता है। तोते की मीठी बोली से सब उसकी तरफ आकर्षित होते है।


शुक से सीख:-शुक से मनुष्य को सीख लेनी चाहिए कि अपनी बोली में प्रेम और मिठास रखने से सब अपनी तरफ खिंचे चले आते है, इसलिए मनुष्य को अपनी बोली का ध्यान रखना चाहिए और सबके साथ प्यार से अपने गुणों से दूसरों को अपनी तरफ मोहित करना चाहिए। दूसरों के बहकावे में नहीं आना चाहिए।


 

कामदेव जी की पत्नी रति का स्वभाव:-देवी रति सुंदर अप्सरा के रूप में कामदेव जी पत्नी के रूप में मिली है, जो कि अपने प्रेम भाव से कामदेव जी को अपने मोह में बांधे रखती है। इस तरह प्यार और आकर्षण का मिजाज रति देवी होता है।


कामदेवजी की पत्नी रति की पारावतकी सवारी के गुण और समानताएं:-कामदेव जी की पत्नी को सवारी के रूप में पारावत मिला है। पारावत छोटा होने के बाद भी लंबी उड़ान भरकर दूर देशों की यात्रा करता है। पारावत प्रेम और शांति के दूत में सन्देश पहुंचाता है।


पारावत से सीख:-मनुष्य को पाराावत की तरह लंबी सोच रखते हुए अपने चारों और प्यार की भावना को बढ़ाना चाहिए जिससे चारों तरफ मनुष्य की तारीफ हो सके और शांति बनी रहे। इसलिए मनुष्य को प्रेम के द्वारा सभी तरफ अपना असर छोड़ते हुए शांति करनी चाहिए।


मनसा देवी या कामाक्ष्य देवी की सवारी विषधर के गुण और समानताएं:-मनसा देवी और कामाक्ष्य देवी को सवारी के रूप में विषधर मिला है,जिसका मिजाज रेंगते हुए चलना होता है और अपने को छेड़ने पर प्रतिशोध लेना होता है। बुरे के साथ बुरा बनना होता है।

विषधर से सीख:-विषधर से मनुष्य को सीख मिलती है,की ज्यादा सीधा रहना भी ठीक नहीं होता है, समय को देखकर अपने में बदलाव भी करना चाहिए। बुरे मनुष्य के साथ जब तक बुरा नहीं करेंगे तब तक उनको अक्ल नहीं आती है।



यमराज जी का स्वभाव:-शनि भगवान के भाई को मृत्यु लोक का राजा के पद से सम्मानित किया गया, उनका रंग एकदम काला और दिखने में बहुत ही भयानक होते है, इनको जो काम मिला है वह है कि जब यह अपने पर आ जाते है तो किसी की भी परवाह नहीं करते है। दूसरों को किसी भी तरह से तहस-नहस करके ही छोड़ते है।



यमराज जी की सवारी महेश के गुण और समानताएं:-शनि भगवान के भाई यमराज को महेश के रूप में वाहन मिला है जो कि प्रवृत्ति में समूह में मिलजुल कर रहने वाले होते है और अपनी परेशानी को मिलकर ही मुकाबला करते है। जब महेश बिगड़ जाता है तो बिना किसी की परवाह किये अगले को तहस-नहस करके ही छोड़ता है। इस तरह से शिक्षा मिलते है कि जिस तरह महेश समूह में रहकर किसी भी बाधा का समाधान मिलकर करते है उसी तरह मनुष्य को अपने ऊपर आने वाली बाधा का मुकाबला मिलकर करना चाहिए।

महेश प्रायः बिगड़ जाए तो सब कुछ तहस-नहस करने पर उतारू हो जाता है। यही कुछ यमराज का हाल था तो भैंसा उनका वाहन बना।


भगवान भोलेनाथजी का स्वभाव:-भगवान भोलेनाथ स्वयं स्वभाव से ठंडे,दयाभाव रखने वाले और जल्दी दूसरों से खुश होने वाले होते है। लेकिन जब उनको गुस्सा आता है तो किसी की भी परवाह नहीं करते हुए अगले को तहस-नहस करके ही छोड़ते है।


भगवान भोलेनाथ की सवारी वृषभ के गुण और समानताएं:-भगवान भोलेनाथ को वाहन के रूप में वृषभ नन्दी नाम का मिला है जो भोलेनाथ की तरह ही ठंडे दिमाग का, किसी पर तरस रखने वाला और बिना मतलब के किसी को भी परेशान नहीं करने वाला होता है। जो कि ताकत और शौर्य का प्रतीक होता है। दूसरों के प्रति अपना सबकुछ न्यौछावर करने वाला चुपी सादे रहता है। जो सफेद रंग अच्छाई और बिना छल के भाव को दर्शाता है और अपने मजबूत देह और ताकत के रूप में होने पर भी किसी तरह की चाह से कोई मतलब नहीं होता है। जब ऐसे छेड़ा जाता है तब अपनी चुपी को तोड़कर अगले वाले पर हावी भी हो जाता है। इस तरह भोलेनाथ के सवारी से शिक्षा मिलती है कि अपने शरीर की ताकत का घमंड नहीं करना और  ताकत के साथ सचेत और चुपचाप रहते हुए अपने मेहनत से अपने काम को पूरे अंजाम पर पहुचाना होता है। 


भास्कर भगवानजी की सवारी सप्ताश्वरोही रथ के गुण और समानताएं:-भगवान भास्कर निरन्तर गर्मी को सहन करते हुए दूसरों उजाला देते है, उनमें धीरज, सहनशीलता और लगातार चलने की प्रवृत्ति होती है।

भगवान भास्कर को वाहन के रूप में सप्त अश्व का रथ मिला है।जो कि ताकत और ताजगी व उत्साह से परिपूर्ण माना जाता है।



अश्व से शिक्षा:-इस तरह भगवान भास्कर के सप्त अश्व रथ से शिक्षा मिलती है कि निरन्तर कोशिश करते रहे और अच्छे काम को करने से आखिर में कामयाबी मिलती है।


बजरंगली जी का स्वभाव:-बजरंगबली जी का स्वभाव है कि जो रास्ते में बाधा पहुचाने वाली दुष्ट शक्तियों को खत्म करने का होता है और सब तरह की मुश्किलों को हल करने का होता है।


बजरंगली जी को सवारी भूत-प्रेत की योनि की आत्माएं के मिजाज और समानताएं:-बजरंगबली जी को वाहन के रूप में भूत-प्रेत की योनि की आत्माएं मिली है, जिनका स्वभाव होता है कि दूसरी योनि के लोगों को डराने और उनके काम में मुश्किलें पैदा करने का होता है।

इस तरह शिक्षा मिलती है कि दुष्ट और कुसंगति के मनुष्य से हमेशा दूर रहना चाहिए और उनको अपने रास्ते से हटाना चाहिए जिससे मनुष्य के ऊपर चढ़ नहीं पावे।


यूनानी लोग मानते थे कि गरुड़ वीर और कायाकल्प करने में समर्थ है और सर्प चालाक तथा दुष्ट है। यही गुण यूनानी देवता 'जीअस' और उनकी पत्नी 'हेरा' में थे, सो उक्त दोनों जीअस और हेरा के वाहन है।