Breaking

Friday, February 12, 2021

चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की कामदा एकादशी व्रत की विधि,कथा,शिक्षा और फायदे(Method, story, education and benefits of Kamada Ekadashi fast of Shukla Paksha of Chaitra month)



चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की कामदा एकादशी व्रत  की विधि,कथा,शिक्षा और  फायदे(Method, story,education and benefits of Kamada Ekadashi fast of Shukla Paksha of Chaitra month):- चैत्र महीने की अमावस्या को हमारे भारतीय संवत की अंतिम तिथि होती है और इसके आगे की तिथि प्रतिपदा शुरू हो जाती है।भगवती दुर्गा जी के नवरात्रे से भारतीय नया संवत शुरू होता है।भगवती दुर्गा जी के नवरात्रों के बाद आने वाली चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को कामदा एकादशी कहते है।

कामदा का मतलब:-जिसके द्वारा सभी तरह की मन की इच्छाओं के पुरा होना होता है।


चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की कामदा एकादशी व्रत करने की विधि:-

◆कामदा एकादशी व्रत के दिन भगवान वासुदेवजी के पुत्र श्रीकृष्णजी का पूजन किया जाता है।

◆कामदा एकादशी व्रत के दिन असहाय और निर्धनों को दान देना बहुत जरूरी माना जाता है। 

◆कामदा एकादशी के व्रत के एक दिन पूर्व गेंहू और मूंग का एक बार जरूर करना चाहिए।

◆भगवान श्री कृष्ण जी को मन में स्मरण करना चाहिए।

◆कामदा एकादशी व्रत के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नानादि करके भगवान श्रीकृष्ण जी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए।

◆कामदा एकादशी के व्रत को करने वालों को पूरे दिन को भगवान के गुणों का बखान करना चाहिए।

◆व्रत के रात्रि के समय भगवान जी की प्रतिमा के पास बैठकर जागरण करना चाहिए।

◆व्रत को अगले दिन समाप्त करना चाहिए।

◆व्रत करने वालों को व्रत में नमक का उपयोग नहीं करना चाहिए।



पुलकित मन से भगवान श्रीकृष्ण जी को नमस्कार करने के बाद धर्मराज युधिष्ठिर जी ने भगवान श्री कृष्णजी से अरदास की- हे महाराज! अब मेरी तमन्ना है कि चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के नाम,महात्म्य,पूजा-विधान आदि के बारे में विस्तारपूर्वक जानने की है।

तब भगवान श्रीकृष्ण जी ने कहा कि-हे राजन!यह प्रश्न एक बार महाराज दिलीप ने महर्षि वशिष्ठ जी ने जो कथा महाराज दिलीप को सुनाई थी,वही मैं आपको सुनाता हूँ।


चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की कामदा एकादशी व्रत की पुराणिक कथा:-बहुत समय पहले की बात है,की रतनपुर नामक नगर था।रत्नपुर नामक नगर अनेक तरह की सुख-सुविधाओं एवं भोग-विलास के साधनों एवं अनेक सम्पदाओं से युक्त था। इस रत्नपुर नगर पर पुण्डरीक नाम के एक महाराज अपना राज्य चलाते थे।रत्नपुर नगर में अनेक अप्सराएं,किन्नर तथा गन्धर्व वासी रहते थे। उन वासियों में से ललित और ललिता नामक दम्पति भी रहते थे। ललित और ललिता एक दूसरों से बहुत ज्यादा प्यार करते थे।अपने प्यार भरी जिंदगी में हंसी-खुशी में मग्न रहा करते थे।एक दूसरों से एक क्षण के लिए भी अलग नहीं हो सकते थे।

एक समय में राजा पुण्डरीक की राजसभा में दुसरे गन्धर्वों के साथ ललित गाना गा रहा था,जिस तरह हमेशा गाना गाता था।ललित गाना गाते-गाते अपनी प्राण प्रिया पत्नी ललिता की याद में खो जाता है और उसका ध्यान गाने में से चूक जाता है।इस ध्यान के कारण उसके गाने के स्वरूप की ताल और लय बिगड़ जाती है। जब इस तरह गाने की ताल और लय के बिगड़ने को र्कोटक या करकट नामक नाग ललित की इस तरह गाने के लय और ताल के बिगड़ने के कारण जान जाता है।ललित गन्धर्व के मन की भावना को जानकर करकट नाग इस तरह की गलती को राजा को कह देता है।तब राजा पुण्डरीक करकट नाग के द्वारा बताए अनुसार जानकारी से राजा पुण्डरीक को बहुत गुस्सा आता है और राजा पुण्डरीक गुस्से से ललित गन्धर्व को कहते है कि तुम अपने राजा के सामने गायन में ध्यान नहीं देकर अपनी पत्नी की यादों में मस्त होकर तुमने अपने गाने की ताल और लय को बिगाड़ दिया है और मेरा एवं संगीत कला का निरादर किया है।इसलिए मैं तुम्हें शाप देता हूँ कि तुम अभी इसी समय कच्चा मांस और मनुष्यों को खाने वाले दैत्य बन जावो और जो तुमने काम किया है उसका नतीजा दैत्य बनकर भोगों।नाग राजा पुण्डरीक के शाप से ललित तत्काल ही विकराल रूप का डरावना दैत्य बन गया।उसका मुख,बहुत ही डरावना,आंखे डरावनी,रवि और सोम की तरह प्रदीप्त तथा मुख से आग निकलने लगी।सिर के बाल पहाड़ पर ऊबे वृक्षों के समान और भुजाएं बहुत ही लंबी हो गई।इस तरह उसकी देह आठ योजन लंबी हो गई। दैत्य बनकर अनेक तरह के दुःखों को भोगता मारा-मारा जंगल में भटकने लगा।उसके बाद इस तरह राजा के शाप को जानकर ललित की पत्नी ललिता बहुत दुःखी होकर उसके पीछे-पीछे भटकने लगी।

वह हमेशा अपने पति को शाप से आजाद करवाने के उपाय के बारे में मन में सोचती थी।एक दिन वह अपने पति के पीछे-पीछे चलते हुए विंध्याचल पहाड़ पर पँहुची। उसने देखा कि एक ऋषि श्रृंगी का आश्रम बना हुआ है। आश्रम के पास पहुंचकर उसने ऋषि श्रृंगी को आदर भाव से प्रणाम किया।तब ऋषि श्रृंगी ने पूछा कि-हे देवी! तुम कौन हो और आप यहां पर किसलिए आयी हो? तब ललिता बोली कि -मुनिवर जी!मेरा नाम ललिता है,मैं एक गन्धर्व हूँ।तब उसने राजा पुण्डरीक के दिये गए शाप से अपने पति ललित गन्धर्व से भयानक और विशालकाय दैत्य बनने का पूरा वृत्तांत बताया।इसका मुझे बहुत ही दुःख है। मेरे पति ललित को फिर से गन्धर्व बनने का उपाय बताए।

ऋषि श्रृंगी बोले हे गन्धर्व कन्या!अब चैत्र शुक्ला एकादशी आने वाली है,जिसका नाम कामदा एकादशी है।

कामदा एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के सब तरह के काम अच्छे होते है।यदि तुम कामदा एकादशी का व्रत करके उसके पुण्य को अपने पति को देवो तो तुम्हारा पति राजा पुण्डरीक के शाप से आजाद हो सकता है और दैत्य योनि से मुक्त होकर फिर से गन्धर्व मनुष्य बन जायेगा।

चैत्र शुक्ल एकादशी(कामदा एकादशी) के आने पर ललित ने विधि-विधान से व्रत को किया और द्वादशी तिथि की ब्राह्मणों के सामने अपने व्रत के फल को अपने पति को देती हुए भगवान से अरदास करने लगी-है प्रभो!मैंने जो व्रत यह व्रत किया है उस व्रत का पूरा फल मेरे पति ललित को मिल जावे और वे इस व्रत के फल के स्वरूप फिर दैत्य रूप को छोड़कर गन्धर्व मनुष्य बन जावे। इस तरह व्रत के प्रभाव से ललित अनेक तरह के सुंदर कपड़ो और आभूषणों को पहने अपने पुराने गन्धर्व रूप को प्राप्त करे।इस तरह व्रत के प्रभाव से ठीक होकर ललित और ललिता सुख पूर्वक अपना जीवन को जीने लगे।इसके बाद वे दोनों एक दिव्य विमान में बैठकर स्वर्ग लोक को चले गए।

वशिष्ट मुनि ने आगे कहा-कि हे राजन!इस व्रत को विधि पूर्वक करने से समस्त पापों का अंत हो जाता है तथा दैत्य आदि योनि से मुक्ति मिल जाती है। जगत् में इसके बराबर कोई व्रत नहीं है।इसकी कथा पढ़ने या सुनने मात्र से ही वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।



चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की कामदा एकादशी व्रत से शिक्षा:-कामदा एकादशी व्रत की कथा के अनुसार शिक्षा मिलती है,किसी को भी कभी-कभी छोटी-छोटी भूलों की बड़ी सजा मिलती है। ऐसे में मनुष्य को धैर्य से काम लेना चाहिए या साधु की संगत में रहकर विजय पायी जा सकती है।



चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की कामदा एकादशी व्रत के फायदे:-मनुष्य के सभी तरह के पापों से मुक्ति मिलती है।

◆व्रत करने से मनुष्य की सभी कामनाएं पूरी होती है।

◆व्रत करने से सभी तरह के कामों में सफलता मिलना होता है।

◆मनुष्य को अच्छे लोगों का साथ करना चाहिए।