Breaking

Tuesday, February 16, 2021

अचला(अपरा) एकादशी व्रत की विधि, कथा, महत्व और फायदे (Method, story, importance and benefits of Achala (Apara) Ekadashi fast)


अचला (अपरा) एकादशी व्रत की विधि, कथा, महत्व और फायदे(Method, story, importance and benefits of Achala (Apara) Ekadashi fast):-ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी अचला एकादशी कहलाती हैं। इस एकादशी के व्रत करने से ब्रह्म या ब्राह्मण की हत्या व भटकती हुई आत्मा की योनि से छुटकारा मिल जाता है तथा ख्याति, भलाई एवं रुपयों-पैसों-धान्य की बढ़ोतरी होती है।



Method, story, importance and benefits of Achala (Apara) Ekadashi fast


अपरा एकादशी या अचला एकादशी के दिन व्रत करनी की विधि:-निम्नलिखित हैं।



◆व्रत करने वालों को सुबह जल्दी उठकर स्नानादि से निवृत होकर साफ-सुथरे कपड़े पहनना चाहिए।



◆व्रत करने वालों को विशेष कर पीले कपड़े पहनना चाहिए, क्योंकि यह व्रत भगवान विष्णुजी को खुश करने के लिए होता है, इसलिए उनको पिला रंग अतिप्रिय होने के कारण पीले रंग के कपड़े पहनना चाहिए।



◆भगवान की प्रतिमा या चित्र को अपने पूजाघर में किसी बाजोट पर स्थापित करना चाहिए।



◆उस बाजोट पर पीले रंग का कपड़ा बिछाना चाहिए।



◆पीले रंग के चावलों पर प्रतिमा या चित्र को स्थापित करना चाहिए।



◆भगवान विष्णुजी को प्रिय फल केला आदि और भोग के रूप कोई भी पीले रंग की मिठाई लेनी चाहिए।



◆भगवान विष्णुजी को अर्ध्य देना चाहिए।



◆उसके बाद भगवान विष्णुजी को षोडशोपचार से पूजा-आराधना करनी चाहिए।



षोडशोपचारैंः पूजा कर्म:-इस तरह भगवान विष्णु जी का षोडशोपचारैंः पूजा कर्म करना चाहिए-


बार-बार "ऊँ विष्णवे नमः" बोलते हुए पाद्य, हस्त, अर्ध्य, आचमन, पञ्चामृतं स्नान, शुद्ध स्नान, वस्त्र, यज्ञोपवीत, गन्ध, अक्षत, अबीरं-गुलालं, पुष्प, दूर्वा अर्पण करते समय समर्पयामि बोलते है। धूप के आघ्रापयामि, दीप दिखाते समय दर्शयामि, भोग के रूप में नैवेद्य के समय निवेदयामि, ऋतुफल, आचमन, ताम्बूल, पुंगीफल दक्षिणा को अर्पण करते समय समर्पयामि बोलना चाहिए। इस तरह से षोडशोपचार क्रम से पूजा करनी चाहिए।



पादयो र्पाद्य समर्पयामि, हस्तयोः अर्ध्य समर्पयामि,


आचमनीयं समर्पयामि, पञ्चामृतं स्नानं समर्पयामि


शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि, वस्त्रं समर्पयामि,


यज्ञोपवीतं समर्पयामि, गन्धं समर्पयामि,


अक्षातन् समर्पयामि, अबीरं गुलालं च समर्पयामि,


पुष्पाणि समर्पयामि, दूर्वाड़्कुरान् समर्पयामि,


धूपं आघ्रापयामि, दीपं दर्शयामि,


नैवेद्यं निवेदयामि, ऋतुफलं समर्पयामि,


आचमनं समर्पयामि,


ताम्बूलं पूगीफलं दक्षिणांं च समर्पयामि।।



◆इस दिन भगवान त्रिविक्रम की पूजा-आराधना की जाती है।



◆अपरा एकादशी के व्रत के दिन चन्दन, कपूर और पवित्र जल के रूप में गंगाजल को लेकर भगवान लक्ष्मीपति विष्णुजी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए।


इस दिन ककड़ी का आहार करना चाहिए।


◆अपरा एकादशी के व्रत करने से यश, भलाई और रुपयों-पैसों की बढ़ोतरी होती हैं।


◆इस व्रत करने से भूत-प्रेत जैसी निकृष्ट योनियों से आजादी मिल जाती है।



अपरा एकादशी या अचला एकादशी व्रत की पौराणिक कथा:-पुराने जमाने में एक नगर में एक महीध्वज नाम का एक राजा था। उसका एक छोटा भाई व्रजध्वज बड़ा ही क्रूर, अत्याचारी तथा अन्यायी था। वह अपनी प्रजाजनों को बहुत कष्ट और पीड़ा देता था और बिना कारण ही उनको दण्डित करता था। उसके इस तरह के अत्याचारों और अन्याय से सब प्रजा परेशान रहती थी और उससे सभी डरते थे। उसके सामने जाने से थर-थर कांपते थे, उसका मिजाज ऐसा था कि उसकी इच्छा के ही प्रजा को सताता था। इस तरह के व्यवहार से उनके बड़े भाई महीध्वज बहुत ही दुःखी रहते और चिंता करते थे। उसको बहुत समझाया जाता था, लेकिन वह समझने के लिए तैयार नहीं था। इस तरह समय बीतता गया।



एक दिन उसने सोचा कि क्यों न मैं इस नगर का राजा बन जाओ और इस नगर पर राज करू। फिर तो मुझे कोई समझाने वालों नहीं होगा और अपनी इच्छा के अनुसार जीवन जी सकता हूँ। इस तरह सोचते हुए उसने अपने बड़े भाई महीध्वज को मारने की सोची।उसे एक दिन मौका मिल गया।



उसने एक दिन अपने बड़े भाई राजा महिध्वज की हत्या कर दी किसी को कानो-कान खबर नहीं हुई कि राजा महीध्वज की हत्या हो गई। फिर उसने अपने भाई के मृत शरीर को जंगल में छाने-चुपके ले गया।उसने अपने बड़े भाई महीध्वज के मृत शरीर को पीपल के पेड़ के नीचे गाड़ दिया।



राजा की आत्मा पीपल के पेड़ के नीचे गाड़ने पर और उसकी उम्र पूरी नहीं होने के कारण उसकी आत्मा प्रेत योनि की बन गयी और उस पीपल के पेड़ पर प्रेत के रूप में रहने लगी और आने-जाने वालों को सताने लगी और उनको परेशान करती।



एक दिन धौम्य ऋषि वहां से निकले। उन्होंने तपोबल से प्रेत के उत्पात तथा उसके जीवन वृतांत को समझ लिया। ऋषि ने प्रेत को पीपल के वृक्ष से उतारकर उसे उपदेश दिया और प्रेत योनि से मुक्ति पाने के लिए "अपरा एकादशी" व्रत करने को कहा।



ऋषि धौम्य के द्वारा अपरा एकादशी के व्रत की विधि बताई।तब राजा महीध्वज जो प्रेत योनि में भटकर रहे थे। उनको ऋषि के द्वारा बताई गई अपरा एकादशी के व्रत को शुरु किया और पूरी विधि के साथ व्रत को किया। 



अपरा एकादशी व्रत के प्रभाव से राजा दिव्य शरीर धारण कर स्वर्गलोक में चले गए। राजा के सभी तरह के पापों से मुक्ति मिल गई और स्वर्ग में पूरे आनन्द के साथ मोक्ष को प्राप्त किया।


तब से अपरा एकादशी के व्रत का चलन बढ़ गया और आज भी चलन में है।




अपरा एकादशी (अचला एकादशी) का व्रत करने का महत्व और फायदे:-पुलकित मन से भगवान श्री कृष्णजी को नमस्कार करने के बाद धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान कृष्णजी से अरदास की-हे महाराज! मेरी कामना है, की ज्येष्ठ महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी के नाम, महात्म्य, पूजा-अर्चना की विधि-विधान इत्यादि के विषय में पूरा विवरण जानने की है।


सो आप कृपा करके मुझे ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी के बारे में बताए और पूरा विवरण मुझे सुनाइए।



श्री मुरारी भगवान कहने लगे-हे राजन! इस एकादशी को अचला या अपरा के नाम से जाना जाता है।



◆यह अपरा एकादशी मानव को बहुत ही ज्यादा रुपयों-पैसों और सभी तरह के ऐश्वर्य को देनी वाली है।



◆जो कोई मानव इस अपरा एकादशी के व्रत को करता है,उस मानव को इस जगत् में सभी तरफ उसका चारों ओर गुणगान होता है, उसे जश मिलता है और उसका चारों ओर बोलबाला रहता है।



◆अपरा एकादशी के व्रत करने से व्रती को ब्रह्महत्या के पाप से, भूत-पलित, प्रेत-पिचाश योनि से और दूसरों के बारे में कई गई आलोचना से आजादी मिलकर उसके सभी तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है।



◆अपरा एकादशी के व्रत से दूसरों की औरतों के साथ कामक्रीड़ा करने के पाप से मुक्ति मिलती है।



◆इस व्रत को करने से मानव के द्वारा किसी दूसरे मानव के विषय में झूठी गवाही देने के पाप से मुक्ति मिलती है।




◆मानव के द्वारा झूठ बोलने के दोष से आजादी मिलती है।



◆मानव के द्वारा अपनी मन की कल्पना से शास्त्र को बनाकर या उस कल्पना के बने हुए शास्त्रों को पढ़ने के दोष से स्वतंत्र हो जाता है।




◆मानव के द्वारा बिना ज्ञान के किसी बीमार मानव की बीमारी को झूठ-मुठ वैद्य बनकर इलाज करने के पाप से मुक्ति मिलती है।



◆मानव को बिना ज्ञान या जानकारी के अपने ज्योतिषी बनाकर दूसरे मानव के बारे में झूठी भविष्यवाणी करने के पापों से आजादी मिल जाती है।



◆जो क्षत्रिय होते हुए जब युद्ध के समय अपना मुंह छुपाते हुए छिप जाता है और युद्ध के समय युद्ध से भाग जाता है, इस तरह अपनी मातृभूमि की रक्षा को अपनी कायरता के डर के भागने के दोष से नरकगामी होते है, जब अपरा एकादशी का व्रत करने पर मातृभूमि के प्रति की गये दोष मुक्ति मिलकर उस मानव को स्वर्गलोक की जगह में रहने का मौका मिलता है और स्वर्गलोक के सब तरह के सुख को प्राप्त करते है।



◆जो मानव अपने शिक्षक से विद्यार्थी बनकर शिक्षा ग्रहण करते है, शिक्षा ग्रहण करने के बाद अपने शिक्षक की बुराई करते है, जिसके परिणाम स्वरूप गुरु की बुराई करने के दोष से उस मानव को नरकलोक में कष्टों को भोगना पड़ता है, लेकिन अपरा एकादशी के व्रत करने से उस मानव को अपने गुरु के प्रति की गई बुराई के पाप से आजादी मिल जाती है।



◆जो परिणाम पुष्कर में कार्तिक पूर्णिमा को स्नान करने से या गंगा किनारे पर पितरों को पिंडदान करने पर मिलता है, वही परिणाम अपरा एकादशी के व्रत करने से मिलता है।



◆मकर के मूर्य में प्रयागराज के स्नान से, शिवरात्रि के व्रत से, सिहं राशि के बृहस्पति में गोमती नदी के स्नान से, कुम्भ में केदारनाथ या बद्रिकाश्रम की यात्रा, सूर्यग्रहण में कुरुक्षेत्र के स्नान, सवर्ण अथवा गज-अश्व दान करने से अथवा नव-प्रसूता गाय के दान से जो फल मिलते है, वहीं फल अपरा एकादशी के व्रत करने पर प्राप्त होता है।



◆यह व्रत बुरे किये गये पापरूपी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी है।


◆यह व्रत पापरूपी ईंधन को जलाने के लिए आग, पापरूपी अंधकार के लिए भास्कर की तरह है।


◆अपरा एकादशी का व्रत तथा भगवान का पूजन करने से मानव सब पापों से छूटकर विष्णुधाम को प्राप्त करता है।



हे राजन! यह अपरा एकादशी के व्रत की कथा के महत्व को मैंने इस जगत् के मानवों के कल्याण के कहि है और बताई है। अपरा एकादशी व्रत के बारे में और कथा को जो पड़ता है और सुनता है, उस मानव के सभी तरह के पापों से मुक्ति हो जाती है, इसमें किसी तरह का कोई शक नहीं है।