बसंत पंचमी या माघ शुक्ल पंचमी की पौराणिक कथा(Legend of Basant Panchami or Magha Shukla Panchami):-बसंत पंचमी या माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के पर्व को मनाने का कारण,पर्व पर की जाने वाली साधना की विधि-विधान या विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती का पूजा महोत्सव को माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को बसन्त पंचमी के रूप में मनाते हैं। यह दिन ऋतुराज बसन्त के आगमन की सूचना देता है। भगवती सरस्वती जी बुद्धि, ज्ञान और वाणी की अधिष्ठात्री देवी है तथा सर्वदा शास्त्र ज्ञान को देने वाली है। भगवती शारदा का मूल स्थान शशाक सदन अर्थात् अमृतमय प्रकाश पुंज है।जहां से वे अपने उपाशकों के लिए निरन्तर पचाश अक्षरों के रूप में ज्ञान अमृत की धारा प्रवाहित करती है।
◆इस दिन भगवान विष्णुजी और माता सरस्वती जी का पूजन किया जाता है।
◆बसन्त पंचमी के दिन घरों में केसरिया चावल बनाये जाते है।
◆बसंत पंचमी के दिन पीले कपड़े पहनते है।
◆बसंत पंचमी के दिन बच्चे पतंग उड़ाते है।
◆यह त्यौहार स्कूलों में विशेष मनाया जाता हैं।
सरस्वती जी का जन्मोत्सव पर्व के रूप में:-प्रत्येक वर्ष माघ शुक्ल पंचमी यानी बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती जी की पूजा-अर्चना की जाती है। वेद और पुराणों में बताया गया है कि ज्ञान और वाणी की देवी मां सरस्वती इसी दिन प्रकट हुई थी। इसलिए इस तिथि को सरस्वती जन्मोत्सव भी कहा जाता है।
बसंत पंचमी है वागीश्वरी जयंती-जीभ सिर्फ रसास्वादन का माध्यम ही नहीं, बल्कि वाग्देवी का सिंहासन भी है। देवी भागवत के अनुसार वाणी की स्वामी सरस्वती देवी का आविर्भाव श्रीकृष्ण की जिहवा के अग्रभाग से हुआ था। परमेश्वर की जिहवा से प्रकट हुई सरस्वती कहलाई।अर्थात वेदिक काल की वाग्देवी कालांतर में सरस्वती के नाम से प्रसिद्ध हो गई।
गर्न्थो में माघ शुक्ला पंचमी(बसंत पंचमी)को वाग्देवी के प्रकट होने की तिथि माना गया है। इसी कारण बसंत पंचमी के दिन वागीश्वरी जयंती मनाई जाती है,जो सरस्वती-पूजा के नाम से प्रचलित है।
सर्वाधिक पुराने ग्रन्थ ऋग्वेद में सरस्वती के:- दो स्वरुपों का विवरण मिलता है-पहले रूप में वाग्देवी और दूसरे रूप में सरस्वती। इन्हें बुद्धि से संपन्न,प्रेरणादायिनी एवं प्रतिभा को तेज करने वाली शक्ति के रूप में बताया गया है।
ऋग्वेद संहिता के सूक्त संख्या८/१०० में :-वाग्देवी की महिमा का वर्णन किया गया है।ऋग्वेद संहिता के दशम मंडल का१२५वां सूक्त पुर्णतया वाणी को समर्पित है। इस सूक्त की आठ ऋचाओं के माध्यम से स्वयं वाक्शक्ति(वाग्देवी) अपनी सामर्थ्य,प्रभाव,सर्वव्यापकता और महत्ता का उदघोष करती है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के मतानुसार:-ब्रह्मवैवर्त पुराण के मतानुसार बसन्तपंचमी ज्ञान की देवी सरस्वती जी की पूजा-अर्चना का पर्व है।
'मत्स्य सूक्त'में:- विवरण मिलता है कि बसंत पंचमी रति और कामदेव जी पूजन-आराधना का भी दिन माना जाता है।कामदेव को 'वसंतसेन'भी कहा गया है।
अलग-अलग जगहों पर:-भारत देश के अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग रूप में जैसे-ब्रज में 'मदनोत्सव के रूप में,देवभूमि में 'माघ पंचमी" के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन अलग-अलग जगहों पर 'वसंतोत्सव'का भी आरम्भ होता है।
'श्री पंचमी' भी कहा जाता है श्री का मतलब 'संपन्न'और 'शोभा' दोनों है।पुराने जमाने में वेद की पढ़ाई का स्तर श्रावणी पूर्णिमा से आरम्भ होकर इसी तिथि को पूरा होता था।उत्तराखंड में बसंत पंचमी के दिन बच्चों के अक्षरारंभ,उनके कान के वेधन का संस्कार करने की रीत भी है।
बसंत पंचमी के दिन सरस्वती माता को खुश करने के लिए साधना विधि-विधान:-बसंत पंचमी के निम्नांकित रूप से पूजा करने से माता सरस्वती जी कृपा का प्रसाद मिलता है,जो इस तरह है-
◆बसंत पंचमी के दिन मनुष्य को प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नानादि से निवृत होकर पीले रंग के कपड़ो को पहनना चाहिए।
◆मनुष्य को अपने भवन के साफ कमरे में या पूजा की जगह पर अपने परिवार के सदस्यों के साथ पूर्व दिशा की ओर मुख करके कुश के बिछावन को बिछा कर उस बैठ जाना चाहिए।
◆फिर लकड़ी के साफ बाजोट पर पीले रंग का कपड़ा बिछाना चाहिए और उस पीले रंग के कपड़े पर माता सरस्वती जी की मूर्ति या प्रतिमा को स्थापित करना चाहिए।
◆कुंकुम से रंगे चावल की ढ़ैरी को थाली में रखकर उस थाली को बाजोट पर रखना चाहिए।
◆उसके बाद कुंकुम से रंगे चावल की ढ़ैरी पर प्राण-प्रतिष्ठित एवं पूर्ण चैतन्य युक्त 'सरस्वती यंत्र'को भी स्थापित करना चाहिए।
◆पञ्चामृतं से यंत्र को स्नान कराकर साफ एवं शुद्ध पानी से स्नान कराने के बाद साफ कपड़े से उस यंत्र को पोंछकर फिर उस कुंकुम से रंगे चावल की ढ़ैरी फिर से रख देना चाहिए।
◆केसर या कुंकुम से उस यंत्र को तिलक करना चाहिए और माता सरस्वती जी को भी तिलक करना चाहिए।
◆उसके बाद अष्टगन्ध से यंत्र का तिलक और माता सरस्वती जी के भी तिलक करना चाहिए।
◆सभी पूजा में बैठे हुए सदस्यों को भी तिलक करना चाहिए
◆धूप-दीपक और अगरबत्ती को यंत्र के पास में प्रज्वलित करके,माता सरस्वती जी को सफेद रंग के फूल को अर्पण करना चाहिए।
◆माता सरस्वती जी भोग के रूप में दूध से बनी मिठाई को अर्पण करके प्रसाद के रूप में लेना चाहिए।
◆मन को एकाग्रता से एक जगह पर स्थिर करते हुए माता सरस्वती जी का ध्यान करना चाहिए।
◆उसके बाद सरस्वती माला से इक्कीस"ऊँ ऐं सरस्वत्यैंं ऐं नमः"मन्त्र का जाप करना चाहिए।
◆मन्त्र के पूरे जाप होने के बाद में नेत्रों को बन्ध करके माता सरस्वती जी से पूरी तरह से बुद्धि, विवेक,याददाश्त शक्ति में बढ़ोतरी के लिए, बोली में तेजीपन के लिए,अपने मनमोहक व्यक्तित्व आदि के लिए अरदास करनी चाहिए।
◆अंत में भोग को अर्पण करने के बाद भोग की मिठाई को सभी सदस्यों को प्रसाद के रूप में देने के बाद खुद प्रसाद को ग्रहण करना चाहिए।
◆जो पूजा में बची हुई सामग्री को पीले रंग के कपड़े में बांधकर नदी, सरोवर आदि में प्रवाहित कर देना चाहिए।
◆सरस्वती यंत्र को अपने घर के पूजा स्थल की जगह पर रख देना चाहिए।
इस तरह से बसंत पंचमी के दिन आराधना करने से मनुष्य का भविष्य प्रगति की ओर बढ़ता है और बुद्धि आदि में बढ़ोतरी होती है।
माता सरस्वती जी की उत्पत्ति की पौराणिक(बसंत पंचमी) कथा:-भगवान विष्णुजी की आज्ञा से प्रजापति ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी।जब सृष्टि का निर्माण पूरा करने के बाद जब ब्रह्माजी ने जब अपनी बनायी सृष्टि को देखा और पृथ्वी पर आये तो उन्हें चारों ओर सुनसान तथा निर्जन दिखायी दिया।इस सृष्टि में न तो कोई स्वर है और न वाणी थी। उदासी से सारा वातावरण मूक से हो गया। जैसे किसी के वाणी न हो।अपनी उदासीन सृष्टि को देखकर ब्रह्माजी निराश और दुःखी हो गये।
इसलिए ब्रह्माजी भगवान विष्णु जी के पास गये।अपनी उदासी तथा मलिनता को दूर करने के लिए उपाय पूछा।ब्रह्माजी की बातों को सुनकर भगवान विष्णुजी ने कहा कि आप देवी सरस्वती जी का आह्वान कीजिए।आपकी समस्या का समाधान देवी सरस्वती जी ही कर सकती है।
भगवान विष्णुजी के कथनानुसार ब्रह्माजी ने अपने कमण्डल से जल लेकर जल को हाथ में जल को छिड़कते हुए देवी सरस्वती का आहवान किया। उस जल कणों के वृक्षों पर पड़ते ही देवी सरस्वती के रूप में चार भुजाओं वाली एक शक्ति उत्पन्न हुई जो दो हाथों से वीणा बजा रही थी तथा दो हाथों में पुस्तक तथा माला धारण किये हुए थी।
तब ब्रह्माजी ने उन्हें अपनी वीणा से सृष्टि में स्वर को भरने को कहा जिससे ब्रह्माजी की उदासी दूर हो सके। देवी सरस्वती ने जैसे ही वीणा के तारों को छुआ उससे"सा"शब्द फुट पड़ा।इसी शब्द से संगीत के प्रथम सुर का जन्म हुआ।"सा"स्वर के कम्पन से ब्रह्मा जी की मूक सृष्टि में ध्वनि का संचार होने लगा।हवाओं को,सागरों को,पशु-पक्षियों एवं अन्य जीवों को वाणी मिल गयी।नदियों से कलकल की ध्वनि फूटने लगी। इससे ब्रह्माजी बहुत ही खुश हुए,उन्होंने सरस्वती को वाणी की देवी के नाम से सम्बोधित करते हुए वागेश्वरी नाम दिया।माता सरस्वती का एक नाम यह भी है। हाथों में वीणा होने के कारण माँ वीणापाणि भी कहलायी। यह देवी विद्या और बुद्धि को देने वाली है। इसलिये हर घर में इस दिन सरस्वतीजी का पूजन होता है।
वाणी का महत्व:-बृहदारण्यक उपनिषद में राजा जनक महर्षि याज्ञवल्क्य से पुछते हैं-जब सूरज अस्त हो जाता है,तब सोम की चांदनी भी नहीं रहती और अग्नि भी बुझ जाती है,उस समय मनुष्य को उजाला देने वाली कौन-सी चीज है?ऋषि ने उत्तर दिया-वह वाक् वाणी है।तब वाक् ही मनुष्य को रोशनी का रास्ता देता है। मनुष्य के लिए परम उपयोगी रास्ता दिखाने वाली शक्ति वाक् वाणी,की अधिष्ठात्री है भगवती सरस्वती।
छन्दोग्य उपनिषद्(७-२-१) के अनुसार यदि बोली का अस्तित्व न होता तो अच्छाई-बुराई का ज्ञान नहीं हो पाता,सच-झूठ का पता न चलता,सहृदय और निष्ठुर में भेद नहीं हो पाता है। अतः मनुष्य को वाणी की आराधना करनी चाहिए।ज्ञान का एकमात्र सहारा बोली है।
पुराने जमाने में वेदादि सभी शास्त्र मुख जबानी याद किये जाते थे।आचार्यो द्वारा शिष्यों को शास्त्रों का ज्ञान उनकी बोली के माध्यमसे ही मिलता है।शिष्यों को गुरु-मंत्र उनकी बोली से ही मिलता था। वाग्देवी सरस्वती की पूजा-अर्चना की जरूरत आज के युग में भी जरूरी है।
वाणी का महत्व जानो:-वाग्देवी की पूजा-अर्चना में आध्यात्मिक सीख है कि जो मनुष्य जिस तरह बोली बोलने से पहले सोच समझकर बोलना ही बोलना चाहिए।मनुष्य की मीठी बोली से अपने दुश्मन को भी दोस्त बना सकते है,जबकि कड़वी बोली बोलने से अपनों को भी दूर कर सकते है।बोली का तीर जीभ के धनुष से निकल जाने पर वापस नहीं आता है।इसलिए बोली का सयंम औए सदुपयोग ही वाग्देवी को खुश करने का मूलमंत्र है। जब मनुष्य मौन होता है,तब वाग्देवी अंतरात्मा की आवाज बनकर सत्प्रेरणा देती है।
पीले रंगों का पर्व बसंत पंचमी:-बसंत पंचमी के पर्व को पीले रंग के रूप में भी जाना जाता है-
◆बसंत पंचमी के पर्व पर वैसे भी पिला रंग उत्साह और विवेक की निशानी के रूप में माना जाता है।
◆बसंत पंचमी के पीले रंग के साथ ही सफेद रंग से जुड़ी शांति भी साथ मिल जाती है।
◆बसंत पंचमी के दिन रंगोली की सजावट घरों क् अंदर की जाती है।
◆बसंत पंचमी के दिन पीले रंग के मीठे चावल भी बनाये जाते है।
◆बसंत पंचमी के दिन मीठे चावल और केले को सौगात के रूप में देते है।
◆इस दिन हलवा और मिठाइयों का दान मन्दिर के परिसरों में किया जाता है।
◆होली के आने की दस्तक और माता वाग्देवी की पूजा का यह पर्व पुराने समय से ही युवाओं के अंदर जोश को बढ़ाने वाला है।
◆कोहरे और ओस से भीगी मिट्टी और रंग बिरंगे पुष्पों की मिली-जुली भीनी खुशबू अपनी ओर खींचती है।
◆खेतों में दूर-दूर तक धानी-सरसों के पुष्पों की पीली चादर बरबस मन को मोह लेती है।
बसंत पंचमी की साधना के फायदे:-माता सरस्वती जी को पूजा-अर्चना करने से वें खुश होकर आशीर्वाद देती है,जिससे ज्ञान और बुद्धि की प्राप्ति होती है।
◆बसंत पंचमी की साधना करने मनुष्य अच्छा वक्ता बन सकता है।
◆बसंत पंचमी की साधना विधि करने मनुष्य की याददाश्त शक्ति में बढ़ोतरी होती है।जिससे कोई भी मन्त्र या श्लोक कंठस्थ हो जाते है।
◆पढ़ाई में मन लगता है और जिससे अच्छे अंको की प्राप्ति होती है।
◆इस साधना से बोली में निखार आता है,अपनी बोली से सभी को अपनी तरफ खींच लेने की शक्ति मिलती है।
◆जो लड़किया इस साधना को करती है,उनको अच्छे और तेजस्वी पति की प्राप्ति होती है और उनका पति उनके अनुसार चलता है।
◆इस साधना से मनुष्य की बोली में मीठापन आता है,जिससे सुनने वाले मोहित हो जाते है और उनको मीठी बोली से आनन्द,प्यार और उल्लास की प्राप्ति होती है।
◆इस साधना से संगीत और गायन में निखार आता है,जिससे अपने गायन और संगीत के द्वारा सबको अपनी तरफ खींच लेते है।अच्छे गायक और संगीतकार बन सकते है।
◆इस साधना से मनुष्य को अपना रास्ता प्राप्त हो जाता है और अपनी बुद्धि और विवेक से सही रास्ते का चुनाव कर लेते है।
◆श्री शंकराचार्य जी बसंत पंचमी के दिन सरस्वति जी की साधना को सिद्ध की थी और अनेक अच्छे ऋषि-मुनियों एवं योगियों ने इस साधना को सिद्ध करके अपने ज्ञान और बुद्धि को बढ़ाया था।
◆गुरु गोरखनाथ जी ने बसंत पंचमी के दिन ही अद्भुत साधना करके उत्तम श्रेणी के सिद्ध और सरस्वती माता के वरद पुत्र की उपमा प्राप्त की थी।
माँ सरस्वती जी को खुश करने के प्रयोग:-माता सरस्वती जी पूजा-अर्चना करके मनुष्य अपनी बुद्धि और ज्ञान को बढ़ा सकता है,उसमें सोचने की शक्ति नहीं होने पर भी माता सरस्वती जी पूजा करने से उसमें सोचने और ज्ञान की प्राप्ति होती है।मनुष्य को अपनी याददाश्त शक्ति को बढ़ाने के लिए हमेशा गायत्री यंत्र की पूजा करनी चाहिए, सरस्वती यंत्र को चढाये हुए जल को हमेशा एक चम्मच उस जल को प्रसाद के रूप में ग्रहण करना चाहिए।
◆यंत्र का पूजन करने के बाद में गायत्री चालीसा के पाठ का पाठन करना चाहिए।जिनको अपनी पढ़ाई में मेहनत करने पर भी बार-बार नाकामयाबी मिलती है ◆उनको हमेशा गायत्री यंत्र पर चढ़ाये हुए जल को प्रसाद के रूप में ग्रहण करने से सफलता मिलने लग जाती है।
◆नित्य-देवी-देवताओं की पूजा के समय सरस्वती माता के चित्र या मूर्ति या मन्त्र को धूप-दीपक निवेदित करके ध्यान करते हुए-
ध्यान मन्त्र:-
"तरुण शकलमिन्दो वीभ्रती शुभ्र कान्ति,
कुचभरनमितांगी सन्निषण्णा सिताब्जै।
निज करकमललोध्यल्लेखनी पुस्तक श्रीः,
सकल विभव सद्धियै पातु वाग्देवता नः।।
सरस्वती माता को खुश करने के मन्त्र:-
सरस्वती माता को निम्नांकित कोई एक मन्त्र को मन में दोहराने से माता सरस्वती जी कृपा प्रसाद का अंश प्राप्त हो जाता है।
◆मन्त्र:-'वद वद वाग्वादिनी स्वाहा।'
◆मन्त्र:-'ऊँ ऐं नमः।'
◆मन्त्र:-'ऊँ ह्रीं श्रीं ऐं वाग्वादिनी भगवती अर्हनमुख निवासिनी सरस्वति मासस्ये प्रकाश कुरू कुरू ऐं नमः।'
◆मन्त्र:-'ऐं।'
◆मन्त्र:-'ऊँ ऐं नमः भगवति वद वद वाग्देवि स्वाहा।'
◆मन्त्र:-'ऊँ पंचनद्यः सरस्वतीमयपिबन्ति सस्नोतसः सरस्वती तु पंचधा सो देशे भवत्सरित्।'