अजा(प्रबोधिनी)एकादशी व्रत कथा और महत्व(Aja (Prabodhini) Ekadashi fasting story and significance):-भाद्रपद कृष्ण पक्ष की एकादशी को 'जया','कामिका' तथा'अजा' प्रबोधिनी को एकादशी कहते है।
धर्मराज ने पूछा:हे श्रीकेशवजी।आप कृपया करके मुझे बताये की भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष में कौनसी एका- दशी आती है और उस एकादशी का क्या नाम है?आप की मधुर वाणी से मुझे जानकारी दीजिये।
भगवान श्रीकेशवजी ने कहा:हे राजन्।आप अपने मन को एक जगह पर स्थिर रखते हुए ध्यानपूर्वक सुनिये।भाद्रपद महीने के कृष्णपक्ष में आने वाली एकादशी को 'अजा' रूप में जाना जाता हैं।यह अजा सभी तरह के बुरे किये गये कामों के पापों को खत्म करने वाली शास्त्रों में बताई गई है।भगवान ह्रषिकेश जी का जो कोई भी पूजा-अर्चना करते है और इस एकादशी का व्रत करते है,उनके सभी तरह के समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है।
अजा एकादशी व्रत की पौराणिक कथा:-सतयोग में एक समय एक राजा निवास करते थे उनका नाम हरिश्चंद्र था,वे सतयोग में अपने दान के जगत् भर में प्रसिद्ध थे और विख्यात चक्रवर्ती सम्राट थे।राजा हरिश्चंद्र सम्पूर्ण पृथ्वी लोक के मालिक और हमेशा सत्य बोलने वाले एवं सत्य के पक्षधर थे।इस तरह राजा हरिश्चंद्र हमेशा दान दिया करते थे।
एक दिन ऋषि विश्वामित्र उनके द्वार पर आये,उससे पहले राजा हरिश्चंद्र अपने द्वारा दिया जाने वाला दान दे चुके थे।इस तरह उनके द्वार से कोई भी खाली नहीं जाता था।दान दिये जाने के बाद ऋषि विश्वामित्र ने राजा से दान मांगा, तब राजा हरिश्चंद्र ने कहा: हे मुनिवर!आप जो भी मांगेगे वह आपको दान स्वरूप मिलेगा,यह मेरा वचन है।
तब ऋषि विश्वामित्र ने कहा:हे राजन्। तुमने मुझे वचन दिया है,की जो कोई मांगूगा वह तुम मुझे दान के रूप में दोगे।इस तरह राजा अपने वचन और सत्यनिष्ठा में ऋषि विश्वामित्र से कहा:हे देव आप दान की वस्तुओं को मांगो,मैं उस वस्तुओं को देने के लिए तैयार हूं।
तब ऋषि विश्वामित्र ने कहा:हे राजन्।आज के दिन की दक्षिणा दो एवं मुझे आप अपने राज्य का राजा बना दे और आप यह राज्य छोड़ करके दूसरी जगह पर चले जावे।इस तरह राजा ने दान के रूप में अपना राज्य ऋषि विश्वामित्र को दान स्वरूप दे दिया और दक्षिणा देने के लिए कुछ नहीं होने पर उन्होंने अपनी पत्नी एवं अपने बच्चे को बेच दिया।
इस तरह ऋषिवर विश्वामित्र को उनके द्वारा मांगी गई दक्षिणा को पूरी तरह नहीं चुका पाने पर उन्होंने अपने आपको काशी के चाण्डाल को बेचकर दक्षिणा चुकाई थी।इस तरह अच्छी आत्मा होते हुए और भलाई के कर्म करते हुए भी उनको चाण्डाल की दासता में जीवन को जीना पड़ा था।राजा हरिश्चंद्र मुर्दो का कफन लिया करते थे।इतने उन पर बीत जाने पर भी राजा हरिश्चंद्र ने सत्य का साथ नहीं छोड़ा और सत्यधर्म पर अडिग रहे थे।
इस तरह चाण्डाल की गुलामी करते हुए श्मशान घाट पर चाण्डाल कर्म करते-करते बहुत ही समय बीत चुका था।इस तरह समय बीतने पर राजा को बहुत ही चिंता सताने लगीवे बहुत ही दुःखी होकर मन में विचार करने लगे'क्या करुँ?कहाँ पर जाऊँ?किस तरह मुझे इस चाण्डाल कर्म से मुक्ति मिलेगी।इस तरह सोचते-विचारते हुए वे शोक के सागर में डूब गये।इस तरह राजा हरिश्चंद्र शोक में डूबे हुए थे,तब एक दिन अकस्मात ऋषि गौतम की भेंट हुई।
तब राजा हरिश्चंद्र ने अपने पास श्रेष्ठ ब्राह्मण को आते देखा तो वे उनके पास जाकर ऋषि गौतम को नमस्कार करते हुए उनके चरणों को प्रणाम किया और दोनों हाथों को जोड़कर ऋषि गौतम के सामने खड़े हो गये।तब ऋषिवर गौतम ने पूछा:हे राजन्। यह क्या आपके साथ हुआ है जो आपको चाण्डाल की गुलामी करनी पड़ रही है।
राजा हरिश्चंद्र बोले:हे श्रेष्ठ ऋषिवर।मैं कर्मो का फल मुझे मिला है,जिनको मुझे भोगना पड़ रहा है।तब राजा हरिश्चंद्र ने सभी घटना जो उनके साथ हुई थी वह उन्होंने ऋषि गौतम को बताई।
राजा हरिश्चंद्र की बात को सुनकर ऋषि गौतम ने कहा:राजन्।भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष में आने वाली बहुत ही कल्याणकारी एकादशी का व्रत आप कीजिये,इस एकादशी को'अजा' नाम से जाना जाता है।'अजा' एकादशी का व्रत तुम राजन् करो यह एकादशी सबको पुण्य का फल देने वाली है और इसके व्रत को करने समस्त पापों का अंत हो जाता है।
यह एकादशी आ रही है।इसका आप व्रत को करो।आपकी किस्मत से आज के सातवें दिन यह एकादशी है।'अजा' एकादशी के दिन आप उपवास करना उसके बाद आप रात्रि में ईश्वर के गुणगान करते हुए जागरण करना।इस तरह राजा हरिश्चंद्र को ऋषि गौतम ने 'अजा'एकादशी के व्रत की विधि-विधान बताकर अंतर्धान हो गए।
राजा हरिश्चंद्र ने ऋषिवर गौतम के द्वारा बताए व्रत ठीक समय पर आई एकादशी को व्रत करना शुरू किया।इसी बीच राजा हरिश्चंद्र के पुत्र रोहित को सर्प के द्वारा डसने से मृत्यु हो गई।शैव्या रानी द्वारा शमशान पर रोहित की लाश ले जाने पर सत्यवादी हरिश्चंद्र ने शमशान पर जलाने के लिए अपनी पत्नी से रुपयो को मांगा,सत्य को नहीं छोड़ा।
लेकिन असहाय रानी शैव्या के पास अपने पुत्र रोहित को शवदाह कराने के पैसे भी नहीं थे।तब रानी शैव्या ने चुन्दरी कोरी चीर कर शमशान पर चुकाया।इस तरह राजा हरिश्चंद्र की सत्यनिष्ठा और अपने काम के प्रति निष्ठा के भाव को देखकर।सत्य और अजा एकादशी के व्रत के प्रभाव से भगवान साक्षात प्रकट हुए तथा राजा हरिश्चंद्र के सत्य की भूरि-भूरि प्रशंसा की।भगवन् की कृपा से राजा हरिश्चंद्र का पुत्र रोहित जीवित हो गया। उस व्रत के असर से राजा हरिश्चंद्र के सभी दुःखों से मुक्ति मिल गई।
उनको पुनः अपनी पत्नी मिल गई और उनका पुत्र पुनः जीवित हो गया।आकाश में दन्दुभियाँ बज उठी।देवलोक से पुष्पों की बारिश होने लगी।एकादशी के असर स्वरूप राजा ने चीर काल तक अपने राज्य का सुख भोग अपने स्वजनों के साथ से जीवन बिताने के बाद अपने सभी परिजनों के साथ अंत मृत्यु को प्राप्त कर स्वर्ग को प्राप्त किया।
राजा धर्मराज।जो मानव इस व्रत को करते है,वे सभी तरह के पापों से आजाद होकर स्वर्गलोक को प्राप्त कर ते है।इस अजा एकादशी के व्रत की कथा को जो कोई पढ़ता है और जो कोई सुनता है उसको अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है।