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Thursday, March 25, 2021

हरिवल्लभा परमा एकादशी व्रत विधि,कथा और माहात्म्य(Harivallabha Parma Ekadashi fasting method, story and significance)



हरिवल्लभा परमा एकादशी व्रत विधि,कथा और माहात्म्य(Harivallabha Parma Ekadashi fasting method, story and significance)(मल मास कृष्ण एकादशी):-पुरुषोत्तम मास के कृष्णपक्ष की एकादशी को हरिवल्लभा परमा एकादशी कहते है।

हरिवल्लभा परमा एकादशी का भगवान मुरलीधर जी की मधुर वाणी से पूरा वृत्तांत:-

धनञ्जय कौंतेय ने कहा:हे मुरलीधर जी। आप से निवेदन करता हूँ कि आप अधिक(लौंद या मल या पुरुषोत्तम) महीने के कृष्णपक्ष में आने वाली एकादशी के बारे में बताये।मल महीने कृष्णपक्ष की एकादशी का क्या नाम हैं ,इस एकादशी को किस तरह की विधि-विधान से किया जाता हैं और इसका माहात्म्य है?इस एकादशी में कौनसे देवता की पूजा की जाती है और इस एकादशी के व्रत को करने से क्या-क्या फल की प्राप्ति होती है, आप कृपया करके मुझे पूरा विवरण दीजिये ?

भगवान श्री मुरलीधरजी ने कहा: हे सव्यसाची!मल महीने के कृष्णपक्ष में आने वाले एकादशी को 'परमा' के नाम से जाना जाता हैं।इस एकादशी के व्रत के प्रभाव से सभी तरह के किये हुए पापों से मुक्ति मिल जाती है और सभी तरह के पाप खत्म हो जाते है।मनुष्य को इस लोक में सभी तरह के सुखों की प्राप्ति होती है और जीवन के मरण-जीवन से मुक्ति मिलकर परलोक की प्राप्ति होती हैं।भगवान जनार्दन जी धूप,दीप,नैवेद्य और फूलों आदि के द्वारा पूजा-आराधना करनी चाहिए।महर्षियों के साथ इस एकादशी की जो मनोहर कथा बताई गई हैं वहीं मैं तुमको सुनाता हूँ तुम अपने मन को एक जगह पर केंद्रित करके ध्यानपूर्वक सुनो।

हरिवल्लभा परमा एकादशी की पौराणिक कथा:-पुराने समय एक काम्पिल्य नाम की नगरी हुआ करती थी।काम्पिल्य नगरी में एक अत्यंत धर्म को मानने वाला ब्राह्मण रहता था। उस ब्राह्मण का नाम सुमेधा था।उस सुमेधा ब्राह्मण के अत्यंत पवित्र और पतिव्रता पत्नी थी।पहले अपने किये हुए पाप के करण बहुत ही गरीब थे।सुमेधा ब्राह्मण की पत्नी सुमेधा की बहुत ही सेवा करती थी और अतिथि को अन्न देकर खुद भूखी रह जाती थी।

एक दिन सुमेधा ने कहा:'हे प्राणप्रिये!दाम्पत्य जीवन बिना धन के नहीं चल सकता है,इसलिए मैं प्रदेश जाकर कोई उद्योग करूँ।

सुमेधा की पत्नी ने कहा: 'हे प्राणनाथ !स्वामी जो भी अच्छा और बुरा कहे,पत्नी को वही करना चाहिए।मनुष्य को अपने पहले के जन्म के किये हुए कर्मों का फल भोगना पड़ता है।विधाता ने जो जिस मनुष्य के किस्मत में लिख दिया हैं उसको कोई भी नहीं बदल सकता है।हे प्राणनाथ आपको कहीं पर जानें कि कोई जरूरत नहीं है,जो किस्मत में लिखा होगा,वहीं यहीं पर भी मिल जाएगा।'

अपनी पत्नी की बात को सुनकर ब्राह्मण परदेश नहीं गया।एक बार कौण्डिन्य ऋषिवर उस नगर में घूमते हुए आये और उस ब्राह्मण के घर की जगह पर आये।तब ब्राह्मण सुमेधा और उसकी पत्नी ने कौण्डिन्य ऋषिवर को देखकर उनको प्रणाम किया और कहा'आज हम तो धन्य हो गए। आपके दर्शन से हमारा जीवन सफल हुआ।'मुनिवर को उन्होंने आसन दिया उनकी आवभगत की उनको अपने सामर्थ्य के अनुसार भोजन करवाया। ।

भोजन के बाद पतिव्रता ने कहा: 'हे ऋषिवर !हमारी किस्मत से आप के दर्शन हो गए और आपका यहां आना हो गया मुझे पूरा भरोसा हैं कि अब मेरी गरीबी दूर जल्दी हो जाएगी।आपसे निवेदन करती हूं कि आप कृपया करके मुझे ऐसा कोई समाधान बताये जिसके करने से मेरे घर की मालिहालत ठीक हो जाये और मेरी गरीबी दूर हो जाये।

इस तरह पतिव्रता के कहने पर ऋषिवर कौण्डिन्य ने कहा: हे पतिव्रता ब्राह्मणी! 'अधिक मास'(मल मास) की कृष्णपक्ष में आने वाली एकादशी होती है उस एकादशी को 'परमा एकादशी' कहते है।इस परमा एकादशी के व्रत को जो कोई भी मनुष्य करता है उसके सभी तरह के पाओ,दुःख और गरीबी आदि खत्म हो जाते है।जो भी मनुष्य इस एकादशी के व्रत को करता है तो व्रत के प्रभाव से उसकी गरीबी दूर हो जाती है वह धनवान बन जाता हैं।इस एकादशी के व्रत में भगवान का गुणगान भजन आदि करने के साथ रात्रि जागरण करना चाहिए।

भगवान शिव शंकरजी ने कुबेर को इस एकादशी के व्रत को करने से कुबेर को धनाध्यक्ष बना दिया था।'फिर ऋषिवर कौण्डिन्य ने उस सुमेधा ब्राह्मण की पत्नी पतिव्रता को परमा एकादशी के व्रत को करने की विधि बताई।

ऋषिवर कौण्डिन्य ने कहा: 'हे ब्राह्मणी। इस एकादशी के व्रत के दिन प्रातःकाल जल्दी उठना।उसके बाद अपनी दैनिकचर्या को पूरा करने के बाद विधिपूर्वक पंचरात्रि व्रत को आरम्भ करना चाहिए।

जो मनुष्य पाँच दिन तक बिना जल के व्रत को करते है,वे अपने माता-पिता और स्ट्रिशित स्वर्गलोग को जाते है।

हे ब्राह्मणी।तुम अपने पति के साथ इस व्रत को करो।इस व्रत के प्रभाव से तुम्हारी मन की कामनाओं की पूर्ति होगी।तुम्हें जरूर ही सिद्धि और आखिर में स्वर्गलोग की प्राप्ति होगी।'

कौण्डिन्य ऋषि के बताए अनुसार ब्राह्मण और ब्राह्मणी ने 'परमा एकादशी' का पाँच दिन तक बिना जल के उपवास किया।व्रत के पूरे होने पर ब्राह्मण की पत्नी को अपने घर की तरफ एक सुंदर राजकुमार को आते हुए देखा। राजकुमार ने ब्रह्माजी की प्ररेणा से उन्हें आजीविका के लिए एक गाँव और एक अच्छा भवन दिया जो कि सभी तरह की सुख-सुविधाओं से युक्त था।इस तरह व्रत के प्रभाव से दोनों पति-पत्नी इस पृथ्वी लोक के सुखों को भोगने के बाद आखिर में स्वर्गलोग को प्राप्त हुए।

हरिवल्लभा परमा एकादशी व्रत की दूसरी पौराणिक कथा:-प्राचीनकाल में वभ्रु वाहन नामक एक दानी तथा प्रतापी राजा था। वह प्रतिदिन ब्राह्मणों को सौ गायें दान किया करता था।उसी के राज्यमें प्रभावती नाम की एक बाल-विधवा ब्राह्मणी भी रहती थी।जो भगवान विष्णुजी की परम उपासिका थी।पुरुषोत्तम मास में नित्य स्नान कर भगवान विष्णुजी और शंकरजी की पूजा किया करती थी।हरिवल्लभा परमा एकादशी का व्रत भी इसी बीच वह निरन्तर करती रही थी।एक दिन दैवयोग से राजा वभ्रु वाहन और बाल-विधवा प्रभावती ब्राह्मणी की मृत्यु हुई और दोनों साथ ही धर्मराज के दरबार में पहुँचे।धर्मराज ने उठकर जितना स्वागत ब्राह्मणी प्रभावती किया उतना ही राजा वभ्रु वाहन का नहीं किया।राजा को अपने द्वारा किये गए दान-पुण्य पर पूर्ण विश्वास था उसके प्रतिकूल अपना अपमान तथा ब्राह्मणी का सम्मान देखकर आश्चर्य चकित रह गये।इसी समय चित्रगुप्त ने आकर प्रभावती तथा राजा के कर्मानुसार विष्णुलोक तथा स्वर्गलोक की बात सुनाई।राजा को इस पर और भी आश्चर्य हुआ तब धर्मराज से इसका कारण पूछा।धर्मराज ने प्रभावती द्वारा हरिवल्लभा एकादशी के व्रत का पूर्ण करने का कारण बताया।उसके प्रभाव से उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई।


हरिवल्लभा परमा एकादशी व्रत का महत्व:-

हे सेव्यसाची।जो मनुष्य 'परमा एकादशी का व्रत करता है,उसे समस्त तीर्थों व यज्ञों आदि का फल मिल जाता है।जिस तरह संसार में चार पैर वालों में गाय, देवताओं में इंद्रराज सबसे श्रेष्ठ है,उसी तरह मासों में अधिक मास उत्तम है।इस मास में पंचरात्रि अत्यंत पुण्य देने वाली है।इस महीने में'पद्मिनी एकादशी' भी श्रेष्ठ है।उसके व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते है और पुण्यमय लोकों की प्राप्ति होती हैं।