कुश का पूजा-उपासना में इतना महत्व क्यों हैं ?(Why kush is so important in worship?):-पुराने जमाने से लेकर आज के जमाने में पूजा, अर्चना आदि धार्मिक कार्यों में कुश का प्रयोग होता जा रहा है। कुश एक तरह की घास होती है, जिसे अत्यधिक पवित्र मानकर पूजा में कुश घास का प्रयोग किया जाता है।कुशा घास के आगे भाग बहुत पतला और तीखापन लिए होता है, जो कि तेज नुकीले प्रवृत्ति का होने से कुशा को कुशाग्र कहते है। जिनकी तेज बुद्धि होती है, उनको कुशाग्र बुद्धि वाला कहते है।
कुशा का आध्यात्मिक और पौराणिक महत्व (Spiritual and mythological significance Importance of Kusha)
कुश का प्रकार:-धर्मशास्त्रों में कुश दश तरह के बताए गए है, जो इस तरह हैं-
कुशाः काशा यवा दूर्वा उशीराच्छ सकुन्दकाः।
गोधूमा ब्रह्मयो मौन्जा दश दर्भाः सबल्वजाः।।
कुश की उत्पत्ति:-कुश की उत्पत्ति हिन्दू धर्म गर्न्थो में अलग-अलग तरह से बताई गई है जिनमें कुश को उसकी उत्पत्ति से जोड़कर उसके महत्त्व को पूजा कार्यों, आयुर्वेद और अनेक तरह से बताया गया जो कि निम्नांकित है-
कुश घास की पवित्रता की कथा:-प्राचीन समय में महर्षि कश्यप अपनी दो पत्नियों के साथ जंगल में अपनी कुटिया बनाकर रहते थे। उनकी एक पत्नी का नाम कद्रू और दूसरी पत्नी का नाम विनीता था। महर्षि कश्यप की दोनों ही पत्नियां उनकी अपनी श्रद्धाभाव से सेवा किया करती थी। उन दोनों के इस तरह सेवा की भावना को देखकर महर्षि कश्यप बहुत खुश हुए और उन्होंने दोनों पत्नियों को वरदान मांगने के लिए कहा-तब कद्रू ने कहा की स्वामी आप मुझ पर खुश है तो मुझे एक हजार पुत्र सन्तान का वरदान दीजिए।
महर्षि कश्यप ने 'तथास्तु' कहकर कद्रू को एक हजार पुत्रों का वरदान दे दिया। विनीत ने कहा कि मुझे केवल दो प्रतापी पुत्र वरदान के रूप में देना की कृपा करें। महर्षि कश्यप ने विनीता को दो प्रतापी पुत्र देने का वरदान देने के बाद अपनी साधना में लीन हो गये। कद्रू के पुत्र सन्तान के रूप में एक हजार सर्प हुए और विनीता के पुत्र के रूप में दो महाप्रतापी पुत्र गरुड़ हुए थे। किन्तु समय के बदलाव और दशा के प्रभाव स्वरूप विनीता की किसी कारण से कोई तरह की भूल होने पर उसे कद्रू की सेविका के रूप में जीवन यापन करना पड़ा था।
विनीता के पुत्र गरुड़ ने जब अपनी माता को सेविका के रूप में खराब व दयनीय दशा में देखा तो उसको बहुत ही कष्ट और दुःख की अनुभूति हुई। अपनी माता को इस तरह की गुलामी से आजाद कराने के लिए सोचने लगा अंत में उसने कद्रू के पुत्रों से अपनी माता को आजाद करने के लिए कहा तब कद्रू के पुत्रों ने कहा कि इसके बदले हमे क्या मिलेगा? तब विनीता के पुत्र ने कहा कि मेरे पास तुम्हारे लिए एक प्रस्ताव है यदि तुम सहमत हो तो मैं तुम्हें बताता हूं और तुम्हारा इसमें फायदा ही होगा तब कद्रू के पुत्रों ने कहा कि तुम हमें बतावो हम जानने के बाद ही निर्णय ले पाएंगे।
तब विनीता के पुत्र ने कहा कि मैं तुमको अमृत कलश लाकर दे सकता हूँ जिसका सेवन करने से तुमको अमृत्व प्राप्त हो जाएगा। जब कद्रू ने कहा कि तुम हमें अमृत कलश लाकर दो और तुम्हारी माता को हम दासता से मुक्त कर देंगे। विनीता का पुत्र गरुड़ उनकी बात मानकर स्वर्गलोक से अमृत कलश को लाकर दे दिया। अपनी माता को कद्रू की दासता से मुक्त करा दिया। उसने अमृत कलश को 'कुश' नामक घास पर रख दिया, इंद्रदेव अपने स्वर्गलोक के अमृत कलश को ढूंढते-ढूंढते हुए उस जगह पर आये और अमृत कलश को उठाकर वापस अपने स्वर्गलोक ले गए।
कद्रू के पुत्र बिना अमृतपान के ही रहना पड़ा और उन्होंने गरुड़ से कहा कि तुम हमें वापस अमृत कलश लाकर दो तुमने तो हमारे साथ धोखा किया हैं। तब गरुड़ ने उनको समझाया कि अब अमृत कलश मिलना सम्भव नहीं है, लेकिन एक काम तुम सभी कर सकते हो कि उस जगह पर जाओ जहां पर मैंने अमृत कलश रखा। उस जगह पर घास उँगी हुई हैं यदि तुम उस घास को अपनी जीभ से चाटो तो तुम्हें कुछ ना कुछ अवश्य ही फायदा होगा। कद्रू के पुत्र उस जगह पर जाकर उस घास को अपनी जीभ से चाटने लगे तब उनकी जीभें चिर गई और वे छटपटाने लगे। इसी कारण आज भी सर्प की जीभ दो भागों वाली चिरी हुई दिखाई देती है, किन्तु 'कुश' घास की महत्ता अमृत कलश रखने के कारण बढ़ गई और भगवान विष्णु जी के निर्देशानुसार इसे पूजा कार्य में प्रयुक्त किया जाने लगा।
मत्स्य पुराण के अनुसार:-मत्स्य पुराण के श्लोक २२/८९ के अनुसार भगवान विष्णुजी के शरीर से कुश की उत्पति को बताया गया है, भगवान चक्रपाणीजी के शरीर से उत्पति होने के कारण ही कुश को पवित्र माना जाता हैं। पौराणिक धर्म शास्र कथा के अनुसार जब श्रीचक्रपाणीजी को हिरण्याक्ष दैत्य का वध करने के लिए वराह अवतार लेना पड़ा था। क्योंकिं हिरण्याक्ष ने धरती को समुद्र छुपा दिया था। इसलिए भगवान श्रीविष्णुजी को धरती को मुक्त कराने के लिए वराह के रूप में अवतार लेना था।भगवान श्रीहरि ने समुद्र की गहराई में छुपी हुई धरती को ढूंढने के लिए समुद्र में गये और दैत्य हिरणायक्ष से युद्ध किया, जिसके फलस्वरूप भगवान की जीत हुई थी। जब भगवान श्री चक्रपाणीजी ने हिरण्याक्ष दैत्य को मारने के बाद समुद्र के पानी में से धरती माता को बाहर निकाल कर धरती माता को सही जगह पर वापस स्थापित किया, तब उनका शरीर समुद्र के पाने में भीगा हुआ था।पशु रूप वराह अर्थात सुअर पशु की स्वभाव के अनुसार जब उन्होंने अपने शरीर से पानी हटाने के लिए अपने शरीर को जोर-जोर हिलाया तब उनके जोर के झटके से उनके शरीर के केश या रोम धरती पर गिर गये और कुश के रूप में परिवतित हो गये।
रामायण के प्रसंग अनुसार:-जब सीता जी ने अपने आप को धरती माता की गोद में समाने के लिए धरती की गहराई में जा रही थी, जब रामजी को मालूम होने पर वे शीघ्रता से तेज गति से दौड़ते आकर सीताजी को धरती में समाने से रोकने की कोशिश, लेकिन वे रोक नहीं सके उनके हाथ में सीताजी के केश ही आ पाए। इस तरह भगवान राम को प्राप्त सीताजी के केश को पवित्र मानते हुए उनको कुशा का नाम दिया गया।
रामायण प्रसंग के अनुसार:-जब सीताजी के एक ही पुत्र लव हुआ था। तब वे अपने पुत्र को ऋषि वाल्मीकिजी को सौंप कर जंगल में गई। तब ऋषि वाल्मीकि के नजरो से लव कहीं घूम हो गए तब ऋषि ने बहुत ही लव को ढूंढने की कोशिश की लेकिन नहीं मिलने पर सोचने लगे कि सीताजी को क्या जबाव दूंगा?फिर उन्होंने अपनी शक्ति साधना से कुशा से एक पुत्र लव के समान उत्पन्न किया था। सीताजी को सौंप दिया तब लव मिल जाने पर सीताजी को एक समान दो पुत्र देकर आश्चर्य होता है तब ऋषि ने अपनी सभी बात को बताकर उसका नाम कुश रखते है, क्योंकी कुशा से कुश का जन्म होने से कुश को पवित्र माना जाने लगा
कुश घास का उपयोग एवं महत्त्व:-कुश घास का उपयोग पूजा को करने के लिए कुश घास से पानी को छिड़कने के लिए, उंगली में पैंती पहनने, शादी में मंडप छाने और दूसरे मांगलिक कामों में लिया जाता है।
'कुश घास' के उपयोग का मतलब:-कुश घास के उपयोग का मतलब है कि मांगलिक काम और सुख-स्मृद्धिकारी होगा,क्योंकि कुश घास का स्पर्श अमृत कलश से हुआ था।
धार्मिक कार्यों में उपयोग:-धार्मिक कार्यों को करने में जैसे-की हवन, उपासनाएं, पूजन, साधनाएं आदि में कुश के बिछावन के रूप में बिछाया जाता है।
धार्मिक गर्न्थो के मतानुसार कर्मकांड, साधनाएं, पूजा-पाठ आदि करने से मनुष्य के अंदर आध्यात्मिक शक्ति पुंज बनता है, यह आध्यात्मिक पुंज कहीं धरती माता को छुहकर धरती माता में ना समा जाये, इसी डर के कारण ही कुश को बिछावन के रूप में उपयोग करते है, क्योंकि कुश का बिछावन विधुत कुचालक के रूप में काम करता है। मन्त्र-सिद्धि आदि को जल्दी पा सकते है।
सूर्य ग्रह से सम्बंधित अनामिका अंगुली में अंगूठी:-कुश घास की अंगूठी बनाकर अंगुली में भी पहनने का बताया गया है। अंगूठी बनाकर पहनने से मनुष्य ने जो एनर्जी, आध्यात्मिक शक्ति-पुंज अनामिका उंगली के अलावा दूसरी अंगुलियों में नहीं पहुंच सके। सूर्य ग्रह की जगह अनामिका अंगुली होती है। जो सूर्य ग्रह सब ग्रहों का राजा होने से मनुष्य के द्वारा अंगूठी के रूप में पहनने से मनुष्य को जीवन-शक्ति, तेज या चमक और प्रतिष्ठा देते है।
जब मनुष्य साधना करते समय भूल से उसका हाथ धरती माता को छूने पर भी शक्ति-पुंज का नुकसान नहीं होता है।इसलिए मनुष्य को साधना, पूजा-उपासना आदि करते समय कुश घास से बने बिछावन का ही उपयोग करना चाहिए।
कुशा का महत्व और अन्य प्रभावी उपाय:-पूजा काल में कुश निर्मित पवित्री क्यों धारण करें। हिन्दू धर्म के धार्मिक ग्रन्थों में नियमपूर्वक धर्म के कार्य को शुरू करने के लिए कुश से बनाई हुई पवित्री को पहनने का विधान बताया गया है।
◆दो कुशा से बनी हुई पवित्री को दाहिने हाथ में पहनना चाहिए।
◆तीन कुशा से बनी हुई पवित्री को बाएं हाथ में पहनना चाहिए।
◆एक कुशा शिखा में, एक कुशा यज्ञोपवीत में और दोनों पैरों के नीचे कुशा को रखना चाहिए।
कुशा का महत्व आर्युवेद के अनुसार:-आर्युवेद के अनुसार सिर के बाल नहीं जड़ते है और देह में खून का खून परिसंचरण भी अच्छी तरह से होता है, जब कुश के आसन पर बैठकर कोई काम करते है।
शस्त्रों के मतानुसार बताया गया कि "दर्भो य उग्र औषधिस्तं ते बध्नामि आयुषे" अर्थात कुशा या दर्भ जल्दी से तत्काल नतीजे को देने वाली होती है, जिस तरह बीमारी में औषधि को लेने पर बीमारी दूर होती है, उसी तरह कुशा जल्दी नतीजों को देककर उम्र को बढ़ाने वाली होती है, इसलिए कुशा को धारण करने फायदा मिलता है।
◆जिस मनुष्यों के केश ज्यादा गिरते है और हृदय में धड़कन सम्बन्धी परेशानी होती है उन मनुष्यों को कुशा को पहनना चाहिए इसके पहनने से कुशा मंगल करती है।
◆दैवीय गुणों के होने कुश दैवी वातावरण को प्रदान करने वाला होता हैं।
◆कुशा मौसम की ऋतुओं से रवि, सोम, पृथ्वी और अंतरिक्ष से होने वाली ताप, ठंडी आदि के प्रभाव से हस्त, पैर और मस्तिष्क को होने वाली हानि से बचाती है। मनुष्य के शरीर पर होने वाले बाहर विद्युत तरंगों के असर से बचाती है, जो की वैज्ञानिक बातों से सिद्ध हो चुका है।
◆मनुष्य के पांच कर्मेन्द्रियों दोनों हाथ, पैर और मस्तिष्क को विद्युतय तरंगों के प्रभावों से बचाव करती है। इसलिए पूजा-अर्चना के समय में पांच कर्मेन्द्रियों की जगहों की कुशा सुरक्षा करती हैं।
स्त्रियों की सुरक्षा करने वाला:-स्त्रियों की सतीत्व की रक्षा कुशा के द्वारा होती है। जब लंकापति रावण ने माता सीताजी का अपहरण करके अपनी लंका ले गया और अशोक वाटिका में रखता है, सीताजी को तरह-तरह के लालच देता है, तब सीताजी अपने को सभी लालच से मुक्त रखते हुए कुशा को रावण को दिखा देती थी, जिससे सीताजी के सतीत्व की रक्षा हुई थी।
◆कुशा में दैवीय शक्ति के गुण होने से लड़कियों व औरतों के सतीत्व की रक्षा करती हैं।
◆औरतों और लड़कियों को मासिक धर्म सम्बंधित रोग होता है उनको कुशा को बिछावन के रूप में उपयोग करने से कुछ ही समय के बाद मासिक रोग से मुक्ति मिल जाती हैं।
◆कुशा घास होने पर भी पूजा-अर्चना में उपयोग होता है, क्योकि पवित्र तत्व, औषधीय के गुण होने से इसका उपयोग होता है।
◆अर्थववेद में बताया गया कि गुस्से का दमन करने वाली होती है।
भगवान चक्रपाणीजी के लोम से बनी होने कुशा घास को पावन-पवित्र माना जाता है।
महाभारत के अनुसार:-जब कर्ण ने अपने पितरों का तर्पण करते समय कुश को काम में लिया था। इसलिए पौराणिक मान्यता बन गई कि जो भी अपने पितरों का तर्पण करते समय कुश की बनी पवित्री को पहनकर श्राद्ध में तिल व जौ के साथ तर्पण करते है उनको पितरो की अनुकृपा मिलती है।
◆समस्त मांगलिक और धार्मिक कार्यों को करते समय कुशा का उपयोग करना चाहिए।
◆कुश की पैदाइश भगवान वाराह देव के लोम से होने से कुश की पवित्रता ज्यादा हो जाती हैं, इसलिए मनुष्यों को पूजा-अर्चना, यज्ञ-हवन आदि धर्म के कामों में कुश का उपयोग करना चाहिए।
श्राद्ध पक्ष में तर्पण के समय उपयोग:-श्राद्ध पक्ष के दिनों में पीतर को खुश करने और उनकी कृपा दृष्टि को पाने में कुश का उपयोग किया जाता है।
पितृपक्ष के दिनों में श्राद्ध कर्म करते समय तिल,जौ और कुश को बहुत जरूरी बताया गया है।
दर्भ मुले स्थितो ब्रह्मा मध्ये देवो जनार्दनः।
दर्भाग्रे शंकरं विद्यात त्रयो देवाः कुशे स्मृताः।।
विप्रा मन्त्राः कुशा वह्नि स्तुलसी च खगेश्वर।
नैते निर्माल्यताम क्रियमाणाः पुनः पुनः।।
तुलसी ब्राह्मणा गावो विष्णुरेकाद्शी खग।
पञ्च प्रवहणान्येव भवाब्धौ मज्ज्ताम न्रिणाम।।
विष्णु एकादशी गीता तुलसी विप्रधनेवः।
आसारे दुर्ग संसारे षट्पदी मुक्तिदायनी।।
मन्त्र में तिल और कुश की महत्ता:-भगवान श्रीचक्रपाणी जी ने कहा है कि तिल की पैदाईश मेरे शरीर से निकले स्वेद से हुई है और कुश मेरे शरीर के रोम कूपो से टूटकर गिरे लोम से हुई है। कुश का मूल ब्रह्मा जी, मध्य भाग में विष्णुजी और आगे वाले भाग में शिवजी का जानना चाहिए। कुश में ब्रह्मा जी, विष्णुजी और शिवजी स्थापित माने गए है। तुलसी, अग्नि, कुश, मन्त्र और ब्राह्मण कभी भी अशुद्ध एवं अपवित्र नहीं होते है, इसलिए पूजा-अर्चना में इन सभी का बार-बार उपयोग में कर सकते हैं।
पितृ पक्ष में किये जाने वाले श्राद्ध में तिल और कुश की महत्ता मन्त्र में इस तरह बताई गई है।
पंचक में मृत्यु होने पर:-धार्मिक शास्त्रों में ऐसा बताया गया कि किसी भी मनुष्य के परिवार में पंचक में मौत होने पर पंचक दोष के शमन के लिए पांच कुश के पुतले बनाकर उनका पुतल मृतक के दहन करने से पंचक दोष का शमन हो जाता है।
कुश ग्रन्थि माला का महत्त्व:-कुश की मूलों को एकत्रित करके उसके दानों की माला बनाकर पहनने से सभी तरह के किये गए बुरे पापों से मुक्ति मिल जाती है, मानहानि के दोष, वातारण को शुद्ध करने के साथ ही रोगों से मुक्ति प्रदान करने वाली होती है।
कुश से बनी बिछावन के रूप में उपयोग:-कुश से बनी हुई बिछावन को उपयोग करने, देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना करते समय कुश बिछावन का उपयोग करने मनुष्य की बुद्धि तेज होकर ज्ञान की प्राप्ति होती हैं और देवी-देवताओं के प्रति भक्तिभाव की जागृति होकर अपने सभी तरह के कार्यों में सिद्धि मिलती है। कुश के बिछावन का उपयोग करके अपने मन को एक जगह स्थिर करते हुए ध्यान साधना करने से देह व चित निर्मल होता है, जीवन में आ रही मुसीबतों से आजादी मिलती है।
कुश ऊर्जा की कुचालक:-कुश ऊर्जा की कुचालक होती है, इसलिए कुश के बिछावन पर बैठकर पूजा-वंदना, उपासना या अनुष्ठान करने में शक्ति का क्षय नहीं होता है, जिसके परिणामस्वरूप इच्छाओं की जल्दी से पूरा होना होता है। वेदों में कुश को शीघ्र नतीजे को प्रदान करने वाली ओषधि, उम्र को बढ़ाने वाला और दूषित वातावरण को पवित्र करके संक्रमण को फैलने से रोकने वाला बताया गया है।
बुद्धि और अपने ज्ञानशक्ति को बढ़ाने के लिए:-कुश को शुभ दिवस में लाल रंग के कपड़े में पूजा करके अपने इष्ट का ध्यान करके अपने भवन में किसी भी जगह पर रखने पर मनुष्य को बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण के समय में उपयोग करने पर:-ग्रहण काल से पहले सूतक में कुश को अन्न व पानी आदि में डालने से भी ग्रहण काल के बुरे असर से मुक्ति मिलती है।