कजली तीज(सातुड़ी तीज) व्रत विधि, कथा और महत्व(Kajali Teej (Saturi Teej)Vrat vidhi, katha and importance):-भाद्रपद कृष्णा तृतीया सुहागन स्त्रियों द्वारा अपने पति की दीर्घायु की मंगलकामना की जाती है। यह त्योहार पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य के रूप में मनाया जाता है। यह व्रत गौरी व्रत भी कहलाता है। इसे सातुड़ी तीज, बूढ़ी तीज भी कहते है। इस दिन महिलाएँ नीम की पूजा करती है। राज्य में कजली तीज का मेला बूँदी का प्रसिद्ध है।
श्रावण महीने की तीज को हरियाली तीज पर्व के रूप में भारतीय संस्कृति के लोगों के द्वारा मनाया जाता हैं। उसी तरह भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली तृतीया तिथि को भी भारतीय संस्कृति में पर्व के रूप में मनाया जाता है, इस पर्व को कजरी तीज कहा जाता है। इस तीज को "बूढ़ी तीज" बड़ी तीज और सातू तीज नाम से भी जाना जाता है।
इस दिन महेश्वरी वैश्य गेहूं, जौ, चने और चावल के सत्त में घी, मेवा डालकर विभिन्न तरह के व्यंजन बनाते है तथा जब चन्द्रोदय हो जाता है तब चन्द्रमा के दर्शन करके उसी बनाये हुए भोजन को ग्रहण करते है, इसलिए इस तीज को "सातुड़ी तीज" अथवा " सतवा तीज" भी कहा जाता है। इस दिन विशेषतौर पर गाय की पूजा की जाती है। आटे की सात लोइयां बनाकर उन पर घी, गुड़ रखकर गाय को खिलाने के बाद ही भोजन को ग्रहण करना चाहिए।
कुछ लोग इस तीज के दिन हरियाली तीज की तरह ही सिंजारे भेजते हैं। इस दिन बहुएं अपनी सासुजी को चीनी और रुपये भायना निकालकर देती है।
यह तीज का पर्व पूर्वी उत्तरप्रदेश और बिहार में मुख्यतौर पर मनाया जाता है। कजरी की प्रतिद्वंद्विता भी होती है। नावों पर चढ़कर लोग कजरी गीत गाते हैं। ब्रज के मल्हारों की ही तरह मिर्जापुर तथा बनारस के भी यह प्रमुख वर्षा गीत माना जाता हैं। इस दिन घरों में मिठाई तथा पकवान बनाए जाते है। झूले भी डाले जाते है। ग्रामीण भाषा में इसे "तीजा" कहा जाता है।
सातूड़ी तीज की सामग्री और विधि:-पहले ही दिन गेहूँ, चने की दाल, चावल, जौ आदि के सातू बनाते हैं और सातू का पिण्डा और ऊपर छोटा सतू अपने श्रद्धानुसार सवा पाव, सवा किलो का पिण्डा बनाते हैं। फिर अपनी बहिन-बेटियों के ससुराल भी सतु व सतु का पिण्डा पासने के लिए बनाकर भेजते हैं। पूजा में मोती, पीली ककड़ी, आकड़े का पत्ता, कंसूमल (लाल रंग की चूनड़ी), सतू, रोली-मौली, चावल, मेहन्दी आदि से पूजा करते हैं। पानी में पूजा की सभी सामग्री देखते हैं। फिर चारों कहानियां सुनकर रात को चांद देखकर सतू का पिण्डा पासकर व्रत खोलते हैं और बायना निकालकर सासूजी को पैर छूकर रुपये सहित देते है। सासूजी का आशीर्वाद को प्राप्त करते है।
भाद्रपद कृष्णा तीज कथा:-पुराने जमाने की बात है एक नगर में एक साहूकार अपनी पत्नी के साथ रहता था। उस साहूकार की पत्नी बहुत ही धार्मिक, दयालु और पतिव्रता थी। उस साहूकार का एक वैश्या से नाजायज सम्बंध था। पापों के फल से उस साहूकार को कोड हो गया। तब भी उसने वैश्या के यहां जाना नहीं छोड़ा। वह अपनी पत्नी को कहता,"मुझे उस वैश्या के घर ले चल" वह ले जाती। वैश्या पैसे की भूखी होती ही हैं। वह अपनी पत्नी के गहने ले जाकर उसे देता रहता है। पत्नी पतिव्रता थी। इसलिए वह जो चाहता पत्नी वहीं करती थी। एक बार तीज के दिन व्रत आया। वह दिनभर की भूखी थी। साहूकार ने उसे कहा, मुझे वैश्या के यहां ले चल। वह उसे उस वैश्या के यहां ले आई। उस दिन साहूकार से बीमारी के कारण चला नहीं जा रहा था। वह अपने कंधे पर बैठा कर ले आई थी। उससे साहूकार ने कहा- मैं लौट कर आऊं तब तक तुम यही खड़ी रहना। उस दिन वह वैश्या देव योग से झरोखे से देख रही थी। उसने साहूकार से पूछा-क्या वह तुम्हारी नौकरानी है, जो तुम्हें कंधे पर बैठा कर लाई थी? साहूकार ने बताया कि नहीं वह तो मेरी पत्नी है। यह सुनकर वैश्या का मन दुःख से भर गया। उसने साहूकार को समझाया कि वह वापस घर लौट जाए। आज तीज है। तुम्हारी पत्नी ने व्रत किया होगा। उसे पूजा करनी होगी। तीज माता ने वैश्या का मन बदल दिया। उसने साहूकार को उसके गहने दे दिए और पत्नी के साथ घर लौट जाने को कहा और कहा कि वह यहां वापिस कभी नहीं आए। उधर साहूकार की पत्नी नीचे खड़ी थी कि बरसात खूब जोर से बरसने लगी। छतों से पंडाले पड़ रही थी। साहूकार की बहू मन ही मन बहुत दुःखी थी। क्योंकि उसे तीज माता की पूजा करनी थी। उसी समय पानी में बहती हुई पूजा की सामग्री और नीम की टहनी वही आ गयी। उसने आराम से पूजा कर ली। तभी चांद भी उग आया। वह चांद को अर्ध्य देने लगी। उसी समय उसका पति भी वहां आ गया। अर्ध्य के जल के छींटे उस साहूकार पर लगे तो उसका कोड़ भी ठीक हो गया। अब तो वह दोनों प्रसन्नता पूर्वक घर लौट आये। हे तीज माता जैसे उसके दुःख मिटाए, वैसे ही सबके दुःख मिटाना। कहानी कहने वाले के, सुनने वाले के और हुंकारा देने वाले के सभी का दुःख दूर करना।
सतु तीज की कहानी:-प्राचीनकाल में एक नगर था, उसमें एक साहूकार का परिवार रहता था। उस साहूकार के सात बेटे थे। उस साहूकार ने अपने सभी बेटों के विवाह कर दिया था। उन सातों बेटों में से छः बेटों के विवाह ऊँचे घराने में किया था और उन छः बेटों के सासरे में भरपूर परिवार के सदस्य थे। लेकिन सातवें बेटे का विवाह गरीब घर में हुआ था और उसके ससुराल में उसकी बहु के कोई नहीं था। जब सतु तीज का दिन आया। तब छः बेटों की बहुओं के पियर से तो सतु के पीण्डे आये। सातवीं बहू का मन इस बात से दुःखी हो गया कि उसके लिए सतु के पीण्डा कहाँ से आएगा। क्योंकि सातवीं बहू के पियर पक्ष में कोई घर का सदस्य नहीं होने से पीण्डा नहीं आया। उसने अपने पति से कहा-मैंने सतु तीज का व्रत किया है, इसलिए "मेरे लिए भी सतु पीण्डा लेकर आना, चाहे कुछ भी करना पड़े।" सबके तो पीयर से सतु पीण्डा आया है। साहूकार गरीब था। बाकी छः भाईयों के पास तो पैसा था। साहूकार के लड़के ने अपनी पत्नी के लिए सतु पीण्डा लाने का पूरा प्रयास किया, लेकिन उसको कोई तरह की कामयाबी नहीं मिली। जब वह शाम को अपने घर बिना सतु के पीण्डा ही आ गया और अपनी पत्नी का उदास चेहरा देख तो वह रात भर सो नहीं सका वह रातभर सोचता रहा कि कैसे सतु की व्यवस्था करू। इस तरह सोचते-विचारते हुए सवेरा होने से पूर्व उठा। क्योंकि दूसरे दिन तो तीज थी। वह रात के अंधेरे में ही घर से निकल गया और वह एक हलवाई की दुकान में चोरी करने के घुसा। उस दुकान में चने की दाल पड़ी हुई थी। उसने वह चने की दाल को भट्टी में सेक दी। उसके बाद उसने चने की दाल को घट्टी में पीसना शुरू किया और उसने चने की दाल को घट्टी में पीस दिया था। चक्की या घट्टी की आवाज को सुनकर दुकान का मालिक व उसके घरवाले जग गए। उन्होंने आकर उसे पकड़ लिया।
पकड़कर पूछा- "यहां पर क्या कर रहे हो।" तब उस साहूकार ने जवाब दिया कि- "मेरी पत्नी ने तीज का व्रत रखा है, "कल सातूड़ी तीज है, उसका पीयर में कोई नहीं होने से पिण्डा आया नहीं और मैं गरीब हूँ। इसलिए मैं केवल सवा सेर सतु का पिण्डा बनाकर चोरी से ले जाने आया था। आपकी दुकान में दाल, चीनी और घी सभी था, इसलिए आपके यहाँ पर आकर चोरी से सतु बनाने लगा था। सतु के अलावा मुझे कुछ नहीं चाहिए। मैं चोर नहीं हूँ परिस्थित वश मुझे चोरी करनी पड़ रही है और वह चोरी भी पकड़ी गई।"
यह सब सुनकर दुकान का मालिक ने कहा कि- " तुम अब अपने घर के लिए जाओ! सुबह हम पिण्डा भिजवा देंगे। तुम्हारी स्त्री को हमने बेटी मान लिया है। वह घर पर लौट आया। दूसरे दिन सवेरे ही बनिये ने नौकरों के साथ चार तरह के सवा पांच सेर का सतु पिण्डा, साड़ी व ब्लाउज और दूसरी अन्य पूजा की सामग्री को साहूकार के लड़के घर भिजवा दिया। जेठानीयां देख कर जल गई। क्योंकि उनके पीयर से तो सवा सेर का ही पिण्डा आया था और इसके पीयर से सवा पांच सेर का पिण्डा आया था और कपड़े (सूट) आये थे।
सासु ने कहा- बहू तुमने तो कहा कहा कि मेरा कोई पीयर नहीं है। फिर यह कपड़े (सूट) और पिण्डा कहा से आया। "साहूकार की बहू ने कहा- ये मेरे धर्म के मां-बाप ने भेजा है और सास को सभी बात बताई। जैसा तीज माता ने साहूकार के बहू को पीयर दिखाया, वैसे सबको दिखाये।
कजली तीज का महत्व:-कजली तीज का व्रत करने से सुहागिन स्त्रियों के सुहाग की आयु बढ़कर लंबी उम्र की प्राप्ति होती है और गृहस्थी जीवन सभी तरह के पति सुख की प्राप्ति होती हैं।