आत्म कारक ग्रह का परिचय और फल (Introduction and Consequences of Atmakaraka Planets):-जन्मकुंडली में ग्रहों को स्पष्ट कर उसके राशि, अंश, कला, विकला का अंकन किया जाता है। यानी जिस किसी भी मनुष्य के जन्म के समय कौन सा ग्रह किस राशि के कितने अंश कला-विकला निकल चुके है, उन्हें स्पष्ट ग्रह कहा जाता है। जन्मकुंडली में लग्न से ज्यादा महत्त्व आत्म कारक ग्रहों का होता है।
रवि से लेकर मन्द तथा सैंहिकेय को जोड़कर आठों ग्रहों में से जिसके अंश सबसे ज्यादा होते है, वहीं जन्मकुंडली में आत्मकारक ग्रह होता है। यदि दो ग्रहों के अंश समान होने पर कलाओं की अधिकता से और कलाएं भी समान होने पर विकला की अधिकता से आत्मकारक ग्रह का निर्धारण करते है। शिखी ग्रह को इन आठों ग्रह के साथ आत्मकारक ग्रहों में नहीं शरीक करते है, क्योंकि केतु के अंशादि राहु ग्रह के समान ही होते है।
◆सबसे ज्यादा अंश का कारक ग्रह आत्मकारक होता है।
◆आत्मकारक ग्रह से कम अंश वाला ग्रह 'अमात्य कारक' होता है।
◆अमात्य कारक से कम अंश वाला ग्रह भ्रात कारक होता है।
◆भ्रात कारक से कम अंश वाला ग्रह मातृ कारक होता है।
◆मातृ कारक से कम अंश वाला ग्रह पुत्र कारक होता है।
◆पुत्र कारक से कम अंश वाला ग्रह ज्ञाति कारक होता है।
◆ज्ञाति कारक से कम अंश वाला ग्रह स्त्री कारक होता है।
आत्मकारक ग्रह और अमात्य कारक ग्रह के योग से मनुष्य के राजयोग का निर्माण होता है। जिससे इन दोनों आत्मकारक व अमात्यकारक ग्रह का बहुत ज्यादा महत्त्वपूर्ण जगह रखते है।
जरा से शास्त्रकारो के मत के अनुसार मातृ कारक ग्रह ही पुत्र कारक ग्रह होता है। पुत्र के सम्बंध में विचार मातृ कारक ग्रह से ही किया जाता है।
ऋषि पराशर के अनुसार इन कारक ग्रहों का क्रम:-इन कारक ग्रहों में सबसे पहले आत्म कारक ग्रह को ,दूसरे स्थान पर अमात्य कारक ग्रह को, तीसरे स्थान पर भ्रात कारक ग्रह को, चौथे स्थान पर मातृ कारक ग्रह को,पांचवे स्थान पर पुत्र कारक ग्रह को, छठें स्थान पर पितृ कारक ग्रह को, सातवें स्थान पर ज्ञाति कारक ग्रह को और आठवें स्थान पर स्त्री कारक ग्रह की बताई गयी थी।
आत्म कारक ग्रह के नतीजे:-कौनसा ग्रह आत्म कारक होने पर मनुष्य के जीवन में क्या व किस तरह से असर डालेगा इसके बारे में आत्म कारक ग्रहों के नतीजे से जानकारी मिल सकती है।
रवि के आत्म कारक ग्रह होने पर नतीजे:-रवि ग्रह के आत्म कारक होने पर मनुष्य में रवि ग्रह से सम्बंधित सभी गुणों व दोषों का असर पड़ता है।
◆रवि के आत्म कारक होने से मनुष्य यादास्त शक्ति अच्छी होने से वे ज्ञानवान बन जाते है।
◆मनुष्य किसी भी तरह की बातों को गहराई से सोचने वाला होकर सबसे अच्छा बन जाता है। मनुष्य के द्वारा बोली जानी वाली बोली को बोलते समय उसका असर दूसरों पर पड़ता है और मुख पर चमक होती है।
◆मनुष्य किसी के प्रति हो रहे अन्याय को बर्दाश्त नहीं करने वाले होते है,जिससे इनको बहुत ही ज्यादा गुस्सा आने स इनके दोस्तों की कमी रहती है।
◆मनुष्य मान-सम्मान की बात पर भावुक हो जाता है और किसी भी काम को पूरी लगन से उस काम को सही मुकाम पर पहुचाने के लिए अड़े रहने वाले होते है।
◆रवि अग्नि तत्व होने से मनुष्य की देह में पित्त की मात्रा ज्यादा होने से बुखार व खून सम्बन्धी बीमारी मुमकिन हो सकती है।ज्यादा उम्र में ह्रदय की बीमारी भी मुमकिन है।
सोम के आत्म कारक ग्रह होने पर नतीजे:-सोम के आत्मकारक होने से मनुष्य मिजाजवश ठंडा व स्निग्ध मिजाज का होता है।
◆बोली में मधुरता व आंखों का एक जगह पर स्थिर न होना होता है व मनुष्य का मन भी एक जगह पर नहीं टिकने वाला होता है।
◆मनुष्य कोई भी काम को करते समय मन में बार-बार सोचने के बाद उस सोच को बदलने वाले होते है। मनुष्य कोई भी काम को शुरू करने के बाद उस काम को पूरा करेंगे वह उन्हें पता नहीं होता है, जिसके कारण उस काम को पूरा करने में नाकामयाब हो जाने वाले होते है।
◆आत्मकारक सोम के होने से मनुष्य की बहुत ज्यादा पसन्द धर्म व आत्मा व परमात्मा के सम्बन्ध के चिंतन व मनन करने वाले होते है।
◆आत्मकारक सोम के नीच व पाप ग्रहों से ग्रसित होने से मनुष्य को मन की कल्पना से उत्पन्न रोग से रोगी भी बना सकते है।
भौम के आत्म कारक ग्रह होने पर नतीजे:-भौम के आत्मकारक ग्रह होने से मनुष्य देह का आकार में बौने होते है।
◆भौम ताकत व शूरता की निशानी होता है, इसलिए मनुष्य देह से बहुत अधिक मजबूत व अस्थियां मजबूत होती है।
◆भौम के आत्म कारक ग्रह होने से मनुष्य की देखने की शक्ति में तेजपन और चमक होती है। किसी भी मनुष्य का ध्यान अपनी ओर खींचने का गुण होने इनके मित्र ज्यादा संख्या में होते है।
◆भौम के आत्म कारक ग्रह होने से मनुष्य के द्वारा किसी भी तरह से निष्कर्ष निकालने में चालाक व मजबूत होते है।
◆भौम के आत्म कारक ग्रह होने से मनुष्य किसी भी काम को हाथ में लेते है, उस काम को पूरा करने के लिए अपनी पूरी लगन से मेहनत करके अपने जोश से उस काम को पूरा करवाने में कामयाब होते है।
सौम्य के आत्म कारक ग्रह होने पर नतीजे:-सौम्य के आत्म कारक ग्रह होने से मनुष्य बुद्धि से कुशल होता है और किसी भी मनुष्य से जो बातचीत करता है उस बातचीत को अपनी तरीके से करने वाले होते है।
◆मनुष्य अपने जीवन मे समय के अनुसार बदलते रहने के मिजाज के कारण दूसरे मनुष्य इनकी तरफ खिंचे चले आते है।
◆सौम्य के आत्म कारक ग्रह होने से मनुष्य के दोस्तों व इनके परिचितों की संख्या ज्यादा होती है।
◆सौम्य के आत्म कारक ग्रह होने से मनुष्य की आंखों में किसी भी मनुष्य को अपने खीचने की ताकत होती है।
◆सौम्य ग्रह के आत्म कारक ग्रह होने से मनुष्य की वास्तविक से उम्र कम उम्र के दिखाई देने वाले होते है।
जीव के आत्म कारक ग्रह होने पर नतीजे:-जीव के आत्मकारक ग्रह होने से मनुष्य की देह के सभी अंगों का विकास पूर्ण रूप से हुवा अधिक मजबूत होता है।
◆जीव के आत्मकारक ग्रह होने से मनुष्य की आंखों में बिना किसी छल की भावना होती है और आंखों में चुपी दिखाई देती है।
◆जीव के आत्मकारक ग्रह होने से मनुष्य बहुत ही विषयों का जानकार और अपनी बात को अपने तरीके से मनाने वाले होते हुए।
◆जीव के आत्मकारक ग्रह होने से मनुष्य की पसंद परीक्षणों को करने में, शास्त्रों की पढ़ाई करने की तरफ ज्यादा झुकाव होता है।
◆जीव के आत्मकारक ग्रह होने से मनुष्य की बोली में गहराई होने से और वह जो वाणी से स्वर बोलता है उन स्वरों में वजन होता है।
◆जीव के आत्मकारक ग्रह होने से मनुष्य की वाणी के कारण दोस्तों की संख्या गिनती की होती है।
भृगु के आत्म कारक ग्रह होने पर नतीजे:-भृगु के आत्म कारक ग्रह होने मनुष्य की देह का रंग गोरा और दूसरों को अपनी तरफ खीचने वाले व्यक्तित्व वाले होते है।
◆भृगु के आत्म कारक ग्रह होने से मनुष्य के नाक-नक्शे तीक्ष्ण होते है और आंखे व चेहरे आकार में गोलाई पन लीये होते है।
◆भृगु के आत्म कारक ग्रह होने से मनुष्य की देह लंबी, भुजाएं भी लम्बी और वक्षस्थल भी आगे की तरफ उठा हुआ होता है।
◆भृगु के आत्म कारक ग्रह होने से मनुष्य के चेहरे से मौन भाव जाहिर होता है।
◆भृगु के आत्म कारक ग्रह होने से मनुष्य के चेहरे पर बिना किसी तरह के छल की मुसकराहट से दूसरे मनुष्य जिनमें औरतें जल्दी उनकी तरफ झुक जाती है और इनके दोस्तों की संख्या ज्यादा होती है।
◆भृगु के आत्म कारक ग्रह होने से मनुष्य को कोई भी विषय की अच्छी जानकारी होने से निर्णय जल्दी लेकर हर क्षेत्र में कामयाब होते हैं।
मन्द के आत्म कारक ग्रह होने पर नतीजे:-मन्द के आत्म कारक ग्रह होने से मनुष्य मन्द के मिजाज के अनुसार काम करने वाले होते है और दूसरे ग्रहों की तुलना में मन्द ग्रह का ज्यादा महत्त्व होता है, क्योंकि मन्द ग्रह बुरी दशा में होने पर मनुष्य को बहुत ही ज्यादा नुकसान देने वाला होता है।
◆मन्द ग्रह का मिजाज अपने काम पर डटे रहने वाला होने से मनुष्य को मजबूत संकल्प वाला बनाता है।
◆मन्द के आत्म कारक ग्रह होने से मनुष्य में हिम्मत भरपूर होती है,जिससे मनुष्य मुश्किल से मुश्किल माहौल का मुकाबला करने में सक्षम होता है और जिससे मनुष्य अपने कामों को करने में कामयाब होता है।
◆मन्द के आत्म कारक ग्रह होने से मनुष्य को गुस्सा अधिक आने से त्वचा व चेहरे पर नीरसता होती है।
सैंहिकेय के आत्म कारक ग्रह होने पर नतीजे:-सैंहिकेय के आत्म कारक ग्रह होने से मनुष्य में मन्द के तरह व्यक्तित्व वाला होता है। लेकिन इसमें मन्द की तुलना में कम ताकत क्षमता होती है।
◆आत्मकारक ग्रह मनुष्य के भाग्य के अच्छे-बुरे नतीजे का मालिक होता है अर्थात मनुष्य के भविष्य को बनाने में आत्मकारक ग्रह की स्थिति निर्णय देने वाली होती है।
◆किसी भी मनुष्य के फलित के समय लग्न, चन्द्र व आत्मकारक ग्रह के बारे में सोचना चाहिए।
◆आत्मकारक ग्रह अच्छी स्थिति व उच्च के होने पर अपनी दशा में अच्छे नतीजे देते है।
◆आत्मकारक ग्रह बुरी स्थिति में व नीच गत होने पर अपनी दशा में बुरे नतीजे देने वाले होते है।