गायत्री माता की आरती(Gayatri Mata Aarti):-शास्त्रानुसार नित्य, नैमित्तिक और काम्य-कर्म सिद्धि के लिए गायत्री माता की आरती और गायत्री मंत्र से बढ़कर कोई मन्त्र नहीं माना जाता है। वैदिक मंत्रों में गायत्री मंत्र की महिमा को सर्वाधिक उत्तम माना गया है। इस मन्त्र को महामन्त्र भी कहा गया हैं। गायत्री मंत्र के जप करने से और आरती को करने से मनुष्य को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है और उनको उत्तम गति मिल जाती है। मानवीय जीवन से मुक्ति मिलकर आने-जाने से भी छुटकारा मिलकर भवसागर को पार कर लेते है। प्राचीन धर्म गर्न्थो के अनुसार ऐसा बताया गया हैं कि वेदों की उत्पत्ती गायत्री से हुई है, अतः इसका महत्त्व और भी बढ़ जाता हैं। इसे वेदमाता के नाम से भी पुकारा जाता हैं। गायत्री माता के दूसरे नाम-सावित्री, ब्रह्म, गुरू मन्त्र आदि बताए गए है।
वेदमाता के रूप में माता गायत्री को जाना जाता है उनके चार हाथ में चार वेद लिए है, जो कि ऋजुवेद, सामवेद, यजुवेंद्र और अर्थववेद है। इनको वेदों की स्वामिनी भी कहा जाता हैं।
धर्मशास्त्रों के अनुसार जब ब्रह्माजी अपना यज्ञ करने के लिए पुष्कर की जगह को चुना था तब वे तो उस पवित्र जगह पर समय से चले गए और उनके यज्ञ की पूरी व्यवस्था भी हो गई थी। मुहूर्त का समय भी आ रहा था तब सभी उनकी भार्या की प्रतीक्षा कर रहे थे, क्योंकि कोई भी यज्ञ भार्या बगैर सम्पन्न नहीं हो सकता है, तब मुहूर्त का समय नजदीक देख ब्रह्माजी ने अपने तप से मानस स्त्री को जन्म दिया तो यह देवी अपने हाथों में वेदों को लेकर प्रकट हुई थी और उनके साथ विवाह करके यज्ञ को पूर्ण किया था। इनको ब्रह्माजी ने अपने यज्ञ को सफल करवाने के स्वरूप इनको ज्ञान की देवी का आशीर्वाद दिया था। इसलिए इनकी आरती करने से मनुष्य को ज्ञान की प्राप्ति होती है। जो मनुष्य नियमित रूप से आरती करता है उनकी याददाश्त शक्ति बढ़ती है। आरती करने से मनुष्य ज्ञानवान बनकर अच्छी जगह पर पद की प्राप्ति मिलती हैं।
वेदों में तरह-तरह की उपासनाओं के बारे में विवरण मिलता हैं। लेकिन इन सभी उपासनाओं में गायत्री माता की उपासना का ज्यादा महत्व है। गायत्री मंत्र के अधिष्ठाता देवता सूर्य भगवान को माना जाता है, जो अपने उपासकों को सदबुद्धि प्रदान करते हैं। सदबुद्धि से ही मनुष्य अपने खुद और जगत का कल्याण कर सकता है।
गायत्री त्रिशक्ति स्वरूपिणी मानी गई है। तीन समय की सन्ध्योपासना में गायत्री का तीन रूपों में ध्यान किया जाता है। ब्रह्मरूप में गायत्री का ध्यान करना चाहिए, विष्णु रूप में सावित्री का ध्यान करना चाहिए और रुद्ररूप में सरस्वती का ध्यान करना चाहिए।
अर्थात:-
◆प्रातःकाल की संध्या में गायत्री का ध्यान करना चाहिए।
◆मध्याह्न की संध्या में सावित्री का ध्यान करना चाहिए।
◆सायंकाल की संध्या में सरस्वती के रूप में ध्यान करना चाहिए।
जो कोई इन तीन सन्ध्या में ध्यान अपने मन को एक जगह पर स्थिर करके करता है उसका उद्धार हो जाता है उसके सभी की मन की इच्छाएं पूर्ण हो जाती है।
।।गायत्री माता आरती की।।
आरती श्री गायत्री जी की, आरती श्री गायत्री जी की।
ज्ञान को दीप और श्रद्धा की बाती, सो भक्ति ही पूर्ति करैं जहं घी की।।
आरती श्री गायत्री जी की, आरती श्री गायत्री जी की।
मानस की शुचि थाल के ऊपर, देवि की जोति जगै जहं नीकी।
आरती श्री गायत्री जी की, आरती श्री गायत्री जी की।
शुद्ध मनोरथ के जहां घण्टा, बाजै, करै पूरी आसहु ही कि।
आरती श्री गायत्री जी की, आरती श्री गायत्री जी की।
जाके समक्ष हमें तिहु लोक की, गद्दी मिलै तबहुं लगे फिकी।
आरती श्री गायत्री जी की, आरती श्री गायत्री जी की।
आरति प्रेम सों नेम सो जो करि, ध्यावहि मूरति ब्रह्म लली की।
आरती श्री गायत्री जी की, आरती श्री गायत्री जी की।
संकट आवैं न पास कबौ तिन्हें, सम्पदा और सुख की बन लीकी।
आरती श्री गायत्री जी की, आरती श्री गायत्री जी की।
ज्ञान को दीप और श्रद्धा की बाती, सो भक्ति ही पूर्ति करैं जहं घी की।
आरती श्री गायत्री जी की, आरती श्री गायत्री जी की
ज्ञान को दीप और श्रद्धा की बाती, सो भक्ति ही पूर्ति करैं जहं घी की।
।।इति गायत्री माता की आरती।।
।।जय बोलो माता गायत्री की जय हो।।