श्री रामायण जी की आरती अर्थ सहित(Aarti of Shri Ramayana ji With Meaning):-भगवान रामजी के जीवनवृत का वर्णन श्री वाल्मीकि जी ने अपने काव्य रचना में की थी। यह काव्य रचना हिन्दुधर्म के लोगों के लिए सबसे मुख्य धार्मिक ग्रन्थ है इस ग्रन्थ का नाम ऋषिवर वाल्मीकि जी ने रामायण रखा था। उस ग्रन्थ में भगवान श्रीरामजी के जन्मकाल का, बाल्यकाल का, यौवनकाल एवं समस्त जीवनकाल का वर्णन किया गया हैं। उन्होंने बताया हैं कि भगवान स्वयं श्रीहरि के रूप में धरती लोक में राजा दशरथजी के घर में अवतरित होकर समस्त मानव जाति का कल्याण किस तरह किया उसके बारे में बताया गया है, जिनमें माता-पिता के प्रति, भाइयों के प्रति, अपने प्रजाजनों के प्रति, अपनी भार्या के प्रति और अपने सन्तान के प्रति कर्तव्यों का पालन किस तरह करना चाहिए। उनका अनुसरण करके मनुष्य को उनको अपना आदर्श के रूप में ग्रहण करना चाहिए। स्वयं भगवान होते हुए भी सभी तरह के दुःखो को भोगते हुए जीवन में संघर्ष करते हुए अपने जीवनकाल को कैसे सफल बनाया जा सकता हैं।
श्री रामायणजी की आरती के रचयिता श्री गोस्वामीजी तुलसीदास जी हैं, इस रामायण आरती को एक संगीत की रचना के रूप में निर्माण किया हैं इस आरती को ऐसे नहीं कर सकते है, जब तक की श्री रामचरितमानस के एक अंश का भाग पूरा नहीं हो जाता हैं या जब तक श्री रामचरितमानस का समस्त पाठ पूरा नहीं हो जाता है, तब ही इस आरती को करना चाहिए। इस आरती में श्री रामचरितमानस के बारे में गुणगान किया गया हैं। श्री रामचरितमानस में भगवान रामजी के जन्म से लेकर समस्त जीवन का गुणगान किया गया हैं। इसमें बताया गया हैं जब माता कैकेयी के द्वारा वनवास के वचन लेने पर जब भगवान रामजी अपने वचन में बंधकर वनवास को माता सीताजी एवं लक्ष्मणजी के साथ वन को गमन करते हैं, वन में निवास करते हुए जब दैत्यराज रावण के द्वारा माता सीताजी का अपरहरण कर लेने पर स्वंय भगवान उनको ढूंढते हुए उनको हनुमानजी से मुलाकात होती है तब हनुमानजी उनको राजा सुग्रीव जी मिलाकर उनकी सहायता करके रावण का वध करके माता सीताजी को पुनः वरण करते हैं उसका वर्णन किया हुआ हैं।
रामायणजी की आरती करने से मनुष्य को नैतिकता की शिक्षा की प्राप्ति होती हैं।
मनुष्य भगवान रामजी की आरती करके अपने जीवन की समस्त तरह की बाधाओं से मुक्ति पा सकता हैं।
आरती के द्वारा मनुष्य अपने कर्मों को सुधार सकता है।
आरती को नियमित करते रहने पर ईश्वर की प्राप्ति हो जाती हैं।
आरती को सच्चे मन एवं विश्वास के साथ करने जीवन के आने-जाने के बंधन से मुक्ति मिल जाती हैं, अंत समय में मनुष्य को विष्णुलोक की प्राप्ति हो जाती हैं। अपने जीवन में भगवान रामजी की आदर्शो को अपनाने से मनुष्य को सामाजिक एवं समस्त जगह सम्मान की प्राप्ति हो जाती है। उसका नाम इतिहास के पन्नों में छप जाता है। इसलिए भगवान रामजी की नियमित रूप से आराधना को आरती के रूप में करते रहना चाहिए।
।।अथ श्री रामायण जी की आरती।।
आरती श्री रामायण जी की।
कीरति कलित ललित सिय-पी की।।
गावत ब्रह्मादिक मुनि नारद,
बाल्मिक विग्यान-बिसारद।।
आरती श्री रामायण जी की।
कीरति कलित ललित सिय-पी की।।
सुक सनकादि सेष अरू सारद,
बरनि पवनसुत कीरति नीकी।।१।।
आरती श्री रामायण जी की।
कीरति कलित ललित सिय-पी की।।
गावत वेद पुरान अष्टदस,
छओं शास्त्र सब ग्रँन्थन को रस।।
आरती श्री रामायण जी की।
कीरति कलित ललित सिय-पी की।।
मुनि-जन धन सन्तन को सरबस,
सार अंस संमत सबही की।।२।।
आरती श्री रामायण जी की।
कीरति कलित ललित सिय-पी की।।
गावत संतत संभु भवानी,
अरु घटसंभव मुनि बिग्यानी।
आरती श्री रामायण जी की।
कीरति कलित ललित सिय-पी की।।
ब्यास आदि कबिबर्ज बखानी,
कागभुसुंडि गरुड़ के ही की।।३।।
आरती श्री रामायण जी की।
कीरति कलित ललित सिय-पी की।।
कलिमल-हरनि विषय रस फीकी,
सुभग सिंगार मुक्ति जुबती की।
आरती श्री रामायण जी की।
कीरति कलित ललित सिय-पी की।।
दलन रोग भव मूरी अमी की,
तात मात सब बिधि तुलसी की।।४
आरती श्री रामायण जी की।
कीरति कलित ललित सिय-पी की।।
।।इति श्री रामायणजी की आरती।।
।।जय बोलो सियावर रामचन्द्रजी की जय।।
।।जय बोलो पुरुषोत्तमराम दशरथनन्दन की जय।।