शीतलाष्टक स्तोत्र अर्थ सहित(Sheetala Ashtakam stotra with meaning):-माता शीतला को चेचक की देवी के रूप में जाना जाता हैं, माता शीतला जी अनुकृपा पाने के लिए उनकी पूजा-अर्चना करनी चाहिए, जिससे माता की कृपा बनी रहे।
माता शीतला की शीतला अष्टकं स्तोत्र का पाठ को करके जिनको सन्तान की समस्या हैं उसको सन्तान की प्राप्ति हो जाती हैं।
श्री शीतलाष्टक स्तोत्रं का पाठ करने से मनुष्य को ताप सम्बन्धित रोगों से मुक्ति मिलकर शीतलता की अनुभूति प्राप्त होती हैं।
श्री शीतलाष्टक स्तोत्रं माता शीतला जी को समर्पित हैं, उनकी स्तुति के लिए निर्माण किया गया हैं। जो कि श्रीस्कंदमहापुराणे में वर्णित हैं, जो इस तरह हैं।
।।श्री शीतलाष्टक स्तोत्रं।।
।।श्रीगणेशाय नमः।।
न्यास:-
अस्य श्रीशीतलास्तोत्रस्य महादेव ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, शीतला देवता।
लक्ष्मी बीजम्, भवानी शक्तिः, सर्वविस्फोटकनिवृत्यर्थे जपे विनियोगः।।
ईश्वर उवाच:-
वन्देSहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम्।
मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालंकृतमस्तकाम्।।१।।
वन्देSहं शीतलां देवीं सर्वरोगभयापहाम्।
यामासाद्य निवर्तेत विस्फोटकभयं महत्।।२।।
शीतले शीतले चेति यो ब्रूयाद्याहपीडितः।
विस्फोटकभयं घोरं क्षिप्रं तस्य प्रणश्यति।।३।।
यस्त्वामोदकमध्ये तु धृत्वा पूजयते नरः।
विस्फोटकभयं घोरं गृहे तस्य न जायते।।४।।
शीतले ज्वर दग्धस्य पूति गन्धयुतस्य च।
प्रणष्टचक्षुषः पुंसस्त्वामाहुर्जीवनौषधम्।।५।।
शीतले तनुजान् रोगान्नाणां हसरि दुस्त्यजान्।
विस्फोटककविदीर्णानां त्वमेकामृतवर्षिणी।।६।।
गलगण्डाग्रह रोगा ये चान्ये दारूणा नृणाम्।
त्वदनुध्यान मात्रेण शीतले यान्ति संक्षयम्।।७।।
न मन्त्रो नौषधं तस्य पापरोगस्य विद्यते।
त्वामेकां शीतले धात्री नान्यां पश्यामि देवताम्।।८।।
मृणालतन्तुसदृशीं नाभिहृन्मध्यसंस्थिताम्।
यस्त्वां संचिन्तयेद्दूवि तस्य मृत्युर्न जायते।।९।।
अष्टकं शीतलादेव्या यो नरः प्रपठेत्सदा।
वास्फोटकभयं घोरं गृहे तस्य न जायते।।१०।।
श्रोतव्यं पठितव्यं च श्रद्धाभक्तिसमन्वितैः।
उपसर्गविनाशाय परं स्वस्त्ययनं महत्।।११।।
शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत्पिता।
शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः।।१२।।
रासभो गर्दभश्चैव खरो वैशाखनन्दनः।
शीतलावाहनश्चैव दूर्वाकन्दनिकृन्तनः।।१३।।
रासभो गर्दभश्चैव खरो वैशाखनन्दनः।
शीतलावाहनश्चैव दूर्वाकन्दनिकृन्तनः।।१३।।
एतानि खरनामानि शीतलाग्रे तु यः पठेत्।
तस्य गेहे शिशुनां च शीतलारूड् न जायते।।१४।।
शीतलाष्टकमेवेदं न देयं यस्य कस्यचित्।
दातव्यं च सदा तस्मै श्रद्धाभक्तियुताय वै।।१५।।
।।इति श्रीस्कंदमहापुराणे शीतलाष्टकं सम्पूर्णम्।।
।।जय बोलो शीतला माता की जय।।
।।जय बोलो भगवती शीतला महामाया की जय।।
।।अथ श्री शीतलाष्टकं स्तोत्र।।
अथ श्री शीतला अष्टकं स्तोत्रं अर्थ सहित:-माता शीतला की पूजा-अर्चना करके जो कोई व्यक्ति श्री शीतला अष्टकं स्तोत्रं का पाठ करता हैं, उनको जीवन में अनेक तरह कष्टों से मुक्ति मिल जाती हैं।
।।श्रीगणेशाय नमः।।
न्यास:-
अस्य श्रीशीतलास्तोत्रस्य महादेव ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, शीतला देवता।
लक्ष्मी बीजम्, भवानी शक्तिः, सर्वविस्फोटकनिवृत्यर्थे जपे विनियोगः।।
भावार्थ:-श्री शीतला माता के श्री शीतला स्तोत्र की रचना ऋषि श्री भोलेनाथ जी, छन्द अनुष्टुप् , देवता शीतला, बीज लक्ष्मी, शक्ति भवानी आदि को माना गया हैं, जो समस्त तरह के अंदर की गर्मी या उष्णता के फलस्वरूप चटक कर फुट जाने वाले घातक रोग जिसमें शरीर पर दाने निकल जाते है, उसको चेचक रोग कहते हैं इस तरह चेचक आदि के समान रोगों से मुक्ति पाने के लिए श्री शीतला स्तोत्र का जप करने से फल प्राप्ति के उद्देश्य में सफलता मिलती हैं।
ईश्वर उवाच:- इंद्रदेवता द्वारा माता श्री शीतला देवी की स्तुति के बारे में जो श्रीस्कंदमहापुराणे में जो बताया गया हैं उसका वर्णन निम्नलिखित हैं, जो इस तरह हैं:
वन्देSहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम्।
मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालंकृतमस्तकाम्।।१।।
भावार्थ:-ईश्वर ने अपनी कोमल वाणी से कहा-वैशाखनंदन पर सवार होकर सवारी करने वाली, जिनके वस्त्र आकाश हैं, कर में सोहती या कूर्चा को धारण करने वाली, कुंभ को लिए हुए और सूप से सँवरी मस्तक वाली भगवती शीतला की मैं स्तुति करता हैं।
वन्देSहं शीतलां देवीं सर्वरोगभयापहाम्।
यामासाद्य निवर्तेत विस्फोटकभयं महत्।।२।।
भावार्थ:-समस्त तरह के डर एवं समस्त तरह की व्याधियों को मूल सहित नष्ट करने वाली देवी जगदंबिका गर्दभवाहिनी की स्तुति करता हूँ, जिनके द्वार में गये हुए की रक्षा करने वाले होती है, जो सभी आश्रय देने वाली है जो समस्त तरह के अंदर की गर्मी या उष्णता के फलस्वरूप चटक कर फुट जाने वाले घातक रोग जिसमें शरीर पर दाने निकल जाते है, उसको चेचक रोग कहते हैं इस तरह चेचक आदि के समान बड़े-बड़े रोगों के डर मुक्ति मिल जाती हैं।
शीतले शीतले चेति यो ब्रूयाद्याहपीडितः।
विस्फोटकभयं घोरं क्षिप्रं तस्य प्रणश्यति।।३।।
भावार्थ:-शरीर की चर्म पर सफेद रंग के दाने निकले वाले घातक रोग चेचक के कारण ग्रसित जो व्यक्ति "शीतले-शीतले" शब्दों को दोहराते है, उनके भयानक विस्फोटक की तरह दाह देने वाली व्याधि का डर जल्दी ही समाप्त हो जाता हैं।
यस्त्वामोदकमध्ये तु धृत्वा पूजयते नरः।
विस्फोटकभयं घोरं गृहे तस्य न जायते।।४।।
भावार्थ:-माता शीतला की मूर्ति जो तोय के बीच में स्थापित है, उस मूर्ति या प्रतिमा को जो कोई भी व्यक्ति अपने हस्त लेता है, उसको शीतलता की अनुभूति होती है, जिससे भयानक अग्नि की तरह दाह करने वाले, चर्म रोग से निकलने वाले सफेद दाने का चेचक रोग एवं शरीर में उष्णता के रोगों के भयानकता का डर उस व्यक्ति के निकेतन में उत्पन्न नहीं हो पाता हैं।
शीतले ज्वर दग्धस्य पूति गन्धयुतस्य च।
प्रणष्टचक्षुषः पुंसस्त्वामाहुर्जीवनौषधम्।।५।।
भावार्थ:-हे शीतले! जो व्यक्ति ऊष्णता या ताप से पीड़ित होते है, जिसके जख्म से निकलने वाले पीब या पस की सड़ाँध या बदबू आती हैं और जिनको आंखों से कम दिखाई देने लगे या जिनके आंखों की नजर दृष्टि का नाश हो गई हैं उनके लिए आपको ही उन मनुष्य के लिए जिन्दगी को सही रूप से ठीक करने की औषधी कहा गया हैं।
शीतले तनुजान् रोगान्नाणां हसरि दुस्त्यजान्।
विस्फोटककविदीर्णानां त्वमेकामृतवर्षिणी।।६।।
भावार्थ:-हे शीतले! बहुत मुश्किलों से ठीक होने वाले असाध्य बीमारियों को आप मानवों के शरीर से दूर रखती है और उनके असाध्य रोगों नष्ट कर देने वाली हैं, आप एक ही जो कि बहुत परेशानी कर देने वाले अग्नि की तरह जलाने वाले रोगों से ग्रसित मानव के लिए जीवन देने की तरह आप उन पर अपनी अनुकृपा की बारिश कर देने वाली होती हैं।
गलगण्डाग्रह रोगा ये चान्ये दारूणा नृणाम्।
त्वदनुध्यान मात्रेण शीतले यान्ति संक्षयम्।।७।।
भावार्थ:-हे शीतले महामाया! गले में होने वाली सूजन के रोग को गलगण्ड कहते हैं, उस गलगण्ड ग्रह एवं दूसरे और भी दूसरे तरह के बहुत घातक रोग होते हैं, उनको भी आप ठीक कर देने वाली हैं, जो मनुष्य आपकी आराधना करता है एवं जो मनुष्य आपकी स्तुति करता है उसके समस्त रोगों को आप समाप्त कर देने वाली हैं।
न मन्त्रो नौषधं तस्य पापरोगस्य विद्यते।
त्वामेकां शीतले धात्री नान्यां पश्यामि देवताम्।।८।।
भावार्थ:-हे शीतले महामाया! ऊधम या परेशान करने वाले दुष्ट बीमारी की कोई भी भेषज और नहीं कोई मन्त्र से ठीक हो सकता है, उस दुष्ट परेशान करने वाले रोग की चिकित्सा केवल आपके पास ही है, आपके अलावा कोई देवी-देवता के द्वारा उस दुष्ट बीमारी उपचार करने को मुझे कोई नहीं दिखाई देता हैं।
मृणालतन्तुसदृशीं नाभिहृन्मध्यसंस्थिताम्।
यस्त्वां संचिन्तयेद्दूवि तस्य मृत्युर्न जायते।।९।।
भावार्थ:-हे शीतले महामाया! आप एक कमल की मूल की तरह कोमल मिजाज वाली हैं, तुंदी या धुन्नी एवं उर के बीच में निवास करने वाली है, जो मनुष्य आपकी स्तुति करता है, आपको याद करता है, उसकी मृत्यु को आप टालने वाली होती हैं।
अष्टकं शीतलादेव्या यो नरः प्रपठेत्सदा।
वास्फोटकभयं घोरं गृहे तस्य न जायते।।१०।।
भावार्थ:-हे शीतले महामाया! आपके प्रति पूर्ण श्रद्धाभाव एवं पूर्ण निष्ठा रखते हुए जो कोई भी मनुष्य श्री शीतला अष्टकं को हमेशा पाठन-वांचन करता है, उस मनुष्य के निकेतन में अग्नि की तरह दाह वाले भयंकर विस्फोटक करने वाले रोग का डर उस मनुष्य के निकेतन में निवास करने वालों को नहीं सताता हैं।
श्रोतव्यं पठितव्यं च श्रद्धाभक्तिसमन्वितैः।
उपसर्गविनाशाय परं स्वस्त्ययनं महत्।।११।।
भावार्थ:-जो मनुष्य श्री शीतला अष्टकं स्तोत्र पर अपनी पूर्ण श्रद्धाभाव एवं आस्था रखते हुए भक्तिभाव से मनुष्य को स्तोत्र का वांचन-पाठन करना चाहिए जिससे उस मनुष्य को जीवन में आ रही सभी तरह की मुशीबतों एवं अपने जीवन काल में समस्त तरह की कठिनाइयों से मुक्ति मिल जाती हैं, इसलिए मनुष्य को अपने जीवनकाल में श्री शीतला अष्टकं स्तोत्र का पाठन करना चाहिए या उस स्तोत्र को सुनना चाहिए जिससे मनुष्य का उद्धार हो सके।
शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत्पिता।
शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः।।१२।।
भावार्थ:-हे शीतले महामाया! आप इस सम्पूर्ण संसार का पालन-पोषण करने वाली माता हैं, हे शीतले महामाया! आप इस संसार के समस्त जीवों के सरंक्षक के रूप पिता हैं, हे शीतले महामाया! आप इस संसार का लालन-पालन एवं पोषण करने वाली हैं, हे शीतले महामाया! आपको मैं बार-बार नमन करता हूँ आप मेरी वन्दना को स्वीकार करें।
रासभो गर्दभश्चैव खरो वैशाखनन्दनः।
शीतलावाहनश्चैव दूर्वाकन्दनिकृन्तनः।।१३।।
भावार्थ:-हे शीतले महामाया! जो मनुष्य आपके जो अन्य नाम एवं आपके सवारी के जो नाम हैं उनका उच्चारण करता हैं जैसे आपके सवारी के नाम गर्दभ, रासभ, खर, वैशाखनन्दन, शीतला वाहन, दूर्वाकन्द, निकृन्तन, भगवती शीतला की सवारी के इन समस्त नामों का शीतला माता की प्रतिमा या मन ही मन में दोहरातें है तो उनके निकेतन में शीतला माता के सम्बन्धित शीतला या चेचक आदि रोग नहीं होता हैं।
एतानि खरनामानि शीतलाग्रे तु यः पठेत्।
तस्य गेहे शिशुनां च शीतलारूड् न जायते।।१४।।
भावार्थ:-ऊपरोक्त भगवती शीतला की सवारी के इन समस्त नामों का शीतला माता की प्रतिमा या मन ही मन में दोहरातें है तो उनके निकेतन में शीतला माता के सम्बन्धित शीतला या चेचक आदि रोग नहीं होता हैं।
शीतलाष्टकमेवेदं न देयं यस्य कस्यचित्।
दातव्यं च सदा तस्मै श्रद्धाभक्तियुताय वै।।१५।।
भावार्थ:-हे शीतले महामाया! जो मनुष्य श्री शीतला अष्टकं स्तोत्र के प्रति श्रद्धाभक्ति भाव एवं विश्वासभाव रखते हैं उनको ही इस स्तोत्र को देना चाहिए। श्री शीतलाष्टक स्तोत्र को हर कोई मनुष्य को नहीं देना चाहिए क्योंकि अनजान व बिना ज्ञानवान को देने पर वह इस स्तोत्र का महत्त्व नहीं समझ सकता हैं।
।।इति श्रीस्कंदमहापुराणे शीतलाष्टकं सम्पूर्णम्।।
।।जय बोलो शीतला माता की जय।।
।।जय बोलो भगवती शीतला महामाया की जय।।