श्री रामचन्द्रजी की आरती अर्थ सहित(Aarti of Shri Ramchandraji With Meaning):-भगवान राम जी श्री विष्णुजी के अवतार के रूप में पृथ्वीलोक पर जन्म लिया था। राजा दशरथजी एवं कौशल्या माता के घर पर जन्म लिया था। जो कि पृथ्वीलोक पर बढ़ रहे दैत्यों के अत्याचार से मुक्त करने एवं मानव जाति का उद्धार करने के लिए लिया था।
भगवान राम स्वयं ईश्वर का रूप होते हुए भी मानव जाति में रहते हुए अपने मर्यादा का ध्यान रखा था।
भगवान राम के द्वारा मर्यादा में रहते हुए समस्त मानव जाति को मर्यादा का पाठ भी पढ़ाया। मर्यादा में रहते हुए उन्होंने अपने भुजबल से दैत्यों का संहार किया और इस पृथ्वीलोक, आकाशलोक और पाताललोक से दैत्यों से मुक्त करवाया था।
भगवान राम जी की आरती में उनके द्वारा अपनी मर्यादा में रहते हुए किये हुए कार्यों का आखयान मिलता है जिससे मनुष्य जाति के लोगों को सीख मिल सके कि अच्छे कर्मों को करके सभी तरह की मुसीबत को अपने कर्म फल से समाधान किया जा सकता हैं और अपने जीवन को एक सही दिशा की ओर ले जाया जा सकता हैं।
आरती का भावार्थ्:-भगवान रामजी की आरती को पांच रूपो में मानते हुए ही जीवनकाल में करते रहना चाहिए। जो व्यक्ति भगवान रामजी की आरती को उनके पांच स्वरूपों के रूप में करता हैं उस मनुष्य को अपने जीवनकाल के अंत में विष्णुलोक की प्राप्ति हो जाती हैं और उसका मोह-माया से मुक्ति मिल जाती हैं जिससे उसको बार-बार जन्म लेने एवं मरण के भय से मुक्ति मिल कर अंत में देवधाम मिल जाता हैं। जिससे भगवान के चरणों की सेवा का अवसर प्राप्त होता हैं।भगवान रामजी की आरती के पांच चरणों को बताया गया है, उन पांच चरणों से भगवान की आरती करनी चाहिए। जो कि इस तरह हैं-
पहली आरती पुष्पन की माला।
काली नाग नाथ लाये गोपाला।।
प्रथम चरण:-प्रथम चरण में भगवान रामजी की आरती फूलों की माला से करनी चाहिए। फूलों की मालाओं से करने पर भगवान रामजी खुश होते हैं। जब भगवान श्री कृष्णजी ने कालिया नाग से सरोवर को मुक्त करवाया था और उसके फन पर विराजमान होकर सरोवर को उसके विष मुक्त किया था। इसके साथ ही फूलों की मालाओं से काले नाग के रूप में शेषनाग भी भगवान की आराधना फूलो को लाकर करते हैं।
दूसरी आरती देवकी नन्दन।
सन्त उबारन कंस निकन्दन।।
दूसरे चरण:-दूसरी चरण में आरती माता देवकी के पुत्र के रूप में करनी चाहिए। जिस तरह भगवान कृष्णजी ने सन्तों की रक्षा दैत्यराज कंस से की थी। उसी तरह मनुष्य को उनके पद चिन्हों पर चलते हुए समस्त मानव जाति को नहीं सताना चाहिए। उस रूप को मानकर श्रीरामजी की आरती करनी चाहिए।
तीसरी आरती त्रिभुवन मन मोहे।
रत्न सिंहासन सीता रामजी सोहे।।
तीसरे चरण:-तीसरे चरण में आरती में त्रिभुन अर्थात् तीनो लोक के स्वामी के रूप में करना चाहिए। जिनमें भगवान का गुणगान करते हुए अपने मन को भगवान को समर्पित करत हुए करना चाहिए। भगवान रामजी को माता सीताजी के साथ रत्नों से जड़ित सिंहासन पर अर्थात् अपने हृदय रूपी मन में बिठाकर करनी चाहिए।
चौथी आरती चहुं युग पूजा।
देव निरंजन स्वामी और न दूजा।।
चतुर्थ चरण:-चतुर्थ चरण की पूजा में भगवान चारों युग में मानकर करनी चाहिए। जिनमें भगवान श्रीराम जी को उनको ही सर्वोपरि मानते हुए करने चाहिए उनके अलावा कोई भी देव नहीं हैं ऐसा मानकर उनकी आरती करनी चाहिए।
पांचवी आरती राम को भावे।
राम जी की यश नाम देव जी गावे।।
पंचम चरण:-पंचम चरण में भगवान रामजी को समस्त जगह पर मानते हुए करनी चाहिए, जो कोई भी मनुष्य भगवान रामजी को समस्त जगह पर मानकर आरती को करता हैं उस आरती करने वाले को भगवान श्रीरामजी की अनुकृपा प्राप्ति हो जाती हैं। भगवान रामजी के यशोगान को समस्त देवगण भी गुणगान करते हैं। इसलिए मनुष्य को भगवान श्री पुरुषोत्तम रामजी की आरती को पांच चरणों में करना चाहिए।
।।अथ श्री रामचन्द्रजी की आरती।।
आरती कीजै रामचन्द्र जी की।
हरे हरि दुष्ट दलन सीतापति जी की।।
आरती कीजै रामचन्द्र जी की।
हरे हरि दुष्ट दलन सीतापति जी की।।
पहली आरती पुष्पन की माला।
काली नाग नाथ लाये गोपाला।।
आरती कीजै रामचन्द्र जी की।
हरे हरि दुष्ट दलन सीतापति जी की।।
दूसरी आरती देवकी नन्दन।
सन्त उबारन कंस निकन्दन।।
आरती कीजै रामचन्द्र जी की।
हरे हरि दुष्ट दलन सीतापति जी की।।
तीसरी आरती त्रिभुवन मन मोहे।
रत्न सिंहासन सीता रामजी सोहे।।
आरती कीजै रामचन्द्र जी की।
हरे हरि दुष्ट दलन सीतापति जी की।।
चौथी आरती चहुं युग पूजा।
देव निरंजन स्वामी और न दूजा।।
आरती कीजै रामचन्द्र जी की।
हरे हरि दुष्ट दलन सीतापति जी की।।
पांचवी आरती राम को भावे।
राम जी की यश नाम देव जी गावे।।
आरती कीजै रामचन्द्र जी की।
हरे हरि दुष्ट दलन सीतापति जी की।।
।।इति श्री रामचन्द्रजी की आरती।।
।।जय बोलो सियावर रामचन्द्रजी की जय।।
।।जय बोलो पुरुषोत्तम दशरथनन्दन की जय।।