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Thursday, August 26, 2021

बहुला चतुर्थी व्रत कथा एवं महत्व(Bahula Chaturthi vrat katha and importance)

                



बहुला चतुर्थी व्रत कथा एवं महत्व(Bahula Chaturthi vrat katha and importance):-बहुला चतुर्थी भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि को बहुला चतुर्थी कहा जाता हैं। 

यह पर्व गौ माता की पूजा का होता हैं। बछड़े की पूजा करनी होती हैं और बछड़े को भोग लगाना होता है।

इस दिन गाय के दूध से बनी हुई कोई वस्तु को नहीं खाना चाहिए। गाय के दूध पर उसके बछड़े का अधिकार समझना चाहिए।

बहुला चतुर्थी 2021 में तिथि का समय:-2021वर्ष में 25 सितम्बर 2021 में चतुर्थी तिथि सायंकाल 16:18:01 से प्रारम्भ होकर 26 सितम्बर 2021 को सायंकाल 17:13:21 तक रहेगी।

बहुला चतुर्थी 2021 में पूजन का समय:-पूजन का समय इस तरह रहेगा, जो निम्नलिखित हैं:


शुभ का चौघड़िया:-प्रातःकाल 05:57 से 07:34 तक रहेगा जो कि शुभ कार्य को करने के लिए शुभ रहेगा।

चर का चौघड़िया:-प्रातःकाल 10:46 से 12:23 तक रहेगा, जो कि शुभ  कार्य को करने के लिए शुभ रहेगा।

लाभ का चौघड़िया:-दोपहर 12:23 से 13:59 तक रहेगा जो कि शुभ कार्य को करने के लिए शुभ रहेगा।

अमृत का चौघड़िया:-दोपहर 13:59 से 15:35 तक रहेगा जो कि शुभ कार्य को करने के लिए शुभ रहेगा।

शुभ का चौघड़िया:-सायंकाल 17:12 से 18:48 तक रहेगा जो कि शुभ कार्य को करने के लिए शुभ रहेगा।

       

 

बहुला चतुर्थी व्रत का महत्व:-इस व्रत को करने स्त्रियों को सन्तान सम्बन्धित सभी तरह के सुखों की प्राप्ति होती हैं।

◆बहुला चतुर्थी को पुत्रवती स्त्रियां पुत्र की रक्षा के लिए यह व्रत को करती हैं।

◆बहुला चतुर्थी के व्रत को करने से व्रत करने वाली स्त्रीयों के सन्तान के रूप में पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है और जिनको सन्तान नहीं हो रही हैं, उनको इस व्रत के प्रभाव से सन्तान की प्राप्ति होती है।

◆इस व्रत के फलस्वरूप ऐश्वर्य की बढ़ोतरी होती हैं।

बहुला चतुर्थी के व्रत की विधि:-बहुला चतुर्थी का व्रत अपने मन से पूर्ण विश्वास के साथ करना चाहिए, इस व्रत की विधि इस तरह हैं:

◆प्रातःकाल जल्दी उठकर अपनी दैनिकचर्या को पूरा करना चाहिए।

◆उसके बाद स्नान करके स्वच्छ वस्त्र को धारण करना चाहिए। इस दिन व्रत में उपवास करने का संकल्प लेकर उपवास करना चाहिए।

◆उसके बाद में अपने घर में कच्ची जगह को गोबर से निपाई-पुताई करना चाहिए।

◆पूजा की सामग्री में कंकू, चावल, मौली, पुष्प, मीठी गुड़ से बनी रोटी, मीठा सीरा, जल से भरा तांबे का लोटा, अगरबत्ती, दीपक, पँचधान्य और वस्त्र आदि लेना चाहिए।

◆पूजा की सामग्री को एक थाली में लेना चाहिए।

◆उसके बाद में अपने घर पर किसी भी बछड़े को लाकर या फिर किसी भी गोशाला में जाकर पूजन करना चाहिए।

◆बछड़े का विधि-विधानपूर्वक पूजन करना चाहिए।

◆उसके बाद में अपनी श्रद्धानुसार किसी भी जगह पर चारा डालना चाहिए।

◆इस तरह सभी क्रियाओं के करने के बाद में कथा का वांचन एवं सुनना चाहिए।

◆अंत में रात्रिकाल में चन्द्रमाजी को देखकर जल से अर्ध्य अर्पण करके अपना व्रत को छोड़ना एवं भोजन को ग्रहण करना चाहिए।

◆अंत में बहुला चौथ की कथा को सुनना चाहिए।


बहुला चतुर्थी की पौराणिक कथा:-भगवान कृष्णजी के द्वापरयुग में जब भगवान श्रीहरि ने श्रीकृष्णजी के रूप में अवतार लेकर वज्र में लीलाएँ की तो, तब समस्त देवी-देवताओं ने भी अपने स्वरूप को अपने अपने अंशो को बदलकर गोप-ग्वाल रूप को धारण करके श्रीकृष्णजी के स्वरूप के दर्शन किया था। इस तरह गोशिकरामणि कामधेनु भी अपने अंश से उत्पन्न होकर बहुला नामक रूप में श्री नन्दबाबा की गोशाला में गाय का रूप बदलकर उसकी शोभा को बढ़ाने लगी। इस तरह भगवान श्रीकृष्णजी का कामधेनु से ज्यादा लगाव था और कामधेनु भी उनसे बहुत लगाव रखती थी। जिस तरह एक माता अपने सन्तान का ध्यान रखते है, उसी तरह ही बहुला के रूप में कामधेनु जब भी बालकृष्ण को देखती तो बहुला के थनों से दूध की धारा अपने आप बहने लगती थी, तब श्रीकृष्ण भी बहुला के मातृभाव को देखकर उसके स्तनों में कमल की पंखुड़ियों के समान अपने ओठों को लगाकर अमृत के समान उस दुग्ध को पीते थे।

एक समय की बात हैं जब बहुला जंगल मे हरी-हरी घास को चर रही होती हैं। श्रीकृष्णजी को लीलाएँ करने की सूझी, उन्होंने अपनी माया स्वरूप को धारण करके एक सिंह का रूप को धारण करते हैं, बहुला के सामने प्रकट होते है तब बहुला बहुत ही डर जाती हैं और उसकी पूरी देह डर के मारे कंपकपाने लगती हैं।

तब वह अपनी डरती हुई आवाज में कहती है, कि हे वनराज! मैंने आज अपने बछड़े को दूध नहीं पिलाया हैं, वह मेरी राह देखता होगा कि मैं उसे दूध पिलाऊंगी। जब मैं अपने बछड़े को दूध पिलाकर आती हु तब आप मुझे अपने भोजन के रूप ग्रहण कर लेना।

तब वनराज ने कहा-कि जब मृत्यु के नजदीक बन्धन में आये हुए को छोड़ना क्या उचित है, तुम पर मैं कैसे विश्वास करो कि तुम अपने बछड़े को दूध पिलाकर वापस आओगी? तब उदास मन से बहुला ने कहा कि सत्य और धर्म को साक्षी मानकर कहती हूँ कि मैं बछड़े को दूध पिलाकर वापस आ जाऊंगी। इस तरह वनराज ने उसके सत्य और धर्म की शपथ के फलस्वरूप उसे जाने दिया। इस तरह बहुला गोशाला में जाकर अपने बछड़े का स्नेह करके उसको दूध पिलाकर वापस अपने सत्यधर्म की रक्षा के लिए सिंह के पास वापस आकर कहती है, की हे वनराज! मैं अपने सत्यधर्म के स्वरूप तुम्हारे पास वापस आ गई हूं। तुम मुझे अपने भोजन के रूप में ग्रहण करो। इस तरह के वचन सुनने के बाद सिंह के रूप को धारण किये हुए श्रीकृष्णजी अपने असली स्वरूप में आते है और कहते हैं- कि हे बहुले! यह मेरी माया के कारण मैनें तुम्हारी परीक्षा ली थी, तुमने अपने सत्यधर्म के नियम का पालन किया। इसलिए मैं तुझे आशीर्वाद देता हूँ कि इस सत्यधर्म के नियम पर अडिग रहने के कारण तुम्हारी घर-घर पर पूजा होगी और तुमको दुनिया में गो-माता के रूप में जाना जाएगा। इस तरह आशीर्वाद के प्राप्त होने के बाद बहुला अपने घर वापस आती है और अपने बछड़े को लाड़-दुलार करती हैं। अपने बछड़े के साथ अपना आगे का जीवन खुशी के साथ व्यतीत करती हैं। इस तरह से बहुला चतुर्थी के व्रत का प्रचलन शुरू हुआ था।