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Friday, August 27, 2021

गोगा पंचमी(भाई भीना) आज है, जानें महत्व और पूजा विधि(Goga panchami(Bhai Bheena) is today, know it's importance and puja vidhi)

                  



गोगा पंचमी(भाई भीना) आज है, जानें पूजा विधि और महत्व (Goga panchami(Bhai Bheena) is today, know it's puja vidhi and importance ):-भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की पंचमी के दिन को नाग देवता की पूजा का दिन होता है, इस दिन स्त्रियां नागदेवता को भाई मानकर पूजा करती हैं, इसलिए इस त्योहार को गोगापंचमी या भाई भीना कहते हैं। 


गोगा पंचमी की विधि:-गोगा पंचमी के दिन दिवार पर गेरू से रंग कलर करके कोलसा में थोड़ा सा दूध मिलाकर चौकोर जैसा घर बनाकर उस पर पांच गोगाजी (सर्प) को मांडते हैं और गोगाजी को जल, कच्चे दूध, मौली, चावल और बाजरे के आटे में घी एवं शक्कर मिलाकर पूजा करते हैं। उसके बाद में मोठ, बाजरा एक दिन पहले भिगोये जाते हैं, उसको भी पूजा में लेते हैं। पूजा करने के बाद कहानी सुनते हैं और बयाना निकालकर सासुजी के पैर छूकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करके वह बायना उनको देते हैं और कच्चे दूध के छींटे पूरे घर में लगाते हैं।


गोगा पंचमी की पौराणिक कथा:-बहुत पुराने जमाने की बात हैं, एक ब्राह्मण देव के सात पुत्रवधुएँ थी। उनमें से छह बहुएँ, तो अपने अपने भाइयों के साथ मायके चली जाती हैं, लेकिन सातवीं बहु के मायके में कोई भाई नहीं था। इसलिए उसे मायके से लेने के लिए कोई नहीं आया। इस तरह उदास होकर उसने शेषनाग को भाई मानकर उसको याद किया। इस तरह शेषनाग उसको दुःखी एवं उदास देखकर वे एक गरीब ब्राह्मण का रूप धरके उसके घर पर आते है और उसको अपने साथ ले जाते हैं। आगे जाते ही वे अपना असली रूप में आते है, तब उनकी वह बहिन डर जाती है, तब शेषनाग अपने फण पर बैठाकर नागलोक में ले जाते है। इस तरह वहां पर उसका बहुत ही स्वागत होता है, वह नागलोक में आराम एवं सुख से निश्चित होकर रहने लगती हैं। कुछ समय बीतने पर शेषनाग के नागिन ने कई नागों को जन्म देती है। उस समय पर सातवीं छोटी बहू के हाथ में से दीपक गिर जाता है और एक शेषनाग के एक बच्चे की पूंछ कट जाती हैं। फिर कुछ समय बाद वह अपने ससुराल वापस आ जाती हैं। अगले साल में फिर से श्रावण मास आता हैं। छ्ह बहुएँ तो अपने-अपने भाइयों के साथ चली जाती हैं, लेकिन सातवीं बहू फिर से शेषनाग भाई को याद करने लगती हैं। भाद्रपद मास की कृष्णपक्ष की पंचमी तिथि के दिन उसने नाग को देवता के रूप में मानकर उनकी पूजा अर्चना शुरू की थी। पहले के कारण नागदेवता के कुछ बच्चे उससे नाराज थे, क्योंकि उसके कारण नाग बच्चे की पूँछ कट गई थी और वे उससे से अपने पूँछ कटने का बदला लेना चाहते थे। इसलिए उससे बदला लेने के लिए उसके घर पर पूजा के दिन ही आ जाते हैं। जब आकर देखते है, की वह सातवीं छोटी बहू नाग देवता की पूरी विधि-विधान से पूजा कर रही होती है, तब उसकी पूजा को देखकर उनके मन में उत्पन्न गुस्सा शांत हो जाता हैं और उसके बाद उसको अपनी बहिन मानने लग जाते हैं। छोटी सातवीं बहू जब उन सबको देखती है, तब वह बहुत ही खुश होती है उनकी आवभगत करती है। उनको आसन देकर उनके रक्षाबंधन की तरह राखी बांधती है। उनको चावल और दूध अर्पण करती हैं। तब वे सभी उसको आशीर्वाद देते है कि बहिन आज के बाद तुम्हारी सभी तरह की जिम्मेदारी हम सब पर है और नागों से बिना डरे रहो। इस तरह वे अपनी बहिन के घर पर कुछ समय रहते हैं। उसके बाद में जाते समय वह अपनी बहिन को कहते हैं कि जो कोई भी स्त्रियां भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की पंचमी तिथि के दिन हम सब नागों को भाई के रूप मानकर पूजा करेगी, हम सब उस बहिन की रक्षा करेंगे। इस तरह से नागपंचमी का चलन चल पड़ा। जो स्त्रियां नागों को भाई मानकर पूजा करती है वे नाग उनकी समस्त तरह से जीवनकाल उनकी सहायता करते हैं।