काली माता की आरती अर्थ सहित(Kali Mata ki Aarti With Meaning):-माता काली मां दुर्गा जी का भयंकर स्वरूप माना जाता है, माता काली का रूप भगवती माता ने दुष्ट दानवों से समस्त लोकों की रक्षा करने के लिए लिया था। जिससे समस्त तीनों लोकों में हो रहे हाहाकार को नष्ट करने के तीनों देवियों के मिश्रण से नए रूप की उत्पत्ति हुई थी जो कि स्वरूप में भयंकर एवं विकराल रूप था। इस रूप के स्वरूप ही समस्त तीनों लोकों की दुष्ट दैत्यों से हो सकी थी। दारुक दैत्य ने अपनी तपस्या करके ब्रह्म देवजी से वरदान लिया कि समस्त तीनों लोकों पर उसका अधिपत्य हो जावे तब ब्रह्मदेव ने वरदान दिया। वरदान के घमण्ड में उस दारुक दैत्य ने समस्त तीनों लोकों में हाहाकार मचा दिया था। जिसके फलस्वरूप समस्त देव ब्रह्माजी के साथ विष्णुलोक गए। तब ब्रह्माजी ने बताया कि इस दैत्य का संहार केवल अलौकिक शक्ति स्वरूप कोई स्त्री ही कर सकती है तब देवता स्त्रियों के रूप करके दैत्य को मारने गए लेकिन असफलता हाथ लगी। अंत में निराश देवता कैलाश गिरी पर शिवजी पास जाकर निवेदन करने पर माता भगवती ने अपने शरीर के अंश से एवं शिवजी के अंश के स्वरूप एक स्त्री की उत्पत्ती हुई जो अंत में सभी दैत्यों के संहार किया लेकिन माता अभी तक शांत हो रही तब शिवजी ने उनके चरणों सो गए तब माता को ज्ञात हुआ वे शांत हुई। इस माता काली जी का जन्म हुआ था। काली माता को खुश करने के लिए उनकी आरती को नियमित रूप से करना चाहिए। जिससे उनकी अनुकृपा बनी रहे।
काली माता की आरती अर्थ सहित:-जो कि इस तरह है:
"मंगल" की सेवा सुन मेरी देवा! हाथ जोड़ तेरे द्वार खड़े।
पान सुपारी, ध्वजा नारियल, ले ज्वाला तेरी भेंट धरे।।
अर्थात्:-हे माता! आप मंगल करने वाली हो मेरी विनती सुनिए, आपके द्वार पर हाथ जोड़कर खड़ा हूँ। आपकी सेवा में पान, सुपारी, श्रीफल एवं आपकी पताका आदि को में अर्पण करता हूँ आप इन सभी को ग्रहण कीजिए।
सुन जगदम्बे न कर न बिलंबे, संतन के भण्डार भरे।
सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे।।
अर्थात्:- हे जगदम्बे! आप आने में देरी नहीं करे एवं साधु-संतों और दुःखियों के भंडार को अपने वात्सल्य भाव से पूर्ण करे।
"बुद्धि" विधाता तू जगमाता, मेरा कारज सिद्ध करे।
चरण-कमल का लिया आसरा, शरण तुम्हारी आन पड़े।।
अर्थात्:- हे जगमाता! आप तो बुद्धि की अधिष्ठाता हो, इसलिए आपसे निवेदन करता हूँ कि आप मेरे समस्त कार्यों को सिद्ध करे।
हे माता आपके चरणों की शरण में पड़ा हूँ आप तो सभी को शरण देने वाली हैं।
जब-जब भीड़ पड़े भक्तन पर, तब-तब आप सहाय करे।
संतन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे।।
अर्थात्:-हे माता जब आपके द्वार पर भक्तों की भीड़ पड़ती है तब आप सबकी सहायता करने के लिए तत्पर रहती है। सभी दिन-दुःखियों का पालन करने वाली हो एवं सभी भक्तों को खुशहाली देने वाली हो, माता काली आपकी जय हो आप सब पर ऐसे ही कल्याण करते रहना।
''गुरु'' के वार सकल जग मोह्यो, तरुणी रूप अनूप धरे।
माता होकर पुत्र खिलावै, कहीं भार्या होकर भोग करे।।
अर्थात्:-आपका वार गुरुवार को जगत में माना गया है, आप युवती का स्वरूप धर कर आपकी छवि बहुत निराली लगती है। आप माता बनकर अपने भक्त को पुत्र स्वरूप मानकर उनको भोजन कराती हो, कहीं पर आप पत्नी बनकर अपना जीवन अर्पण करने वाली हो। गुरु के लिए आपकी भक्ति अनन्य है, जो भक्त अपने गुरु के प्रति अच्छी भावना रखता है उस पर आपकी कृपा बनी रहती है।
''शुक्र'' सुखदाई सदा सहाई, संत खड़े जय जयकार करे।
संतन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे।।
अर्थात्:-आप शुक्रवार को अपने सभी भक्तों की सहायता के खड़ी रहने वाली हो, साधु-संत आपके द्वार पर खड़े होकर आपका गुणगान करते हुए जय-जयकार करते है।सभी दिन-दुःखियों का पालन करने वाली हो एवं सभी भक्तों को खुशहाली देने वाली हो, माता काली आपकी जय हो आप सब पर ऐसे ही कल्याण करते रहना।
ब्रह्मा, विष्णु, महेश फूल लिए, भेंट देन सब तेरे द्वार खड़े।
अटल सिंहासन बैठी माता, सिर सोने का छत्र धरे।।
अर्थात्:-ब्रह्मा जी, शिवजी और विष्णु जी सहित सभी देवता हाथों में पुष्प को लेकर आपको देने के लिए आपके द्वार खड़े रहते हैं आप तो स्थिर सिंहासन पर विराजमान रहती हो, सिर पर सोने का छत्र को धारण करने वाली हो।
वार ''शनिचर'' कुंकुम वरणी, जन लुंकड़ पर हुकुम करे।
संतन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे।।
अर्थात्:-आप शनिवार को कुंकुम को धारण करने वाली हो, समस्त लोकों पर आपका अधिपत्य है। सभी दिन-दुःखियों का पालन करने वाली हो एवं सभी भक्तों को खुशहाली देने वाली हो, माता काली आपकी जय हो आप सब पर ऐसे ही कल्याण करते रहना।
खड्ग खप्पर त्रिशुल हाथ लिये, रक्तबीज कूँ भस्म करे।
शुंभ निशुभं क्षणहिमें महिषासुरको पकड़ दले।।
अर्थात्:-आपके हाथ में तलवार को धारण किये हुए हो, हाथ में खप्पर और त्रिशूल को धारण किये हुए हो, आप तो रक्तबीज से उत्पन्न रक्तबीज को नष्ट करके उनकी भस्म को लगती हो।
आप तो शुंभ-निशुंभ को कुछ ही पल में वध करने वाली हो, जब आप महिषासुर को पकड़ कर उसका भी वध कर देती हो।
'आदित'' वारी आदि भवानी, जन अपने का कष्ट हरे।
संतन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे।।
अर्थात्:-हे भवानी माता! आप तो रविवार को भवानी के रूप को धारण करती हो तब आप सभी भक्तों के दुखों को हर लेती हो।सभी दिन-दुःखियों का पालन करने वाली हो एवं सभी भक्तों को खुशहाली देने वाली हो, माता काली आपकी जय हो आप सब पर ऐसे ही कल्याण करते रहना।
कुंपित होय कर दानव मारे, चण्ड मुण्ड सब चूर करे।
जब तुम देखो दया रूप हो, पल में संकट दूर टरे।।
अर्थात्:-हे भवानी माता! आप जब अपने क्रोध में रहती हो तब दुष्टो दानवों का संहार करके ही दम भरती हो। आपके प्रहार से चुण्ड-मुण्ड नामक दैत्य भी चकनाचूर हो जाते है। जब आप की अनुकृपा होती है तब आप सबके पापों एवं कष्टों को हर लेती हो।
''सौम्य'' स्वभाव धरयो मेरी माता, जन की अर्ज कबूल करे।
संतन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे।।
अर्थात्:-हे भगवती माता! आप बुधवार को सौम्य रूप को धारण करती है, इसलिए हे माता! मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि आप सभी भक्तजनों की मनोकामना को पूरा करे।सभी दिन-दुःखियों का पालन करने वाली हो एवं सभी भक्तों को खुशहाली देने वाली हो, माता काली आपकी जय हो आप सब पर ऐसे ही कल्याण करते रहना।
सात बार की महिमा बरनी, सब गुण कौन बखान करे।
सिंह पीठ पर चढ़ी भवानी, अटल भवन में राज करे।।
अर्थात्:-हे माता! जो भक्त आपकी महिमा का बखान सात बार करता हैं, तो आप उस भक्त को सभी तरह के सुख को दे देती हो। जब आपके सभी गुणों का बखान नहीं करता है तब आप शेर पर सवार होकर समस्त ब्रह्माण्ड पर आपका ही राज रहता हैं।
दर्शन पावें, मंगल पावें, सिद्ध साधक तेरी भेंट धरे।
संतन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे।।
अर्थात्:-हे माता! जो कोई भक्त अपनी भक्ति से आपका दर्शन कर लेता है, तब उसका मंगल हो जाता है। साधक आपके दर्शन को पाने के लिए सिद्धि करते है तब आप उनको दर्शन देती हो।सभी दिन-दुःखियों का पालन करने वाली हो एवं सभी भक्तों को खुशहाली देने वाली हो, माता काली आपकी जय हो आप सब पर ऐसे ही कल्याण करते रहना।
ब्रह्मा वेद पढ़ें तेरे द्वारे, शिव शंकर हरि ध्यान करें।
इन्द्रकृष्ण तेरी करें आरती, चंवर कुबेर डुलाया करे।।
अर्थात्:-हे भवानी माता! ब्रह्माजी भी आपके द्वार पर वेदों का बांचन करते है, भगवान शिवजी एवं श्रीविष्णुजी भी आपका ध्यान करते हैं। देवताओं के सम्राट इंद्रदेव एवं श्रीकृष्ण जी आपकी आरती करते है और चँवर धनपति कुबेरजी डुलाते हैं।
जय जय जननी जय मातु भवानी, अचल भवन में राज्य करे।
संतन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे।।
अर्थात्:-हे भवानी! जय जय जय हो आपकी स्थिर निवास में रहने वाली एवं राज्य करने वाली हो। सभी दिन-दुःखियों का पालन करने वाली हो एवं सभी भक्तों को खुशहाली देने वाली हो, माता काली आपकी जय हो आप सब पर ऐसे ही कल्याण करते रहना।
।।अथ आरती श्री कालीजी की।।
"मंगल" की सेवा सुन मेरी देवा! हाथ जोड़ तेरे द्वार खड़े।
पान सुपारी, ध्वजा नारियल, ले ज्वाला तेरी भेंट धरे।।
सुन जगदम्बे न कर न बिलंबे, संतन के भण्डार भरे।
सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे।।
मंगल" की सेवा सुन मेरी देवा! हाथ जोड़ तेरे द्वार खड़े।
पान सुपारी, ध्वजा नारियल, ले ज्वाला तेरी भेंट धरे।।
"बुद्धि" विधाता तू जगमाता, मेरा कारज सिद्ध करे।
चरण-कमल का लिया आसरा, शरण तुम्हारी आन पड़े।।
मंगल" की सेवा सुन मेरी देवा! हाथ जोड़ तेरे द्वार खड़े।
पान सुपारी, ध्वजा नारियल, ले ज्वाला तेरी भेंट धरे।।
जब-जब भीड़ पड़े भक्तन पर, तब-तब आप सहाय करे।
संतन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे।।
मंगल" की सेवा सुन मेरी देवा! हाथ जोड़ तेरे द्वार खड़े।
पान सुपारी, ध्वजा नारियल, ले ज्वाला तेरी भेंट धरे।।
''गुरु'' के वार सकल जग मोह्यो, तरुणी रूप अनूप धरे।
माता होकर पुत्र खिलावै, कहीं भार्या होकर भोग करे।।
मंगल" की सेवा सुन मेरी देवा! हाथ जोड़ तेरे द्वार खड़े।
पान सुपारी, ध्वजा नारियल, ले ज्वाला तेरी भेंट धरे।।
''शुक्र'' सुखदाई सदा सहाई, संत खड़े जय जयकार करे।
संतन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे।।
मंगल" की सेवा सुन मेरी देवा! हाथ जोड़ तेरे द्वार खड़े।
पान सुपारी, ध्वजा नारियल, ले ज्वाला तेरी भेंट धरे।।
ब्रह्मा, विष्णु, महेश फूल लिए, भेंट देन सब तेरे द्वार खड़े।
अटल सिंहासन बैठी माता, सिर सोने का छत्र धरे।।
मंगल" की सेवा सुन मेरी देवा! हाथ जोड़ तेरे द्वार खड़े।
पान सुपारी, ध्वजा नारियल, ले ज्वाला तेरी भेंट धरे।।
वार ''शनिचर'' कुंकुम वरणी, जन लुंकड़ पर हुकुम करे।
संतन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे।।
मंगल" की सेवा सुन मेरी देवा! हाथ जोड़ तेरे द्वार खड़े।
पान सुपारी, ध्वजा नारियल, ले ज्वाला तेरी भेंट धरे।।
खड्ग खप्पर त्रिशुल हाथ लिये, रक्तबीज कूँ भस्म करे।
शुंभ निशुभं क्षणहिमें महिषासुरको पकड़ दले।।
मंगल" की सेवा सुन मेरी देवा! हाथ जोड़ तेरे द्वार खड़े।
पान सुपारी, ध्वजा नारियल, ले ज्वाला तेरी भेंट धरे।।
''आदित'' वारी आदि भवानी, जन अपने का कष्ट हरे।
संतन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे।।
मंगल" की सेवा सुन मेरी देवा! हाथ जोड़ तेरे द्वार खड़े।
पान सुपारी, ध्वजा नारियल, ले ज्वाला तेरी भेंट धरे।।
कुंपित होय कर दानव मारे, चण्ड मुण्ड सब चूर करे।
जब तुम देखो दया रूप हो, पल में संकट दूर टरे।।
मंगल" की सेवा सुन मेरी देवा! हाथ जोड़ तेरे द्वार खड़े।
पान सुपारी, ध्वजा नारियल, ले ज्वाला तेरी भेंट धरे।।
''सौम्य'' स्वभाव धरयो मेरी माता, जन की अर्ज कबूल करे।
संतन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे।।
मंगल" की सेवा सुन मेरी देवा! हाथ जोड़ तेरे द्वार खड़े।
पान सुपारी, ध्वजा नारियल, ले ज्वाला तेरी भेंट धरे।।
सात बार की महिमा बरनी, सब गुण कौन बखान करे।
सिंह पीठ पर चढ़ी भवानी, अटल भवन में राज करे।।
मंगल" की सेवा सुन मेरी देवा! हाथ जोड़ तेरे द्वार खड़े।
पान सुपारी, ध्वजा नारियल, ले ज्वाला तेरी भेंट धरे।।
दर्शन पावें, मंगल पावें, सिद्ध साधक तेरी भेंट धरे।
संतन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे।।
मंगल" की सेवा सुन मेरी देवा! हाथ जोड़ तेरे द्वार खड़े।
पान सुपारी, ध्वजा नारियल, ले ज्वाला तेरी भेंट धरे।।
ब्रह्मा वेद पढ़ें तेरे द्वारे, शिव शंकर हरि ध्यान करें।
इन्द्रकृष्ण तेरी करें आरती, चंवर कुबेर डुलाया करे।।
मंगल" की सेवा सुन मेरी देवा! हाथ जोड़ तेरे द्वार खड़े।
पान सुपारी, ध्वजा नारियल, ले ज्वाला तेरी भेंट धरे।।
जय जय जननी जय मातु भवानी, अचल भवन में राज्य करे।
संतन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे।।
मंगल" की सेवा सुन मेरी देवा! हाथ जोड़ तेरे द्वार खड़े।
पान सुपारी, ध्वजा नारियल, ले ज्वाला तेरी भेंट धरे।।
।।इति आरती श्री काली जी की।।
।।जय बोलो काली माता की जय।।
।।जय बोलो महिषासुरवर्दनी की जय हो।।