Breaking

Friday, September 17, 2021

श्री बगलामुखी जी की आरती अर्थ सहित(Aarti of Shri Baglamukhi ji With meaning)

                  

श्री बगलामुखी जी की आरती अर्थ सहित(Aarti of Shri Baglamukhi ji With meaning):-श्री बगलामुखी माता को आद्यशक्ति के रूप में जाना जाता है, उनमें समस्त तीनों लोकों में तालमेल करना का सामर्थ्य हैं। इनकी आराधना समस्त देवी-देवता और त्रिदेव करते है। इसलिए श्री बगलामुखी माता को तंत्र-मंत्र करने वाले लोग स्तंभन देवी के रूप में आह्वान करते है। इनकी साधना रात्रिकाल में करने पर शीघ्र होती है। इस तरह माता की आराधना करके अपने जीवनकाल के समस्त शंकाओ का समाधान को प्राप्त कर सकते है। सभी तरह के तांत्रिक क्रियाओं की स्वामिनी है, जो षोड़श रूपों में पूजन किया जाता है। इसलिए देवी बगलामुखी की आरती करके अपने ऊपर किसी तरह के तांत्रिक प्रभाव का असर नहीं होवे। इसके लिए माता का गुणगान आरती के रूप में करना चाहिए।



Aarti of Shri Baglamukhi ji With meaning




दोहा:- बगलामुखी की आरती, पढ़ै सुनै जो कोय।


विनती कुलपति सुनिलजोशी की, सुख-सम्पति सब होय।।


अर्थात्:-जब कोई भी माता बगलामुखी की आरती का वांचन करता हैं, तो हे बगलामुखी माता! सुनिलजोशी आपसे अरदास करता है, की उस मनुष्य को सुख-सम्पत्ति आप प्रदान करके समस्त तरह के कष्टों का निवारण करें।



श्री बगलामुखी माता के प्रकट होने की कथा:-बहुत समय पहले जब चारों ओर सच्चाई का बोलबाला था, उस समय के योग को सतयुग कहते है। उस युग में सम्पूर्ण तीनों लोकों में चारों तरफ उथलपुथल हो रही थी। जिससे समस्त आकाशलोक तहस-नहस होने लगा तब समस्त संसार पर मुसीबत में देखकर श्रीचक्रपाणी जी बहुत ही व्याकुल होकर सोचने लगे कि इस बवंडर को कैसे शांत कर तब उन्होनें भोलेनाथ जी याद आयी उन्होंने भोलेनाथजी को सबकुछ बताया तब भोलेनाथ जी ने कहा कि इस सबको तो सिर्फ आद्य शक्ति ही रोक सकती है आप उनका आह्वान कीजिए। तब श्रीचक्रपाणी ने श्री आद्यशक्ति की बहुत कठिन से कठिन आराधना की थी। वह स्थान हरिद्रा कूल था। तब आद्यशक्ति ने उनको दर्शन दिया था। इस तरह उनकी कठिन आराधना से आद्यशक्ति खुश हुई थी। इस तरह हरिद्रा कूल में विचरण करते हुए उनके शरीर से एक आलोकित आभा स्वरूप एक तेज प्रकट हुआ था। इस आभा युक्त तेजपुंज से समस्त तीनों लोक में शांति हो गई थी। इस तरह से श्री बगलामुखी देवी रात्रिकाल में अपने स्वरूप का दर्शन दिया था और श्रीचक्रपाणी से वरदान मांगने को कहा तब समस्त तीनों लोकों में शांति थी।



जय जय श्री बगलामुखी माता, आरति करहुँ तुम्हारी।


सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी कोई तेरा पार न पाया।।


अर्थात्:-हे बगलामुखी माता! मैं आपकी जय-जयकार करता हुवा आपकी आरती करता हूँ। हे माता! आप मेरी अरदास को सुनिए। आप पर्वत पर निवास करने वाली हो। आपको जो अरदास करता है, उसको आप पार लगा देती हो।



पान सुपारी ध्वजा नारियल ले तेरी भेंट चढ़ाया।


पीत वसन तन पर तव सोहै, कुण्डल की छबि न्यारी।।


अर्थात्:-हे बगलामुखी माता! आपके दर्शन करने आने वाले आपके द्वार पर आपको पान, सुपारी, आपकी प्यारी पताका को लेकर आपको भेंट के रूप में अर्पण करते हैं। आप पीले वस्त्रों को धारण करने हो, देह पर आपके आभूषणों का भंडार और कानों में कुण्डल पहले आपकी छवि बहुत ही निराली एवं मन को मोहित करने वाली हैं।



कर-कमलों में मुद्गर धारै, अस्तुति करहिं सकल नर-नारी।


चम्पक माल गले लहरावे, सुर नर मुनि जय जयति उचारी।।


अर्थात्:-हे बगलामुखी माता! आपके हाथों में मुद्गर को धारण किये हुए हो, आपकी समस्त नर और नारी आपका गुणगान करते है। आपके गले में चंपा के फूल से बनी माला लहराती है, समस्त नर एवं नारी आपकी जयकार जयति के रूप में करते हैं।



त्रिविध ताप मिटि जात सकल सब, भक्ति सदा तव है सुखकारी।


पालत हरत सृजत तुम जग को, सब जीवन की हो रखवारी।।


अर्थात्:-हे बगलामुखी माता! तीनों तरह के ताप अर्थात् ज्वर आपके अरदास करने पर मिट जाते हैं, जो भी आपकी भक्ति हमेशा करता है उसको आप समस्त तरह से सुख-सम्पत्ति को देखकर सुखी कर देती हो। जब आप ही समस्त जगत का पालन करती हो और समस्त जगत की रक्षा भी आप ही करती हो।



मोह निशा में भ्रमत सकल जन, करहु हृदय महँ, तुम उजयारी।


तिमिर नशावहु ज्ञान बढ़ावहु, अम्बे तुम्ही हो असुरारी।।


अर्थात्:-हे बगलामुखी माता! जब मोह-माया में जब मनुष्य भर्मित हो जाता है, तब उनके हृदय में आप जागृति करती हो। उस मनुष्य के जीवन में छाये हुए अंधेरे को आप अपनी शक्ति के द्वारा नष्ट करके ज्ञान का संचार करने वाली हो। आप ही अम्बे माता हो और दैत्यों का संहार करने वाली हो।



सन्तनको सुख सदा देत सदा ही, सब जनकी तुम प्राण पियारी।


तव चरणन जो ध्यान लगावै, ताको हो सब भव-भयहारी।।


अर्थात्:-हे बगलामुखी माता! आप सज्जन मनुष्य एवं साधु-संतों को सदा ही सुख प्रदान करने वाली हो, आपको तीनों लोकों में निवास करने वालों की प्यारी हो। जो भी आपकी श्रद्धाभाव से ध्यान करता है, उसको आप इस भवसागर से पार करवा देती हो, उसका उद्धार कर देती हो।



प्रेम सहित जो करहिं आरती, ते नर मोक्षधाम अधिकारी।।


अर्थात्:-हे बगलामुखी माता! जो भी आपकी आराधना सच्चे मन से एवं विश्वास से करते है उनका आप उद्धार करके किसी भी योनि से मुक्ति दिलवा देती हो। जो भी मनुष्य आपकी आरती करता है, उसको मनुष्य योनि से मुक्ति दिलवाती हो।




।।अथ आरती श्री बगलामुखी जी की।।


जय जय श्री बगलामुखी माता, आरति करहुँ तुम्हारी।


सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी कोई तेरा पार न पाया।।


जय जय श्री बगलामुखी माता, आरति करहुँ तुम्हारी।


सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी कोई तेरा पार न पाया।।


पान सुपारी ध्वजा नारियल ले तेरी भेंट चढ़ाया।


पीत वसन तन पर तव सोहै, कुण्डल की छबि न्यारी।।


जय जय श्री बगलामुखी माता, आरति करहुँ तुम्हारी।


सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी कोई तेरा पार न पाया।।


कर-कमलों में मुद्गर धारै, अस्तुति करहिं सकल नर-नारी।


चम्पक माल गले लहरावे, सुर नर मुनि जय जयति उचारी।।


जय जय श्री बगलामुखी माता, आरति करहुँ तुम्हारी।


सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी कोई तेरा पार न पाया।।


त्रिविध ताप मिटि जात सकल सब, भक्ति सदा तव है सुखकारी।


पालत हरत सृजत तुम जग को, सब जीवन की हो रखवारी।।


जय जय श्री बगलामुखी माता, आरति करहुँ तुम्हारी।


सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी कोई तेरा पार न पाया।।


मोह निशा में भ्रमत सकल जन, करहु हृदय महँ, तुम उजयारी।


तिमिर नशावहु ज्ञान बढ़ावहु, अम्बे तुम्ही हो असुरारी।।


जय जय श्री बगलामुखी माता, आरति करहुँ तुम्हारी।।


सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी कोई तेरा पार न पाया।।


सन्तनको सुख सदा देत सदा ही, सब जनकी तुम प्राण पियारी।


तव चरणन जो ध्यान लगावै, ताको हो सब भव-भयहारी।।


जय जय श्री बगलामुखी माता, आरति करहुँ तुम्हारी।।


सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी कोई तेरा पार न पाया।।


प्रेम सहित जो करहिं आरती, ते नर मोक्षधाम अधिकारी।।


जय जय श्री बगलामुखी माता, आरति करहुँ तुम्हारी।


सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी कोई तेरा पार न पाया।।



।।इति श्री बगलामुखी माता की आरती।।



।।जय बोलो माता पर्वतवासिनी जी की जय हो।।