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Wednesday, October 13, 2021

चन्द्र कवच स्तोत्रं अर्थ सहित(Shri Chandra Kavach Stotram with meaning)

                

चन्द्र कवच स्तोत्रं अर्थ सहित(Shri Chandra Kavach Stotram with meaning):-नवग्रहों में चन्द्रमा ग्रह को पटरानी का पद मिला है, चन्द्रमा ग्रह को माता के कारक रूप में, शरीर में रक्त का, स्वाद, चित्त, बुद्धि, सम्पत्ति, भोज्य पर्दाथ और राजकृपा का कारक माना गया हैं। जब चन्द्रमा ग्रह ठीक स्थिति में होने पर मन को एकाग्रचित रखता है साथ शरीर में रक्त के संचार को ठीक रखते हुए शरीर में रक्त का तालमेल बना रहता है। जिससे शरीर में रोगों से लड़ने की ताकत मिलती रहती है। 





जब चन्द्रमा ग्रह निर्बल स्थिति में होता है तब शरीर पर अनेक तरह की व्याधिया घेर लेती है, मन में तरह-तरह के विचार आते है एवं मन एक जगह पर स्थिर नहीं होकर भटकता रहता है। जिससे बिना मतलब की चिंताएं होने लगती है। जिस किसी का मन एक जगह पर स्थिर नहीं होकर भटकता रहता है उनको चन्द्र कवच स्तोत्रं का पाठ नित्य करते रहना चाहिए। जिससे मन में किसी तरह की दुर्भावनाएं शरीर पर हावी नहीं होवे, मस्तिष्क में शांति का संचार बना रहा है। इन सभी पर विजय प्राप्त करने के लिए मन पर नियंत्रण होना जरूरी होता है, जब मन पर विजय मिल जाती है तब किसी तरह की परेशानी नहीं होती है और सभी तरह से आनन्द ही आनन्द की प्राप्ति होती है। जो भी कोई चन्द्र कवच स्तोत्रं का पाठ करते है उनका मन उनके नियंत्रण में रहता है।



Shri Chandra Kavach Stotram with meaning



श्री चन्द्र कवच स्तोत्रं:-गौतम ऋषि के द्वारा मन पर नियंत्रण के लिए चन्द्र कवच स्तोत्रं की रचना की थी। क्योंकि ऋषिवर जानते थे कि जब तक मन पर नियंत्रण नहीं होगा तब तक कोई भी कार्य नहीं किया जा सकता है। साधनाएं एवं ईश्वर भक्ति के लिए मन पर नियंत्रण होना भी जरूरी होता है। ऋषिवर गौतम के चन्द्र कवच स्तोत्रं का पाठ सही तरीके से करने पर मन शांत रहता है और मानसिक व्याधियों से मुक्ति मिलती हैं।





                ।।श्री चन्द्र कवचम् स्तोत्रं।।



अथ विनियोग:-अस्य श्री चंद्र कवच स्तोत्र महा मंत्रस्य। गौतम ऋषिः।


अनुष्टुप् छंदः।श्री चंद्रो देवता। चन्द्रःप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः।



ध्यानम्:-श्री चन्द्र कवच स्तोत्रं का पाठ करने से पूर्व ध्यान करना होता है।


समं चतुर्भुजं वन्दे केयूर मुकुटोज्ज्वलम्। 


वासुदेवस्य नयनं शंकरस्य च भूषणम्।।


एवं ध्यात्वा जपेन्नित्यं शशिनः कवचं शुभम्।।



श्री चन्द्र कवच स्तोत्रं:-गौतम ऋषि ने श्री चन्द्र कवच स्तोत्रं के लिए पांच पदों की रचना की हैं, इन सभी पदों में चन्द्रमा जी के बारे आख्यान किया है, जिससे इस स्तोत्रं का पाठ करने वाले पर उनकी अनुकृपा हो सके।



शशी पातु शिरो देशं फालं पातु कलानिधिः।


चक्षुषिः चन्द्रमाः पातु श्रुती पातु निशापतिः।।1।।



प्राणं क्षपाकरः पातु मुखं कुमुदबांधवः।


पातु कण्ठं च मे सोमः स्कंधौ जैवा तृकस्तथा।।2।।



करौ सुधाकरः पातु वक्षः पातु निशाकरः।


हृदयं पातु मे चंद्रो नाभिं शंकरभूषणः।।3।।



मध्यं पातु सुरश्रेष्ठः कटिं पातु सुधाकरः।


ऊरू तारापतिः पातु मृगांको जानुनी सदा।।4।।



अब्धिजः पातु मे जंघे पातु पादौ विधुः सदा।


सर्वाण्यन्यानि चांगानि पातु चन्द्रोsखिलं वपुः।।5।।




फलश्रुति:-श्री चन्द्र कवच स्तोत्रं के पाठ करने वाले के लिए एक दिव्य अर्थात् देवतुल्य वरदान होता है, इसका पाठ करने भोग आदि से मुक्ति मिल जाती है। जो भी इस पाठ का वांचन करता है उसको समस्त जगह पर विजय की प्राप्ति होती हैं।


एतद्धि कवचं दिव्यं भुक्ति मुक्ति प्रदायकम्।


यः पठेतच्छुणुयाद्वापि सर्वत्र विजयी भवेत्।।



अर्थात्:-श्री चन्द्र कवच अलौकिक सुख का भोग लगाने वाला, जीवन-मरण के बंधन से मुक्ति प्राप्त करता है। जो मनुष्य विश्वास के साथ इस स्तोत्र का वांचन करता हैं, उस मनुष्य को सभी जगहों पर जीत हासिल होती हैं।




      ।।इति श्रीब्रह्मयामले चंद्रकवचं संपूर्णम्।।