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Thursday, September 30, 2021

श्री मयूरेश स्त्रोतं अर्थ सहित(Shree Mayuresh Strotam with meaning)

                  

श्री मयूरेश स्त्रोतं अर्थ सहित(Shree Mayuresh Strotam with meaning):-शुभ या मांगलिक कार्य एवं किसी भी तरह के काम को शुरू करने से पहले भगवान गणेश जी की सबसे पहले पूजा-अर्चना होती है, जब तक भगवान गणेशजी की पूजा नहीं कि जाती है तब तक दूसरे देवी-देवताओं की पूजा नहीं कि जाती है, भगवान गणेशजी को बुद्धि एवं ज्ञान के देव माने जाते है, वे अपनी चतुरता सभी तरह के कार्य को सिद्ध कर देते हैं। समस्त तरह की मुशीबतों एवं कार्य में आ रहे व्यधान को दूर करने वाले होते है। इस तरह समस्त पूजा-अर्चना में लम्बोदर जी को निमित मानकर या स्थापित करके ही समस्त मांगलिक एवं पूजा-आराधना करने से कामयाबी मिलती हैं।



Shree Mayuresh Strotam with meaning




मयूरेश स्तोत्रं के फायदे:-भगवान गणेशजी की वंदना एवं आराधना करने के लिए धर्म शास्त्रों में कई तरह के स्तोत्रों की रचना अनेक ऋषि-मुनियों ने की थी। उनमें से श्री मयूरेश स्तोत्रं की भी ऋषिवर मयूरेश जी ने की थी, इस तरह मयूरेश जी के द्वारा रचित मयूरेश स्तोत्रं का वांचन करके भगवान गणेशजी को खुश करने का सबसे बड़ा माध्यम होता हैं।




◆मयूरेश स्तोत्रं के पाठ को कोई भी गृहस्थी मनुष्य करता है तो उसके जीवनकाल में आने वाली सभी तरह के विघ्नों का निवारण होकर उस मनुष्य का मन निर्मल हो जाता है और सुख-समृद्धि एवं बिना किसी तरह की परेशानी से अपना जीवन जीते है। जो मनुष्य इस स्तोत्रं के पाठ का वांचन हमेशा करते है उन मनुष्य को सभी तरह के कार्यों में सफलता मिलती है वह मनुष्य अपने सभी क्षेत्रों में दिन-दूनी रात चौगुनी उन्नति करके मान-सम्मान को प्राप्त करते हैं।




◆जिस किसी भी मनुष्य को शरीर की बीमारियों ने घेर रखा होता है उन मनुष्य को इस बीमारियों से मुक्ति पाने के लिए इस स्तोत्रं का वांचन करते रहने पर उस मनुष्य को मानसिक शांति की प्राप्ति होती हैं।




◆जिस मनुष्य को लगता हैं कि किसी भी दूसरे मनुष्य के द्वारा पर मिथ्या लांछन लगाकर फसा देगा, उसको बिना किसी तरह के अपराध की सजा मिल सकती है जिससे उस मनुष्य को संदेह बनता है की उसे कारागार की सजा मिल सकती है और जिसको कारागार की सजा मिल चुकी होती है, उस मनुष्य को या उसके परिवार के सदस्य के द्वारा उसके नाम से मयूरेश स्तोत्रं का पाठ करने पर निश्चित ही छः माह में छुटकारा मिल जाता है। इस स्तोत्रं को औरत एवं आदमी कोई भी कर सकते है, इस स्तोत्रं को वांचन में कीसी तरह का कोई भी प्रावधान नहीं होता हैं।




“वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।


निर्विघ्नं कुरु में देव सर्व कार्येषु सर्वदा।।



भावार्थ्:-हे भगवान गणेश जी! तिरछे आगे की तरफ निकले मुंह वाले, बड़े शरीर वाले और करोड़ो सूर्य की तरह अपने तेज से प्रकाश को उत्पन्न करने वाले हो, आपसे अरदास करता हूँ की आप मेरे समस्त कार्यों में किसी भी तरह के व्यधान को नहीं आने दीजिए अर्थात् मेरे समस्त तरह के कार्यों को आप सिद्ध कीजिए।



सबसे पहले गणेश जी की इनके मन्त्रों से पूजा-अर्चना करनी चाहिए।



“सर्व स्थूलतनुम् गजेन्द्रवदनं लम्बोदरं सुन्दरम


प्रस्यन्द्न्मधुगंधलुब्धमधुपव्यालोलगंडस्थलम।


दंताघातविदारितारीरुधिरे: सिन्दुरशोभाकर,


वन्दे शैलसुत गणपति सिद्धिप्रदं कामदम।।


सिन्दुराभ त्रिनेत्र प्रथुतरजठर हमेर्दधानस्त्पदमेर्दधानम्


दंत पाशाकुशेष्ट-अन्द्दु रुकर्विलसद्विजपुरा विरामम,


बालेन्दुद्दौतमौली करिपतिवदनं दानपुरार्र्गन्ड-


भौगिन्द्रा बद्धभूप भजत गणपति रक्तवस्त्रान्गरांगम 


सुमुखश्चेक़दंतश्च कपिलो गजकर्णक:


लम्बोदरश्च विक्तो विघ्ननाशो विनायकः


धूम्रकेतु गणध्यक्षो भालचन्द्रो गजानना:


द्वादशेतानी नामानि य पठच्छ्रणुयदपि।


विद्धारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा।


संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्यतस्य ना जायते।।"



भगवान गणेशजी के द्वादश नाम:-उसके बाद में भगवान गणेशजी के बारह नामों को मन में दोहराते हुए गणेश जी को याद करना चाहिए।


सुमुखश्च-एकदंतश्च कपिलो गज कर्णक:


लम्बोदरश्व विकटो विघ्ननाशो विनायक:


धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजानन:


द्वादशैतानि नामानि य: पठेच्छर्णुयादपि


विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा


संग्रामें संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जयते।



मयूरेश स्तोत्रं के पाठ को शुरू करने की विधि:-ऋषिवर मयूरेश जी मनुष्य के जीवन को सही राह पर ले जाने के लिए भगवान गणेशजी के इस स्तोत्रं को बनाया था, जिससे मनुष्य इसका पाठन सही विधि-विधानपूर्वक करें, जिससे फायदा मिल सके।



1.सबसे पहले मनुष्य को अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए भगवान गणेश जी से अरदास करनी चाहिए, गणेश जी से अरदास के लिए अपनी मन की इच्छाओं को उनके सामने रखना चाहिए, उनसे निवेदन करना चाहिए कि हे गणेशजी! आपसे अनुरोध करता हूँ कि आपके इस स्तोत्रं को मन से एवं पूर्ण श्रद्धापूर्वक करूँगा। उसके बाद में गणेशजी को आने के लिए और अपनी पूजा की जगह पर स्थापित होने का अरदास करना होता हैं।



2.उसके बाद में मन के अंदर संकल्प लेना चाहिए कि इस स्तोत्रं का वांचन अपने उद्देश्य पूर्ति तक करूँगा या जीवनभर करूँगा।



3.मयूरेश स्तोत्रं का पाठ किसी भी माह के शुक्लपक्ष के बुधवार से शुरू करना होता हैं।



4.अपने मन की इच्छाओं के अनुसार एक माह, दो माह और उससे भी ज्यादा माह तक कर सकते है।



5.जिस दिन बुधवार होता है, उस दिन से शुरू कर चाहिए।



6.मयूरेश स्तोत्रं को शुरू करने से पूर्व मन को निर्मल एवं किसी भी तरह के मन में आ रहे विकारों के बारे में विचार नहीं करना चाहिए।



7.मयूरेश स्तोत्रं को शुरू करने के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर अपनी दैनिकचर्या जैसे स्नानादि से निवृत होकर मन को एकाग्रचित करते हुए भगवान गणेश जी को स्मरण करना चाहिए।



8.भगवान गणेशजी प्रतिमा या मूर्ति एवं गणेश यंत्र को अपने पूजाघर में स्थापित करके या उनका अलग पाठ बनाकर कर सकते हैं।



9.भगवान गणेश जी की प्रतिमा के सामने अपने बिछावन को छूते हुए उस बिछावन को अपने माथे को लगाना चाहिए।



10.भगवान गणेशजी प्रतिमा या मूर्ति के सामने अपना मुहँ पूर्व दिशा या उत्तर दिशा में रखते हुए भगवान गणेश जी का पूजन षोड़शोपचार कर्म से करना चाहिए, उसके बाद में मयूरेश स्तोत्रं को शुरू करना चाहिए।



11.फिर गणपति जी को नतमस्तक होकर वंदना करनी चाहिए। गणेशजी की पंचोपचार या षोडशोपचार पूजा कर्म से विधि करनी चाहिए।




षोडशोपचारैंः पूजा कर्म:-इस तरह भगवान गणेश जी का षोडशोपचारैंः पूजा कर्म करना चाहिए-


पादयो र्पाद्य समर्पयामि, हस्तयोः अर्ध्य समर्पयामि,


आचमनीयं समर्पयामि,पञ्चामृतं स्नानं समर्पयामि


शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि, वस्त्रं समर्पयामि,


यज्ञोपवीतं समर्पयामि, गन्धं समर्पयामि,


अक्षातन् समर्पयामि, अबीरं गुलालं च समर्पयामि,


पुष्पाणि समर्पयामि, दूर्वाड़्कुरान् समर्पयामि,


धूपं आघ्रापयामि, दीपं दर्शयामि, 


नैवेद्यं निवेदयामि, ऋतुफलं समर्पयामि, 


आचमनं समर्पयामि, ताम्बूलं पूगीफलं दक्षिणांं च समर्पयामि।।



फिर मयूरेश स्तोत्रं का पाठ का वांचन शुरू करना चाहिए।



अथ श्रीमयूरेश स्तोत्रम्:-श्री मयूरेश जी के द्वारा निर्मित मयूरेश स्तोत्रं का वांचन नियमित रूप से सही शब्दों के उच्चारण के साथ करना चाहिए, अन्यथा अर्थ के सही उच्चारण नहीं करने पर अनर्थ हो जाता है, इस तरह है:



ब्रह्मोवाच:-ब्रह्माजी कहते है, जो इस तरह है:


पुराणपुरुषं देवं नानाक्रीडाकरं मुदा।


मायाविनं दुर्विभाव्यं मयूरेशं नमाम्यहम्।।1।।


भावार्थ्-:ब्रह्माजी ने कहा-जो प्राचीनकाल के वृद्ध व्यक्ति अर्थात् पुराण पुरुष या आदिपुरुष अर्थात् विष्णु भगवान है, जो अनेक तरह की केलि या अठखेलीयां अपनी खुशी के साथ किया करते हैं, जो दया की भावना को रखने वाले स्वामी होते हैं, जिनका किसी तरह से भाग नहीं किया जा सकता हैं, और जिनका चिन्तन नहीं किया जा सके, उन मयूरेश भगवान गणेश जी को नतमस्तक होकर वंदना करता हूँ।


परातत्परं चिदानन्दं निर्विकारं हृदि स्थितम्।


गुणातीतं गुणमयं मयूरेशं नमाम्यहम्।।2।।


भावार्थ्:-जो सर्वक्षेष्ठ, चेतन मन की कुल के आनन्द में हर पर समाहित रहने वाले, जिनमें किसी तरह के दोष नहीं है, सबके हृदय या चित्त की बात को जानने वाले, जो तीनों तरह के सत्व, रज एवं तम से दूर रहने वाले और महान गुणों के भंडार से परिपूर्ण होते है, उन मयूरेश भगवान गणेश जी को नतमस्तक होकर वंदना करता हूँ। 


सृजन्तं पालयन्तं च संहरन्तं निजेच्छया।


सर्वविघ्नहरं देवं मयूरेशं नमाम्यहम्।।3।।


भावार्थ्:-जो जगत का निर्माण करते, भरण-पोषण करने आदि क्रिया का निर्वाह करने वाले और ध्वंस करने वाले होते है, वे सभी तरह के कार्य को अपनी इच्छा के अनुसार ही करते है, जो सभी तरह के संकटो को एवं व्यधानों का हरण करने वाले होते है, उन मयूरेश भगवान गणेश जी को नतमस्तक होकर वंदना करता हूँ। 


नानादैत्यनिहन्तारं नानारूपाणि बिभ्रतम्।


नानायुधधरं भक्त्या मयूरेशं नमाम्यहम्।।4।।


भावार्थ्:-जो अपने माया रूप के द्वारा असंख्य राक्षसों के जीवन का नाश करने वाले एवं असंख्य रूप या सूरत को ग्रहण करना वाले होते हैं और जो असंख्य आयुद्य को धारण करने वाले होते है, उन मयूरेश भगवान गणेश जी को अपनी सच्ची भक्ति की भावना एवं श्रद्धा भाव से नतमस्तक होकर वंदना करता हूँ। 



इन्द्रादिदेवतावृन्दैरभिष्टुतमहर्निशम्।


सदसद्व्यक्तमव्यक्तं मयूरेशं नमाम्यहम्।।5।।


भावार्थ्:-जिनकी वंदना इन्द्रादि देवताओं के समुदाय भी प्रतिक्षण करते-रहते है, जो सत्य, मिथ्या, स्पष्ट रूप से प्रकट है एवं जो अस्पष्ठ रूप से अदृश्यवान होते है, उन मयूरेश भगवान गणेश जी को मैं नतमस्तक होकर वंदना करता हूँ। 


सर्वशक्तिमयं देवं सर्वरूपधरं विभुम्।


सर्वविद्याप्रवक्तारं मयूरेशं नमाम्यहम्।।6।।


भावार्थ्:-जो सबसे अधिक बलवान है, जो सभी तरह के रूपों को धारण कर सकते है, समस्त जगहों पर विद्यमान होते है और जो समस्त विद्याओं को अच्छी तरह से जानने वाले होते है, उन मयूरेश भगवान गणेश जी को मैं नतमस्तक होकर वंदना करता हूँ। 


मयूरेश उवाच:-मयूरेश जी आगे जो कहते है, वह इस तरह हैं:


पार्वतीनदनं शम्भोरानन्दपरिवर्धनम्।


भक्तानन्दकरं नित्यं मयूरेशं नमाम्यहम्।।7।।


भावार्थ्:-जो माता पार्वतीजी को पुत्र सन्तान के रूप में खुशी देने वाले होते है और भगवान भोलेनाथजी की खुशी में वृद्धि करने वाले होते है, जो अपने अनुरागी में आनन्द बढ़ाने वाले होते हैं। उन मयूरेश भगवान गणेश जी को मैं नतमस्तक होकर वंदना करता हूँ। 



मुनिध्येयं मुनिनुतं मुनिकामप्रपूरकम्।


समष्टिव्यष्टिरूपं त्वां मयूरेशं नमाम्यहम्।।8।।


भावार्थ्:-भगवान गणेश जी का तापस भी अपने चित्त की एकाग्रता से चिंतन करते है, जो मनन करने वाले तापस भी गणेशजी के गुणों का बखान करते रहते हैं, उन समवेत सत्ता के समष्टि के स्वामी उन मयूरेश भगवान गणेश जी को मैं नतमस्तक होकर वंदना करता हूँ। 


सर्वाज्ञाननिहान्तारं सर्वज्ञानकरं शुचिम्।


सत्यज्ञानमयं सत्यं मयूरेशं नमाम्यहम्।।9।।


भावार्थ्:-जो गोचर पर्दाथ विषय सम्बन्धी मिथ्या ज्ञान को दूर करने वाले हैं, जो कि समस्त तरह के बोध को अपने मन की अद्भुत सूझ-बूझ से जानने वाले, किसी तरह की दुर्भावनाओं से रहित होते हैं, जो यथार्थ का बोध को जानने वाले एवं यथार्थ नाम को धारण करने वाले, उन मयूरेश भगवान गणेश जी को मैं नतमस्तक होकर वंदना करता हूँ। 


अनेककोटिब्रह्माण्डनायकं जगदीश्वरम्।


अनन्तविभवं विष्णुं मयूरेशं नमाम्यहम्।।10।।


भावार्थ्:-जो असंख्य नोक वाले आकाश मण्डल के स्वामी, जो कि संसार के भगवान स्वामी हैं। जो नष्ट नहीं होवे ऐश्वर्य एवं सम्पत्ति के स्वामी एवं समस्त जगह पर निवास करने वाले विष्णु रूप में होते है, उन मयूरेश भगवान गणेश जी को मैं नतमस्तक होकर वंदना करता हूँ। 


मयूरेश उवाच:-मयूरेश जी आगे कहते हैं, जो इस तरह हैं:


इदं ब्रह्मकरं स्तोत्रं सर्वपापप्रणाशनम्।


सर्वकामप्रदं नृणां सर्वोपद्रवनाशनम्।।11।।


मयूरेश से कहते है-मयूरेश स्तोत्रं के द्वारा समस्त किये गए नीच कर्मों से मुक्ति मिलती है, इस स्तोत्रं के वांचन से नीचकर्मों को समाप्त हो जाते है एवं ब्रह्मभाव की प्राप्ति होती हैं। मयूरेश स्तोत्रं के पाठन करने से मनुष्य को अपनी मन की समस्त कामनाओं की पूर्ति पूर्ण हो जाती है एवं सभी तरह के उपद्रवों का समाधान हो जाता हैं।


कारागृहगतानां च मोचनं दिनसप्तकात्।


आधिव्याधिहरं चैव भुक्तिमुक्तिप्रदं शुभम्।।12।।



भावार्थ्:-जो कोई भी मनुष्य मयूरेश स्त्रोतं का वांचन करता है, तो सात दिवस के अन्दर जो किसी भी तरह के गुनाह की सजा को कारागार में काट रहे होते है, उन मनुष्य को कारागार के बंधन से मुक्ति मिल जाती है और कारागार से छूट जाते हैं। इस स्तोत्रं के वांचन से मनुष्य के शरीर में उत्पन्न बीमारियों और मन के अन्दर स्थित बिना मतलब की चिंताओं या सोच को हरण कर लेता है, मनुष्य को भोग का जीवन अर्थात् सुख-समृद्धि को देने वाला होता है और जीवन के आने-जाने के चक्कर से आजादी दिलवाता है जिससे मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होकर स्वर्गलोक प्राप्त होता हैं।



         ।।इति श्रीमयूरेशस्तोत्रं सम्पूर्णम्।।



       अथ श्री मयूरेश स्तोत्रं:-



“वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।


निर्विघ्नं कुरु में देव सर्व कार्येषु सर्वदा।।


भावार्थ्:-हे भगवान गणेश जी! तिरछे आगे की तरफ निकले मुंह वाले, बड़े शरीर वाले और करोड़ो सूर्य की तरह अपने तेज से प्रकाश को उत्पन्न करने वाले हो, आपसे अरदास करता हूँ की आप मेरे समस्त कार्यों में किसी भी तरह के व्यधान को नहीं आने दीजिए अर्थात् मेरे समस्त तरह के कार्यों को आप सिद्ध कीजिए।



ब्रह्मोवाच:-


पुराणपुरुषं देवं नानाक्रीडाकरं मुदा।


मायाविनं दुर्विभाव्यं मयूरेशं नमाम्यहम्।।1।।


परातत्परं चिदानन्दं निर्विकारं हृदि स्थितम्।


गुणातीतं गुणमयं मयूरेशं नमाम्यहम्।।2।।


सृजन्तं पालयन्तं च संहरन्तं निजेच्छया।


सर्वविघ्नहरं देवं मयूरेशं नमाम्यहम्।।3।।


नानादैत्यनिहन्तारं नानारूपाणि बिभ्रतम्।


नानायुधधरं भक्त्या मयूरेशं नमाम्यहम्।।4।।


इन्द्रादिदेवतावृन्दैरभिष्टुतमहर्निशम्।


सदसद्व्यक्तमव्यक्तं मयूरेशं नमाम्यहम्।।5।।


सर्वशक्तिमयं देवं सर्वरूपधरं विभुम्।


सर्वविद्याप्रवक्तारं मयूरेशं नमाम्यहम्।।6।।



मयूरेश उवाच:-


पार्वतीनदनं शम्भोरानन्दपरिवर्धनम्।


भक्तानन्दकरं नित्यं मयूरेशं नमाम्यहम्।।7।।


मुनिध्येयं मुनिनुतं मुनिकामप्रपूरकम्।


समष्टिव्यष्टिरूपं त्वां मयूरेशं नमाम्यहम्।।8।।


सर्वाज्ञाननिहान्तारं सर्वज्ञानकरं शुचिम्।


सत्यज्ञानमयं सत्यं मयूरेशं नमाम्यहम्।।9।।


अनेककोटिब्रह्माण्डनायकं जगदीश्वरम्।


अनन्तविभवं विष्णुं मयूरेशं नमाम्यहम्।।10।।



मयूरेश उवाच:-


इदं ब्रह्मकरं स्तोत्रं सर्वपापप्रणाशनम्।


सर्वकामप्रदं नृणां सर्वोपद्रवनाशनम्।।11।।


कारागृहगतानां च मोचनं दिनसप्तकात्।


आधिव्याधिहरं चैव भुक्तिमुक्तिप्रदं शुभम्।।12।।



।।इति श्रीमयूरेशस्तोत्रं सम्पूर्णम्।।