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Friday, October 15, 2021

मंगल कवच स्तोत्रं अर्थ सहित(Mangal Kavach Stotram with meaning)

 





मंगल कवच स्तोत्रं अर्थ सहित(Mangal Kavach Stotram  with meaning):-मंगल कवच की रचना ऋषि कश्यप जी ने की थी, क्योकि मंगल ग्रह में गुस्सा बहुत होता है, मंगल ग्रह थोड़ी सी बात पर शीघ्र उत्तेजित हो जाते है, इसलिए मंगल को मंगल ग्रह के प्रभाव को कम करने के लिए कश्यप ऋषिदेव ने मंगल कवच का निर्माण किया था।

मंगल ग्रह को ग्रहों में सेनापति एवं दण्डनायक के पद से विशोभित किया गया है, मंगल ग्रह में उष्णता अधिक होने से वे शीघ्र क्रोधित हो जाते हैं। मंगल को भूमि पुत्र के रूप में जाना जाता हैं। मंगल देव को पराक्रम, उष्णता, उत्साह भूमि, जमीन-जायदाद, रक्त, जंघा, कमर एवं भाई-बहिनों का कारक माना जाता है। 

जिन मनुष्य की जन्मकुंडली में मंगल ग्रह कमजोर होता है, उनको मंगल कवच का पाठन नियमित रूप करते रहने पर निश्चित ही फायदा मिलता है। मंगल ग्रह की अशुभता को दूर करने का सबसे अच्छा माध्यम मंगल कवच होता हैं।


अथ मंगल कवचम् स्तोत्रं अर्थ सहित:-मंगल कवच का अर्थ सहित विवेचन इस तरह से है:

विनियोग:-अस्य श्री मंगलकवचस्तोत्रमंत्रस्य कश्यप ऋषिः। अनुष्टुप्छन्दः। अङ्गारको देवता। भौम पीडापरिहारार्थं जपे विनियोगः।

भावार्थ्:-श्री मंगल कवच स्तोत्रं के मन्त्रों की रचना कश्यप ऋषि ने की थी। अग्नि के समान ज्वाला वाले देव मंगलदेवजी है। मंगलदेव के द्वारा पीड़ाओं से मुक्ति के लिए मंगल कवच को धारण कीजिए।

मंगल ध्यान:-मंगलदेव जी के मंगल कवच का पाठन करने से पूर्व उनका ध्यान करना चाहिए।

रक्ताम्बरो रक्तवपुः किरीटी चतुर्भुजो मेषगमो गदाभृत्।

धरासुतः शक्तिधरश्च शूली सदा मम स्याद् वरदः प्रशांतः।।

भावार्थ्:-हे मंगलदेव! आप रक्त के समान अम्बर पर विचरण करने वाले हो, रक्त के रंग की देह वाले हो, आपके सिर पर मुकुट को धारण किये हो, चार भुजाओं के स्वामी, भेड़ की सवारी करते हुए गमन करने वाले हो पृथिवी के गर्भ से उत्पन्न, शक्ति के स्वामी, गदा को चलाने में दक्ष हो, शूल को धारण करने वाले और निश्छल एवं शांत वृत्ति वाले हो। आपकी हमेशा वंदना करता हूँ।


कवचम्:-मंगल कवच का पाठन करते समय उसके शब्दो को अर्थ सहित जानना चाहिए।


अंगारकः शिरोरक्षेन्मुखं वै धरणीसुतः।

श्रवौ रक्ताम्बरः पातु नेत्रे मे रक्तलोचनः।

भावार्थ्:-हे मंगल देव!आप में अग्नि की ज्वाला के समान  उष्णता से जलने की प्रवृति भरपूर हैं, पृथ्वी के गर्भ से उत्पन्न हुए हो, रक्त के समान आकाश में आपको सुनते हैं, आपके नेत्रों की दृष्टि बहुत तेज होती है और आपके लाल रंग की आंखे व होती हैं।


नासां शक्तिधरः पातु मुखं मे रक्तलोचनः।

भुजौ मे रक्तमाली च हस्तौ शक्तिधरस्तथा।

भावार्थ्:-हे भूमिसुत! आपके नासा में इतनी शक्ति है, की किसी भी तरह के गन्ध को जान सकती है एवं मुख शक्ति अर्थात् वाणी से आप प्रवीण हो जिससे आपकी लाल रंग की आंखों झलकता है। आपकी भुजाएँ भी रक्त से पूर्ण होती है एवं हाथों में शक्ति युक्त शस्त्रों को धारण करने वाले होते हो।


वक्षः पातु वरांगश्च हृदयं पातु लोहितः।

कटिं मे ग्रहराजश्च मुखं चैव धरासुतः।

भावार्थ्:-हे ग्रहराज! आप वक्ष, हृदयं एवं रक्त के कारक माने गए हो, कमर, मुख के भी कारक ग्रह माने जाते हो। आप पृथिवी के गर्भ से उत्पन्न हुए हो।


जानुजंघे कुजः पातु पादौ भक्तप्रियः सदा।

सर्वाण्यन्यानि चांगानि रक्षेन्मे मेषवाहनः।।

भावार्थ्:-हे भौम देव! आप शरीर अंगों में जांघ एवं घुटना  एवं पैरों के स्वामी हो, आपकी पूजा आपके भक्त करते है जिससे आपके प्रिय बन जाते हैं, समस्त तरह के शरीर अंगों का प्रतिनिधित्व करते हुए उन अंगों के रक्षक हो और भेड़ की सवारी पर सवार होते हो।


या इदं कवचं दिव्यं सर्वशत्रुनिवारणम्।

भूत-प्रेत-पिशाचानां नाशनं सर्वसिद्धिदम्।।

भावार्थ्:-हे भौम देव! आपका यह कवच सभी तरह के दुश्मनों का अंत करके उनसे मुक्ति दिलवाता हैं, भूत-प्रेत एवं पिशाच आदि डरावने वाले से उनका नाश करके उनसे मुक्ति प्रदान करवाता हैं और समस्त तरह की सिद्धि दिलवाने वाला हैं।


सर्वरोगहरं चैव सर्वसम्पत्प्रदं शुभम्।

भुक्ति-मुक्तिप्रदं नृणां सर्वसौभाग्यवर्धनम्।।

रोगबंध विमोक्षं च सत्यमेतन्न संशयः।।

भावार्थ्:-हे मंगलदेव! आप तो समस्त तरह के रोगों को हरण करने वाले हो एवं समस्त तरह से अच्छा करके समृद्धि प्रदान करने वाले होते हो, आप तो भोग भी देने वाले एवं जीवन-मरण के सम्बंध से मुक्ति दिलाकर मोक्ष देने वाले हो, सभी तरह से कल्याण करने वाले हो एवं समस्त तरह की बीमारियों से मुक्ति दिलाने वाले हो। मनुष्य को कारागार या जेल आदि के बन्धन से छुड़ाने वाले हो, इसमें किसी भी तरह की शंका नहीं हैं।


।।इति श्रीमार्कण्डेयपुराणे मंगलकवचं स्तोत्रं संपूर्णं।।


मंगल कवचम् स्त्रोतं के फायदे:-मंगल कवच का वांचन करने से निम्नलिखित फायदे होते है, जो इस तरह हैं:

◆मंगल ग्रह का मंगल कवच दैवीय शक्ति से भरपूर होता है, इस कवच के द्वारा अपने सभी तरह के दुश्मनों को समूल नष्ट किया जा सकता हैं।

◆मंगल कवच के द्वारा भूत-प्रेत एवं पिशाच आदि से डर लगता है तो मंगल कवच को धारण करने वाले को किसी भी तरह के डर से मुक्ति मिल जाती हैं।

◆भूत-प्रेत एवं पिशाच आदि को नाश कर देने वाला यह कवच होता हैं।

◆इस कवच के पाठन से समस्त तरह की सफलता मिल जाती है और समस्त तरह के कार्यों को सिद्ध कर देता हैं।

◆इस कवच के द्वारा समस्त तरह दैहिक व्याधियों से मुक्ति दिलवाता हैं।

◆मंगल कवच को ग्रहण करने समस्त तरह सम्पत्तियों को भी प्रदान करवाता हैं।

◆मंगल कवच को ग्रहण करने से मनुष्य को भोग एवं मोक्ष के द्वारा बार-बार जन्म-मरण से मुक्ति दिलवाता है और सदगति को प्रदान करता हैं।

◆मंगल कवच को जो मनुष्य वांचन करते हैं उनको सौभाग्य को प्रदान करवाता हैं।

◆जिन मनुष्य को मिथ्या लांछन लगे हो, जब इस कवच का पाठ करते है, तब कारागार या जेल की सजा मिलने पर उस सजा से आजाद करवा देता है। इसमें किसी भी तरह की शंका नहीं हैं।



             ।।अथ श्री मंगल कवचं स्तोत्रं।।


विनियोग:-अस्य श्री मंगलकवचस्तोत्रमंत्रस्य कश्यप ऋषिः। अनुष्टुप्छन्दः। अङ्गारको देवता। भौम पीडापरिहारार्थं जपे विनियोगः।


                     ।। मंगल ध्यान।।

रक्ताम्बरो रक्तवपुः किरीटी चतुर्भुजो मेषगमो गदाभृत्।

धरासुतः शक्तिधरश्च शूली सदा मम स्याद् वरदः प्रशांतः।।


                 ।।कवचम्।।

अंगारकः शिरोरक्षेन्मुखं वै धरणीसुतः।

श्रवौ रक्ताम्बरः पातु नेत्रे मे रक्तलोचनः।

नासां शक्तिधरः पातु मुखं मे रक्तलोचनः।

भुजौ मे रक्तमाली च हस्तौ शक्तिधरस्तथा।

वक्षः पातु वरांगश्च हृदयं पातु लोहितः।।

कटिं मे ग्रहराजश्च मुखं चैव धरासुतः।

जानुजंघे कुजः पातु पादौ भक्तप्रियः सदा।।

सर्वाण्यन्यानि चांगानि रक्षेन्मे मेषवाहनः।।

या इदं कवचं दिव्यं सर्वशत्रुनिवारणम्।

भूत-प्रेत-पिशाचानां नाशनं सर्वसिद्धिदम्।।

सर्वरोगहरं चैव सर्वसम्पत्प्रदं शुभम्।

भुक्ति-मुक्तिप्रदं नृणां सर्वसौभाग्यवर्धनम्।।

रोगबंध विमोक्षं च सत्यमेतन्न संशयः।।


।।इति श्रीमार्कण्डेयपुराणे मंगलकवचं स्तोत्रं संपूर्णं।।