आज का पंचांग दिनांक 15 अक्टूबर 2021(Aaj ka panchang date 15 october 2021):-दशमी तिथि के स्वामी:-दशमी तिथि के स्वामी काल देव जी की पूजा-अर्चना करके उनको खुश करना चाहिए।जिससे काल देव जी की अनुकृपा मनुष्य पर बनी रहे, जीवन में धन-धान्य का भंडार भरा रहे, बुरे समय से रक्षा हो सके और सभी तरह के कामों में किसी तरह की बाधा नहीं आवे।
दशमी तिथि के दिन करने योग्य काम:-दशमी तिथि के दिन मनुष्य को अपने मकान की स्थापना, शादी, यात्रा, उपनयन, शांति और पौष्टिक काम करना उत्तम रहता है।
एकादशी तिथि के स्वामी:-एकादशी तिथि के स्वामी विश्वदेवाजी की पूजा-अर्चना करके उनको खुश करना चाहिए।जिससे विश्वदेवाजी की कृपा दृष्टि मनुष्य पर बनी रहे।जिससे मनुष्य के जीवन के सभी निर्माण से सम्बंधित कामों में कामयाबी मिल सके और जीवन में धन-धान्य का भंडार भरा रहे, बुरे समय से रक्षा हो सके और सभी तरह के कामों में किसी तरह की बाधा नहीं आवे।
एकादशी तिथि के दिन करने योग्य काम:-एकादशी तिथि के दिन मनुष्य को आभूषण, शिल्प, नृत्य, चित्रकारी, गृह, सम्बन्धी काम, शादी, यात्रा, उपनयन, शांति और पौष्टिक काम करना उत्तम रहता है।
विशेष:-नवें दिन 15 अक्टूबर 2021 को शुक्रवार के दिन दशवीं तिथि के दिन नवरात्रि व्रत का पारण किया जाता हैं और दशहरा का पर्व को मनाया जाता हैं।
पंचक मुहूर्त का समय:-आज के दिन रात्रिकाल 21:15 से अहोरात्र 24:00 तक रहेगा, जो की अशुभ मुहूर्त हैं।।
विशेष:-आज के दिन शमीपूजा का हैं।
विशेष:-आज के दिन बौद्धावतारः हैं।
विशेष:-आज के दिन विजयादशमी या दशहरा पर्व हैं।
विजयादशमी क्यों मनाया जाता है, पूजा विधि, कथा एवं महत्त्व(Why Vijayadashami is celebrated, puja vidhi, katha and importance):-आश्विन शुक्ल दशमी को दशहरा कहते है। यह त्यौंहार पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता हैं। क्षत्रियों का यह बहुत बड़ा पर्व हैं। शारदीय नवरात्रि, विजयादशमी और शरद्पूर्णिमा ये तीनों पर्व एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।
आश्विनस्य सिते पक्षे दशम्यां तारकोदये।
स कालो विजयो ज्ञेयः सर्वकार्यर्थ सिद्धये।।
अर्थात्:-आश्विन माह के शुक्लपक्ष की दशमी के दिन सायंकाल के समय को आकाश में चमकने वाले नक्षत्र या सितारा प्रकट होता है, उस समय विजयकाल या सब पर जीत दिलाने का समय रहता हैं, इसे इसलिए विजयादशमी कहा जाता हैं।
विजयादशमी के दिन पूजन विधि:-विजयादशमी के दिन पूजा-अर्चना के करने फल प्राप्त होता है:
◆विजयादशमी के दिन प्रातःकाल देवी का विधिवत पूजन के करके विजयादशमी को विसर्जन तथा नवरात्रि को पारणा करना चाहिए।
◆इस दिन विधिपूर्वक अपराजिता देवी के साथ जया तथा विजया देवियों का पूजन करने का विधान हैं और सायंकाल में दशमी पूजन तथा सीमोल्लंघन का विधान हैं।
◆भारतवर्ष के कोने-कोने में इस पर्व से कुछ दिन पूर्व ही रमलीलाऐं शुरू हो जाती हैं।
◆सूर्यास्त होते ही रावण, कुम्भकर्ण तथा मेघनाद के पूतले जलाए जाते हैं।
◆इस पर्व को भगवती या विजया के नाम पर विजयादशमी कहते हैं। साथ ही इस दिन भगवान श्रीरामचन्द्रजी ने दशमुख रावण का वध किया था। इसलिए इस पर्व को विजयादशमी कहा जाता हैं। प्राचीन काल में राजा लोग इस दिन अपनी विजय यात्रा आरम्भ करते थे। वैश्य अपने बही खातों का पूजन भी इसी दिन को किया करते हैं।
◆राजस्थान आदि कुछ प्रदेशों की परम्परा के अनुसार इस दिन घरों में दीवार पर गेरू से दशहरा का चित्र बनाकर जल, रौली और चावल से पूजा की जाती हैं।
◆दीप, धूप से आरती होती हैं। दशहरा पर जो दो गोबर की हान्डी रखी जाती हैं। उनमें से एक में तो रुपया तथा दूसरी में फल, रोली एवं चावल रखकर दोनों हांडियें को ढ़क दिया जाता हैं।
◆दीपक जलाकर परिक्रमा देकर दण्डवत किया जाता है।
◆थोड़ी देर के बाद हान्डी में रुपया निकालकर अलमारी में रख लिया जाता हैं तथा हांडियों का विसर्जन तालाब में कर दिया जाता हैं।
विजयदशमी हिंदुओं का मुख्य त्यौंहार हैं। दशहरा के दिन रामचन्द्रजी की सवारी बड़ी सज-धज कर बाजारों में घूमती हुई बड़ी धूमधाम से निकलती हैं। रावण, मेघनाद और कुम्भकर्ण का वध करते हुए लंका नगरी का विनाश करने की लीला करते हैं। इस दिन नीलकण्ठ दर्शन को बहुत ही शुभ माना जाता हैं।
विजयादशमी पर्व की कथा:-बहुत समय पूर्व की बात हैं। एक बार माता पार्वतीजी ने भगवान शिवजी से पूछा-की लोगों में जो दशहरा का त्यौंहार मनाते हैं। इसका क्या फल हैं?
शिवजी ने बताया कि अश्विन शुक्ल दशमी को सायंकाल में तारा उदय होने के समय विजय नामक काल होता है। जो सब इच्छाओं को पूर्ण करने वाला होता है। शत्रु पर विजय प्राप्त करने वाले राजा को इसी समय प्रस्थान करना चाहिए। इस दिन यदि श्रवण नक्षत्र का योग हो तो और भी शुभ माना जाता है।
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीरामचन्द्रजी ने इसी विजय काल में लंका पर चढ़ाई की थी। इसलिए यह दिन बहुत पवित्र माना जाता है और क्षत्रिय लोग इसे अपना प्रमुख त्यौंहार मानते हैं।
शत्रु से युद्ध करने का प्रसंग न होने पर भी इस काल में राजाओं को अपनी सीमा का उल्लंघन अवश्य करना चाहिए। अपने तमाम दल-बल को सुसज्जित करके पूर्व दिशा में जाकर शमी वृक्ष का पूजन करना चाहिए।
पूजन करने वाला शमी के सामने खड़ा होकर इस तरह ध्यान करे-हे शमी! तुम सब प्राणियों के पापों को नष्ट करने वाले और शत्रुओं को भी पराजय देने वाले हो। तुमने अर्जुन का धनुष धारण किया और रामचन्द्रजी से प्रियवाणी कही।
पार्वतीजी बोली-शमी वृक्ष ने अर्जुन का धनुष कब और किस कारण धारण किया था तथा रामचन्द्रजी से कब और कैसी प्रियवाणी कहीं थीं, जो कृपा करके समझाइए?
शिवजी ने उत्तर दिया-दुर्योध्यन ने पांडवो को जुए में हराकर इस शर्त पर वनवास दिया था कि वे बारह वर्ष तक प्रकट रूप से वन में जहां चाहें घूमें, लेकिन एक वर्ष तक बिल्कुल अज्ञात वास में रहे। यदि इस वर्ष में उन्हें कोई पहचान लेगा तो उन्हें बारह वर्ष और भी वनवास भोगना पड़ेगा। उस अज्ञात वास के समय अर्जुन अपना धनुष बाण एक शमी वृक्ष पर रखकर राजा विराट के यहां वृहन्लता के वेश में रहे थे। विराट के पुत्र कुमार ने गौओं की रक्षा के लिए अर्जुन को अपने साथ लिया और अर्जुन ने शमी के वृक्ष पर से अपने हथियार उठाकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी। शमी वृक्ष ने अर्जुन के हथियारों की रक्षा की थी।
विजय दशमी के दिन भगवान श्रीरामचन्द्रजी ने भी लंका पर चढ़ाई करने के लिए प्रस्थान करने के समय शमी वृक्ष ने भगवान श्री रामचन्द्रजी से कहा था कि आपकी विजय निश्चित होगी। इसलिए विजयकाल में शमी वृक्ष की भी पूजा होती हैं।
एक बार राजा युधिष्ठिर के पूछने पर श्रीकृष्णजी ने उन्हें बतलाया था कि हे राजन! विजयादशमी के दिन राजा को स्वयं अलंकृत होकर अपने दासों और हाथी-घोड़ा का श्रृंगार करना चाहिए तथा बाजे-गाजे के साथ मंगलाचार करना चाहिए। उसे उस दिन अपने पुरोहित को साथ लेकर पूर्व दिशा में प्रस्थान करके अपनी सीमा से बाहर जाना चाहिए और वहां वास्तु पूजा करके अष्ट दिग्पालों तथा पार्थ देवता की वैदिक मंत्रों से पूजा करनी चाहिए। शत्रु की मूर्ति अथवा पुतला बनाकर उसकी छाती में बाण लगाएं और पुरोहित वेद मंत्रों का उच्चारण करें। ब्राह्मणों की पूजा करके हाथी-घोड़ा, अस्त्र-शास्त्रादि का निरीक्षण करना चाहिए। यह सब क्रिया सीमांत में करके अपने महल में लौट आना चाहिए। जो राजा इस विधि से विजय उत्सव करता हैं वह सदा अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता हैं।
विशेष:-आज के दिन सर्वा सिद्धि योग प्रातःकाल 06:40 से प्रातःकाल 09:15 तक रहेगा।
सर्वाथ सिद्धि योग:-आज के दिन सर्वाथ सिद्धि योग होने से जिन मांगलिक कामों कोई मुहूर्त नहीं मिलने पर सर्वाथ सिद्धि मुहूर्त में मांगलिक और दूसरे सभी काम करने से काम में सफलता मिलती हैं।
।।दैनिक पंचांग का विवरण।।
दिनांक------------------15 अक्टूबर 2021।
महीना (अमावस्यांत् )---------आश्विन।
महीना (पूर्णिमांंत् )-------------आश्विन।
पक्ष------------------------------शुक्ल पक्ष।
कलियुगाब्द्--------------------5123।
विक्रम संवत्-------------------2078 विक्रम संवत।
विक्रम संवत् (कर्तक्)---------2077 विक्रम संवत।
शक संवत्----------------------1943 शक संवत।
ऋतु-----------------------------शरद ऋतु।
सूर्य का अयण----------------दक्षिणायणे।
सूर्य का गोल----------------- दक्षिण गोले।
संवत्सर(उत्तर)------------------आनंद।
संवत्सर--------------------------प्लव ।
।।आज के पंचांग के हालात को जानें।।
तिथि----दशमी तिथि रात्रिकाल 18:01:38 तक रहेगी,
उसके बाद एकादशी तिथि रात्रिकाल 18:01:38 शुरू होगी।
वार-------------शुक्रवार।
नक्षत्र-------श्रवण नक्षत्र प्रातःकाल 09:15:05 तक रहेगा।
उसके बाद
नक्षत्र-------धनिष्ठा नक्षत्र प्रातःकाल 09:15:05 से शुरू होगा।
योग.....शूल योग प्रातः(कल) 24:01:27 से तक रहेगा।
करण.....तैतिल करण प्रातःकाल 06:23:36 तक रहेगा,
उसके बाद
करण....गर करण रात्रिकाल 18:01:38 शुरू होगा, उसके बाद में
करण......वणिज करण प्रातः(कल) 29:46:05 तक रहेगा होगा।
चन्द्रमा की राशि-------मकर राशि में चन्द्रमा रहेगा।
चन्द्रमा की राशि-------मकर राशि में चन्द्रमा रात्रिकाल 21:14:46 तक रहेगा,
उसके बाद में कुम्भ राशि में चन्द्रमा शुरू होगा।
सूर्य की राशि-------सूर्य कन्या राशि में रहेगा।
सौर प्रविष्टे............29, आश्विन।
सूर्य का उदय व अस्त,दिनमान व रात्रिमान और चन्द्रमा के उदय और अस्त का समय:-
सूर्योदय का समय:-प्रातःकाल 06:23:02।
सूर्यास्त का समय:-रात्रिकाल 17:50:11।
चन्द्रोदय का समय:-दोपहर 15:08:15।
चन्द्रास्त का समय:-प्रातः(कल) 26:06:56।
दिनमान का समय:-प्रातःकाल 11:27:09।
रात्रिमान का समय:-दोपहर 12:33:26।
आज जन्में बच्चे के नक्षत्र का चरण और नाम अक्षर:-
चतुर्थ चरण खो अक्षर के श्रवण नक्षत्र का समय प्रातःकाल 09:15:05 तक रहेगा।
पहले चरण गा अक्षर के धनिष्ठा नक्षत्र का समय दोपहर 15:14:09 तक रहेगा।
दूसरे चरण गी अक्षर के धनिष्ठा नक्षत्र का समय रात्रिकाल 21:14:46 तक रहेगा।
तीसरे चरण गु अक्षर के धनिष्ठा नक्षत्र का समय प्रातः(कल) 27:16:58 तक रहेगा।
।।आंग्ल मतानुसार 15 अक्टूबर 2021 ईस्वी सन।
।।आज के दिन का शुभ मुहूर्त का समय।।
अभिजीत महूर्त का समय:-प्रातःकाल 11:44 से दोपहर 12:30 तक का समय शुभ होने से जिन कामों को करने में मुहूर्त नहीं मिलने पर अभिजीत मुहूर्त के समय में कामों को करने से कामयाबी मिलती है।
।।आज के दिन के अशुभ मुहूर्त का समय।।
राहुकाल मुहूर्त का समय:-प्रातःकाल 10:41 से 12:07 तक रहेगा जो कि अशुभ मुहूर्त का समय होने से अच्छे कामों को इस समय में नहीं करे।
यमघण्टा मुहूर्त का समय:-दोपहर 14:58 से 16:24 तक रहेगा जो कि अशुभ मुहूर्त है।
गुलिक मुहूर्त का समय:-प्रातःकाल 07:49 से 09:15 तक रहेगा जो कि अशुभ मुहूर्त है।
दूर मुहूर्त का समय:-प्रातःकाल 08:40 से 09:26 तक रहेगा जो कि अशुभ मुहूर्त है।
दूर मुहूर्त का समय:-दोपहर 12:30 से 13:15 तक रहेगा जो कि अशुभ मुहूर्त हैं।
पंचक मुहूर्त का समय:-रात्रिकाल 21:15 से अहोरात्र 24:00 तक रहेगा, जो की अशुभ मुहूर्त हैं।।
।।आज के दिन दिशाशूल से बचने का उपाय।।
दिशा शूल:-पश्चिम दिशा की ओर रहने से यदि जरूरी हो तो जौ का दान करके या चॉकलेट खाकर या घी का पान करके यात्रा करने से दिशाशूल का परिहार हो जाता है।
।।आज के शुभ-अशुभ चौघड़िया को जानें।।
नोट:-दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है।
◆प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
"चर में चक्र चलाइये , उद्वेगे थलगार ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार करे,लाभ में करो व्यापार ॥
रोग में रोगी स्नान करे ,काल करो भण्डार ।
अमृत में काम सभी करो , सहाय करो कर्तार ॥"
अर्थात-:
चर:- में वाहन,मशीन आदि कार्य करें ।
उद्वेग:- में जमीन सम्बंधित एवं स्थायी कार्य करें ।
शुभ:- में औरत श्रृंगार ,सगाई व चूड़ा पहनना आदि कार्य करें ।
लाभ:- में धंधा करें ।
रोग:- में जब कोई बीमार बीमारी से ठीक होने पर उसे स्नान करें ।
काल:- में धन संग्रह करने पर धन वृद्धि होती है ।
अमृत:- में सभी शुभ कार्य करें ।
दिन के चौघड़िया के समय से जानें मुहूर्त को:-
चर का चौघड़िया:-प्रातःकाल 06:23 से 07:49 तक रहेगा जो कि शुभ कार्य को करने के लिए शुभ रहेगा।
लाभ का चौघड़िया:-प्रातःकाल 07:49 से 09:15 तक रहेगा जो कि शुभ कार्य को करने के लिए शुभ रहेगा।
अमृत का चौघड़िया:-प्रातःकाल 09:15 से 10:41 तक रहेगा, जो कि शुभ कार्य को करने के लिए शुभ रहेगा।
काल का चौघड़िया:-प्रातःकाल 10:41 से 12:07 तक रहेगा, जो कि शुभ कार्य को करने के लिए अशुभ रहेगा।
शुभ का चौघड़िया:-दोपहर 12:07 से 13:33 तक रहेगा जो कि शुभ कार्य को करने के लिए शुभ रहेगा।
रोग का चौघड़िया:-दोपहर 13:33 से 14:58 तक रहेगा जो कि शुभ कार्य को करने के लिए अशुभ रहेगा।
उद्वेग का चौघड़िया:-दोपहर 14:58 से 16:24 तक रहेगा जो कि शुभ कार्य को करने के लिए अशुभ रहेगा।
चर का चौघड़िया:-सायंकाल 16:24 से 17:50 तक रहेगा जो कि शुभ कार्य को करने के लिए शुभ रहेगा।
रात के चौघड़िया के समय से जानें मुहूर्त को:-
रोग का चौघड़िया:-रात्रिकाल 17:50 से 19:24 तक रहेगा जो कि शुभ कार्य को करने के लिए अशुभ रहेगा।
काल का चौघड़िया:-रात्रिकाल 19:24 से 20:59 तक रहेगा जो कि शुभ कार्य को करने के अशुभ रहेगा।
लाभ का चौघड़िया:-रात्रिकाल 20:59 से 22:33 तक रहेगा जो कि शुभ कार्य को करने के लिए शुभ रहेगा।
उद्वेग का चौघड़िया:-रात्रिकाल 22:33 से 24:07 तक रहेगा जो कि शुभ कार्य को करने के लिए अशुभ रहेगा।
शुभ का चौघड़िया:-मध्य रात्रि 24:07 से 25:41 तक रहेगा जो कि शुभ कार्य को करने के लिए शुभ रहेगा।
अमृत का चौघड़िया:-प्रातः(कल) 25:41 से 27:15 तक रहेगा जो कि शुभ कार्य को करने के लिए शुभ रहेगा।
चर का चौघड़िया:-प्रातः(कल) 27:15 से 28:49 तक रहेगा जो कि शुभ कार्य को करने के लिए शुभ रहेगा।
रोग का चौघड़िया:-प्रातः(कल) 28:49 से 30:24 तक रहेगा जो कि शुभ कार्य को करने के लिए अशुभ रहेगा।
।।सूर्य के उदय के समय के लग्न को जानें।।
सूर्योदयकालीन उदित लग्न:-कन्या लग्न 27°45' गति 177°44' रहेगा।
सूर्य नक्षत्र:-चित्रा नक्षत्र में सूर्य रहेंगे।
चन्द्रमा नक्षत्र:-श्रवण नक्षत्र में चन्द्रमा रहेंगे।
गोचर राशि में ग्रहों के हालात,नक्षत्रों के चरण और अक्षर :-जो नीचे बताये गए है:-
ग्रह----------राशि----------नक्षत्र के चरण--अक्षर
सूर्य ग्रह:-कन्या राशि में चित्रा नक्षत्र के दूसरे चरण के पो अक्षर में रहेगा।
चन्द्रमा ग्रह:-मकर राशि में श्रवण नक्षत्र के चौथे चरण के खो अक्षर में रहेगा।
मंगल ग्रह:-कन्या राशि में चित्रा नक्षत्र के पहले चरण के पे अक्षर में रहेगा।
बुध ग्रह:-कन्या राशि में हस्त नक्षत्र के तीसरे चरण के ण अक्षर में रहेगा।
गुरु ग्रह:-मकर राशि में धनिष्ठा नक्षत्र के दूसरे चरण के गी अक्षर में रहेगा।
शुक्र-ग्रह:-वृश्चिक राशि में अनुराधा नक्षत्र के चौथे चरण के ने अक्षर में रहेगा।
शनि ग्रह:-मकर राशि में श्रवण नक्षत्र के पहले चरण के खी अक्षर में रहेगा।
राहु ग्रह:-वृषभ राशि में कृत्तिका नक्षत्र के चतुर्थ चरण के ए अक्षर में रहेगा।
केतु ग्रह:-वृश्चिक राशि में अनुराधा नक्षत्र के दूसरे चरण के नी अक्षर में रहेगा।
।।अंक शास्त्र ज्योतिष विज्ञान से जानें हाल:-
15 तारीख को जन्में मनुष्य के लिए मूलांक 06 के लिए शुभाशुभ:-
शुभ-तारीखें:-हर माह की 6, 15 और 24।
शुभ-वार:--बुधवार और शुक्रवार।
शुभ-वर्ष:-उम्र के 6, 15, 24, 33, 42, 51, 60, 69,78, 87 और 96 वें वर्ष।
शुभ-दिशा:-आग्नेय कोण की दिशा।
शुभ-रंग:--सफेद, गुलाबी, आसमानी।
शुभ-रत्न:-हीरा।
शुभ-धातु:-चाँदी।
आराध्य-देव:-कार्तिकेय।
जपनीय-मन्त्र:-ऊँ शुं शुक्राय नमः।
पूज्य-धारण योग्य यंत्र:-
11 6 13
12 10 8
7 14 9
मित्र-अंक (मालिक ग्रह के अनुसार):-4, 5, 6 और 8।
शत्रु-अंक (मालिक ग्रह के अनुसार):-1, 2और 7।
सम-अंक (मालिक ग्रह के अनुसार):-3 और 9।