विष्णु स्तुति अर्थ सहित(Vishnu Stuti with meaning):-भगवान विष्णुजी समस्त तीनों लोकों का पालन करने वाले होते हैं, जिन मनुष्य को भगवान विष्णुजी को खुश करना होता है, उन मनुष्य को नियमित रूप भगवान विष्णुजी की स्तुति करते रहना चाहिए। आज के युग में मनुष्य की जीवनचर्या इस तरह की बन गई हैं, की वे हर कार्य को कम में समय अधिक करना चाहते है। उनके लिए जो अपने भागदौड़ की जिंदगी में ईश्वर की पूजा-अर्चना में समय नहीं दे पाते हैं, उनके लिए हमारे ऋषि-मुनियों के द्वारा अपनी तपस्या के स्वरूप समस्त तरह के देवी-देवताओं को उनकी पूजा-अर्चना करने के समान ही फल की प्राप्ति हो सके ऐसे मन्त्रों का निर्माण किया गया हैं, जिनका उच्चारण करके मन में ही मन में दोहराते रहने पर कम समय में अधिक फल की प्राप्ति हो जाती हैं। मनुष्य अपने भागदौड़ के समय में भी ईश्वर को स्मरण करते हुए अपनी सदगति को प्राप्त कर सकता हैं। इस तरह भगवान विष्णुजी के बारे में उनके गुणों के बखान करने का मंत्र है, जिसका नियमित रूप से मन में वांचन करते रहने पर भी मनुष्य अपनी गति को सुधार सकता हैं।
विष्णु स्तुति अर्थ सहित:-भगवान श्रीचक्रपाणी जी को प्रसन्न करने के लिए उनकी स्तुति करना चाहिए।
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥
भावार्थ्:-विष्णु स्तुति में भगवान मुरारी जी के गुणों के बारे में पूर्ण विवरण मिलता है। विष्णु स्तुति के प्रत्येक शब्दो का भावार्थ् अलग-अलग तरह से है, जो इस तरह है:
शान्ताकारं का अर्थ:-हे विष्णुजी! आपका आकार अत्यधिक निःशब्द हैं एवं आप विनीत स्वभाव के दूध के समान एवं गहराई से युक्त हैं।
भुजग-शयनं:-हे चक्रपाणीजी! आपका शेषनाग आसन या बिछावन होता है और शेषनाग की शैय्या पर शयन किए हुए हैं।
पद्मनाभं का अर्थ:- जिनकी नाभि में कमल है।
सुरेशं का अर्थ:-हे विष्णुजी! आप तो समस्त देवताओं के भी भगवान हो।
विश्वाधारं का अर्थ:-आप तो समस्त संसार के मूलाधार हो और समस्त संसार के रचना करते हो।
गगन-सदृशं का अर्थ:-आपका विस्तार समस्त नभमण्डल में हर जगह पर फैला हुआ है।
मेघवर्ण का अर्थ:-आपका रंग नील आकाश के समान दिखाई पड़ता हैं।
शुभाङ्गम् का अर्थ:-आपकी देह बहुत ही अधिक सुंदर होती है, आपकी देह के समस्त अंग ऐसे प्रतीत होते है कि जो कोई एक बार आपकी देह एवं देह के अंगों के दर्शन कर लेते है, तो वह उनके आकर्षण में सबकुछ भूल जाता है।
लक्ष्मीकान्तं का अर्थ:-आप तो लक्ष्मीजी के स्वामी हो।
कमल-नयनं का अर्थ:-आपके चक्षु ऐसे प्रतीत होते है, जैसे कमल के कोमल पुष्प की तरह सुन्दर मन को आकर्षित करने वाले होते हैं।
योगिभिर्ध्यानगम्यम् का अर्थ:-आपको पाने के लिए योगी निरन्तर अपनी तपस्या एवं साधना में लगे रहते है और ध्यान करते रहते है। योगियों के द्वारा आपका ध्यान करके आपको पाते हैं।
वन्दे विष्णुं का अर्थ:-हे श्रीचक्रपाणी! मैं आपको नतमस्तक होकर अभिवादन करता हूँ। आप तो वे ब्रह्म हो, जिनका सभी वर्णनों एवं संकल्पनाओं से परे हो, आपको मैं नमस्कार करता हूँ।
भवभय-हरं का अर्थ:-आप तो सभी तरह के डर का नाश करने वाले हो एवं जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त करने वाले हो।
सर्वलोकैक-नाथम् का अर्थ:-आप तो समस्त तीनों लोकों के स्वामी हो और समस्त जड़ एवं चेतन संसार के ईश्वर हो।