अंगारक योग क्या होता है और किस तरह प्रभावित करता है?(What is Angaraka Yoga and how does it affect?):-मनुष्य की जन्मकुंडली के अच्छे घरों में अच्छे ग्रहों का साथ बैठने पर मनुष्य के जीवन को उन्नति के शिखर पर ले जाते है, जब अच्छे भावों में बुरे ग्रहों के बैठने पर उस भाव के नतीजों को नष्ट कर देते हैं। हमारे ऋषि-मुनियों के द्वारा ज्योतिष शास्त्र का निर्माण किया था, तो उन्होंने नव ग्रहों का मानव जीवन पर महत्व को बताया था। उन नवग्रहों में सूर्य ग्रह, भौम ग्रह,शनि ग्रह, राहु ग्रह, केतु ग्रह एवं क्षीण चन्द्रमा को पापी या बुरे फल देने वालों की श्रेणी में रखा था। मजबूत चन्द्रमा, गुरु ग्रह, बुध ग्रह एवं शुक्र ग्रह को अच्छे ग्रह माना था। उनका असर मनुष्य के जीवन पर अच्छा होता है, ऐसा उन्होंने बताया था। इस तरह उन्होंने काफी शोध किया था, उस शोध के बाद बताया कि जब दो समान प्रकृति के ग्रह या समान पाप या बुरे ग्रह जब एक साथ किसी भाव में बैठते है, तब उस भाव का बिगाड़ कर देते है।
अंगारक योग का मतलब:-यह है कि जब दो समान प्रकृति वाले ग्रह एक साथ एक जगह पर साथ में बैठते हैं, उन दोनों के समान व्यवहार में तीक्ष्णता का बढ़ना होता हैं।
अंगारक का मतलब:-अग्नि की ज्वाला के समान बहुत ही शीघ्रता पूर्वक जलाना होता हैं।
इस तरह मंगल एवं केतु के साथ में होने से जन्मकुंडली के जिस भाव में यह योग बनेगा, उस भाव से सम्बंधित फल को उसी तरह नष्ट कर देता है, जिस तरह कोई अग्नि घास को क्षण भर में जलाकर भस्म कर देती हैं।
अंगारक योग:-जन्मकुंडली के बारह भावों में से किसी भी भाव में जब भौम ग्रह एवं केतु या राहु का सयोंग होता हैं, तब इन दोनों के एक साथ एक जगह पर बैठने से बनने वाले योग को अंगारक योग कहते हैं।
अग्नि तत्व के गुण:-मंगल ग्रह को अग्नि तत्व का कारक ग्रह माना जाता है, चपल, शुर, दुर्बल, प्रज्ञावान, तीक्ष्ण और अभिमानी होता हैं। अग्नि को एक बार जलाने पर बहुत शीघ्र ही प्रज्वलित हो जाती हैं, उसी तरह का असर मंगल ग्रह के कारण मनुष्य की जन्मकुंडली के भावों पर डालते हैं।
मंगल ग्रह के मिजाज:-भौम ग्रह को अनेक नामों से जाना जाता हैं, जिनमें से एक नाम अंगारक भी होता हैं। मंगल ग्रह अग्नि तत्व होता है। मंगल का स्वभाव बहुत तेजपन लिए उग्रतापूर्ण, थोड़ी-थोड़ी बातों पर शीघ्र आक्रोशित होना एवं मारने की ताकत वाला होता हैं। मंगल को गुस्सा बहुत आता हैं, उस गुस्से के कारण उसे स्वयं को ज्ञात नहीं होता हैं कि उसने क्या किया है, गुस्से के प्रभाव से अपना भी अहित करने से पीछे नहीं हटता है। जब उसका गुस्सा शांत होता हैं, तब उसको ज्ञात होता है, की उसने क्या किया है तब तक बहुत देर हो जाती हैं।
मंगल के कारक तत्व:-मंगल ग्रह को शारिरिक बल, रोग, गुण, अनुज, भूमि, रुधिर, पित्त, मूर्च्छा, चोर, युद्ध, साहस, विद्वेष, दुष्ट, पापी, सेना का अधिपत्य, शौर्य, वीर्य का नाश, विरोध एवं वाणी एवं चित्त की चंचलता आदि कारक तत्व माने गए हैं।
राहु व केतु ग्रह तत्व:-राहु एवं केतु को वायु तत्व मिला हैं, जिसके क्रोधी स्वभाव, भटकने वाला, शत्रुओं से जीतने वाला एवं दुर्बल काया वाले होते हैं।
राहु के कारक तत्व:-अंधकार युक्त स्थान, संग्रह, द्यूत, संध्या के समय बलवान, अस्थि, पपस्त्री, अन्य देश गमन, अस्थि, गुल्म, झूठ बोलने वाला, सम्पूर्ण गुप्त रहस्य वाला, दुष्ट स्वभाव का, बन्धन, शेयर आदि से आय, आकस्मिकता, विष और हठधर्मिता आदि का कारक माना जाता हैं।
केतु ग्रह के कारक तत्व:-सम्पूर्ण ऐश्वर्य, क्षयरोग, ज्वर, महातप, वात, व्रण, वैराग्य, जड़त्व, शत्रुओं से पीड़ा, भाग्य, अत्यधिक दर्द, वायरस जनित रोग, स्थान परिवर्तन और स्वभाव में उग्रता आदि के कारक माना जाता हैं।
केतु एक दैत्य ग्रह है, जो कि शरीर के भाग में से केवल पूरा शरीर का भाग नहीं होकर धड़ है, केतु ग्रह की प्रकृति वायु तत्व की होती हैं, हवा अपना रुख कहि पर भी बना सकती हैं। मंगल की तरह ही केतु ग्रह में सोचने-समझने की शक्ति क्षीण हो जाती हैं, क्योकि केतु केवल शरीर के भाग का धड़ होता है, उसको कुछ भी समझ नहीं रहता हैं, वह क्या कर रहा हैं।
अंगारक दोष:-अंगारक दोष के द्वारा जिस मनुष्य की जन्मकुंडली के जिस भाव में बनेगा, उस भाव पर मंगल ग्रह केतु ग्रह के साथ मिलकर उत्तेजना को तेज कर देते हैं। मंगल ग्रह अग्नि तत्व एवं राहु ग्रह वायु तत्व होते है, जब दोनों का मिलन एक जगह पर होता है, एक-दूसरों को अपनी ताकत दिखाते है, जिसके फलस्वरूप एक दूसरे पर हावी होने का प्रयाश करते है। जिसके कारण हवा के द्वारा अग्नि को भड़काता है, जिससे अग्नि तेज होकर बहुत बड़ा अपनी ऊष्णता को फोड़कर बाहर निकलती है। जिससे किसी भी तरह कोई शरीर को हानि करने वाली घटना को करवाते है और शरीर में चीर-फाड़ तक करवा देते हैं।
अंगारक योग बनने से पड़ने वाले असर:-अंगारक योग के बनने से मनुष्य के जीवन में उथल-पुथल होने लगती है, इस योग के बुरे असर इस तरह है:
◆अंगारक योग के असर के कारण मनुष्य अपनी उत्तेजना की अग्नि पर काबू नहीं रख पाते है, जिसके कारण उनमें बहुत ही गुस्सा आने लगता है और अपना सही निर्णय लेने में असमर्थ हो जाते है, जिसके कारण उनको बहुत भयंकर नतीजो को भोगना पड़ता हैं।
◆अंगारक योग के कारण से मनुष्य के जीवनकाल में अग्नि की ज्वाला भड़कती रहती है और दूसरे के बहकावे में जल्दी आ जाते है और अपना प्रतिशोध लेने की आग को तेज कर देते है। जब अपना प्रतिशोध पूरा नही कर लेते है, तब तक उनको शांति नहीं मिलती हैं।
◆अंगारक योग के नतीजों में सबसे अधिक प्रभाव मनुष्य में गुस्से पर किसी भी तरह का नियंत्रण नही रहना होता हैं।
◆मनुष्य को जीवनभर अग्नि से डर लगता हैं।
◆मनुष्य के शरीर के प्रत्येक हिस्सों में सुई चुभने के समान पीड़ा को भोगना पड़ता है।
◆मनुष्य के सही रास्ते पर चलने पर भी किसी भी तरह वाहन से दुर्घटना हो जाती है और किसी जगह पर गिरने का डर सताता रहता हैं।
◆मनुष्य को रक्त से सम्बंधित विकारों का सामना करना पड़ता है, उसका रक्त कम होता जाता हैं।
◆मनुष्य को रक्त परिसंचरण सम्बंधित रोग में कभी ज्यादा तो कभी कम रहता है, जिसके फलस्वरूप चक्कर एवं अंधेरापन आंखों के आगे आने लगता हैं।
◆शरीर की चमड़ी में विकार शुरू हो जाते हैं।
◆अपने पारिवारिक जीवनकाल में गृह क्लेश बढ़ता जाता है और सामाजिक जीवन में बिना मतलब से क्लेश हो जाता हैं।
◆मनुष्य का मिजाज किसी दूसरे मनुष्य पर हमला करने वाला होकर किसी को मारने की प्रवृति बढ़ जाती हैं।
◆मनुष्य के सोचने-समझने पर एक तरह अंकुश लग जाता हैं, जिससे उसके मन में कई तरह की नकारात्मक सोच जन्म ले लेती है, जिसके फलस्वरूप वह अपने कार्य को ठीक तरह से नहीं कर पाता है और उसको नाकामयाबी मिलने से उसका उत्साह समाप्त हो जाता हैं।
◆मनुष्य को अपने परिवार के सदस्यों से वैचारिक मतभेद होते रहते है, जिससे उसके भाइयों, दोस्तों एवं निकट के सम्बन्धियों से मतभेद होने से वे सभी उसका साथ छोड़ देते है और जिससे मनुष्य अकेला पड़ जाता हैं।
◆मनुष्य को रुपये-पैसों के लिए बहुत ही संघर्ष करना पड़ता है और परिस्थिति वश दूसरों के आगे हाथ फैलाने पर उसके मिजाज के कारण उसको कम ही मदद मिल पाती हैं।
◆जब किसी औरत की जन्मकुंडली में अंगारक योग बनता है, तब उसको बार-बार गर्भपात हो जाता है, जिससे सन्तान उत्पन्न करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
◆पति-पत्नी के साथ बहुत ही झगड़े होते है, जिसके फलस्वरूप पति-पत्नी को अलग तक रहना पड़ सकता हैं।
गोचर कुंडली या जन्मकुंडली में अंगारक योग:-यदि गोचर की कुंडली में जब मंगल ग्रह राहु या केतु दैत्य के साथ बैठकर योग बनता है, तब मनुष्य को भी जन्मकुंडली की तरह ही प्रभावित करता हैं।
मंगल ग्रह के कारक:-मंगल ग्रह को उत्तेजना, उत्साह, गुस्से का, किसी से भी टकराव का, तर्क-वितर्क, अस्त्र-शस्त्र, किसी भी तरह की आफत, दुश्मन, जीवन में शक्ति के संचार और नकारात्मक भावना का माना जाता हैं, जब राहु या केतु ग्रह का सयोंग होता है, तब इन कारकों में ज्यादा बढ़ोतरी हो जाती है जिसके कारण उस भाव से सम्बंधित फल को बहुत ही कमजोर कर देते हैं।
◆जब मंगल एवं राहु का संयोग जन्मकुंडली के जिस किसी भी भाव में होता है, तब उस भाव से सम्बंधित नतीजों को कम करके उस भाव पर किसी भी तरह का काबू नहीं रख पाते है।
◆बारह भावों में से प्रत्येक भाव में अंगारक योग बनने पर भाव विशेष की हानि करते हैं।
◆जब गोचरवश भौम ग्रह एवं राहु या केतु ग्रह का भ्रमण एक राशि में होता हैं, तब संसार में उथल-पुथल, किसी भी तरह की भयानक महामारी का जन्म एवं प्रकृति से उत्पन्न आपदाओं के कारण चारों ओर हाहाकार की स्थिति का जन्म होता हैं।
◆गोचर की स्थिति में इस तरह मंगल-राहु या केतु के सयोंग के फलस्वरूप प्रजा एवं राजा के बीच में आंतरिक मनमुटाव की स्थिति पैदा हो जाती हैं।
◆मनुष्य के जीवनकाल बिना मतलब एवं बिना किसी वजह पर क्रोध उत्पन्न हो जाता हैं।
सावधानियां:-जिन व्यापारियों की राशि में गोचर चल रहा होता है, उनको सपने व्यापार पर ध्यान रखना चाहिए और दूसरे किसी जगह पर रुपयों-पैसों को नहीं लगना चाहिए।
◆जो मनुष्य जमीन-जायदाद के कार्य को करते है, तो उनकी राशि के अनुसार यदि मंगल-केतु या राहु की युति जिस भाव पर हो रही होती है और जन्मकुंडली के भावों में मंगल एवं केतु की स्थिति को ध्यान में रखते हुए जमीन-जायदाद के कार्य में रुपयों-पैसों का व्यय करना चाहिए।