अमावस्या योग कब बनता हैं और क्या परिणाम होते हैं?(When are the Amavasya Yoga and what are the results?):-अमावस्या तिथि में जब चन्द्रमा की कलाएँ घटती है अर्थात् चन्द्र बिम्ब धीरे-धीरे घटकर, अन्त में बिम्ब का पूर्ण अभाव हो जाता है जिससे रात्रियों में अंधेरा बढ़ता जाता है, तब उस समय में जो तिथि उदित होती है, उस तिथि को अमावस्या तिथि कहते हैं।
अमावस्या योग की परिभाषा:-जब जन्मकुंडली के किसी भी घर में रवि ग्रह और सोम ग्रह का सयोंग होता है, जिसमें किसी भी घर में एक साथ बैठ जाते है तब इन दोनों के मेल से बनने वाले योग को अमावस्या योग कहते हैं।
महर्षि पराशर जी ने अपने ग्रन्थ "बृहत् पाराशर होराशास्त्रम्":- में बहुत सारे योगों के बारे में बताया है, उनमें से अच्छे एवं बुरे दोनों योगों के बारे में जानकारी मिलती है, लेकिन बुरे योग में अमावस्या तिथि में जन्म अर्थात् "दर्श जन्म" के बारे में जो जानकारी बताई गई है, वह इस तरह है:
अमावस्या तिथि के भेद:-अमावस्या तिथि के दो भेद बताये गए है
1कुहू अमावस्या तिथि:-जब चन्द्रमा की कलाएँ पूरी तरह से अमावस्या तिथि में कमजोर हो जाती है, तब उस तिथि को कुहू अमावस्या तिथि कहा जाता है।
2.सिनीवाली अमावस्या तिथि:-जब चन्द्रमा की कलाएँ अमावस्या तिथि में अवशिष्ट रह जाती है, तब उस तिथि को सिनीवाली अमावस्या तिथि कहा जाता है।
चन्द्रमा की शुभता एवं अशुभता:-चन्द्रमा की शुभता एवं अशुभता के बारे में अनेक शास्त्र के जानकारों के मत इस तरह हैं:
1.यवनमत के अनुसार शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से दशमी तिथि तक चन्द्रमा मध्य बलवान होता है।
शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि तक चन्द्रमा अत्यधिक बली होता हैं।
कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि से अमावस्या तिथि तक चन्द्रमा बलहीन होता है। इसे ही क्षीण बली चन्द्रमा अथवा क्षीणेन्दु कहा जाता है। क्षीणेन्दु ही पाप या अशुभ ग्रह हैं।
2भटोत्पल के मतानुसार:-शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के आधे से लेकर कृष्ण पक्ष की की अष्टमी के आधे भाग तक चन्द्रमा सौम्य या शुभग्रह होता है। शेष अवधि में चन्द्रमा पापग्रह होता हैं। इस तरह चन्द्रमा एवं सूर्य के मध्य जब अन्तर 90 अंश से 270 अंश तक होता है, तब चन्द्रमा सौम्य या शुभ ग्रह माना जाता है।
3.मुहूर्त शास्त्र में बताया गया है कि कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि से शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि तक चन्द्रमा को कमजोर हो जाता हैं।
4.आधुनिक परिवेश में कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि से लेकर शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि तक चन्द्रमा को कमजोर माना गया है और चन्द्रमा को पापग्रह के रूप में गिना जाता हैं। अमावस्या योग में चन्द्रमा का पक्ष कमजोर होता हैं।
अमावस्या योग के नतीजे:-इस योग के नतीजे इस तरह से प्राप्त होते है:
◆जब जन्मकुंडली में अमावस्या योग बनता है तब जातक या जातिका के मन में विचलन शुरू हो जाता है, वे किसी तरह के निर्णय लेने में अक्षम हो जाते है, जिससे वे चिंता के मायाजाल में फंस जाते है और उस मायाजाल में निकल पाने में असमर्थ होते हैं।
◆इस योग के फलस्वरूप जातक या जातिका का उत्साह खत्म हो जाता है, जिससे किसी भी तरह के कार्य करने से पूर्व उनमें नकारात्मक भाव जागृत हो जाते है।
◆रवि ग्रह एवं सोम ग्रह के योग से जातक या जातिका को माता से मतभेद हो जाते है वे माता के प्रति बोलचाल में सही तरीके से जबाव नही दे पाते हैं।
◆इस योग के फलस्वरूप जातक या जातिका को कृषि के क्षेत्र एवं कलाकारी के क्षेत्र में अपने मन के अनुरूप फायदा प्राप्त करते हैं।
◆इस योग में जन्में जातक या जातिका शरीर से स्वस्थ एवं सुंदर एवं आकर्षक रूपवान होते है, जो सामने वालों को अपनी तरफ खींचने की ताकत रखते हैं।
◆जब रवि ग्रह एवं सोम ग्रह अपने-अपने घर के अनुसार या भावों के आधार पर अच्छी स्थिति में होते हैं तब जातक एवं जातिका को प्रतिष्ठा दिलाते है जिससे उनका यश चारों तरफ फैलता हैं।
◆जातक या जातिका का अपने मन पर किसी तरह से नियंत्रण नहीं होता है, जिससे मानसिक रूप से बहुत कमजोर हो जाते है, उधड़-बुन में बने रहते हैं।
◆जातक एवं जातिका अपनी सोच के विपरीत आचरण करते है और अपने सोच पर विचार करते रहते है।
◆रवि ग्रह से सोम ग्रह की दूरी जितनी ज्यादा होती है उतना ही जातक एवं जातिका को मिलता है, क्योंकि रवि ग्रह के नजदीक रहने पर मन पर रवि ग्रह का प्रभाव पड़ने से मन को सोचने समझने की शक्ति कमजोर होती रहती है।
अमावस्या योग में ग्रहों को उचित फल दिलवाने के लिए कुछ माध्यमों का:-उपयोग करना चाहिए।
◆जातक या जातिका की जन्मकुंडली के पहले घर के स्वामी अर्थात् शरीर के घर को मजबूत करना होता है, इसके लिए शरीर घर के मालिक को मजबूत करके शरीर में उत्साह व ताजगी की प्राप्ति की जा सकती है, जब शरीर स्वस्थ रहेगा तब ही मन सही तरीके से कार्य कर सकता है, इसके लिए शरीर घर के स्वामी को मजबूत करने पर फायदा मिलता हैं।
◆जातक या जातिका को अपनी जन्मकुंडली में रवि ग्रह की स्थिति का अवलोकन करना चाहिए और देखना चाहिए कि रवि ग्रह की स्थिति कैसी है, जब रवि ग्रह की स्थिति अच्छी नहीं होने पर रवि ग्रह को बल देने के लिए सूर्य को अर्ध्य देना शुरू करना चाहिए। सूर्य अर्ध्य देते समय तांबे के कलश में एक लाल मिर्च का दाना या एक इलायची का दाना अर्ध्य के कलश के जल में डाल कर अर्ध्य देने पर निश्चित ही फायदा मिलता हैं।
◆चन्द्रमा ग्रह को मजबूत बनाने के लिए शिवजी के सोमवार से सोमवार का उपवास शुरू करने से सोमदेव जी की अनुकृपा शुरू हो जाती है, मन पर अपना नियंत्रण होना शुरू हो जाता हैं। भोलेनाथ जी चन्द्रमा जी को अपने सिर पर धारण किया हुआ है इसलिए शिवजी की अर्चना करने से मन के अंदर आ रहे नकारात्मक विचारों का अंत होता है और सकारात्मक के भाव जागृत होना शुरू हो जायेगें।
◆जब किसी भी जातक का जन्म कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि के खत्म होते ही जो तिथि का उदय होता है तब उस तिथि को अमावस्या तिथि कहा जाता हैं, अमावस्या तिथि के जन्म होने पर जातक या जातिका के बहुत अच्छे योग का प्रभाव भी कमजोर हो जाता है।
◆जब तुला राशि के नक्षत्र या नवांशों में रवि ग्रह एवं सोम का एक साथ योग होता है तब तो यह योग बहुत ही घातक हो जाता हैं, जिस तरह से जीवन में विष को ग्रहण करने के समान हो जाता है, इस तरह की स्थिति दीपावली पर्व पर बनती हैं।
◆ज्योतिष शास्त्रों के ग्रन्थों में अमावस्या योग में जन्में जातक या जातिका के बारे में बहुत सारे बुरे नतीजे को बताया गया हैं।
◆जब नक्षत्रों की गति के समय रवि ग्रह एवं सोम ग्रह एक समय में एक ही नक्षत्र में आकर साथ में बैठ जाते हैं, तब इस समय इन दोनों ग्रहों के साथ बैठने की स्थिति में जन्म लेने वाले जातक या जातिका को अमावस्या जन्म माना जाता हैं।
◆जब नक्षत्र की गति के समय एक ही नक्षत्र में रवि ग्रह एवं सोम ग्रह का मिलन होता है एवं इस गति के समय एक ही नवांश में होते है तब इस योग के बहुत अधिक घातक नतीजे मिलते हैं।
◆जब एक नक्षत्र, एक नवांश और एक ही षष्ठ्यांश में होने पर ज्यादा प्रभाव को दिखाता है।
◆ज्योतिष शास्त्र के मतानुसार जब किसी भी जातक या जातिका का अमावस्या तिथि को जन्म होता है, तब उनके जन्म के नक्षत्रों पर सूर्य ग्रहण या चन्द्र ग्रहण होता है तब जातक या जातिका को छः माह तक भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
◆इसी तरह जन्मकालिक नवांश भी जन्म नक्षत्र की तरह रवि ग्रहण या सोम ग्रहण के समय में आ जाते है तो जातक या जातिका को मरने के समान कष्टों को भोगना पड़ता है।
◆अमावस्या योग के निर्माण के लिए रवि ग्रह एवं सोम ग्रह का एक साथ इकट्ठा बैठना जरूरी होता है। रवि ग्रह को ज्योतिष शास्त्र में आत्मा का प्रतीक माना गया है और चन्द्रमा ग्रह को चित्त या मस्तिष्क का प्रतीक माना गया हैं। ऐसे तो रवि ग्रह एवं सोम ग्रह को हमेशा ही अच्छा माना जाता है, यहां तक कि अष्टमेश के दोष से भी दोनों प्रभावित नहीं होते हैं।
अमावस्या तिथि में जन्म लेने वाले जातक या जातिका पर अच्छा एवं बुरा प्रभाव:-जब किसी भी जातक या जातिका का जन्म अमावस्या तिथि को होता है
◆तब इस तिथि में जन्म लेने वाले जातक या जातिका अपना जीवनकाल को बहुत वर्षों तक जीते हुए दूसरे देशों में बार-बार जाना-आना लगा रहता हैं।
◆अपनी कुशल क्षमता का उपयोग अपने महत्वपूर्ण कार्यों को पूर्ण करने में करते हैं और अच्छे एवं धार्मिक कामों को करते समय उनका चित्त दुर्बल हो जाता है, जिससे वह अपनी बुद्धि को तीक्ष्ण करने कोशिश करता है और बिना मतलब की बातें करने वाले होते हैं।
◆इस तरह अमावस्या तिथि में जन्में जातक या जातिका अपने जीवनकाल में बहुत ही मुसीबतों का सामना करना पड़ता है जिससे उनमें उत्साह की कमी आने लगती है, अपने कार्य को सही मुकाम पर नहीं ले जा पाते है और निकटजनों से मतभेद करके उनको अपना शत्रु बना लेने वाले होते हैं।
◆जातक या जातिका के घर के हालात पर बुरा प्रभाव पड़ता है, जिससे उनके परिजनों को दुसरों के आगे रुपये-पैसों के लिए हाथ फैलाना पड़ता है।
◆इस तिथि में जन्में जातक या जातिका को अपने कार्यक्षेत्र में एवं सामाजिक जीवन में जितना सम्मान मिलना चाहिए उतना उनको नहीं प्राप्त होता है, जिससे उनके मन में घिन्नता की भावना जन्म ले लेती है।
अमावस्या तिथि में जन्में जातक या जातिका के लिए इस तिथि के अशुभता को दूर करने के उपाय:-जब किसी भी जातक या जातिका का जन्म इस तिथि में होता है तब इस तिथि की अशुभता को कम करने के उपाय ज्योतिष शास्त्र में बताए गए है, जो इस तरह है:
1.जब जातक या जतिका का जन्म इस तिथि के दिन रवि ग्रह एवं सोम ग्रह जो नक्षत्र में होता है तो उन ग्रहों के नक्षत्र के आगमन पर उन नक्षत्रों के मन्त्रों का जाप करना चाहिए।
2.उन नक्षत्रों के मन्त्रों से किसी योग्य ब्राह्मण के द्वारा हवन आदि करना चाहिए।
3.जीवनकाल में जब भी जन्में नक्षत्र का समय आता है तो जातक या जातिका को उपवास करते रहने पर उचित फल मिलता हैं।
4.जन्म के समय के नक्षत्र के स्वामी की वस्तुओं का दान किसी ब्राह्मण को देना चाहिए।
5.रवि ग्रह एवं सोम ग्रह की वस्तुओं का दान करना चाहिए।
6.चन्द्रमा कलाएँ से रहित अमावस्या तिथि में जन्म होने पर घृत को किसी धातु के पात्र में डालकर किसी असहाय व्यक्ति को अपना मुहँ देखकर देने पर भी इनका असर को कम किया जा सकता हैं।
◆जब चन्द्रमा की कलाएँ बहुत ही कमजोर होकर अपनी आभा को खोने लगती है अन्त में अपनी समस्त आभा को पूर्ण रूप से खो देती है तब चारों और शीतल किरणों के स्थान पर अंधेरा ही अंधेरा दिखाई देता है उस रात्रिकाल के समय को अमावस्या रात्रि कहते है, अमावस्या रात्रिकाल में जो भी क्रियाएं की जाती है वे शीघ्र फलिभूत होती है, इसलिए आज के युग या प्राचीनकाल के समय अपना अच्छा चाहने वाले या दूसरों का बुरा करने के लिए इस रात्रिकाल में जो क्रियाएँ करते थे तो उनको सफलता मिलती थी। इस रात्रिकाल में साधक अपनी साधना और तांत्रिक अपनी शक्तियों को बढ़ाने के लिए बुरी शक्तियों को जागृत करने के लिए तंत्र-मंत्र के कार्य करते है। जिससे इस रात्रिकाल में उनकी इच्छाओं की पूर्ति होती है।
अमावस्या तिथि में जन्में जातक या जातिका के दोष का शमन करने के तरीके:-अमावस्या तिथि में जन्में जातक या जातिका के दोष को समय पर ठीक करने पर फायदा मिलता है, हमारे धर्म ग्रन्थों में इस तिथि के असर को कम करने के कुछ तरीके बताए गए है, जो इस तरह है:
1.इस तरह इस तिथि में जन्म लेने वाले लड़की या लड़का के कारण माता-पिता की जीवन पर असर डालते है, जिसके फलस्वरूप माता-पिता के बीच मतभेद एवं अनावश्यक झगड़े होने एवं घर के हालात कमजोर हो जाते है, जिससे रुपये-पैसों की तंगी का सामना करना पड़ता है, जिससे मांगने पर भी किसी तरह की मदद नहीं मिलती है।
2.घर के हालात को ठीक करने के लिए विधि:-सबसे पहले माता या पिता को अपने सन्तान की इस तिथि के दोष का शमन करने के लिए निम्नलिखित तरीके अपनाने चाहिए।
◆प्रातःकाल जल्दी उठकर किसी को बिना बताए एक मिट्टी का घट किसी भी व्यक्ति से लेकर आना चाहिए।
◆उस घट को स्वच्छ जल से परिपूर्ण करना चाहिए।
◆फिर उस घट में पांच जात के वृक्षों जैसे बड़, आम्र, नीम, गूलर की और पीपल आदि के भाग को जैसे पल्लव, मूल, बल्कल या वृक्ष की त्वचा और तना या टहनी आदि एवं पांच तरह के रत्न जैसे स्वर्ण, हीरा, नीलम, लाल एवं मोती आदि को रखकर उस घट का मुंह लाल रंग के कपड़े से बांध देने के बाद में उस घट को स्थापित करना चाहिए।
◆फिर आपोहिष्ठेत्यादी 'सर्वे समुद्र' मन्त्रों से अभिमंत्रित करते हैं।
◆इस प्रक्रिया के साथ ही अमावस्या के देव चन्द्रमा की रजत की प्रतिमा या मूर्ति एवं सूर्यदेव की स्वर्ण धातु की बनी मूर्ति को बनवाकर उन दोनों मूर्ति को घट के पास में स्थापित करना चाहिए।
◆फिर सूर्यदेव एवं चन्द्रदेव की मूर्ति से अरदास करते हुए सूर्यदेवजी एवं चन्द्रमादेवजी की सवितेत्यादि तथा आप्यास्वेत्यादि मन्त्रों से पंचोपचार या षोडशोपचार क्रम से विधिविधानपूर्वक पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
◆उसके बाद में 'सवितृ' मन्त्र सोमो धेनुः आदि मन्त्र से अष्टोत्तर शत संख्यक वा अष्टाविंशति प्रमित हवन को करते हैं।
◆फिर हवन करने के बाद में उस घट में मिश्रित सभी पांच वृक्षों के भागों से एवं पांच जात के रत्नों से अभिमंत्रित जल से सन्तान के सहित माता-पिता को स्नान करना चाहिए।
◆फिर ब्राह्मण को भोजन करना चाहिए।
◆ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद अपने सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा एवं ब्राह्मण-ब्राह्मणी के वस्त्रों के साथ उनके सभी तरह वस्तुओं को देना चाहिए।
◆इस तरह विधिविधान से किये गए हवन कर्म से निश्चित ही शुभ फल की प्राप्ति होती है और इस तिथि में जन्में जातक या जातिका का मंगल होता है जिससे उनके माता-पिता का भी मंगल होता हैं।
◆इस तरह से ईश्वर को साक्षी मानकर उनको निमित बनाकर कोई भी शुभ कार्य को करने पर निश्चित ही सफलता ईश्वर देते है। इसलिए ईश्वर पर पूर्ण विश्वास रखते हुए उनके प्रति अपनी पूर्ण श्रद्धा भाव से कार्य को करने पर फायदा होता है।
अमावस्या तिथि के उपाय के द्वारा अपने भाग्य को बदले करे टोटके के द्वारा:-जब धर्म शास्त्रों में जो धर्म-कर्म की तिथि मानी जाती है उन तिथियों में जो भी धर्म-कर्म के कार्य करते है उनको निश्चय ही शुभ फल मिलता है, इन तिथियों में एकादशी तिथि एवं अमावस्या तिथि को माना जाता हैं, इन दोनों तिथियों में किसी भी जीव के प्रति अपने तरफ से कुछ वस्तुओं को खिलाने पर फायदा होता हैं।
◆जल के जीव जिनमें मछलियों को अपने हाथ से गेहूं के आटे को गूथ कर उनकी लोई बनाकर नदी या तालाब या किसी भी जलाशय में जाकर छोटी-छोटी गोलियां बनाकर खिलाने पर अमावस्या तिथि एवं एकादशी तिथि के मिलने वाले मुसीबतों से छुटकारा मिलता हैं।
◆जब कोई भी जातक या जातिका अमावस्या तिथि को जन्म हुआ होता है तो उनको अमावस्या तिथि के रात्रिकाल में पांच लाल रंग के पुष्प को एवं सरसों के तेल से परिपूर्ण पांच दिए को प्रज्वलित करके उनको किसी भी जलाशय में प्रवाहित करने पर फायदा होता हैं।
◆जिस जातक या जतिका को शरीर में पीड़ा होती है उनको प्रत्येक अमावस्या तिथि के दिन किसी एकांत कूप पर जाकर कच्चे दूध को अर्पण करते है तो शरीर पीड़ा शांत होती हैं।
◆जातक या जातिका जो अमावस्या तिथि के असर से प्रभावित होते है उनको काले रंग के श्वान को सरसों के तेल से चुपड़ कर अमावस्या तिथि के रात्रिकाल में खिलाने पर यदि श्वान खा लेता है तब जातक या जातिका के समस्त शत्रु पराजित हो जाते हैं।
◆किसी भी महीने के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि को केवल लाल रंग के धागे या डोरे में सात गांठे लगाकर गले में अपने इष्ट को स्मरण करते हुए एक माह तक पहनकर रखना चाहिए, उसके बाद में अमावस्या तिथि आने पर उस सात गांठे लगे लाल डोरे को खोलकर किसी भी निर्जन जगह पर गहराई युक्त गड्ढा खोदकर गाड़ देना चाहिए, इस तरह की प्रक्रिया को प्रत्येक माह तक करने पर जीवनकाल में आ रही समस्त शारीरिक एवं मानसिक मुश्किलें हल हो जाती हैं।
◆जिस मनुष्य को अपने जीवनकाल में मेहनत करने पर भी मेहनत का फल नहीं मिलता हैं एवं किस्मत का साथ नहीं मिलता है, जिससे रुपये-पैसों की तंगी का सामना करना पड़ता है उन मनुष्य को रुपये-पैसों की तंगी से उभरने के लिए अमावस्या तिथि की रात्रिकाल के समय एक पानी वाला श्रीफल लाकर उस श्रीफल को समान आकर के संख्या में पांच हिस्से करने चाहिए, फिर उन किये पांच हिस्सों को भगवान भोलेनाथ जी की प्रतिमा या मूर्ति के आगे सायंकाल के समय दूसरों से नजर बचाकर करना चाहिए। उसके बाद में भगवान भोलेनाथ जी से अरदास करना चाहिए और अपने जीवनकाल में हो रही मुश्किलों को बताना चाहिए। फिर उस श्रीफल को रातभर के लिए अपने कमरे की रोशनदान पर पड़ा रहने देना चाहिए, उसके बाद में प्रातःकाल जल्दी उठकर किसी को पता नहीं चले। वह श्रीफल लेकर किसी भी चौराहे पर रखकर आना चाहिए, श्रीफल को रखने के बाद उस स्थान की जमीन को अपने चपल से सात बार जोर-जोर से मारना चाहिए। इस तरह की प्रक्रिया तब तक करते रहना चाहिए जब तक रुपये-पैसों की स्थिति में सुधार नहीं होता है, जब रुपये-पैसों की स्थिति में सुधार होने पर अपनी इच्छा के अनुसार जितने आपने अमावस्या को यह प्रक्रिया की उनकी संख्या के आधार पर उतनी मात्रा में किसी भी जानवर को चारा या दाना खिलाने पर फायदा होता है।
◆जिस किसी जातक या जातिका की जन्मकुंडली में पूर्ण या आंशिक कालसर्प योग बन रहा होता है, उनको अपनी जन्मकुंडली को किसी योग्य ज्योतिषी को दिखाकर, ज्योतिषी के अनुसार बताये गए मार्ग से आपको किसी भी अमावस्या तिथि के दिन अपने निवास स्थान की जगह पर हवन-यज्ञ एवं पूजा-अर्चना करवानी चाहिए और साथ ही भगवान भोलेनाथजी को खुश करने के लिए उनके अभिषेक एवं उनकी पूजा-आराधना करने से कालसर्प योग का असर निश्चित ही कम हो जाता हैं।
◆जिस जातक या जतिका को अपने व्यवसाय में मेहनत करने पर भी फायदा नहीं मिलता हो या किसी भी तरह की नौकरी बार-बार बिना मतलब से छूट जाती है और नई नौकरी या धंधे में बहुत ही मुश्किलों का सामना करना पड़ता हो उनको एक पीले या हरे रंग का साबुत नीबू को शुद्ध जल से धोकर अपने ऊपर से सात बार शरीर के पूरे अंगों पर से घुमाकर घर के पूजाघर में रखना चाहिए, फिर सायंकाल के समय उस नीबू लेकर उस नीबू के चार हिस्से इस तरह करना चाहिए कि चारों हिस्से चिपके रहे उन चिपके हुए, फिर उनमें से एक हिस्से पर लाल मिर्च का पाउडर, दूसरे हिस्से पर नमक का भाग, तीसरे हिस्से पर हल्दी का पाउडर डालकर और चौथे हिस्से को खाली रखना चाहिए। फिर उस नीबू को अपने घर में चारों तरफ घुमाकर करके उस नीबू को सायंकाल के समय किसी भी जगह पर मिलने वाले चार रास्तों पर रखकर उस नीबू को सात बार अपने चप्पल से जोर-जोर से मारकर उस नीबू के चारों हिस्सों को अलग करते हुए प्रत्येक हिस्सों को अलग-अलग दिशा में अपनी ताकत से जितना दूर फेंक सकते हो फेंकना चाहिए, जब नीबू के हिस्से को फेंकते समय मन के अन्दर ऐसा बोलना की चारों दिशाओं आप बंध जावें और मेरे चारों तरफ आपका घेरा लग जावें। इस तरह करने के बाद बिना पीछे मुड़े हुए कोई भी पुकारे तो उसकी पुकार का ध्यान नहीं देते हुए घर पर आकर पानी के छीटें लगाकर अपने हाथ-मुंह को धोकर ईश्वर को याद करना चाहिए। इस तरह अपनी मनत पूर्ण नहीं होने तक यह प्रक्रिया करते रहने पर आपकी समस्या का समाधान हो जाएगा।