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Tuesday, November 23, 2021

सरस्वती स्तुति स्तोत्रं अर्थ सहित और लाभ (Saraswati Stuti Stotra with meaning & benefits)


सरस्वती स्तुति स्तोत्रं अर्थ सहित और लाभ (Saraswati Stuti Stotra with meaning & benefits):-माता सरस्वती को विधा एवं मनुष्य के जीवन में नैतिक ज्ञान को प्रदान करने वाली होती हैं। जिन मनुष्य को माता सरस्वती जी से विद्या एवं ज्ञान को पाना होता हैं, उनको नियमित रूप से माता सरस्वती जी के स्तुति स्तोत्रं के मन्त्रों को वांचन करना चाहिए। माँ सरस्वती के चरणों की इस स्तुति स्तोत्रं के आठ श्लोकों के वांचन करने से अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं। माता सरस्वती जी के चरणों के गुणों के बारे में बताया गया हैं, जो कि आठ श्लोकों के माध्यम से माता सरस्वती जी चरणों की स्तुति करते हुए उनके चरणों का महत्व बताया गया हैं। 



Saraswati Stuti Stotra with meaning & benefits


अथ श्री सरस्वती स्तुति स्तोत्रं अर्थ सहित:-श्री सरस्वती स्तुति स्तोत्रं के श्लोकों का वांचन करने से पूर्व उनके भाव को जानना भी जरूरी हैं, जिससे इस स्तुति स्तोत्रं के श्लोकों के बारे में जानकारी प्राप्त हो सके, जो कि इन श्लोकों का अर्थ इस तरह हैं:



ऊँ रवि-रुद्र-पीतामह-विष्णु-नुतं,


हरि-चन्दन-कुंकुम-पंक-युतम्।


मुनि-वृन्द गजेन्द्र समान युतं,


तव नौमि सरस्वति पाद युगम्।।१।।



अर्थात्:-हे सरस्वती माता! आपकी के गुणों के बखान को भगवान भास्कर, ब्रह्मदेव, श्रीचक्रपाणी एवं शिवजी भी करते है एवं आपकी स्तुति करते हैं, आपकी चन्दन एवं कुमकुम के द्वारा पूजा की जाती है और इनका लेपन होता हैं, मुनियों के द्वारा एवं इंद्रदेव के हाथी ऐरावत जो कि मंतगो का महीपति होता हैं उनके द्वारा एक जैसे ही वंदना की गई है, हे सरस्वती माता! आपके चरणों को मैं नतमस्तक होकर प्रणाम करता हूँ।



शशि शुद्ध सुधा हिमधाम युतं,


शरदम्बर बिम्ब समान करम्।


बहु रत्न मनोहर कान्तियुतं,


तव नौमि सरस्वति! पाद युगम्।।२।।



अर्थात्:-हे सरस्वती माता! चन्द्रमास के स्वच्छ शीतल किरणों से युक्त रोशनी जब अमृत की तरह आप पर पड़ती हैं, शीतकाल में जब नभमंडल के अंधकार पूर्ण वातावरण पर प्रकाश की किरणें आवरण आदि के कारण नहीं पहुँच सकने से एक प्रतिकृति की तरह लगती हैं, बहुत सारे रत्नों के समान मन को हरने वाली आभा छाई हुई प्रतीत होती हैं, हे सरस्वती माता! आपके चरणों को मैं नतमस्तक होकर प्रणाम करता हूँ।



कनकाब्ज विभूषित भीतियुतं,


भवभाव विभावित भिन्न पदम्।


प्रभुचित्त समाहित साधुपदं,


तव नौमि सरस्वति! पाद युगम्।।३।।



अर्थात्:-हे सरस्वती माता! आप सोने की चमक के समान कमल के आसन विराजित होकर शोभित करते हुए दिखाई पड़ती हो, आपके चरण बहुत तरह के जीवन की आवश्यकताओं विषय-भोगों आदि के भाव को उत्पन्न करने वाले होते हैं, आपके पावन चरण ईश्वर चित्त में समाहित या समा जाते हैं, हे सरस्वती माता! आपके चरणों को मैं नतमस्तक होकर प्रणाम करता हूँ। 



मतिहीन जनाश्रय पारमिदं,


सकलागम भाषित भिन्न पदम्।


परिपूरित विशवमनेक भवं,


तव नौमि सरस्वति! पाद युगम्।।४।।



अर्थात्:-हे सरस्वती माता! जो सोचने-समझने की शक्ति से कमजोर होते हैं, उन लोगों को अपनी शरण में लेने वाली हो, आपके चरण ही एकमात्र मनुष्यों का शरणस्थल हैं, आपकी समस्त वेदों एवं तंत्रों में भिन्न-भिन्न रूप से आपके गुणों का आख्यान किया गया हैं। आप समस्त संसार के बहुत सारे भावों के द्वारा हर तरह से पूर्ण हो, हे सरस्वती माता! आपके चरणों को मैं नतमस्तक होकर प्रणाम करता हूँ।




सुरमौली मणि द्युति शुभ्र करं,


विषयादि महाभय वर्ण हरम्।


निजकान्ति विलायित चन्द्र शिवं,


तव नौमि सरस्वति पाद युगम्।।५।।



अर्थात्:-हे सरस्वती माता! आपकी आभा देवताओं के मस्तिष्क पर धारित मुकुटों में लगी मणियों के समान श्वेत है, जो संसार के लौकिक, ऐहिक अर्थात् संसार की विषयों एवं वस्तुओं के द्वारा उत्पन्न कष्ट और डर का निवारण करने वाली हो, शिवजी के मस्तिष्क पर धारित अर्धचन्द्र की तरह आपकी चमक होती हैं, हे सरस्वती माता! आपके चरणों को मैं नतमस्तक होकर प्रणाम करता हूँ।





भवसागर मज्जन भीतिनुतं,


प्रतिपादित सन्ततिकारमिदम्।


विमलादिक शुद्ध-विशुद्ध पदं,


तव नौमि सरस्वति! पाद युगम्।।६।।



अर्थात्:-हे सरस्वती माता! जो संसार रूपी समुद्र या घटनाओं के सागर में लीन एवं डरे हुए मनुष्यों की पुकार करने पर अपने भक्त रूपी सन्तानों को संसार रूपी सागर से पार करती हो, समस्त तरह के बुरे विकारों के मैल को स्वच्छ या निर्मल करके अच्छी भावनाओ को जाग्रत करने वाली हो, हे सरस्वती माता! आपके चरणों को मैं नतमस्तक होकर प्रणाम करता हूँ। 




परिपूर्ण मनोरथ धमनिधिं,


परमार्थ विचार विवेक विधिम्।


सुर योषित सेवित पादतमं,


तव नौमि सरस्वति! पाद युगम्।।७।।



अर्थात्:-हे सरस्वती माता! जो मनुष्य के मन की समस्त तरह की इच्छाओं को पूर्ण करती हैं, जो दूसरों के हित में काम करने की भावनाओं को जागृत करती है, भले-बुरे का ज्ञान रूपी सम्पत्ति की भावनाओं को उत्पन्न करके अनुकूलता प्रदान करती हो, देव एवं ऋषि भी जिनके चरणों की आराधना करते हैं, हे सरस्वती माता! आपके चरणों को मैं नतमस्तक होकर प्रणाम करता हूँ। 




गुणनैक कुल स्थिति भीतिपदं,


गुण गौरव गर्वित सत्य पदम्।


कमलोदर कोमल पादतलं,


तव नौमि सरस्वति! पाद युगम्।।८।। 



अर्थात्:-हे सरस्वती माता!आपके चरणों के बहुत सारे गुण हैं, आपके चरण यथार्थ हैं, जिस तरह कमल के महता होती है, उसी तरह ही आपके चरणों के गुणों का महत्व हैं, आपके चरण कमल के उदर या बीच के भाग की तरह बहुत ही मुलायम हैं, हे सरस्वती माता! आपके चरणों को मैं नतमस्तक होकर प्रणाम करता हूँ।




      ।।इति श्री सरस्वती स्तुति स्तोत्रं सम्पूर्ण।।


         ।।माता सरस्वती जी की जय बोलो।।


         ।।जय बोलो वीणावादिनी की जय हो।




अथ श्री सरस्वती स्तुति स्तोत्रं के लाभ:-निम्नलिखित हैं:



◆माता सरस्वती जी की आराधना करके अपने ज्ञान के क्षेत्र एवं उच्चविद्या को प्राप्त किया जा सकता हैं।



◆मनुष्य को अपनी स्मरण शक्ति को तेज करने के लिए भी माता सरस्वती जी के स्तुति स्तोत्रं के मन्त्रों का उच्चारण करना चाहिए।



◆जिन मनुष्य की यादशक्ति कम होती हैं, उनको हमेशा तीन बार सरस्वति स्तुति स्तोत्रं के मन्त्रों का उच्चारण करते रहना चाहिए।



◆जो पढ़ने वाले छात्रवृत्तिधारी होते हैं, उनके लिए श्रीसरस्वती स्तुति स्तोत्रं के श्लोकों का वांचन करने पर अच्छे नतीजे मिल सकते हैं। 



◆वाणी में किसी तरह की रुकावट होने पर जो व्यक्ति इस स्तुति स्तोत्रं के श्लोक का पाठ करते हैं, उनकी वाणी में कमजोरी दूर हो जाती हैं।



◆वाणी के द्वारा ही किसी को भी अपनी तरफ आकर्षित कर सकते हैं, इसलिए वाणी की शुद्धि के लिए इस स्तुति का वांचन करना चाहिए।



◆मनुष्य के द्वारा नियमित रूप से सरस्वती स्तुति स्तोत्रं के श्लोकों का पाठ करने पर जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उन्नति होती हैं।




विशेष:-श्लोकों के अर्थ को अपनी सोच के अनुसार लिखा गया है और किसी भी तरह से श्लोकों के अर्थ में किसी भी तरह की कमी या अर्थ में भिन्नता हो और आपको लगता हैं, की इन श्लोकों के अर्थ में कुछ सुधार सम्बन्धित परामर्श हो तो कमेंट करके अवगत करावें।




              ।।अथ श्री सरस्वती स्तुति स्तोत्रं।।


ऊँ रवि-रुद्र-पीतामह-विष्णु-नुतं, हरि-चन्दन-कुंकुम-पंक-युतम्।



मुनि-वृन्द गजेन्द्र समान युतं, तव नौमि सरस्वति पाद युगम्।।१।।



शशि शुद्ध सुधा हिमधाम युतं, शरदम्बर बिम्ब समान करम्।



बहु रत्न मनोहर कान्तियुतं, तव नौमि सरस्वति! पाद युगम्।।२।।



कनकाब्ज विभूषित भीतियुतं, भवभाव विभावित भिन्न पदम्।



प्रभुचित्त समाहित साधुपदं, तव नौमि सरस्वति! पाद युगम्।।३।।



मतिहीन जनाश्रय पारमिदं, सकलागम भाषित भिन्न पदम्।



परिपूरित विशवमनेक भवं, तव नौमि सरस्वति! पाद युगम्।।४।।




सुरमौली मणि द्युति शुभ्र करं, विषयादि महाभय वर्ण हरम्।



निजकान्ति विलायित चन्द्र शिवं, तव नौमि सरस्वति! पाद युगम्।।५।।



भवसागर मज्जन भीतिनुतं, प्रतिपादित सन्ततिकारमिदम्।



विमलादिक शुद्ध-विशुद्ध पदं, तव नौमि सरस्वति! पाद युगम्।।६।।




परिपूर्ण मनोरथ धमनिधिं, परमार्थ विचार विवेक विधिम्।



सुर योषित सेवित पादतमं, तव नौमि सरस्वति! पाद युगम्।।७।।



गुणनैक कुल स्थिति भीतिपदं, गुण गौरव गर्वित सत्य पदम्।


कमलोदर कोमल पादतलं, तव नौमि सरस्वति! पाद युगम्।।८।।



        ।।इति श्री सरस्वती स्तुति स्तोत्रं सम्पूर्ण।।


          ।।माता सरस्वती जी की जय बोलो।।


         ।।जय बोलो वीणावादिनी की जय हो।