कार्तिकस्य सिते पक्षे अन्नकूटं समाचरेत्।
गोवर्धनोत्सवं चैव श्रीविष्णुः प्रिवनामिति।।
अर्थात्:-कार्तिक शुक्लपक्ष की प्रतिपदा को अन्नकूट का उत्सव भी मनाया जाता है। इस दिन खरीफ फसलों से प्राप्त अनाज एवं नई सब्जियों को बनाकर भगवान विष्णु का भोग लगाया जाता हैं। ऐसा करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते है।
महाराष्ट्र में गोवर्धन पर्व को बली प्रतिपदा या बलि पढ़वा के रूप में मनाया जाता है। महाराष्ट्र में इस तरह माना जाता है कि भगवान श्रीविष्णुजी ने वामन अवतार लेकर बली से तीन पग जमीन मांगकर राजा बली को पाताललोक का स्वामी बनाया था। भगवान श्रीविष्णुजी के आशीर्वाद एवं वरदान के फलस्वरूप राजा बली इस दिन पृथ्वीलोक को घूमने आते हैं।
गोवर्धन पूजा का समय तिथि के प्रारम्भ एवं समाप्त के अनुसार:-हिन्दू पंचांग के अनुसार दिनांक 05 नवम्बर 2021,शुक्रवार को प्रतिपदा तिथि को प्रातःकाल 02 बजकर 43 मिनिट 48 सेकण्ड पर शुरू होगी और रात्रिकाल में 23 बजकर 14 मिनिट 09 सेकण्ड पर समाप्त होगी।
गोवर्धन पूजा 05 नवम्बर 2021 के दिन मनाया जाएगा।
गोवर्धन पूजा का शुभ समय:-चौघड़ियों के अनुसार इस तरह रहेगा:
गोवर्धन पूजा का प्रातःकाल मुहूर्त प्रातःकाल 06 बजकर 37 मिनिट से 08 बजकर 47 मिनिट तक रहेगा।
समय अवधि:-02 घण्टे 11 मिनिट तक रहेगी।
चर का चौघड़िया:-प्रातःकाल 06:37 से 07:59 तक रहेगा जो कि शुभ कार्य को करने के लिए शुभ रहेगा।
लाभ का चौघड़िया:-प्रातःकाल 07:59 से 09:21 तक रहेगा जो कि शुभ कार्य को करने के लिए शुभ रहेगा।
द्यूत क्रीड़ा:-शुक्रवार 05 नवम्बर 2021 को रहेगी।
गोवर्धन पूजा सायंकाल मुहूर्त:-
चर का चौघड़िया:-सायंकाल 16:10 से 17:32 तक रहेगा जो कि शुभ कार्य को करने के लिए शुभ रहेगा।
गोवर्धन पूजा विधि:-भगवान श्रीकृष्णजी के द्वारा गोवर्धन पर्वत के महत्व के बारे में बताया था और गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का विधान कहा था, जो इस तरह हैं:
◆गोवर्धन पूजा को करने के लिए मनुष्य को प्रातःकाल जल्दी उठकर अपनी दैनिकचर्या जैसे-स्नानादि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्रों को पहना चाहिए।
◆सुबह के समय पर ही गोवर्धन पूजा करनी चाहिए।
◆पूजा करने वाले मनुष्य को एक दिन पहले गाय के गोबर को घर पर लाकर उससे गोवर्धन पर्वत के समान आकृति बनानी चाहिए।
◆गोवर्धन के शिखर वाला बनाकर उस पर वृक्ष आदि से युक्त करके फूलों के द्वारा सजाना चाहिए।
◆इस दिन गोवर्धन बनाकर जल, दही, मौली, रौली, चावल, फूल, तेल में भिगोकर रुई, मूंग की दाल, चार पतासा, चार गुड़ की सुवाली, सफेद कपड़ा और दक्षिणा में रुपया चढ़ाना चाहिए।
◆गोवर्धन रूप में श्रीकृष्णजी भगवान को छप्पन प्रकार के बनाये हुए व्यंजनों का भोग लगाया जाता हैं।
◆उन छप्पन प्रकार के व्यंजनों को भोग के बाद प्रसाद के रूप में सभी भक्तों को दिया जाता हैं।
◆गौ से गोवर्धन का रात्रिकाल में उपमर्दन भी करवाया जाता हैं।
◆दिया ढूंढ कर गोवर्धन के क्षीर पर झेरणी रखना चाहिए।
◆एक गोवर्धन का गीत व चार बंधावा गाऐं।
◆चढ़ावा ब्राह्मणी को दे।
◆सायंकाल में गोबर से गोवर्धन की लेटी हुई प्रतिमा का निर्माण किया जाता हैं और उसका पूजन किया जाता हैं। पूजन में निम्नलिखित मन्त्र का अवश्य उच्चारण करना चाहिए:
गोवर्धन धराधार गोकुलत्राणकारक।
विष्णुवाहकृतोचछ्राय गवां कोटिप्रदो।।
अर्थात्:-पृथ्वी को धारण करने वाले गोवर्धन आप गोकुल के रक्षक हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने आपको अपनी भुजाओं पर उठाया था, आप मुझे करोड़ों गोएँ प्रदान करें।
◆मन्दिरों में अनेक तरह के पकवानों, मिठाइयों, नमकीनों और अनेक तरह की सब्जियों, मेवे, फलों आदि को भगवान श्रीकृष्णजी के सामने रखा जाता हैं।
◆फिर समस्त तरह के अन्नकुटों का भक्त गण दर्शन करते हैं।
◆फिर समस्त तरह के अन्नकुटों का भोग लगाया जाता हैं।
भोग लगाना के बाद आरती की जाती हैं।
◆उसके बाद में उन सभी अन्नकुटों को भक्तगणों को प्रसाद के रूप में दिया जाता हैं।
गोवर्धन पूजा की पौराणिक कथा:-द्वापर में ब्रज में अन्नकूट के दिन इन्द्र की पूजा होती थी। एक दिन श्रीकृष्ण ने गोप-ग्वालों को समझाया कि गायें व गोवर्धन प्रत्यक्ष देवता हैं। अतः तुन्हें इनकी पूजा करनी चाहिए। क्योंकी इन्द्र तो कभी यहां दिखाई भी नहीं देते। अब तक उन्होंने कभी आप लोगों के बनाये हुए पकवान ग्रहण भी नहीं किये। फलस्वरूप उनकी प्रेरणा से सभी ब्रजवासियों ने इंद्र की पूजा न करके गोवर्धन की पूजा की। स्वयं भगवान श्री कृष्णजी ने गोवर्धन का रूप धारण करके सभी पकवानों या अन्नकूट को ग्रहण किया। जब इन्द्र को यह बात पता चली तो वे अत्यन्त क्रोधित होकर प्रलयकाल के सदृश मूसलाधार वर्षा करने लगे। यह देखकर श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी चिटुडी अंगुली पर धारण किया। उसके नीचे सब ब्रजवासी ग्वाल-बाल, गायें-बछड़े आदि आ गये। लगातार सात दिन की वर्षा से जब ब्रजवासी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा तो इन्द्र को बड़ी ग्लानि हुई। ब्रह्माजी ने इन्द्र को श्री कृष्ण के परमब्रह्म परमात्मा होने की बात बतायी तो लज्जित होकर इन्द्र ने ब्रज में आकर श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी। इस अवसर पर ऐरावत ने आकाश गंगा के जल से और कामधेनु ने अपने दुग्ध से भगवान श्री कृष्ण का अभिषेक किया। जिससे वे गोविन्द कहे जाने लगे। इस प्रकार गोवर्धन पूजन स्वयं श्री भगवान का पूजन हैं। "गोविन्द मेरो हैं, गोपाल मेरो हैं, श्री बांके बिहारी नन्दलाल मेरो हैं।"
गोवर्धन पूजा का महत्त्व:-गोवर्धन पूजा करने से भगवान श्रीकृष्ण जी एवं गायों की पूजा से समस्त छतीस करोड़ों देवी-देवताओं की पूजा हो जाती हैं।
◆गोवर्धन पूजा करने से भगवान श्रीकृष्ण के साथ समस्त छतीस करोड़ देवी-देवताओं का आशीर्वाद मिल जाता हैं।
◆गायों की सेवा करने से ग्रहों के दोष दूर हो जाते हैं।
◆मनुष्य की आर्थिक स्थिति में सुधार हो जाता है, जिससे मनुष्य के घर पर सुख-शांति बनी रही रहती हैं।
◆मनुष्य के जीवन में आने वाली बाधाओं से मुक्ति मिल जाती हैं।
◆गोवर्धन पूजा हर वर्ष करते रहने पर अंत में मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती हैं।