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Thursday, November 4, 2021

बृहस्पति कवचं अर्थ सहित एवं लाभ(Brihaspati Kavacham with meaning and benefits)

                     

बृहस्पति कवचं अर्थ सहित एवं लाभ(Brihaspati Kavacham with meaning and benefits):-बृहस्पति देव ब्राह्मण जाति के अंगिरा गोत्र होते है और सिंधु वतन पर राज्य करने वाले होते हैं। बृहस्पतिदेव के पिता का नाम अंगिरा ऋषि एवं माता सुरुपा हैं। बहिन योग सिद्धा एवं पत्नियां तारा, ममता व शुभा नाम हैं। पीले देह से युक्त होकर पीले रंग के पीताम्बर को धारण करके कमल पर बैठे रहते है। देवताओं को अपने ज्ञान एवं अपनी बुद्धि सामर्थ्य भाव से सही रास्ता बताने वाले होते है, इसलिए देवताओं के गुरु पद से युक्त होते हैं।



बृहस्पति कवचं स्त्रोतं देवता के गुरुदेव बृहस्पति जी का हैं, जिनमें बृहस्पति देव को प्रसन्न करने के लिए उनके गुणों का आख्यान किया गया हैं। जब गुरु ग्रह शुभ होगा तब मनुष्य को समस्त तरह की ऊँचाई प्रदान करता है, तब मनुष्य को अच्छे कार्य को करने के लिए एवं ज्ञान के क्षेत्र में बढ़ोतरी करता है। गुरु का दूसरा नाम बृहस्पति है, जो कि भृगु ऋषि के पुत्र एवं देवताओं के गुरुदेव बृहस्पति जी है। बृहस्पति जी सबका भला करने वाले होते है। मनुष्य के जीवन के सोलह या बाईस या चालीस वर्ष की उम्र  में अपनी महादशा आने पर मनुष्य के भाग्य में चार चांद लगाता है और उसे ऊँचा उठाता है। बृहस्पति ग्रह के दोस्त ग्रह के रूप में सूर्य ग्रह, चन्द्र ग्रह एवं मंगल ग्रह अपनी दोस्ती को निभाते है। शनि ग्रह नहीं दोस्ती निभाते और नहीं दुश्मनी का भाव रखते हैं। गुरुवार या बृहस्पतिवार बृहस्पतिदेव को बहुत ही प्रिय होता हैं। इसलिए गुरुवार या बृहस्पतिवार के दिन इनकी आराधना करने से शीघ्र फल मिलता हैं।




जब बृहस्पतिदेव का जन्मकुंडली में कमजोर होने पर असर:-जब जन्मकुंडली में बृहस्पतिदेव कमजोर होते है और पापी ग्रहों के साथ या पापों ग्रहों के द्वारा पीड़ित होने पर मनुष्य के जीवनकाल पर इस तरह असर करते हैं, जो निम्नांकित है: 



◆निर्बल या कमजोर होने पर, दूषित एवं अकेला गुरु 2, 5, 6, 7, 8, 12 भावों में होने पर मनुष्य को अपने बारे में सोचने वाले बनाकर दूसरों का नुकसान करवाना शुरू करवा देता है।



◆मनुष्य बहुत ही लालची होकर गुस्सेल बन जाता है।



◆किसी के साथ भी मारपीट करने के लिए तैयार हो जाता है ◆दूसरों के छल-कपट करना शुरू करके धोखा देने लगता है। जिससे मनुष्य पर दूसरे मनुष्य के द्वारा विश्वास समाप्त हो जाता है और मनुष्य को बहुत मानसिक कष्ट होते हैं। 



◆शारिरिक रूप से मनुष्य कमजोर होकर ज्यादा चिंता करने लगता है, जिससे उस्का शरीर बीमारियों का घर बन जाता है। शरीर पर कई तरह की बीमारियां जैसे-रक्त, जिगर, शिराओं, धमनियों, जंघाओं को प्रभावित करता हैं। 




◆किन्तु 2, 5 भावों में अकेला गुरु हानिकर होता हैं। जिस घर का कारकेश एवं घर का मालिक होता है, उस घर के शुभ प्रभाव को कम करके उस घर से सम्बंधित नतीजों को कम कर देता है।



◆दाम्पत्य जीवन में एवं सन्तान सुख से वंचित कर देता है।



◆मनुष्य को उच्चविद्या में बाधा उत्पन्न करके धन का नुकसान करवा देता हैं। 



◆जिस किसी मनुष्य की जन्मकुंडली में गुरु ग्रह पाप ग्रहों के प्रभाव में होते है, जिससे गुरु ग्रह कमजोर हो जाते है या गुरु ग्रह की पीड़ा दायक महादशा या अन्तर्दशा जब मनुष्य के जीवन को प्रभावित करती है, तब मनुष्य को गुरु ग्रह को बल देने के लिए बृहस्पति देव जी के बृहस्पति कवचं स्त्रोतं का वांचन करके बृहस्पति देव को खुश कर सकते है, जिससे बृहस्पति देव की अनुकृपा मनुष्य के जीवन पर हो जाती हैं।




◆इन सभी तरह की परेशानियों से मुक्ति के लिए बृहस्पति कवचं स्त्रोतं का वांचन मनुष्य को नियमित रूप से करने पर फायदा मिलता हैं। 



Brihaspati Kavacham with meaning and benefits)




बृहस्पति देव के बृहस्पति कवचं स्त्रोतं के वांचन करने का तरीका:-बृहस्पतिदेव के बृहस्पति कवचं का पाठ करने से पूर्व बृहस्पतिदेव जी का पूजन विधिपूर्वक करना चाहिए। उनके पूजन करने का सही तरीका इस तरह हैं:




◆मनुष्य को जिस शुभ समय में बृहस्पति कवचं स्त्रोत्र को शुरू करना होता है उस दिन से पूर्व अपनी पूरी तैयारी कर लेनी चाहिए।



◆उस दिन मनुष्य को प्रातःकाल जल्दी उठकर अपनी दैनिकचर्या जैसे-स्नानादि से निवृत हो जाना चाहिए। 



◆उसके बाद में स्वच्छ पीले वस्त्रों को धारण करना चाहिए। जिस स्थान पर बृहस्पति कवचं स्त्रोतं का वांचन करना होता है, उस स्थान की साफ-सफाई करनी चाहिए। 



◆ततपश्चात एक लकड़ी का बाजोठ लेकर उसको चौकी के रूप में स्थापित करना चाहिए। 



◆फिर उस पर स्वच्छ पीले रंग का कपड़ा बिछाना चाहिए। ◆उसके बाद बृहस्पति देव की प्रतिमा या फोटो को उस बाजोठ की चौकी पर विराजित करना चाहिए। 



◆उसके बाद बृहस्पति देव का षोडशोपचार कर्म से पूजन करना चाहिए, भोग के रूप में कोई भी पीले रंग की मिठाई को अर्पण करना चाहिए। 



◆पूजन करने के बाद में बृहस्पति देव का बृहस्पति कवचं स्त्रोतं का वांचन अपने श्रद्धाभाव एवं पूर्ण रूप से विश्वास के साथ शुरू करना चाहिए। 



◆फिर बृहस्पति देव की आरती को बृहस्पति कवचं स्त्रोतं के वांचन के बाद करना चाहिए। 




◆आखिर में अपने गुरुदेव को स्मरण करना चाहिए और उनसे अपने ऊपर कृपा दृष्टि की प्रार्थना करते हुए उनको नतमस्तक होकर शुभ वचन की कामना करनी चाहिए।




बृहस्पतिदेव के लिए करन्यासः-जब किसी भी मंत्रों का उच्चारण करते हुए उनका पाठन करते समय दोनों हाथों के द्वारा विशेष तरह की मुद्रा रचना को बनाने की प्रक्रिया को करन्यास कहते हैं। बृहस्पति कवचं स्त्रोतं के वांचन से पूर्व करन्यास करना चाहिए। जो इस तरह होता है, जिसमें पांचों अंगुलियों एवं हथेली के बीच के भाग के द्वारा मुद्रा का निर्माण किया जाता है। इस तरह समस्त अंगुलियों एवं हथेली के बीच के भाग से मुद्रा को बनाकर नमस्कार करते हैं।


गां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः।


गीं तर्जनीभ्यां नमः। 


गूं मध्यमाभ्यां नमः।


गैं अनामिकाभ्यां नमः।


गौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः।


गः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।


गां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः।


अर्थात्:-हे बृहस्पतिदेव! मैं आपके अंगूठे को छूते नतमस्तक होकर नमन करता हूँ।


गीं तर्जनीभ्यां नमः। 


अर्थात्:-हे बृहस्पतिदेव! मैं आपके तर्जनी अंगुली को छूते तमस्तक होकर नमन करता हूँ।


गूं मध्यमाभ्यां नमः।


अर्थात्:-हे बृहस्पतिदेव! मैं आपके मध्यमा अंगुली को छूते तमस्तक होकर नमन करता हूँ।


गैं अनामिकाभ्यां नमः।


अर्थात्:-हे बृहस्पतिदेव! मैं आपके अनामिका अंगुली को छूते नतमस्तक होकर नमन करता हूँ।


गौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः।


अर्थात्:-हे बृहस्पतिदेव! मैं आपके कनिष्ठिका अंगुली को छूते नतमस्तक होकर नमन करता हूँ।


गः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।।


अर्थात्:-हे बृहस्पतिदेव! मैं आपके हथेली के बीच के भाग को छूते हुए ध्यान करके नतमस्तक होकर नमन करता हूँ।



बृहस्पतिदेव के लिए अंगन्यासःजब किसी भी देवी-देवता की पूजा-अर्चना अथवा मंत्रोच्चारण करते हुए विभिन्न अंगों को पवित्र करने की धारणा से किया जाने वाला स्पर्श को अंगन्यासः कहते हैं। बृहस्पति देव की पूजा-अर्चना से पूर्व उनका भी अंगन्यास किया जता हैं। शरीर के विभिन्न अंगों की जगहों को अलग-अलग मन्त्रों से उच्चारित करते हुए उनको शुद्ध एवं पावन किया जाता हैं।



गां हृदयाय नमः।


गीं शिरसे स्वाहा।


गूं शिखायै वषट्।


गैं कवचाय हुम्।


गौं नेत्रत्रयाय वौषट्।


गः अस्त्राय फट्।


भूभुर्वस्सुवरोमिति दिग्बंधः।।



बैठने की आकृति:-जब कमल के फूल के समान आकार देते हुए अपने पैर को इस तरह मोड़कर जिसमें दूसरा पैर उस पैर के ऊपर आ जाता है, तब बायां हाथ को पैर के घुटने पर रखते है। जिससे मनुष्य के शारिरिक एवं आध्यात्मिक विचारों को उत्पन्न करने की विधि होती हैं।



गांःहृदयाय नमः।


अर्थात्:-हे बृहस्पतिदेव! अपने दाएं हाथ की पांचों अंगुलियों के द्वारा पवित्र हृदय को छूते समय  गांः हृदयाय नमः मन्त्र का उच्चारण करते हुए वंदना करता हूँ।



गींःशिरसे स्वाहा।


अर्थात्:-हे बृहस्पतिदेव! मैं जो भी मन्त्रों का पाठन करता हूँ, उन मन्त्रों के पाठन के शब्द आपके मस्तिष्क तक पहुँचे। ललाट को छूते समय गीं:शिरसे स्वाहा मन्त्र को बोलते हैं।



गुंः शिखायै वषट्।


अर्थात्:-हे बृहस्पतिदेव! मैं अपनी शिखा को बांधते हुए, आपको देवता की तरह पूजन करने के लिए अग्नि देव को प्रज्वलित करने के लिए मन्त्रों से आह्वान करता हूँ। शिखा को छूते समय गुंः शिखायै वषट् मन्त्र का उच्चारण करते हैं।



गैंः कवचाय हुम्।


अर्थात्:-हे बृहस्पतिदेव! मैं आपको खुश करने के लिए आपके गुणों के बखान के निमित आपके कवचं को हमेशा पाठन करता हूँ। दोनों भुजाओं को दोनों हाथों के द्वारा छूते समय गैंःकवचाय हुम् मन्त्र का उपयोग करते हैं।



गौंःनेत्रत्रयाय वौषट्।


अर्थात्:-हे बृहस्पतिदेव!आपको आहुति देने के समय प्रयुक्त होने वाले एक उदगार या सांकेतिक मन्त्र-विशेष शब्दो को नेत्रों के द्वारा ध्यान से उच्चारण करता हूँ। दाएं तरफ के चक्षु, बाएं तरफ के चक्षु एवं भाल के मध्य में स्थित तीसरे चक्षु को गौंःनेत्रत्रयाय वौषट् मन्त्र को बोलते हुए छूना चाहिए।



गंःअस्त्राय फट्।


अर्थात्:-हे बृहस्पतिदेव! आपका तांत्रिक मंत्र जिसे अस्त्र मन्त्र भी कहा जाता है, उस अस्त्र मन्त्र का उपयोग पात्रो को धोने, मैल को साफ करने, सामने की तरफ फेंकना, आकाश में बाधा या नाश करने वाले और दूसरे ऐसे वाहन पर सवार होकर घूमते हो। जब दायें हाथ के पंजे को बायें हाथ के पंजे के साथ जोड़कर गं:अस्त्राय फट् मन्त्र को बोलते हुए 'फट्' की कम्पन की जाती है।


भूभुर्वस्सुवरोमिति दिग्बंधः।।


अर्थात्:-हे बृहस्पतिदेव! आपका दिग्बन्धन करते हैं।



ईश्वरऋषि के द्वारा रचित श्री बृहस्पति कवचं स्तोत्रं मन्त्र:-ईश्वरऋषि ने श्रीबृहस्पतिदेव को खुश करने के लिए उनके बुरे असर को दूर करने के लिए मनुष्य के लिए बृहस्पति कवचं स्तोत्रं का निर्माण किया था, जो इस तरह हैं:


अस्य श्रीबृहस्पतिकवचस्तोत्रमंत्रस्य ईश्वरऋषि:।


अनुष्टुप् छंदः। गुरुर्देवता। गं बीजं श्रीशक्तिः। 


क्लीं कीलकम्। गुरुपीडोपशमनार्थं जपे विनियोगः।।


ईश्वरऋषि के द्वारा श्रीबृहस्पति कवचं स्तोत्रं में मन्त्रों के द्वारा विनियोग जप अर्थात्:-श्रीबृहस्पति स्तोत्रं मन्त्र की रचना श्री ईश्वर ऋषिवर ने की थी, अनुष्टुप् छंद है एवं गुरु देवता हैं। गं बीजं दुर्गा स्वरूप हैं और काली मां कीलकम स्वरूप हैं। गुरु ग्रह की पीड़ा के निवारण करने के लिए एवं श्रीबृहस्पति जी की प्रसन्नता के लिए श्रीबृहस्पति कवचं स्तोत्रं के जप में विनियोग किया जाता हैं।



अर्थ ध्यानम्-


        ऊँ कयिनश्चित्रः अर्धकायं.


         ।।इति ध्यानम्।।



ध्यानम्:-श्री बृहस्पति कवचं स्त्रोतं को वांचन करने से पूर्व इस कवचं के लिए मनुष्य को बृहस्पति देव के प्रति पूर्ण अस्थाभाव एवं विश्वास को रखते हुए उनको याद करना चाहिए। फिर उनकी मन ही मन में छवि को बनाकर उनका ध्यान करना चाहिए।



अथ श्रीबृहस्पति कवचं स्तोत्रं:-अथ श्री बृहस्पति कवचं स्त्रोतं का वांचन नियमित रूप से करना चाहिए, इसके गुणों का वर्णन इस तरह है:


अभीष्टफलदं वरदं देवं सर्वज्ञम् सुरपूजितम्। 


सर्वकार्यार्थसिद्धार्थं प्रणमामि गुरुं सदा।।


अक्षमालधरं शांत प्रणमामि बृहस्पतिम्।।1।।


अर्थात्:-हे बृहस्पति देव! आप समस्त जगहों पर पूजित हो। आप मन की इच्छाओं के अनुसार फल को देने वाले हो। मैं आपको नतमस्तक होकर आपका अभिवादन करते हुए वंदन करता हूँ। समस्त तरह के कार्यों को सिद्ध करने वाले होते हो और जपमाला जो कि रुद्राक्ष की बनी होती है, उस माला को धारण करने वाले  हे गुरुदेव! आपको मैं हमेशा प्रणाम करता हूँ ।



बृहस्पतिः शिरः पातु ललाटं पातु मे गुरुः।


कर्णौ सुरगुरुः पातु नेत्रे मे अभीष्ठदायकः।।2।।



जिह्वां पातु सुराचार्यो नासां मे वेदपारगः।


मुखं मे पातु सर्वज्ञो कंठं मे देवतागुरुः।।3।।



भुजावांगिरसः पातु करौ पातु शुभप्रदः।


स्तनौ मे पातु वागीशः कुक्षिं मे शुभलक्षणः।।4।।



नाभिं केवगुरुः पातु मध्यं पातु सुखप्रदः।


कटिं पातु जगवंद्य ऊरु मे पातु वाक्पतिः।।5।।



जानुजंघे सुराचार्यो पादौ विश्वात्मकस्तथा।


अन्यानि यानि चांगानि रक्षेन्मे सर्वतो गुरुः।।6।।



इत्येतत्कवचं दिव्यं त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः।


सर्वान्कामानवाप्नोति सर्वत्र विजयी भवेत्।।7।।


अर्थात्:-हे बृहस्पति देवजी! आपके दिव्य या अति सुन्दर या अलौकिक कवच को जो मनुष्य तीनों सन्ध्याकाल अर्थात् प्रातःकाल, मध्याह्न एवं सायंकाल के समय वांचन करता है, उस मनुष्य की समस्त मन की कामनाओं को पूरी करते हो और उस मनुष्य की विजय समस्त जगहों पर होती हैं।



।।गतिश्रीब्रह्मयामलोक्तं बृहस्पतिकवचं संपूर्णम्।।



बृहस्पति कवचं स्त्रोतं के वांचन से मिलने वाले लाभ:-बृहस्पतिदेव को खुश करने का बृहस्पति कवचं स्तोत्रं का वांचन करने पर निम्नांकित लाभ मिलते हैं, जो इस तरह हैं:


◆बृहस्पति कवचं स्त्रोतं का वांचन करते रहने पर मनुष्य के लग्न में देरी या सगाई का बार-बार टूटने आदि सम्बन्धित परेशानियों से मुक्ति मिल जाती है और मनुष्य का लग्न निश्चित हो जाता हैं।



◆इस कवचं स्त्रोतं के वांचन से मनुष्य का दाम्पत्य जीवन में हो रहे मतभेद का निराकरण हो जाता हैं।



◆मनुष्य के सन्तान सम्बन्धित परेशानी दूर हो जाती है, सन्तान का सुख मिलता हैं।



◆सन्तान माता-पिता के कहने पर चलने वाली एवं मान-सम्मान देने वाली हो जाती हैं।



◆जिन मनुष्य को राजकीय सेवा में बाधा आती है, उनको राजकीय सेवा से सम्बंधित बाधाऐं दूर हो जाती हैं।



◆मनुष्य के द्वारा नियमित रूप से बृहस्पति कवचं स्त्रोतं के वांचन से सुख-सम्पत्ति एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती हैं।



◆जब मनुष्य ज्ञानवान होकर भी सफल नहीं हो पाता है, तब उसकी जन्मकुंडली में स्थित गुरु ग्रह के हालात को जानकर उसको मजबूत करने का उत्तम उपाय हैं।



◆गुरु ग्रह को अशुभ एवं पापी ग्रहों के प्रभाव से मुक्त कराने के लिए इस कवचं स्त्रोतं का वांचन करना चाहिए।



◆मनुष्य के हस्तरेखा में स्थित गुरु पर्वत को मजबूती देने के लिए इस कवचं स्त्रोतं का पाठन करते रहने पर मनुष्य को फायदा मिलता हैं।



◆जन्मकुंडली में गुरु ग्रह के दुर्बल होने पर कमजोर गुरु ग्रह की महादशा या अन्तर्दशा के असर को कम कर देता है।



◆मनुष्य को शारीरिक रूप से बार-बार व्याधियों का सामना करना पड़ता है, उपचार करवाने पर ठीक नहीं होने पर इस कवचं स्त्रोतं का वांचन करने से व्याधियों से मुक्ति मिल जाती हैं।